बांग्लादेशः आर्सेनिक का प्रकोप

6 Sep 2015
0 mins read

1. बांग्लादेश में आर्सेनिक की समस्या की उत्पत्ति कैसे हुई ?
आर्सेनिक प्रदूषणसत्तर के दशक के पूर्वार्ध में ग्रामीण बांग्लादेश के लोग अपने पेयजल की दैनिक आवश्यकता की पूर्ति हेतु नदी व तालाबों जैसे सतही जलनिकायों पर निर्भर थे। इसके फलस्वरूप दस्त, पेचिस व हैजे जैसी जीवाणु-संदूषित पानी से जुड़ी बीमारियाँ चारों ओर फैल गई थीं। इन बीमारियों तथा पेयजल सम्बन्धी समस्या के निवारण के लिए सरकार ने भूजल के दोहन की नीति अपनाई। सरकार ने यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रन्स फण्ड (यूनीसेफ) व विश्व बैंक जैस अन्तरराष्ट्रीय संगठनों की आर्थिक मदद से गाँवों में ट्यूबवैल व हैण्डपम्प द्वारा पीने का पानी मुहैया कराना शुरू कर दिया। यूनीसेफ ने अपने सह संयोजक के साथ यह कार्यक्रम आरम्भ किया और पहले नौ लाख ट्यूबवैल के पैसे भी दिये। यद्यपि बांग्लादेश में अनुदान के रूप में अरबों डाॅलर की सहायता से सुरक्षित पेयजल प्रदान करने हेतु 80 से 120 लाख ट्यूबवैल लगाए गए, परन्तु विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यह तो इतिहास के पन्नों में सार्वजनिक रूप से विषाक्तता फैलाने की सबसे बड़ी दुर्घटना- आर्सेनिक का संकट के लिए एक राष्ट्रव्यापी मंच तैयार करने जैसा था।

2. आर्सेनिक प्रदूषण का विस्तार व उसकी भयावहता का स्तर क्या है?
सन 2000 में कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय, अमरीका के वैज्ञानिक एलन स्मिथ की एक रिपोर्ट, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की बुलेटिन के अनुसार “आर्सेनिक द्वारा फैलने वाले जहर के इस पर्यावरणीय हादसे की भयावहता आज तक हुए किसी भी पर्यावरणीय संकट से बढ़कर है, यहाँ तक कि 1984 की भोपाल दुर्घटना तथा 1981 की चेर्नोबील, यूक्रेन की दुर्घटना इसके सामने नहीं ठहरते।”

आर्सेनिक सम्बन्धी तथ्य

एक भयानककहानी

कुल क्षेत्रफल

147,620 वर्ग कि.मी.

आर्सेनिक प्रभावित क्षेत्रफल

118,849 वर्ग कि.मी.

कुल जनसंख्या

12 करोड़, 20 लाख

आर्सेनिक से प्रभावित जनसंख्या

10 करोड़ 4.9 लाख

कुल जनपद

64

आर्सेनिक प्रभावित जिले जहाँ आर्सेनिक स्तर 10 पीपीबी से अधिक है।

60

आर्सेनिक प्रभावित जिले जहाँ आर्सेनिक का स्तर 50 पीपीबी से अधिक है

50

स्रोत : जर्नल ऑफ इन्वायरन्मेंटल मॉनीटरिंग, 2004, 6

 


