बजट 2014 के आईने में निर्मल और अविरल गंगा

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गंगा नदी के जलमार्ग में जगह-जगह बैराज बनाने का अर्थ जगह-जगह कृत्रिम अवरोध स्थापित करना है। इन कृत्रिम अवरोधों के कारण, गंगा नदी का प्राकृतिक प्रवाह समाप्त होगा। अवरोधों पर बाढ़ के साथ हर साल आने वाला करोड़ों टन कचरा/मलबा तथा रसायन और अनुपचारित सीवर, समुद्र में जमा होने के स्थान पर बैराजों के अपस्ट्रीम में जमा होने लगेगा। उसके जमा होने से गंगा की अशुद्धता बढ़ेगी तथा नदी की जल भंडारण क्षमता क्रमशः घटने लगेगी। बाढ़ के समय उसका पानी आसपास के क्षेत्रों को जलमग्न करेगा। बाढ़ प्रभावित रकबा क्रमशः बढ़ेगा।निर्मल गंगा : अविरल गंगा के लिए 10 जुलाई को संसद में एनडीए सरकार का बजट पेश हो चुका है। सभी जानते हैं कि बजट में सरकार द्वारा प्रस्तावित कामों का लेखा-जोखा होता है और बजट प्रस्ताव के माध्यम से, सरकार, प्रस्तावित योजना के अंतर्गत लिए जाने वाले कामों का रोडमैप तथा उल्लिखित कामों पर खर्च की राशि तथा समय सीमा का बोध कराती है।

बजट के पारित होते ही संबंधित विभाग के सरकारी अमले को काम करने का अधिकार मिल जाता है और वह प्रावधानों के अनुसार गतिविधियों को क्रियान्वित करने लगता है। बजट के प्रावधानों के अनुसार काम करना और बजट में दर्शाई राशि को समय सीमा में खर्च करना सरकारी अमले की जिम्मेदारी होती है।

प्रस्तावित कामों और आबंटित राशियों के आधार पर ‘अविरल गंगा : निर्मल गंगा अभियान’ की दिशा तथा प्रस्तावित कामों के संभावित प्रभावों या परिणामों को समझा जा सकता है। संभावित परिणाम निम्नानुसार संभव हैं-

बजट प्रस्ताव में इलाहाबाद से हल्दिया के बीच गंगा नदी के 1620 किलोमीटर लम्बे जलमार्ग को गहरा और चौड़ा करना प्रस्तावित है। इसे करने के लिए छ: साल की समय सीमा तथा रु. 4200 करोड़ प्रावधानित हैं। कहा गया है कि उपर्युक्त योजना के पूरा होने के बाद उपर्युक्त जलमार्ग (इलाहाबाद से हल्दिया के बीच) लगभग 4500 टन के जहाजों द्वारा परिवहन प्रारंभ हो जाएगा।

कहा जा रहा है कि यह व्यवस्था रेल या सड़क परिवहन की तुलना में काफी सस्ती होगी। परिवहन मंत्री की मंशा इसे चार साल अर्थात अगले लोकसभा चुनाव के पहले पूरा करने की है। आधुनिक मशीनों तथा देशी-विदेशी तकनीक की मदद से बन्दरगाहों की तर्ज पर नदी तल को गहरा किया जा सकेगा पर खुदाई से निकले नदी के मलबे की विशाल मात्रा को कहाँ फेंका जाएगा, स्पष्ट नहीं है।

मलबा निपटान का गंगा नदी तंत्र, उसके हितग्राही समाज, उनकी रोजी-रोटी और पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा, बहुत स्पष्ट नहीं है। इन बिंदुओं पर पारदर्शिता और जानकारी की आवश्यकता है। अब नदी मार्ग पर बैराज बनाने और गंगा के तल को गहरा तथा चौड़ा करने वाले कामों को नदी विज्ञान की कसौटी पर परखें।

