ब्रह्मपुत्र पर इस चीनी झूठ का सच जानना ज़रूरी - भाग-3

2 Dec 2017
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ब्रह्मपुत्र नदी
ब्रह्मपुत्र नदी


तिब्बत स्थित मूल स्रोत से पूर्वोत्तर भारत आने वाले प्रमुख प्रवाह ब्रह्मपुत्र को इसके तिब्बती भू-भाग में 'दियांग' व 'सांगपो' के संबोधन से जाना जाता है। ब्रह्मपुत्र मूल के तिब्बती हिस्से में अपने हिस्से में अपनी हरकतों को लेकर चीन एक बार फिर विवाद में है। बीते सितम्बर में विदेशी मीडिया में एक रपट छपी। रपट में कहा गया कि चीन ब्रह्मपुत्र नद के प्रवाह को मोड़ने के लिये 1000 किलोमीटर लंबी सुरंग बना रहा है। यह सुरंग तिब्बत से लेकर ताकलीमाकन रेगिस्तान तक जायेगी। सूत्रों के मुताबिक, यह किसी प्रवाह को मोड़ने के लिये तैयार हो रही सबसे लंबी सुरंग होगी। चीन ने उस रपट को गलत करार दिया।

चीन के सरकारी पत्र 'ग्लोबल टाइम्स' ने प्रकाशित किया कि चीन ने ब्रह्मपुत्र नहीं, बल्कि अपने प्रांतों के करीब स्थित नदियों पर बांध बनाने की योजना बनाई है। भारत में ब्रह्मपुत्र से संबंधित जनप्रतिनिधि श्री निनांग इरिंग ने चीन के बयान को झूठा करार दिया है। श्री निनांग का आरोप है कि ब्रह्मपुत्र के चीनी हिस्से में जलदोहन का कार्य पहले ही आरम्भ किया जा चुका है। श्री निनांग ने ब्रह्मुपत्र के प्रवाह को मोड़ने के लिये 1000 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाने का काम आरम्भ होने की भी आशंका व्यक्त की है।

हालाँकि यह पहली बार नहीं है कि तिब्बती हिस्से वाले ब्रह्मपुत्र नद पर चीन की अनैतिक हरकतों को लेकर विवाद खड़ा हुआ हो। चीन पर इससे पहले भी बांध निर्माण के अलावा भारत आने वाले तिब्बती प्रवाहों में परमाणु कचरा डालने का आरोप भी लग चुका है। इस बार लगा आरोप ज्यादा संगीन इसलिए है कि इस बार मामला बांध निर्माण का न होकर, प्रवाह के मार्ग को ही चीन की ओर मोड़ लेने का है। ब्रह्मपुत्र के प्रवाह का भारत से विमुख होने का मतलब होगा, पूर्वोत्तर भारत से समृद्धि का मुख मोड़ लेना। क्या हम यह होने दें?

 

जनप्रतिनिधि का आरोप


गौरतलब है कि पूर्वी अरुणाचल के पालीघाट से चुने गये लोकसभा सांसद श्री निनांग इरिंग ने अपने इस आरोप का प्रमाण देते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को भी चिट्ठी लिखी है। श्री निनांग ने कहा - ''मैं पासीघाट में ही पला-बढ़ा हूँ। मैं दियांग को जानता हूँ। नवंबर के महीने में दियांग का पानी इतना साफ होता है कि आप नदी तल को देख सकें; जबकि इस बार नवंबर में दियांग का पानी न सिर्फ कीचड़युक्त है, बल्कि यह सीमेंट मिश्रित भी है। नवंबर के महीने में दियांग का कीचड़युक्त और सीमेंट मिश्रित होने का कारण सुरंग का निर्माण हो सकता है।''

 