बांग्लादेश में आर्सेनिक से सर्वाधिक प्रभावित गाँव समता को देखकर पता चलता है कि यह संकट राष्ट्र के कोने-कोने तक फैल चुका है। बाहर से यह गाँव एक आदर्श ग्रामीण अंचल प्रतीत होता है। लहराते वृक्षों के मध्य खूबसूरत मिट्टी के मकान, साफ-सुथरे आँगन व गाँव वालों द्वारा सींची गई हरी-भरी सब्जियों की क्यारियाँ। सचमुच, यह विवरण उस स्थान का नहीं लगता जहाँ दुनिया का सबसे भयानक पर्यावरणीय हादसा घट रहा हो। चार कदम टहलिए और आपको सत्य की भयावहता के प्रत्यक्ष दर्शन हो जाएँगे। गाँव वाले केराटोसिस से प्रभावित पैर, काले चकत्तों से भरे अंग, चार उँगलियों वाले हाथ तथा उन घावों को दिखाएँगे जहाँ से घातक ट्यूमर काटकर फेंक दिए गये हैं। चिन्हित हैंडपम्पकुल 5,000 लोगों के इस गाँव में 250 लोग आर्सेनिक के कारण इतने बीमार है कि अब बच नहीं सकते, जिनमें युवा माताओं से लेकर बुजुर्ग लोग भी शामिल हैं। इनमें से 25 लोग तो मौत की नींद सो चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की भविष्यवाणी है कि इस गाँव के 6.5 प्रतिशत प्रौढ़ आर्सेनिक के प्रकोप से अन्ततोगत्वा कैंसर के शिकार हो जाएँगे।

3. क्या इस प्रकोप को कम करने के लिए कोई कदम उठाया जा रहा है?
यह संकट जंगल की आग की तरह सारे देश में फैल गया है। इस पर अंकुश लगाने का अब तक अपनाया गया सबसे कारगर तरीका ट्यूबवैल से निकलने वाले पानी की जाँच है। परन्तु जब तक पुराने ट्यूबवैलों की जाँच होती है तब तक और नये ट्यूबवैल खुद जाते हैं, खासकर निजी कम्पनियों के इस क्षेत्र में कूद पड़ने के कारण। जब 1998 में बांग्लादेश को इस समस्या के समाधान के लिए 340 लाख अमरीकी डाॅलर का ब्याज मुक्त कर्जा दिया था तब बांग्लादेश आर्सेनिक मिटिगेशन एण्ड वाॅटर सप्लाई योजना का जन्म हुआ था, इस परियोजना को सरकारी अनुदान एजेंसियाँ चलाती थी। परन्तु बांग्लादेश के लिए आर्सेनिक पर अंकुश पाने के लिए कौन सी प्रौद्योगिकी सबसे उचित होगी, इस अनिश्चितता के कारण 2004 तक इस कर्जे का केवल छटे भाग से थोड़ा ज्यादा ही प्रयुक्त हुआ था। इसके बाद दिये जाने वाले 550 लाख अमरीकी डाॅलर में से 40 विश्व बैंक दे रहा है तथा शेष धन सरकार, निजी क्षेत्र व सामुदायिक योगदान द्वारा एकत्रित किया जा रहा है।

वैसे तो आठ सालों में 890 लाख अमरीकी डाॅलर की राशि बड़ी रकम लगती है, परन्तु वास्तव में इस जोखिम में पड़ने वाले हर व्यक्ति के लिए एक डाॅलर या उससे कम ही बनता है। सन 2002 के वित्तीय वर्ष में विश्व बैंक की कुल आय 27,780 लाख अमरीकी डाॅलर थी। और अन्य पर्यावरणीय हादसों पर खर्च की गई रकम की तुलना में बांग्लादेश को दी गयी यह राशि बेहद कम है। ऐक्सान कम्पनी ने सन 1999 में अमरीका के आलास्का क्षेत्र के प्रिंस विलियम साउन्ड इलाके में ऐक्सान वाल्डेज द्वारा तेल फैलाने के जुर्म में उसकी सफाई के लिए 5 करोड़ अमरीकी डाॅलर का मुआवजा चुकाया था। इस दुर्घटना में खाड़ी की 300 सील मछलियाँ, 2,800 समुद्री ऊदबिलाव, 250 बाॅल्ड चीलें तथा शायद दो किलर व्हेल मारी गईं थी। इन समुद्री जानवरों की मदद के लिए 5 करोड़ अमरीकी डाॅलर की रकम लगाई गई, जबकि बांग्लादेश में आर्सेनिक से प्रभावित 10 करोड़ 50 लाख लोगों की मदद के लिए मात्र 890 लाख अमरीकी डाॅलर की छोटी सी राशि प्राप्त हुई।

