बेतरतीब विकास से संकट में पहाड़
24 September 2012

हिमालय पर पर्यावरणीय संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है। संसाधनों के अत्याधिक दोहन से हिमालयी रिजन में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और इसका असर न केवल हिमालय क्षेत्रों बल्की मैदानी इलाकों को भी प्रभावित कर रहा है। एचपीयू द्वारा ‘माउंटेन एन्वायरमेंट एंड नेचुरल रिसोर्स मैनेजमेंट’ विषय पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में भूगोल विशेषज्ञों ने हिमालय रिजन में पर्यावरणीय संकट पर चिंता प्रकट की है। संगोष्ठी के अंतिम दिन बागबानी विश्वविद्यालय नौणी के कुलपति प्रो. केआर धीमान मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित हुए। उन्होंने कहा कि ग्लेशियर के तेजी से पिघलने से इसका असर पर्यावरण पर पड़ रहा है। हिमालयी रिजन में पाई जाने वाली औषधीय जड़ी-बूटियां लुप्त हो रही हैं। यही नहीं पशु व पक्षियों की प्रजातियां भी इससे प्रभावित हो रही हैं। पर्यावरण में बदलाव के कारण रिकांगपिओं व इसके साथ लगते क्षेत्रों में ज्यादा बारिश हो रही है। पहले यहां पर 50 सेंटीमीटर बारिश होती थी, लेकिन अब यह दर 200-300 सेंटीमीटर तक पहुंच गई है। एचपीयू के भूगोल विभाग के चेयरमैन डा. डीडी शर्मा ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते हिमालय को सबसे ज्यादा खतरा पैदा हो गया है। बर्फ पिघलने से ट्री लाइन शिफ्ट होने और बढ़ती आबादी से बादल फटने, बाढ़ आने जैसी आपदाएं बढ़ती जा रही हैं।

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