बिहार में जल अधिकार कानून की जरूरत - राजेन्द्र सिंह

18 Jun 2016
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दुनिया में सबसे ज्यादा सिल्ट लेकर बहने वाली नदियों को तटबन्धों से घेर देने से नदी तल का ऊँचा होना, धारा का फैलना और बाढ़ आना स्वाभाविक है। पानी जहाँ बरसे-वहाँ रोककर रखना, जहाँ दौड़ने लगे-वहाँ रोकना और प्रवाह की गति कम करके जाने देना तथा अन्त में तेजी से निकल जाने का रास्ता देना, वर्षाजल प्रबन्धन का सर्वोत्तम ढंग है। पानी को रोकने, रखने और जाने देने की यह संरचना तालाब होती है जिसके अंगों को राजस्थान में झाल-पाल-ताल कहते हैं। बिहार में जल अधिकार कानून की जरूरत है। लोगों के जलाधिकार को जल सुरक्षा में बदला जा सकेगा। यह बात जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने जेपी द्वारा स्थापित ग्राम निर्माण मंडल, सर्वोदय आश्रम में जल-संकल्प यात्रा के समापन के अवसर पर कही। आश्रम नवादा जिला के कौआकोल प्रखण्ड के सेखोदेवरा गाँव में स्थित है। यात्रा का आरम्भ चम्पारण में गाँधीजी द्वारा स्थापित भितिहरवा आश्रम से 15 अप्रैल को हुआ था। चम्पारण में गाँधीजी का पदार्पण इसी दिन हुआ था।

श्री सिंह ने कहा कि बिहार बाढ़ और सुखाड़ दोनों से तबाह होता है। इन दोनों का इलाज नदियों के जल के बेहतर प्रबन्धन में है। नदियों को पुनर्जीवित करना जरूरी है। इसके लिये समुदायों को प्रयास करना होगा। तभी बिहार के हर इलाके को पानीदार बनाया जा सकेगा। आहर-पईन या चेकडैम की खुदाई-सफाई का काम ठेकेदारों को देने का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि ठेकेदार के काम से आम लोग लाभन्वित नहीं होते, केवल सरकारी अफसर और नेता-ठेकेदार को फायदा होता है।

जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने ‘नदियों के अधिकार’ का मामला उठाते हुए कहा कि जल के अधिकार का कानून बने तो मनुष्य के अलावा पशु-पक्षी, खेत और स्वयं नदियों के अधिकार का सम्मान होगा। नदियों का अधिकार है कि वे अपने प्रवाह क्षेत्र में अबाध रूप से प्रवाहित हों। नदियों की विनाशलीला से बचने और नदियों को सूखने से बचाने के लिये उनका यह अधिकार वापस लौटाना होगा। परन्तु दुर्भाग्य है कि नदी क्षेत्र का कोई रिकॉर्ड नहीं है। नदियों का सीमांकन नहीं हुआ। इसे कराना होगा। इसके बगैर नदियों को बचाना कठिन होगा।

नदी क्षेत्र का विस्तार उसकी मूल धारा से लेकर वहाँ तक होता है, जहाँ तक उसका पानी जाता है। इस अति बाढ़ प्रवण और बाढ़ प्रवण क्षेत्र में कायदे से कोई निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए और अगर अनिवार्य हो तो ध्यान रखना चाहिए कि नदी के स्वाभाविक प्रवाह में अड़चन न आये। परन्तु लोगों ने उन क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है। इसे रोकना और हटाना होगा।

नदियों में हो रहे परिवर्तन का अध्ययन करना और इसे चिन्हित करना है कि कौन-सी समस्या प्राकृतिक है और कौन-सी मानवकृत। यह भी सोचना होगा कि नदियों को पुनर्जीवित करने के लिये सचमुच करना क्या है? नदियों पर पहला अधिकार समाज का है, समुदाय का है तो नदी के प्रति समाज का कुछ कर्तव्य भी है। सामूहिक प्रयासों से हम अपने पारम्परिक जलस्रोतों- नदी, तालाब, पोखरा, कुआँ, आहर-पईन इत्यादि को जिन्दा रख सकते हैं। सभी एक दूसरे के पूरक होते हैं।

जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि दुनिया में सबसे ज्यादा सिल्ट लेकर बहने वाली नदियों को तटबन्धों से घेर देने से नदी तल का ऊँचा होना, धारा का फैलना और बाढ़ आना स्वाभाविक है। पानी जहाँ बरसे-वहाँ रोककर रखना, जहाँ दौड़ने लगे-वहाँ रोकना और प्रवाह की गति कम करके जाने देना तथा अन्त में तेजी से निकल जाने का रास्ता देना, वर्षाजल प्रबन्धन का सर्वोत्तम ढंग है।

पानी को रोकने, रखने और जाने देने की यह संरचना तालाब होती है जिसके अंगों को राजस्थान में झाल-पाल-ताल कहते हैं। वहाँ जन सहयोग से ग्यारह हजार झाल-ताल-पाल को पुनर्जीवित किया गया जिससे सात सूखी नदियाँ फिर से सदानीरा हो गई। दक्षिण बिहार में आहर-पईन यही काम करते हैं। समुदाय के प्रयास के जीवित नदियाँ समुदाय के अधिकार में होंगी।

सरकार और समाज दोनों को मिलकर साझे भविष्य की चिन्ता करनी है। हमें समझना होगा कि नदी के प्रति हमारी जिम्मेवारी क्या है? उन्होंने कहा कि नदी को जोड़ने से बाढ़ और सूखाड़ से छुटकारा नहीं मिलेगा। नदी का अधिकार सौंपने से मिलेगा। नदियों के गवर्नेंन्स का काम नदी-पंचायत बनाकर उसे सौंप दिया जाये। उसमें समाज और सरकार दोनों के लोग हों तो नदी विवाद नहीं होगा।

नदी जोड़ योजना तो इतने विवाद पैदा कर देगी कि कोई हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट आसानी से फैसला नहीं कर पाएगा। नदियों के विवाद को निपटाने की कोई स्पष्ट कानून नहीं है, अदालतों के सामने स्पष्टता नहीं है। असल में नदियों को बाँधे बिना, जोड़े बिना बाढ़ और सुखाड़ से कैसे बचें! इसका नया विज्ञान खोजने की जरूरत है।

भले ही यह जल-संकल्प यात्रा के समापन का कार्यक्रम था, मगर यहाँ से नवादा की नदियों को बचाने और पुनर्जीवित करने का अभियान आरम्भ भी किया गया। नवादा की खुरी नदी से इस अभियान की शुरुआत हुई। सर्वोदय आश्रम के अध्यक्ष प्रभाकर कुमार की अध्यक्षता में 12 जून को हुए कार्यक्रम का आयोजन आहर पइन बचाओ अभियान के एमपी सिन्हा ने किया था। उन्होंने कहा कि खुरी नदी से आरम्भ कर बिहार की सभी नदियों का सीमांकन, जलस्रोतों का संरक्षण, परम्परागत जल संचयन तकनीकों का संरक्षण इत्यादि कार्य इस अभियान के अन्तर्गत किया जाएगा। जलपुरुष ने कहा कि जेपी द्वारा स्थापित इस आश्रम से दक्षिण बिहार के सूखाग्रस्त इलाके को पानीदार बनाने का भागीरथ प्रयास आरम्भ हुआ है।

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