लेख
ब्रेल लिपी में
'आज भी खरे हैं तालाब'
ऐसी विरली ही पुस्तकें होती हैं जो न केवल पाठक तलाशती हैं, बल्कि तलाशे पाठकों को कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में तराशती भी हैं। अपनी प्रसन्न जल जैसी शैली तथा देश के जल स्रोतों के मर्म को दर्शाती एक पुस्तक ने भी देश को हज़ारों कर्मठ कार्यकर्ता दिए हैं। 'आज भी खरे हैं तालाब' का पहला संस्करण 1993 में छपा। अब तक पुस्तक ने देश भर में आवारा मसीहा की तरह घूम-घूम कर अपने-अपने क्षेत्र के जल स्रोतों को बचाने की अलख जगा दी और यह सिलसिला आगे ही आगे बढ़ता जा रहा है।
Tags – ‘Aaj Bhi Khare Hain Talab’ in Braille script , 'Ponds are sustainable even today' in Braille script