1. गंगा नदी मार्ग में बैराजों के निर्माण का परिणाम


गंगा नदी के जलमार्ग में जगह-जगह बैराज बनाने का अर्थ जगह-जगह कृत्रिम अवरोध स्थापित करना है। इन कृत्रिम अवरोधों के कारण, गंगा नदी का प्राकृतिक प्रवाह समाप्त होगा। अवरोधों पर बाढ़ के साथ हर साल आने वाला करोड़ों टन कचरा/मलबा तथा रसायन और अनुपचारित सीवर, समुद्र में जमा होने के स्थान पर बैराजों के अपस्ट्रीम में जमा होने लगेगा। उसके जमा होने से गंगा की अशुद्धता बढ़ेगी तथा नदी की जल भंडारण क्षमता क्रमशः घटने लगेगी।

गंगाबाढ़ के समय उसका पानी आसपास के क्षेत्रों को जलमग्न करेगा। बाढ़ प्रभावित रकबा क्रमशः बढ़ेगा। ठहरा जल दूषित होने लगेगा। उसकी शुद्धिकरण की प्राकृतिक भूमिका का अन्त हो जाएगा तथा जैव विविधता नष्ट होगी। बैराज बनाने से गंगा को अविरल प्रवाह में ठहराव आएगा।

सब जानते हैं कि नदी तल के नीचे की परत से पानी बहता है। यह पानी, आँखों से भले ही नहीं दिखाई देता हो पर सतह के नीचे उसकी निरंतरता बनी रहती है। यह परत नदी को भी पानी उपलब्ध कराती है तथा उसके प्रवाह को बढ़ाने में सहयोग करती है। इस परत के पानी के समाप्त होने के बाद नदी पूरी तरह सूख जाती है।

नदी के तल को गहरा करने से यह परत समाप्त हो जाएगी। उसका असर समाप्त हो जाएगा। इस परत के समाप्त होने तथा गंगा नदी पर बैराज बनाने से बरसात में बाढ़ तथा सूखे के मौसम में नदी के प्रवाह की कमी का खतरा बढ़ जाएगा।

नदी विज्ञान बताता है कि नदी तल का प्राकृतिक कटाव उसके उद्गम तथा समुद्र तल की ऊँचाई से निर्धारित होता है। नदी तल के ढाल को निर्धारित करते कटाव को ‘बेस लेवल ऑफ इरोजन’ कहते हैं। प्राकृतिक शक्तियों द्वारा यह कटाव, नदी का ढाल तथा उसका फ्लड-प्लेन लगातार परिमार्जित होते रहते हैं।

बजट प्रस्तावों में गंगा नदी के तल को गहरा करने का उल्लेख है। इसका अर्थ गंगा के बेस लेवल ऑफ इरोजन से छेड़छाड़ करना है। गौरतलब है कि प्रकृति, नदी के तल को गहरा करना, ऊँचा करना या उसे तटबंधों की सीमा में बांधने को बर्दाश्त नहीं करती। वह, इसका पूरी तरह प्रतिकार करती है। आगामी बरसातें नदी तल के गड्ढों या निचले भागों में मलबा को जमा कर उसे पुनः पूर्वस्थिति में ला देती हैं।

नदी विज्ञान के सिद्धांतों के अनुसार नदी तल को गहरा करना अवैज्ञानिक तथा अस्थाई प्रकृति का काम होता है। उसे नहीं करना चाहिए। उसे करने से कालान्तर में उस काम पर किया व्यय व्यर्थ हो जाता है। इसके अतिरिक्त, बैराज बनाने से पानी में वनस्पतियाँ जमा होने लगती हैं। वनस्पतियों के ऑक्सीजन-विहीन वातावरण में सड़ने से जलवायु बदलाव के लिए जिम्मेदार मीथेन गैस बनती है।

2. नमामि गंगा


सरकार द्वारा ‘नमामि गंगा’ के नाम से नए ‘एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन’ की स्थापना की गई है। मौजूदा बजट में इस मिशन के लिए 2037 करोड़ का प्रावधान रखा गया है।

प्रस्ताव है कि सबसे पहले नदी नीति को लागू किया जाना चाहिए। नदी नीति के दृष्टिबोध तथा स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल प्रोजेक्ट संचालित कर गंगा नदी तंत्र में प्रवाह को बढ़ाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। प्रयासों के लिए चरणबद्ध प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए।

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प्रस्तावित चरणबद्ध प्रक्रिया