आर्सेनिक द्वारा भूजल का संदूषणसन 2004 में जब यह पता चला कि अमेरिका के मियामी इलाके में 70 घरों की जल आपूर्ति हेतु प्रयोग में लाए जाने वाले कुँओं के पानी में आर्सेनिक का स्तर 52-81 पीपीबी पाया गया तब कुएँ के पानी को साफ करने के लिए 7 लाख 50 हजार डाॅलर की कीमत प्रदान की गई थी। यानि कि 10 हजार डाॅलर प्रति परिवार से अधिक। अमेरिका के 2 लाख 3 हजार आबादी वाले शहर स्कौटसडेल को 18 महीने के लिए 640 लाख अमरीकी डाॅलर दिये गये। ताकि वहाँ का पानी 10 पीपीबी आर्सेनिक के नये मानक के अनुरूप हो।

वित्तीय संसाधनों के अभाव के अलावा, इस आपदा से जूझने के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचा तक बांग्लादेश के पास नहीं है, जिसे खड़ा करने में राजनैतिक इच्छा व संसाधनों की उपलब्धि के बावजूद भी वर्षों लग जाएँगे। वर्तमान में, बांग्लादेश में 3,000 मील से भी कम रेलवे लाइन हैं, हर 500 लोगों के बीच एक टेलीफोन तथा हर 2,500 लोगों के बीच एक मोटर गाड़ी उपलब्ध है। विश्व बैंक के अनुसार सन 2004 में बांग्लादेश के प्रत्येक अस्पताल ने 10 से 30 लाख लोगों को सेवाएँ प्रदान की हैं।

आर्सेनिक से प्रभावित पैरसबसे अधिक प्रभावित कुछेक गाँव के लिए यूनीसेफ व अन्य अनुदान एजेंसियों ने स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति की व्यवस्था की है। परन्तु जैसा कि विश्व बैंक ने 2004 में बतलाया हैः “बांग्लादेश की इस दुर्घटना की अप्रत्याशित प्रकृति, विशालता, पेचीदगियों को देखते हुए.. साथ ही पर्याप्त समन्वयन प्रयासों के अभाव में... आर्सेनिक पर अंकुश लगाने की इस प्रक्रिया में राष्ट्रीय से स्थानीय स्तर तक बहुत देर लग रही है।” क्या आर्सेनिक का जहर बांग्लादेश की मौत का कारण बनेगा? इस सवाल का जवाब तो आने वाला समय ही बतायेगा। यह सब बांग्लादेश सरकार व अन्तरराष्ट्रीय अनुदान एजेंसियों की कार्यवाही पर निर्भर करेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आर्सेनिक पर अंकुश पाने में तभी सफलता मिल पायेगी जब इस देश की जनता की सरकार की बीमार व्यवस्था तथा इस संकट से जूझने व उस पर काबू पाने की इच्छा शक्ति प्रबल हो।

कहाँ खो गई मन्जिल?


बांग्लादेश के आर्सेनिक पीड़ितों की सबसे बड़ी हार तब हुई जब फरवरी 2004 में, ब्रिटिश कोर्ट आॅफ अपील ने ब्रिटिश भूवैज्ञानिकों के एक दल को बांग्लादेश के पानी में आर्सेनिक प्रदूषण का पता न लगा पाने का जिम्मेदारी ठहराने का अपील को ठुकरा दिया।

सन 2002 में बांग्लादेश के ब्राह्मणबाड़िया इलाके के विनोद सूत्रधार व लकी बेगम ने ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे (बीजीएस) को कोर्ट में घसीट लिया। उनका दावा था कि जब 1983-1992 के दौरान यूनीसेफ व विश्व बैंक के अन्तर्गत एक परियोजना में जो कुएँ खोदे गए उनके जल को बीजीएस ने आर्सेनिक की उपस्थिति के लिए जाँचा नहीं। इसी के परिणाम स्वरूप बांग्लादेश के निवासी अनभिज्ञ बरसों इस पानी को पीते रहे और आर्सेनिक के शिकार होते चले गए।

