बच्चों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव

बच्चों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव
बच्चों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा  ‘एयर पॉल्यूशन एंड चाइल्ड हेल्थ : प्रेसक्राईबिंग क्लीन एयर’  शीर्षक से वायु प्रदूषण और बाल स्वास्थ्य पर जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में 15 साल से कम उम्र के लगभग 93% बच्चे (1.8 अरब बच्चे) हर दिन ऐसी हवा में साँस लेते हैं जो प्रदूषित है और यह प्रदूषित हवा बच्चों के स्वास्थ्य एवं विकास पर गंभीर प्रभाव डालती है। इन गंभीर प्रभावों के कारण इनमें से कई बच्चों की मौत हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि 2018 में 600,000 बच्चे प्रदूषित हवा के कारण होने वाले श्वसन संक्रमण के कारण मर गए थे।

इस रिपोर्ट के अनुसार, जब गर्भवती महिलाएँ प्रदूषित हवा के संपर्क में आती हैं तो उनमें समय से पहले बच्चे को जन्म देने की संभावना अधिक होती है और इस प्रकार जन्मे बच्चे छोटे तथा जन्म के समय कम वज़न वाले होते हैं। वायु प्रदूषण मस्तिष्क विकास और संज्ञानात्मक क्षमता को भी प्रभावित करता है साथ ही यह अस्थमा तथा चाइल्डहुड कैंसर का भी कारण बन सकता है। जो बच्चे उच्च स्तर के वायु प्रदूषण के संपर्क में आते हैं उनमें उम्र बढ़ने के साथ-साथ ह्रदय संबंधी बीमारी होने का जोखिम अधिक होता है।

प्रदूषित हवा लाखों बच्चों के लिये ज़हर का काम कर रही है और उनके जीवन को बर्बाद कर रही है, जो कि उचित नहीं है। अतः यह सुनिश्चित किया जाना ज़रूरी है कि सभी बच्चे स्वच्छ हवा में साँस ले सकें ताकि वे पर्याप्त विकास कर सकें और अपनी पूरी क्षमता प्राप्त कर सकें। वायु प्रदूषण से प्रभावित बच्चों के विशेष रूप से कमज़ोर होने का एक कारण यह है कि वे वयस्कों की तुलना में अधिक तेज़ी से साँस लेते हैं और इसलिये अधिक प्रदूषक अवशोषित करते हैं। नवजात शिशु और छोटे बच्चे घरों में घरेलू वायु प्रदूषण के प्रति भी अधिक संवेदनशील होते हैं, जहाँ खाना पकाने के लिये, गर्मी के लिये और प्रकाश के लिये नियमित रूप से प्रदूषण फ़ैलाने वाले ईंधन और प्रौद्योगिकियों का उपयोग किया जाता है।

वायु प्रदूषण मस्तिष्क के विकास को प्रभावित करता है, जिससे बच्चों की संज्ञानात्मक क्षमता कम हो जाती है। इस प्रकार यह बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। वैश्विक स्तर पर, 15 वर्ष से कम उम्र के 93% बच्चे ऐसे परिवेश में रहते हैं, जहाँ वायु में पर्टिकुलेट मैटर का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित PM (पर्टिकुलेट मैटर) 2.5 की तुलना में उच्च है, जिसमें 5 साल से कम आयु के 630  बच्चे और 15 साल से कम आयु के 1.8 अरब बच्चे शामिल हैं।

5 वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों में से 98% दुनिया के निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं, जहाँ PM 2.5 स्तर उच्च है। तुलनात्मक रूप से, उच्च आय वाले देशों में, 5 वर्ष से कम आयु के 52% बच्चे ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ की हवा में PM2.5 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन  द्वारा निर्धारित PM2.5 के स्तर से उच्च है। 2018 में 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों के मामले में लगभग 600,000 मौतों के लिये परिवेश और घरेलू वायु प्रदूषण के संयुक्त प्रभाव ज़िम्मेदार थे। कम और मध्यम आय वाले देशों में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में होने वाले श्वसन संक्रमण के लिये खाना पकाने के कारण होने वाला घरेलू वायु प्रदूषण और परिवेश (बाहरी) वायु प्रदूषण 50% से अधिक ज़िम्मेदार हैं। वायु प्रदूषण बाल स्वास्थ्य के लिये प्रमुख खतरों में से एक है, जो कि पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों में लगभग 10 में से 1 मौतों के लिये जिम्मेदार है।

भारत को दुनिया में सबसे ज़्यादा वायु प्रदूषण से संबंधित मृत्यु दर और बीमारी के बोझ का सामना करना पड़ता है। यहाँ हर साल 2 मिलियन से अधिक मौतें होती हैं, हवा की खराब गुणवत्ता के कारण होने वाली मौतों की संख्या में 25% भागीदारी भारत की है। वर्ष 2016 में भारत में पाँच साल से कम उम्र के लगभग 1,00,000 बच्चे मारे गए, उनके स्वास्थ्य में जटिलताओं का कारण बाह्य और घरेलू वायु प्रदूषण का स्तर था। भारत के बाद, 98,001 बाल मृत्यु के आँकड़ों के साथ नाइजीरिया दूसरे स्थान पर रहा. इसके बाद क्रमशः पाकिस्तान, कांगो और इथियोपिया लोकतांत्रिक गणराज्य इस श्रेणीं में शामिल हैं। भारत उन देशों में से एक है जहाँ पाँच वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों में से 98 प्रतिशत से अधिक बच्चे ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ PM 2.5 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित स्तर से अधिक है।

सभी देशों को बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों के लक्ष्य की प्राप्ति करने के लिये काम करना चाहिये। इसे प्राप्त करने के लिये, सरकारों को वैश्विक ऊर्जा के रूप में जीवाश्म ईंधन पर अधिक निर्भरता को कम करने, ऊर्जा दक्षता में सुधार और अक्षय ऊर्जा स्रोतों के उत्थान को सुविधाजनक बनाने वाले उपायों को अपनाना चाहिये। उल्लेखनीय है की भारत में अभी भी 65% लोग खाना बनाने के लिये जीवाश्म ईंधन का उपयोग करते हैं।

बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन समाज के द्वारा जलाए जाने वाले अपशिष्ट की मात्रा को कम कर सकता है और इस प्रकार 'सामुदायिक वायु प्रदूषण' को कम किया जा सकता है। घरों में खाना पकाने, हीटिंग और प्रकाश व्यवस्था के लिये स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और ईंधन का विशेष उपयोग घरों और आसपास के समुदाय में हवा की गुणवत्ता में काफी सुधार कर सकता है। प्रदूषित हवा से बच्चों बचने के लिये कदम उठाए जाने चाहिये। जैसे-स्कूलों और खेल के मैदानों को व्यस्त सड़कों, कारखानों तथा बिजली संयंत्रों जैसे वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों से दूर रखा जाना चाहिये। बच्चों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण का प्रभाव निम्न प्रकार है:

  • फेफड़ों के विकास बाधक
  • फेफड़ों की क्रियाशीलता में कमी
  • श्वसन संबंधी संक्रमण
  • मानसिक और शारीरिक विकास बाधित होना
  • व्यवहार संबंधी विकार
  • जन्म के समय कम वज़न
  • समय से पहले जन्म
  • शिशु मृत्यु
  • चाइल्डहुड कैंसर
  • वयस्क होने पर ह्रदय संबंधी बीमारियों, डायबिटीज़ और पक्षाघात का खतरा

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वर्ष 2016 में बाह्य तथा घरेलू वायु प्रदूषण के कारण 5 साल से कम उम्र के 543,000 जबकि 5 से 15 वर्ष की आयु के 52,000 बच्चों की मृत्यु हो गई। बच्चे समाज का भविष्य हैं लेकिन वे इसके सबसे कमजोर सदस्य भी हैं। वायु प्रदूषण के कारण बच्चों के स्वास्थ्य को होने वाले खतरों को देखते हुए वैज्ञानिकों एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञों को इस पर केंद्रित अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिये। सामूहिक, समन्वित प्रयासों के माध्यम से, वैज्ञानिकों एवं स्वास्थ्य विशेषज्ञों को इस खतरे को प्राथमिकता के रूप में हल करने के लिये एक साथ आना चाहिये। हर दिन प्रदूषित हवा के संपर्क में आने वाले लाखों बच्चों को बचाने के लिये यह आवश्यक है कि तत्काल सही दिशा में यथोचित कदम उठाए जाएँ।


लेखक

डाॅ. दीपक कोहली, उपसचिव

वन एवं वन्य जीव विभाग, उत्तर प्रदेश

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