बढ़ता वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिये गम्भीर खतरा

 

बड़े स्तर पर हो रहा प्रदूषण स्वास्थ्य के लिये खतरा है। विश्व संस्थाएं बहुत चिंतित हैं और वे प्रदूषण रोकने के लिये कड़े कदम उठाने के पक्ष में हैं जो उद्योग प्रदूषण फैला रहे हैं, उन पर भारी कर तथा जुर्माना लगाये जाने की सिफारिशें भी की गयी हैं। भारत सरकार ने भी पर्यावरण के मानकों को पालन नहीं करने वाले उद्योगों के विरुद्ध कार्यवाही करना प्रारम्भ कर दिया है।

आज धरती पर जीवन खतरे में पड़ गया है क्योंकि पर्यावरण इस तरह से प्रदूषित हो गया है कि पृथ्वी के सारे जीव संकट में पड़ गये हैं, हाल ही में वाशिंगटन स्थित वर्ल्ड वाच इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में चेतावनी दी गयी है कि समूचे संसार में अकल्पनीय जीव-नाश शुरू हो चुका है। रिपोर्ट के अनुसार संसार की तीन चौथाई पक्षी विनाश के कगार पर हैं और मेढ़कों की संख्या संसार में लगातार कम हो रही है।

प्रदूषण से वायुमंडल तो बुरी तरह प्रभावित हो ही रहा है, इससे जलवायु और मानव समाज भी प्रभावित हो रहा है। आधुनिक टेक्नोलाॅजी और विकास के परिणामस्वरूप प्रदूषण और इससे सम्बंधित समस्याएं बढ़ी हैं। वनों की कटाई से जीवन के स्तर में बड़ी गिरावट आयी है। इससे वर्षा के क्रम में परिवर्तन हो रहा है और भूमि का विनाशकारी कटाव हो रहा है।

नाइट्रोजनी उर्वरकों के अधिक उपयोग से नदियों के पानी में नाइट्रेटों की मात्रा बढ़ रही है। इनका घनत्व बढ़ जाने से पीने का पानी भी प्रदूषित हो रहा है। नाइट्रेट की अधिक मात्रा विषैली होती है और पेट के कैंसर का कारण बनती है, इनका संचयन मानव स्वास्थ्य के लिये जोखिमकारी है। सामान्य भारतीय के शरीर के ऊतकों में संचयित डी.डी.टी. की मात्रा संसार में अधिकतम है।

विश्व भर में लगभग 50 करोड़ आॅटोमोबाइलों में उपयोग हो रहा ईंधन प्रदूषण का एक बड़ा कारण है। वर्ष 1982 के सर्वे के अनुसार पर्यावरण नियंत्रण के सभी नियमों के बाद भी विकसित देशों में 150 लाख टन कार्बनमोनो ऑक्साइड 10 लाख टन नाइट्रोजन ऑक्साइड और 15 लाख टन हाइड्रोकार्बन प्रति वर्ष वायुमंडल में पहुँचते हैं। ईंधनों के जलने से कार्बन मोनो ऑक्साइड की जो मात्रा वायुमंडल में आती है, वह अरबों टन प्रतिवर्ष है, संसार में 70 प्रतिशत वायुमंडल प्रदूषण विकसित देशों के कारण हो रहा है।