अभियांत्रिकी विभाग व ज़िला प्रशासन ने की पुष्टि


भारत के जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग ने श्री निनांग इरिंग की आशंका की पुष्टि की है। विभाग के कार्यकारी अभियंता श्री बिमल वैली द्वारा पेश तथ्यों के मुताबिक प्रयोगशाला में उच्च तकनीकी फोटोमीटर के जरिए जाँचे गये नमूनों में ब्रह्मपुत्र का गंदलापन 0 से 5 के मान्य स्तर की तुलना में 425 पाया गया। जाँच के लिये और नमूने भेजे जाने की जानकारी देते हुए श्री वैली ने आशंका व्यक्त की है कि यदि ब्रह्मपुत्र में गंदलेपन का यह स्तर कायम रहा, तो जलीय जीव व वनस्पतियों की भारी मात्रा में क्षति हो सकती है।

पूर्वी दियांग ज़िला आयुक्त तामयो तातक द्वारा जारी चेतावनी से भी श्री निनांग के बयान और प्रयोगशाला रपट की स्वयं ही पुष्टि होती है। ज़िला आयुक्त ने दियांग के जल में काफी बड़ी मात्रा में आ रहे कीचड़ व सीमेंट की उपस्थिति तथा डेढ़ माह पूर्व काफी बड़ी संख्या में मछलियों की मृत्यु की जानकारी देते हुए चेतावनी जारी की कि यह स्थिति बनी रही तो दियांग का जल उपयोग लायक ही नहीं बचेगा। श्री तातक के मुताबिक, वर्षाकाल के बाद भी पिछले दो माह से दियांग के प्रवाह का रंग गहरा मटमैला ही बना हुआ है। यह प्रमाण है कि ऊपर कहीं बड़े पैमाने पर सीमेंट कार्य चल रहा है।

 

क्यों अति महत्त्वपूर्ण ब्रह्मपुत्र?


हालाँकि एक सूत्र के अनुसार, चीनी हरकत की इस खबर से स्थानीय बांध विरोधी भारतीय समूह ‘फोरम फाॅर दियांग डायलाॅग’ ने इस नज़रिए से प्रसन्नता जाहिर की है कि ऐसा होने से ब्रह्मपुत्र के भारतीय हिस्से में बांध बनाने लायक जल नहीं बचेगा और उनकी कृषि भूमि डूबने से बच जायेगी। मेरा मानना है कि उनका बांध विरोध जायज हो सकता है, लेकिन ब्रह्मपुत्र की धारा मोड़ने की चीनी हरकत पर प्रसन्नता नहीं। हक़ीकत यह है कि ब्रह्मपुत्र को भारत आने से पूर्व ही चीनी भू-भाग की ओर से मोड़ लेने का ख्याल अपने आप में काफी चिंताजनक और खतरनाक है।

यह सच है कि ब्रह्मपुत्र का मूल स्रोत, तिब्बत के आंगसी ग्लेशियर में स्थित है। प्रवाह की लंबाई के मामले में भी भारत में 918 किलोमीटर और बांग्ला देश में 363 किलोमीटर की तुलना में यह प्रवाह तिब्बत में ज्यादा लंबाई (1625 किलोमीटर) तय करता है। किंतु यह भी झूठ नहीं कि अपने खास गुणों के कारण यह प्रवाह, कम महत्त्वपूर्ण नहीं। गौर करें कि ब्रह्मपुत्र कोई साधारण नदी न होकर, एक विशाल और वेगवान प्रवाह है। इसीलिए नदी न कहकर, नद कहा जाता है। सांस्कृतिक, भौतिक और आर्थिक दृष्टि से खासकर पूर्वोत्तर भारत के लिये ब्रह्मपुत्र की उपस्थिति के कई अहम मायने हैं। एक नद के रूप में ब्रह्मपुत्र पूर्वोत्तर की भौतिकी भी है, भूगोल भी, जैविकी भी, रोज़गार भी, जीवन भी, आजीविका भी, संस्कृति और सभ्यता भी।

 

क्यों उचित नहीं अनदेखी?


