बरसात की कमी से निपटते मध्य प्रदेश के लिये कुछ सुझाव

इन्दिरा सागर बाँध
इन्दिरा सागर बाँध


Madhya Pradesh facing less rain crisis : Some Suggestions

इस साल मध्य प्रदेश के 51 जिलों में से 35 जिलों में सामान्य से 20 प्रतिशत कम पानी बरसा है। इसी कारण प्रदेश की राजधानी भोपाल में 19 सितम्बर तक 109 सेंटीमीटर की तुलना में 71.40 सेंटीमीटर पानी बरसा है। भोपाल की लगभग 40 प्रतिशत आबादी को पेयजल उपलब्ध कराने वाले बड़े तालाब सहित अन्य स्थानीय जलस्रोतों में जल भराव की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।

नर्मदा का प्रवाह भी पिछले साल के स्तर को हासिल नहीं कर पाया है।वहीं मध्य प्रदेश के 313 विकासखण्डों में से केवल 27 विकासखण्डों में भूजल पुनर्भरण की स्थिति ठीक-ठाक है पर उन विकासखण्डों में भी पेयजल, सिंचाई और औद्योगिक माँग के चलते पेयजल आपूर्ति के हालात कब तक ठीक-ठाक रहेंगे, कहना कठिन है।

कम पानी बरसने के कारण प्रदेश के 145 विकासखण्डों में एक से तीन मीटर और 23 विकासखण्डों में पिछले साल की तुलना में भूजल स्तर पाँच मीटर नीचे चला गया है। यह खतरे की घंटी है। प्रदेश के 10 नगरों में पेयजल आपूर्ति की स्थिति खराब मानी जा रही है। इन नगरों में सागर, ग्वालियर और रीवा जैसे सम्भागीय मुख्यालयों के अतिरिक्त सतना, सिंगरौली, बुरहानपुर, कटनी, छिंदवाड़ा मुरैना और रतलाम मुख्य हैं। प्रदेश के बड़े अंचल में पेयजल की आपूर्ति में भूजल की कमी अखरेगी और वही असली चुनौति बनेगी।

बाँधों के मामले में मध्य प्रदेश समृद्ध राज्यों की श्रेणी में गिना जाता है। इस साल सामान्य से कम हुई बरसात की तीव्रता और बरसात के दिनों की कमी के कारण रन-आफ अपर्याप्त रहा है और प्रदेश के अधिकांश बाँध आधे-अधूरे भरे हैं। नर्मदा पर बने इन्दिरासागर बाँध की जल भराव क्षमता 9750 मिलियन घन मीटर है। इस साल उसमें लगभग 3199 मिलियन घनमीटर (33 प्रतिशत) पानी ही जमा हुआ है। जबलपुर के पास नर्मदा पर बने बरगी बाँध में भी 3180 के विरुद्ध 2310 मिलियन घन मीटर (72 प्रतिशत) जल का भण्डारण हुआ है। ऐसे ही हालात प्रदेश की अन्य परियोजनाओं के कहे जा रहे हैं।

अनुमान है कि इस साल भूजल स्तर की गिरावट तथा नदियों के प्रवाह की गम्भीर कमी जिन इलाकों में देखी जाएगी, वे निम्नानुसार होंगे-

 

सिंचाई परियोजनाओं के कैचमेंट


इन इलाकों में वन क्षेत्र तथा पहाड़ी इलाके सम्मिलित होंगे। इन इलाकों में कुओं, नलकूपों तथा नदियों के सूखने का ग्राफ पिछले साल की तुलना में अधिक गम्भीर होगा। इन इलाकों में पेयजल उपलब्ध कराने के लिये अतिरिक्त प्रयास करना होगा। इन प्रयासों में जंगली जीव-जन्तुओं तथा पक्षियों के लिये पानी की माकूल व्यवस्था सम्मिलित होगी।

 

बरसात पर आश्रित इलाके


इन इलाकों में भी वन क्षेत्र, पहाड़ी इलाके तथा असिंचित इलाके सम्मिलित हैं। इन इलाकों में भी पेयजल संकट पिछले साल की तुलना में अधिक गम्भीर होगा। पिछले साल की तुलना में इस गर्मी में बरसात पर आश्रित इलाके के कुओं, नलकूपों तथा नदियों के सूखने के प्रकरण बढ़ेंगे। इन इलाकों में पेयजल उपलब्ध कराने पर बहुत अधिक ध्यान देना होगा।

 

