बेहतर मानसून दिलाएगा सुकून

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मानसून के सामान्य से अधिक रहने के पूर्वानुमान ने सबके चेहरे खिला दिये हैं। अच्छा मानसून परिवारों के स्तर पर तो खुशहाली लाता ही है, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करता है। लेकिन सवाल यह है कि यह मानसून कितना बेहतर रहेगा? यह पर्याप्त मात्रा में होने वाली सालाना बारिश से इतर अन्य कारकों पर निर्भर करता है। जैसे मानसून का समय से शुरू और खत्म होना। देश के पूरे भौगोलिक क्षेत्र में समान बारिश होना। अच्छी बरसात तो कुछ सूखे सप्ताहों और कुछ अत्यधिक बारिश वाले सप्ताहों का औसत भी हो सकती है। ऐसे में मानसून के असर को तय करने वाले कई कारक होते हैं। इनमें छह प्रमुख हैं।

1. असमान बारिश – पिछले 30 साल में 23 बार मानसून सामान्य रहा है, लेकिन सामान्य वर्षों में भी ऐसे जिले या राज्य रहे हैं जहाँ सूखा रहा। पिछले तीस साल में सामान्य से 20 फीसद या अधिक कम बारिश वाले क्षेत्र लाल रंग में हैं।

2. खाद्यान्न उत्पादन – कम या अधिक बारिश का सर्वाधिक सीधा असर खाद्यान्न पैदावार में कमी या अधिकता के रूप में दिखता है।

3. सब्जियों की पैदावार – 2004-05 के बाद सब्जियों की पैदावार में कभी गिरावट नहीं हुई।

4. फल उत्पादन – मानसून के उतार-चढ़ाव का बहुत कम असर दिखा

5. खाद्य कीमतें – थोक खाद्य महंगाई 2009 में दोहरे अंक तक पहुँची, लेकिन सूखे के पिछले दो साल के दौरान 5 फीसद से नीचे रही।

6. कृषि जीडीपी – जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी सकारात्मक रही लेकिन बारिश से इसका बहुत सम्बन्ध नहीं दिखा।

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