कुल मिलाकर हम ब्रह्मपुत्र नद को पूर्वोत्तर भारत की एक ऐसा नियंता कह सकते हैं, जिसके बगैर पूर्वोत्तर भारत की समृद्धि की कल्पना का चित्र अधूरा ही रहने वाला है। अतः ब्रह्मपुत्र मूल पर चीन की अनैतिक हरकतों की अनदेखी एक ऐसी भूल होगी; जिसकी भरपाई पूर्वोत्तर भारत के लिये केन्द्र सरकार का भेजा समूचा बजट और योजनायें भी मिलकर न कर सकेंगी।

इस सावधानी की ज़रूरत इसलिए भी है, चूँकि पूर्व में की गई अपनी हरकतों की वजह से चीन भारत का एक ऐसा ताकतवर और षडयंत्रकारी पड़ोसी सिद्ध हो रहा है, जिस पर विश्वास करना भारत को हमेशा महँगा पड़ा है। पंचशील समझौते के बावजूद आक्रमण, भारतीय सीमा में आये दिन घुसपैठ, अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताने का दावा, एक ओर प्रधानमंत्री श्री मोदी से गलबंहिया तो दूसरी ओर अन्तरराष्ट्रीय मंचों में भारतीय दावेदारी का विरोध, नेपाल को भारत की दोस्ती से दूर करने हेतु आर्थिक प्रलोभन, आतंकवादी संगठन जैस-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अज़हर को प्रतिबंधित करने हेतु संयुक्त राष्ट्र से लगाई भारतीय गुहार को कमजोर करने की चीनी कोशिश तथा सस्ते, किंतु घटिया गुणवत्ता वाले बिना ब्रांड वाले दैनिक उपयोग के सामानों से भारतीय बाज़ार को पाटकर भारत के छोटे कुटीर उद्योगों को मृतप्राय कर देने की चीनी कूटनीति इसकी मिसाल है।

गौर करने की बात है कि चीन की तमाम भारत विरोधी हरकतों के बावजूद, भारत की पूर्ववर्ती केन्द्र सरकारों ने कभी खुलकर विरोध नहीं किया। तिब्बत की निर्वासित सरकार का मुख्यालय भारत में ज़रूर है; भारत में तिब्बतियों को पूरा संरक्षण और सम्मान भी सुलभ है, लेकिन भारत की किसी केन्द्र सरकार ने तिब्बतियों की एक स्वतंत्र राष्ट्र की मांग को किसी उचित अन्तरराष्ट्रीय फोरम पर आगे बढ़ाने का आधिकारिक प्रयास नहीं किया। यह सब स्थिति इस सच की जानकारी के बावजूद रही कि कांटा तो कांटे से ही निकलता है।

इधर पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में सत्ता हासिल करने की भारतीय जनता पार्टी की सांगठनिक रणनीति और केन्द्र सरकार द्वारा पूर्वोत्तर के विकास में बजट व एक के बाद एक परियोजना तथा परियोजनायें झोंक देने की सोची-समझी नीति ने चीन को भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री व केन्द्रीय शासन की मंशा समझा दी है। अरुणाचल प्रदेश-तिब्बत सीमा के अंतिम नगर तवांग तक रेलवे लाइन, ब्रह्मपुत्र पर पुल, किनारे-किनारे लंबे राजमार्ग, दूरदर्शन के पूर्वोत्तर विशेष चैनल - अरुणप्रभा, सिंगापुर आदि के साथ भारत के सामरिक समझौतों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रतिनिधियों द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित की जाने वाली तवांग तीर्थयात्रा और स्वदेशी जागरण मंच द्वारा चीनी सामानों की होली जलाकर विरोध दर्ज कराने जैसे बाड़बंदी कदमों को देखते हुए चीन ने अपनी भारत विरोधी हरकतें तेज कर दी हैं। ऐसे में ब्रह्मपुत्र मूल में चीनी हरकत की अनदेखी, अपने चीन को उसकी हद में अनुशासित करने के भारतीय प्रयासों के प्रभाव को कमज़ोर करने जैसा आत्मघाती कदम साबित होगा। क्या यह उचित होगा?

(ब्रह्मपुत्र की इस महत्ता को विस्तार से जानने के लिये हिंदी वाटर पोर्टल पर उपलब्ध 'आइये, ब्रह्मपुत्र को जानें' श्रृंखला की कड़ियों को पढ़ें।)

 

आइये, ब्रह्मपुत्र को जानें - भाग 01

आइये, ब्रह्मपुत्र को जानें - भाग-2

 
 

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