नेशनल वाटरशेड एटलस (1990) के आधार पर गंगा नदी तंत्र की पाँचों हाइड्रोलॉजिकल इकाईयों में जलप्रवाह वृद्धि के लिए कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए। गंगा नदी तंत्र में 836 वाटरशेड, 126 सहायक कैचमेंट और 22 कैचमेंट हैं। सभी, 836 वाटरशेड इकाईयों से एक साथ समानुपातिक भूजल संवर्धन कार्यक्रमों को प्रारंभ करना होगा और प्रवाह की माप, विभिन्न हाईड्रोलॉजिकल इकाईयों के निकास बिन्दु पर करना होगा।

यह माप 836 वाटरशेड से प्रारंभ होगी तथा उत्तरोत्तर बढ़ते क्रम में 22 कैचमेंटों के निकास बिन्दु पर समाप्त होगी। मुख्य नदी में भी प्रवाह की माप ली जाएगी। अविरल प्रवाह की सुनिश्चितता तथा परिमार्जन के लिए निगरानी तंत्र स्थापित करना होगा। प्रवाह की माप के आधार पर आगे ली जाने वाली योजनाओं का आकार तथा स्वरूप तय करना होगा।

गौरतलब है कि पूर्व में प्रवाह वृद्धि के लिए किसी भी प्रकार के प्रयास नहीं हुए थे। प्रयासों की कमी के कारण गंगा तंत्र की अनेक नदियों पर सूखने का खतरा गहरा रहा है। प्रवाह वृद्धि के प्रयासों को दिशा देने में उच्च स्तरीय संस्थान भी विफल रहे। नमामि गंगा अभियान का प्रयास, इतिहास से सबक लेना होगा अन्यथा इतिहास को दोहराने में वक्त नहीं लगेगा।

प्रवाह वृद्धि/बहाली के लिए समावेशी कैचमेंट उपचार (भूजल स्टोरेज क्षमता वृद्धि द्वारा भूजल योगदान बढ़ाने, भूमि कटाव रोकने, हरितिमा वृद्धि करने इत्यादि), समूचे नदी तंत्र में समानुपातिक भूजल प्रबंध करने, समानुपातिक भूजल रीचार्ज और रेत के खनन को वैज्ञानिक आधार प्रदान करने की आवश्यकता है।

इस हेतु, केन्द्र स्तर पर ‘सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड’ और राज्य स्तर पर भूजल संगठनों को नोडल विभाग घोषित कर जिम्मेदारी देना चाहिए। नदी नीति के आधार पर योजनाओं का स्वरूप तय करते समय जलवायु बदलाव के संभावित प्रभाव को ध्यान में रखना होगा। अभियानों की सफलता के लिए समाज की ऊर्जा के साथ-साथ नोडल विभाग की भी आवश्यकता होती है।

निगरानी व्यवस्था


नेशनल वाटरशेड एटलस के आधार पर पाँच स्तरीय डायरेक्टरी बनाकर व्यापक निगरानी तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए। प्रारंभ में निगरानी तंत्र को 836 वाटरशेड, 126 सहायक कैचमेंट, 22 कैचमेंट के निकास बिंदुओं पर मानकों की निगरानी/मापन करना चाहिए।

नदी तंत्र का हेल्थ कार्ड


गंगा नदी तंत्र में मानकों की वस्तुस्थिति दर्शाने के लिए हेल्थ कार्ड व्यवस्था लागू की जानी चाहिए। गंगा नदी तंत्र में प्रस्तावित हेल्थ कार्ड 836 वाटरशेड, 126 सहायक कैचमेंट, 22 कैचमेंट के निकास बिंदुओं पर मापी जानकारी अर्थात वस्तुस्थिति को दर्शाएगा। वस्तुस्थिति के आधार पर नदी शुद्धिकरण तथा प्रवाह बहाली अभियान की दशा तथा दिशा निर्धारित की जाना चाहिए।

3. पानी का पुनर्चक्रीकरण तथा उपयोग


मौजूदा बजट में शहरी नवीनीकरण के अंतर्गत सीवेज के प्रदूषित पानी को साफ करने के बाद काम में लिए जाने का उल्लेख है। पूर्व में पानी को साफ करने के लिए बड़ी संख्या में सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बनाए गए थे। प्रचलित मार्गदर्शिका के अनुसार अपेक्षित था कि उपचारोपरान्त शुद्ध किया पानी जलस्रोत में छोड़ा जाएगा।