भारत तुलनात्मक दृष्टि से अल्पविकसित देश है, लेकिन यहाँ भी सल्फरडाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन के रूप में कुछ लाख टन प्रदूषक वातावरण में पहुँचते हैं। प्रदूषण में बम्बई और कलकत्ता शहरों की सूची में सबसे ऊपर है। उन 41 शहरों में दिल्ली का स्थान चौथा है जो वायु प्रदूषण के लिये विश्व में अनुश्रवित (मॉनीटर) किये जाते हैं। यहाँ लगभग 19 लाख आटोमोबाइल वायु प्रदूषित करते हैं। विषैली गैसें नजफगढ़ (दिल्ली), पाली (राजस्थान), चेंबूर (महाराष्ट्र) धनबाद (बिहार) सिंगरौली (उत्तर प्रदेश) और गोविंदगढ़ (पंजाब) में विनाशकारी सिद्ध हो रही हैं। नीरों (राष्ट्रीय पर्यावरण यांत्रिकी अनुसंधान संस्थान) के अनुसार मुंबई और दिल्ली में कार्बन मोनो ऑक्साइड क सांद्रता 35 पी.पी.एम. (भाग प्रति दस लाख भाग) तक अधिक है, जबकि इसकी 25 पी.पी.एम. जहरीलेपन के लिये पर्याप्त है और 9 पी.पी.एम. स्वीकृत सीमा है।

ऐसे प्रदूषणों से फेफड़े का कैंसर अस्थमा, श्वसनी शोथ, तपेदिक आदि अनेक बीमारियाँ हो रही है। दिल्ली का स्थान फेफड़ों की बीमारियों में सबसे ऊपर है। यहाँ की 30 प्रतिशत से अधिक आबादी सांस की बीमारियों से पीड़ित है। दिल्ली में श्वांस नली और गले की बीमारियाँ 12 गुना अधिक हैं। इसका कारण है नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, लेड ऑक्साइड आदि जहरीली गैसें, दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास कुछ क्षेत्रों में कणिकीय पदार्थ (धूल) हवा में 945 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक अधिक हैं। यह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सुरक्षित मात्रा से 20 गुनी अधिक बतायी जाती है। नीरो के अध्ययन के अनुसार जो लोग प्रदूषित गंगा में नहाते हैं उनमें पानी से होने वाले रोग अधिक हैं। एक अन्य सर्वे के अनुसार बनारस की आबादी में सेंपिल जाँच में 14.4 प्रतिशत लोग डायरिया से और नवादविष में 18.9 प्रतिशत लोग परजीव संक्रमण से पीड़ित हैं।

आज दिल की बीमारी के बाद कैंसर सबसे बड़ी घातक बीमारी है। लगभग 80 प्रतिशत कैंसर प्रदूषित वातावरण के कारण है। हानिकारक रासायनिक पेट्रोल, डीजल, कोयला, लकड़ी, उपलों, सिगरेट आदि का धुआँ कैंसरकारी है, भारत में कैंसर के मरीजों की संख्या लगभग 20 लाख हैं।

उद्योगों और मोटरवाहनों से लेड प्रदूषण बढ़ रहा है। इससे पर्यावरण के गम्भीर खतरे सामने आ रहे हैं। आॅटोमोबाइल और डीजल इंजन से निकले हुए धुएँ में लेड होता है। यह कैंसरकारी है, आॅटोमोबाइल का धुआँ धूल के रूप में संचित होता है। शहरों की सड़कों की धूल मिट्टी में 2 ग्राम लेड प्रति किलो धूल में पाया जाता है। इससे भी ज्यादा कारों से निकला धुआँ साँस के साथ अन्दर जाकर आसानी से दिमाग, लिवर, किडनी और रक्त में अवशोषित हो जाता है। यह धीरे-धीरे संचयी विष बनकर दिमाग की हानि, पेशी लकवा, दौरे और मृत्यु का कारण भी बनता है। इस कारण से बहुत से विकसित देशों में पेट्रोल में लेड मिलाने पर रोक लगा दी गई है, भारत में लेड की बढ़ रही मात्रा मुंबई, कलकत्ता और दिल्ली में चिंता का विषय है।