बीजीएस ने इन आरोपों का खण्डन किया। बीजीएस की मातृ संस्था नेशनल एनवायरन्मेंट रिसर्च काउंसिल (एनईआरसी) के अनुसार बीजीएस को आर्सेनिक विषाक्तता के लिए दोषी इसीलिए नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि इस अन्तराल के दौरान इस इलाके में आर्सेनिक की उपस्थिति का किसी को भी ज्ञान नहीं था।

परन्तु विशेषज्ञों ने इन दलीलों को ठुकरा दिया है। कोलकोता के जादवपुर विश्वविद्यालय के पर्यावरणीय अध्ययन विभाग के निदेशक व आर्सेनिक विशेषज्ञ दीपांकर चक्रवर्ती का कहना है कि सन 1984 में भी नदी घाटियों के क्षेत्र में आर्सेनिक के प्रदूषण की जानकारी थी। उन्होंने इंगित किया कि आर्सेनिक प्रदूषण से सम्बन्धित शोध पत्र विश्व स्वास्थ्य संगठन की पत्रिका तथा लासेंट जैसी प्रसिद्ध पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके थे। “बीजीएस ने स्वयं 1989 में इंग्लैण्ड के भूजलाशयों में आर्सेनिक की उपस्थिति की जाँच की थी परन्तु उसने 1992 में बांग्लादेश में वही जाँच करने की जहमत नहीं उठायी,” ऐसा चक्रवर्ती का आरोप है।

सन 2003 में लंदन हाईकोर्ट ने इस बात की पुष्टि कि की बीजीएस को इस मामले में उचित जवाब देना होगा और यदि आर्सेनिक-पीड़ित इस दावे को आगे बढ़ाएँ तो इस मुकदमें में उनके जीतने की पूरी सम्भावना है। परन्तु सन 2004 में लंदन हाईकोर्ट के इस फैसले को पूरी तरह पलटते हुए लंदन के कोर्ट आॅफ अपील ने एनईआरसी के खिलाफ इस मुकदमें को ही खारिज कर दिया, यह दलील देते हुए कि इस केस में आर्सेनिक पीड़ितों के दावे में कोई दम नहीं है और यह मुकदमा ही बे-बुनियाद है। इस तरह के एकतरफा फैसले से विकासशील दुनिया के प्रति विकसित देशों के पक्षपातपूर्ण रवैये के साथ-साथ कई अन्य नाजुक मुद्दों पर भी सवालिया निशान खड़ा हो जाता है, जैसे कि क्या बीजीएस जैसे संगठन की एक बांग्लादेश जैसे गरीब देश की जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं बनती, जबकि उनकी सहायता के लिए बीजीएस को अन्तरराष्ट्रीय अनुदान की राशि प्रदान की गई थी ?

यदि यह फैसला आर्सेनिक-पीड़ितों के हम में जाता तो इस प्रकार के द्विपक्षीय अनुदान कार्यक्रमों द्वारा शोध तथा अन्य कार्यों हेतु दी गई अनुदान-राशि से की गई कार्यवाही के परिणाम की नैतिक जवाबदेही को समुचित रूप से परिभाषित किया जा सकता था। अनुदान देने वाली एजेंसियों को विकासशील देशों में उनके कार्य के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता था। परन्तु ऐसा नहीं हुआ।

 

भूजल में संखिया के संदूषण पर एक ब्रीफिंग पेपर

अमृत बन गया विष

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)   

1.

आर्सेनिक का कहर

2.

बंगाल की महाविपत्ति

3.

आर्सेनिक: भयावह विस्तार

4.

बांग्लादेशः आर्सेनिक का प्रकोप

5.

सुरक्षित क्या है

6.

समस्या की जड़

7.

क्या कोई समाधान है

8.

सच्चाई को स्वीकारना होगा

9.

आर्सेनिक के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले सवाल और उनके जवाब - Frequently Asked Questions (FAQs) on Arsenic

 

पुस्तक परिचय : ‘अमृत बन गया विष’

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading