बांधों से पर्यावरण को नुकसान : मोहन थपलियाल

28 May 2014
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भुवन पाठक द्वारा मोहन थपलियाल जी का लिया गया साक्षात्कार का कुछ अंश।

भाई साहब आप अपना परिचय दीजिए?
मैं तपोवन का पूर्व ग्राम प्रधान था उसके बाद में जिला पंचायत का सदस्य रहा।

मैं आपको ही ढूंड रहा था, आपसे इस परियोजना के संबंध में कुछ प्रश्न करने हैं। इस परियोजना के बारे में लोगों तथा आपकी क्या सोच है?
अभी, इस परियोजना के संबंध में लोगों को केवल लाभ ही लाभ दिखाई दे रहा है। उन्हें लगता है कि उन्हें लाभ मिलेगा, नौकरी मिलेगी और जमीन का डेढ़ लाख रुपया नाली मिलेगा आदि। अगर वास्तव में लोगों को यह सब मिल जाए तो जनता बहुत अधिक खुश होगी लेकिन ऐसा होगा नहीं, ये केवल एक अफवाह मात्र है।

जब बाद में जाकर उन्हें इसकी वास्तविकता का पता चलेगा तब वो आंदोलन पर उतरेंगे।

सरकार कह रही है कि वो परियोजनाओं के द्वारा विकास कर रही है, लेकिन आप उनकी परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं, क्या आप विकास पसंद नहीं हैं?
हम भी देश का विकास ही चाहते हैं लेकिन हम ऐसा विकास नहीं चाहते जो लोगों की लाश पर हो या उन्हें बेघर करके हो। हमने मांग की थी कि अगर वो हमारे तय की गई कीमत के अनुसार मूल्य नहीं दे सकते तो हमारी जमीनों के बदले जमीनें दे दें। और मकान बनाने के लिए पैसा दे दें। इसके लिए मैं खुद मुख्यमंत्री जी से मिला था, उनका कहना था कि हम सोचेंगे और जमीन की ठीक कीमत देंगे।

एन.टी.पी.सी. के अधिकारियों ने भी यही कहा कि हम कास्तकारों तथा अन्य लोगों से बात करके कीमत देंगे लेकिन अब वो बातचीत से हटकर सीधे ही अधिग्रहण की कार्यवाही कर रहे हैं।

क्या इस परियोजना से पर्यावरण या सुरक्षा पर पड़ने वाले कुप्रभावों के बारे में एन.टी.पी.सी. ने आम आदमी को जानकारी दी है?
आम आमदी को तो इसकी जानकारी नहीं दी गई है। लेकिन 4 तारीख को जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक बैठक हुई जिसमें सारधाम विकास के उपाध्यक्ष तथा राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त क्षेत्र के विधायक तथा डी.एम. की बैठक थी उसमें हम लोग भी मौजूद थे।

मैंने डी.एम. साहब से पूछा कि जब यहां भूकंप आया था तो भूवैज्ञानिकों ने इस क्षेत्र को जोन-5 में रखते हुए इसे अति संवेदनशील क्षेत्रों में गिना था, उनके अनुसार इस क्षेत्र के नीचे वो प्लेटें स्थित हैं जो तिब्बत जोन से आती हैं तो निश्चित है कि इससे भूगर्भीय हलचल तो होगी ही लेकिन उस सब के बावजूद भी यहां परियोजना के काम को कैसे मंजूरी मिल गई है क्योंकि इस परियोजना के कारण तो लाता से पीपलकोटी तक एक नहीं कई सुरंगे बनेंगी, सफाई टनल बनेंगे, डिसिल्टींग टैंक बनेंगे तथा पावर हाॅउस भी अंडर ग्राउंड ही बनेगा तो ऐसे में भूवैज्ञानिकों ने इसे कैसे पास कर दिया, क्या अब यह इलाका भू-गर्भीय दृष्टि से उपयुक्त हो गया है? उन्होंने मेरी बात का जवाब तो नहीं दिया, बस इतना ही कहा कि ये तो वो लोग ही जानें हमें इसके बारे में कुछ जानकारी नहीं है, हमें तो इतना पता है कि इस जमीन को सभी भू-वैज्ञानिकों को दिखा दिया गया था और उन्होंने इसे ठीक ही बताया है।

मैंने फिर सवाल किया कि आज यहां सरकार और शासन दोनों के ही आदमी, माननीय विधायक तथा जिलाधिकारी जी बैठे हैं तो क्या आप यह बता सकते हैं कि हमें जमीन के कितनी कीमत मिलेगी? लेकिन वो इसका भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए।

क्या आपने जी.एस.आई. द्वारा दी गई भूगर्भीय रिपोर्ट देखी है?
नहीं देखी है।

इन्होंने इसे देने के बारे में क्या कहा है?
नहीं, इन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा, इन्होंने जोशीमठ, सेलंग तथा तपोवन में सूचना केन्द्र खोल तो रखे हैं लेकिन ये चाहते हैं कि इनमें कोई न आए। मैंने, जब उनसे पूछा कि जब तुमने सूचना केन्द्र खोले हुए हैं तो लोग अपनी भूमि के बारे में जानने तो आएंगे ही, तो आप ऐसा क्यों कह रहे हैं कि यहां कोई न आए, इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हमारे पास ऐसी कोई भी रिपोर्ट नहीं है। इस प्रकार वो रिपोर्ट दिखाने को तो तैयार हैं ही नहीं इसके साथ ही उनकी जमीन की कीमत बताने को भी तैयार नहीं हैं।

इस प्रकार उन्होंने लोगों को बर्गलाने के लिए ही सूचना केन्द्र खोले हुए हैं और गलत जानकारियां दे रहे हैं। इन्हें पर्यावरण मंत्रालय से एन.ओ.सी. मिली हुई है, जो कि उन्होंने डी.एम. साहब के दबाव में आकर हमें भी पढ़कर सुनाई उसमें पर्यावरण मंत्रालय ने उन्हें निर्देश देते हुए ये भी कहा है कि आप नदी किनारे स्थित धार्मिक स्थलों में कोई छेड़छाड़ नहीें करेंगे, पुरातत्व महत्व की चीजों का संरक्षण किया जाएगा, उनकी तोड़फोड़ नहीं होगी आदि। ये बातें सुनकर मैंने, डी.एम. साहब से कहा कि लाता से पीपलबुटी तक हमलोगों के धार्मिक शमशान घाट है, जब ये पानी पूरा सुरंग के अंदर चला जाएगा, तो इन शमशान घाटों का क्या होगा? हम लोग मुर्दा कहां जलाएंगे? वो भी तो एक धार्मिक स्थल ही है।

इसमें यह भी लिखा हुआ है कि इस दौरान मंदिरों से छेड़छाड़ नहीं करनी होगी। लेकिन इन्होंने जो अधिग्रहण की कार्यवाही की है उसमें एक से अधिक मंदिरों को नुकसान होगा, एक और तो पर्यावरण मंत्रालय कह रहा है उनसे छेड़छाड़ नहीं करनी पड़ेगी, उनका संरक्षण करना पड़ेगा और दूसरी ओर यह सब हो रहा है तो ये सब बातें तो हमारी समझ में नहीं आई और एन.टी.पी.सी. भी हमारी किसी भी बात का संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाए।

उनके मानव संसाधन विभाग है, उससे कोई महाशय आए थे और उन्होंने कहा कि अगर आपको जमीन की कम कीमत मिलेगी तो हमारे यहां ऐसी व्यवस्था है जिससे हम उस पैसे से भी उन लोगों को कुछ देंगे। मुझे लगता है कि इन लोगों को केवल झूठे आश्वासन दिए जा रहे हैं। क्योंकि अगर उनकी मंशा ठीक होती तो वह प्रशासन, एन.टी.पी.सी के अधिकारी तथा जनता के प्रतिनिधि एक साथ बैठकर बातचीत करके समझौता करते लेकिन वो ऐसा कुछ भी नहीं कर रहे हैं।

हमने उनसे पूछा कि जो लोग बेघर हो रहे हैं उन्हें आप क्या देंगे तो इसका भी उनके पास कोई जवाब नहीं था।

इस परियोजना के बारे में आम लोगों की क्या प्रतिक्रिया है?
यहां के लोग तो भोले-भाले हैं। उन्हें इसकी भी स्पष्ट जानकारी नहीं है कि इस परियोजना से उन्हें क्या लाभ तथा क्या हानि हो रही है। लोगों के दिमाग में केवल यही बात है कि एन.टी.पी.सी. के आने से हमें नौकरी मिलेगी और यहां पर मार्केट चलेगा आदि।

एन.टी.पी.सी. उन्हें केवल फायदे ही दिखा रहा है उन्हें होने वाले नुकसान की बात तो कर ही नहीं रहा है। उन्हें इसकी समझ ही नहीं है कि कल जब सुरंग में पानी भर जाएगा तो उनका कितना नुकसान होगा, और अगर यहां लोग मर जाएंगे तो उनका अंतिम संस्कार तक करने के लिए जगह नहीं मिलेगी और हमारे कई धार्मिक स्थल नष्ट हो जाएंगे, इसके बारे में तो वह कुछ जानते ही नहीं हैं।