सन 1991 में हुए खाड़ी युद्ध में संसार के पर्यावरण संतुलन को विनाश के गड्ढ़े में धकेल दिया। वहाँ जो मानव और पर्यावरण की हानि हुई वह संसार में हुए हिरोशिमा, भोपाल और चेरनोविल में हुई बर्बादी से कम नहीं है। कुवैत के तेल कुओं, पेट्रोल रिफ़ाइनरी के जलने तथा तेल के फैलने, कुवैत के आस-पास का विशाल क्षेत्र प्रदूषित हुआ है। मोटे धुएँ की परत ईरान के पूर्व तक पहुँची और इससे एशिया के अधिकतर 25 से 35 देशांतर का क्षेत्र प्रभावित है। इसके अलावा जलवायु में भी व्यापक परिवर्तन आने की आशंका है। भारतीय उपमहाद्वीप सहित सुदूर क्षेत्र में भी प्रभावित हुए हैं।इराक ‘विषैला रेगिस्तान’ बन चुका है, क्योंकि इसके अनेक भाग उच्च विषैली रासायनिकों से संदूषित है और महामारी के कारण हैं।

पेट्रोलियम और उद्योगों का हानिकारक कचरा समुद्रों का प्रदूषण बढ़ा रहा है, जहाजों से छलके तेल और टैंकरों के टूटने से समुद्री पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हो रहा है तथा समुद्र तट भी खराब हो रहे हैं। पानी की वांछनीय गुणवत्ता नष्ट हो रही है 1980 के दशक में औसतन लगभग 60 लाख टन कच्चा तेल प्रतिवर्ष समुद्र में गिरता था। ऐसा दुर्घटनाओं, बड़े टैंकरों की धुलाई, बंदरगाहों पर तेल के लेन-देन में फैलने आदि के कारण होता था। आज कोई सप्ताह ऐसा नहीं होता, जब संसार के किसी न किसी भाग से तेल टैंकर से 2,000 टन से अधिक तेल फैलने का समाचार न आता हो, सबसे खराब तेल फैलाव मार्च 1989 एक्शन बाल्डर टैंकर से अमरीका, अलास्का में प्रिंस विलियम साउंड में हुआ था। इसमें 20 लाख टन से अधिक तेल समुद्र में बिखर गया था। ऐसा अनुमान है इस घटना से 35,000 पक्षी 10,000 समुद्री औटर और 16 व्हेल मर गयीं थी।

प्रदूषण ने समुद्री जीवन को बुरी तरह प्रभावित और मछलियों को जहर से प्रदूषित कर दिया है, जब ऐसी मछलियाँ खायी जाती हैं, तो उनसे रीढ़ की हड्डी की बीमारियाँ हो जाती हैं, पेट्रोलियम कचरे से प्रदूषित पानी की ओस्टर (शैव मछली) कैंसरकारी होती है। प्रदूषित समुद्री आहार मनुष्य द्वारा खाये जाने पर उसे सुन्नता, भारीपन, बोलने में कठिनाई और जठर तथा आंत की विकृतियाँ हो जाती हैं। गम्भीर संक्रमण की स्थिति में श्वांस तंत्र की पेशियों को लकवा मार जाने से मृत्यु भी हो जाती है।

बड़े स्तर पर हो रहा प्रदूषण स्वास्थ्य के लिये खतरा है। विश्व संस्थाएं बहुत चिंतित हैं और वे प्रदूषण रोकने के लिये कड़े कदम उठाने के पक्ष में हैं जो उद्योग प्रदूषण फैला रहे हैं, उन पर भारी कर तथा जुर्माना लगाये जाने की सिफारिशें भी की गयी हैं। भारत सरकार ने भी पर्यावरण के मानकों को पालन नहीं करने वाले उद्योगों के विरुद्ध कार्यवाही करना प्रारम्भ कर दिया है। यदि प्रदूषण को रोका नहीं गया तो स्वास्थ्य और स्वस्थ इतिहास के शब्द बन जाएंगे और आने वाली पीढ़ियों को इन शब्दों के अर्थ समझाना बहुत कठिन होगा।

बी.4/56बी, हनुमानघाट, वाराणसी-221001
 

 

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