बंधेगी गंगा तो मरेगी गंगा

गंगोत्री के दर्शन को चलते चले जाइए लेकिन रास्ते में अपने प्रवाह-मार्ग में कहीं गंगा नहीं मिलेंगी। भागीरथी भी नहीं। उत्तराखंड के नरेंद्र नगर से चंबा तक सड़क मार्ग की यात्रा कर आगे बढ़िए और फिर देखिए महाकाय विकास के भीषण चमत्कार। अगर आपने 2005 के पहले कभी इस गंगोत्री के पथ पर गंगा के दर्शन किए होंगे तो निश्चित तौर पर आपकी आंखें ये देखकर फटी रह जाएंगी कि ये क्या हो गया है गंगा मां को? इसकी सांसे थम क्यों गई है? कहां है गंगा के प्रवाह की कल-कल ध्वनि? कहां हैं गंगा की उत्ताल तरंगे, इठलाती-बलखातीं लहरें और गंगा के पारदर्शी जल में गोते लगाते जलीय जीवों-मछलियों के नृत्य कहां है?


उत्तराखंड राज्य में बड़े बांधों की नहीं वरन् पहाड़ के लिये स्थायी विकास हेतु प्राकृतिक संसाधनों के जनआधारित उपयोग की जरुरत है। राज्य में नयी सरकार के नये मुख्यमंत्री ने राज्य में उर्जा उत्पादन को बढ़ाने की बात की है। यह बयान अपने में एक भय दिखाता है। इसका अर्थ जाता है कि बांधो पर नयी दौड़ शुरू होगी। अलकनंदा गंगा पर निर्माणाधीन विष्णुगाड पीपलकोटी बांध (444 मेगावाट) परियोजना को विश्व बैंक से कर्जा मंजूर हुआ है। टौंस घाटी में जखोल-सांकरी बांध (51 मेगावाट) परियोजना की वजह से यहां लोगों के पारम्परिक हक-हकूको पर पाबंदी है। किन्तु बांध की तैयारी है। जखोल गांव 2,200 मीटर की उंचाई पर है और भूस्खलन से प्रभावित है। बांध की सुरंग इसके नीचे से ही प्रस्तावित है। यहां लोगों ने मई 2011 से टेस्टिंग सुरंग को बंद कर रखा है। अगर इस तरह से गंगा पर बांध का निर्माण होता रहा तो गंगा की अर्थी उठाने के लिए तैयार हो जाएं।

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