इससे पहले भी उत्तरांचल के हिमालय में कई परियोजनाएं बनी थी, उनका अध्ययन करने के लिए कमेटी बनी थी, क्या इस परियोजना के लिए भी ऐसी ही प्रयास किया गया है?
इस तरह की कोई कमेटी यहां नहीं बनी है। एक बार यहां पर्यावरण मंत्रालय के लोग आए थे, उस दिन लोक सुनवाई भी हुई थी, लेकिन लोगों को डी.पी.आर.आदि कुछ भी नहीं दिखाया गया बस, दो तीन लोगों ने उनकी रिपोर्ट पढ़ी उसके अनुसार यहां पुरातत्व महत्व की कोई भी चीज नहीं है। और यह क्षेत्र जड़ी-बूटी शून्य क्षेत्र में गिना जाता है आदि।

वो रिपोर्ट किस भाषा में लिखी गई है?
स्वयं हमने रिपोर्ट नहीं देखी, हमारे पूर्व विधायक माननीय कुंवर सिंह नेगी ने वो रिपोर्ट देखी थी और उन्होंने ही कहा कि यहां इतनी अधिक जड़ी-बूटियां मिलती हैं लेकिन उन्होंने इसे जड़ी-बूटी शून्य क्षेत्र दिखाया है। इसको पुरातत्व की दृष्टि से महत्वहीन क्षेत्र बताया है जबकि तपोवन में गर्म पानी के स्रोत हैं, वहां पर पार्वती जी की तपस्थली है, पुरातत्व महत्व के मंदिर हैं, यहां बड़गांव में सुन्दारी राजा का महल है, जोशीमठ में नरसिंह भगवान का मंदिर है, आदि गुरू शंकराचार्य की तपस्थली है, अनुमठ में वृद्ध बद्रीनाथ है।

इस प्रकार यहां पुरातत्व महत्व की इतनी सारी चीजें होने के बाद भी इस क्षेत्र को पुरातत्व शून्य बताया गया है। जब हमने इस बारे में उनसे जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने कोई भी उत्तर नहीं दिया। अभी जोशीमठ संघर्ष समिति की बात भी हमारी समझ में नहीं आ रही है। उसमें भारतीय कांग्रेस पार्टी माले वाले, जादव कह रहे हैं कि यहां परियोजना नहीं बननी चाहिए।

लेकिन अभी कुछ दिन पहले मैंने अखबार में पढ़ा कि गोवा में एक चलता हुआ प्रोजेक्ट बंद हो गया और लोग उसे पुनः चालू करने की मांग कर रहे हैं और हमारे यहां के लोग उसे बंद करने की मांग कर रहे हैं। हम तो कह रहे हैं कि अगर वह भू-गर्भीय दृष्टि से ठीक हैं और इसमें कोई खतरा नहीं है तो जनता की भलाई के लिए ऐसी परियोजना बननी चाहिए और अगर उसमें खतरा है तो उसे बंद कर दिया जाना चाहिए।

इसमें सुरक्षा, एक महत्वपूर्ण सवाल बना हुआ है। क्या इसके लिए ऐसी किसी एक स्वतंत्र कमेटी को बनाने पर विचार हुआ है जिसमें एन.टी.पी.सी. या प्रशासन का कोई दखल न हो?
अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है, डी.एम. साहब ने कहा है कि हम तपोवन, ढाका, रविग्राम, पैनी, सेलंग तथा एक अन्य गांव में कमेटी बनाएंगें इसमें छः लोग गांवों के होंगे, दो आदमी एन.टी.पी.सी. के होंगे तथा प्रशासन का एक आदमी होगा। मुझे लगता है कि अगर यह बन जाए तो ठीक रहेगा। लेकिन मेरी समझ में यह बात नहीं आ रही कि जब पूरे उत्तरांचल में अधिग्रहण का एक ही कानून है और कानून बदलने के सभी अधिकार विधान सभा के पास हैं।

विधान सभा में इस बारे में विधेयक आने पर ही इसमें कुछ सुधार हो सकता है तो एक साधारण आदमी के पास ऐसी कौन सी शक्ति आ जाएगी कि वो इस जमीन की कीमत को बदल सकेंगे। और न ही लोगों की भलाई करने की सरकार की मंशा ही है, अगर ऐसा कुछ होता तो वह विधान सभा में विधेयक लाती, कानून बनाती ताकि लोगों को उनकी जमीन की सही कीमत मिल सके, उन्हें रोजगार मिल सके, वो बेघर न हों और उन्हें पलायन न करना पड़े। लेकिन वो ऐसा कुछ भी नहीं करेगी क्योंकि यह परियोजना एक लाभ का सौदा है और वो अपने लाभ के आगे जनता को होने वाले नुकसान के बारे में कुछ भी नहीं सोच रहे हैं।

तपोवन में इसका सूचना केन्द्र बना है, क्या वो ठीक काम कर रहा है?
मैंने पहले भी कहा है कि इनके पास कोई भी सूचना उपलब्ध नहीं है। चाहे आप तपोवन में जाएं या फिर जोशीमठ में सभी जगह जाने पर आपके हाथ निराशा ही लगेगी। अगर आपको और अधिक जानकारी चाहिए तो आप वहां जाकर इनसे पूछ सकते हैं।

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