पुराना अनुभव बताता है कि सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का प्रयोग अपेक्षित परिणाम नहीं दे सका। कई जगह वे अस्तित्व में नहीं आये। कहीं-कहीं उन्होंने आधी-अधूरी सेवा दी। कई जगह उनकी अनदेखी हुई। उपर्युक्त कारणों से सीवर ट्रीटमेंट प्लांट व्यवस्था को प्रभावी बनाने की आवश्यकता है-

गंगासुझाव है कि प्रदूषित पानी पैदा करने वाली संस्था पानी को साफ कर स्वतः के उपयोग में लाएगी। उसके उपयोग के बाद बचा पानी, गुणवत्ता के आधार पर नदी में उड़ेलने के स्थान पर उपयोगकर्ताओं को बेचा जाएगा। इसके अतिरिक्त संस्था की पानी साफ करने वाली इकाई का बिजली मीटर अलग होगा। उन्हें पानी के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जाएगा। वे जल संरक्षण अपनाकर पानी की कमी पूरी करेंगी। सरकार द्वारा उन्हें पृथक से पानी उपलब्ध नहीं कराया जाएगा।

4. रेणुका बांध निर्माण


बजट में रेणुका बांध बनाने का उल्लेख है। इस काम के लिए 50 करोड़ का प्रावधान किया गया है। सिद्धांततः बाँधों और बैराजों की फिलासफी में कोई खास अंतर नहीं होता। दोनों के परिणाम भी लगभग एक जैसे होते हैं। बांधों के कारण नदी का प्राकृतिक जलप्रवाह खंडित होता है।

नदी के प्राकृतिक प्रवाहों के खंडित होने के कारण, जलग्रहण क्षेत्र से परिवहित मलबा तथा पानी में घुले रसायन बांध में जमा होने लगते हैं। परिणामस्वरूप कुछ सालों बाद, बांध के पानी के प्रदूषित होने तथा जलीय जीव-जंतुओं और वनस्पतियों पर पर्यावणीय खतरों की संभावना बढ़ जाती है।

बाढ़ के पानी के साथ बह कर आने वाले कार्बनिक पदार्थों और बांध के पानी में पनपने वाली वनस्पतियों के ऑक्सीजनविहीन वातावरण में सड़ने के कारण, जलवायु बदलाव के लिए जिम्मेदार, मीथेन गैस बनती है। यह गैस जलाशय की सतह, स्पिल-वे, हाइड्रल बांधों के टरबाईन और डाउन-स्ट्रीम पर उत्सर्जित होती है।

5. घाट विकास


बजट में मंदाकिनी के एक, गंगा के चार और यमुना नदी के एक घाट के विकास के लिए 100 करोड़ का प्रावधान किया गया है। पुराना अनुभव बताता है कि अनेक मामलों में जल स्रोतों की सफाई के लिए उपलब्ध बजट का अधिकतम हिस्सा सौंदर्यीकरण पर खर्च हुआ है इसलिए सुझाव है कि घाटों के विकास के लिए विधायक, सांसद, एनआरआई या दान की राशियों का उपयोग किया जाना चाहिए। इस काम के लिए कारपोरेट सोशल रिसपांसिबिलिटी मद में उपलब्ध राशियों का भी उपयोग किया जा सकता है।

आजकल गंगा पुनरोद्धार का मुद्दा सुर्खियों में है। यह मुद्दा, सबसे अधिक आस्था से जुड़ा है। पिछले दिनों लोगों को उम्मीद की किरण दिखी है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा सात जुलाई 2014 को विज्ञान भवन में आयोजित मंथन कांफ्रेंस में भी यह संकेत उभर कर सामने आया कि केवल गंगा नदी की सफाई कर अविरलता तथा निर्मलता हासिल करना संभव नहीं है।

प्रवाह की अविरलता तथा निर्मलता के लिए समूचे गंगा तंत्र की प्राकृतिक भूमिका को अक्षुण रखते हुए, सबसे पहले नदी विज्ञान को समझना होगा। समझ बनाने के बाद ही अविरल गंगा : निर्मल गंगा अभियान को सफल तथा टिकाऊ बनाया जा सकता है। जो बजट के साथ-साथ पुरानी अवधारणा एवं रणनीति में बदलाव लाकर ही संभव है।

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