बिगड़े वन क्षेत्रों का इलाका


इन इलाकों में धरती की तासीर के अनुपयुक्त होने के कारण भूजल भण्डारण की स्थिति नाजुक होती है। इन इलाकों में भी पेयजल संकट पिछले साल की तुलना में अधिक गम्भीर होगा। नदियों में अपवाद स्वरूप ही पानी मिलेगा। कुओं और नलकूपों के सूखने के प्रकरण बढ़ेंगे। इन इलाकों में पेयजल उपलब्ध कराने पर बहुत अधिक ध्यान देना होगा। भूजल अतिदोहन के इलाके - भूजल के मौजूदा उपयोग के कारण प्रदेश के 24 विकासखण्डों में 100 प्रतिशत से अधिक, चार विकासखण्डों में 90 से 100 प्रतिशत तथा 61 विकासखण्डों में 70 से 90 प्रतिशत के बीच में भूजल का दोहन हो रहा है। इन इलाकों में पेयजल संकट गहरा सकता है। पेयजल आपूर्ति के लिये इन इलाकों पर ध्यान देना होगा।

 

गहरी खदानों के आसपास के इलाके


मध्य प्रदेश में कोयले, मैंगनीज इत्यादि की अनेक खदाने हैं। इन खदानों से खनिज निकालने के लिये बड़ी मात्रा में पानी निकाला जाता है। इस कारण उनके आसपास के इलाके के अधिकांश जलस्रोत सूख जाते हैं। इन इलाकों में पेयजल आपूर्ति तथा पानी की गुणवत्ता पर खास ध्यान देना होगा। यदि पानी में अवांदित खनिज हैं तो उसके उपचार पर ध्यान देना होगा।

सेंट्रल वाटर कमीशन ने एक हेक्टेयर में लगी फसलों की पानी की आवश्यकता का अनुमान लगाया है। यह सही है कि पानी की आवश्यकता को जलवायु, मिट्टी की किस्म और तासीर सहित अनेक घटक प्रभावित करते हैं पर गर्म एवं शुष्क इलाकों में पानी की माँग सबसे अधिक होती है।

सेंट्रल वाटर कमीशन के अनुसार गेहूँ की एक हेक्टेयर की फसल को 55 लाख लीटर पानी, दालों को 30 लाख लीटर पानी, तिलहन फसलों को 45 लाख लीटर पानी, कपास को 70 लाख लीटर पानी, गन्ने को 2 करोड़ लीटर पानी और फलों को 90 लाख लीटर पानी की आवश्यकता होती है। बरसात बाद यदि धान बोई जाती है तो उसकी प्रति हेक्टेयर पानी की माँग दो करोड़ लीटर होगी। खेती में पानी की माँग सबसे अधिक होती है इसलिये आवश्यक है कि पानी की बचत करने वाले नियम-कायदों को खेती में काम में लाया जाये ताकि गर्मी के अन्त तक पेयजल की आपूर्ति को सुनिश्चित हो। अतः इस साल जब बाँधों में अपर्याप्त पानी है, ऐसी फसलों को बोना चाहिए जिनको कम पानी की दरकार होती है। किसी भी शर्त पर गन्ने का रकबा नहीं बढ़ाया जाना चाहिए।

आने वाले सीजन में गेहूँ के स्थान पर चना लगाया जाना चाहिए। इसके लिये किसानों को समझाइस दी जाना चाहिए। गर्मी के मौसम में कोई फसल नहीं ली जानी चाहिए। सबसे अधिक आवश्यकता भूजल के उपयोग को सीमित तथा संयमित करने की है। आने वाले दिनों में भूजल का दोहन केवल पेयजल आपूर्ति के लिये ही किया जाना चाहिए। यह व्यवस्था केवल इस साल के लिये होगी।

इस साल सारा फोकस गर्मी के मौसम की पेयजल आपूर्ति पर केन्द्रित होना चाहिए। उसकी अभी से तैयारी करनी होगी। मनुष्यों के साथ-साथ पशु-पक्षियों का भी ध्यान रखना होगा। जंगल में भी व्यवस्था करनी होगी। इसके लिये सबसे पहले प्रदेश के सतही जलस्रोतों अर्थात तालाबों तथा जलाशयों में पानी की उपलब्धता का सही-सही अनुमान लगाना चाहिए ताकि यह पता चल सके कि उनसे कितनी और कब तक आपूर्ति सम्भव है। तदानुसार व्यवस्था का रोडमैप बनाना चाहिए। यदि कमी है तो वैकल्पिक व्यवस्था क्या होगी और कहाँ से होगी, को सुनिश्चित करना होगा। पानी के मितव्ययी तथा बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग को अपनाना होगा। जिन इलाकों पर खास ध्यान देना है उनका उल्लेख किया जा चुका है।

एक बात और, जब कभी पानी का संकट पनपता है, नए नलकूप खनन का सुझाव सामने आता है। यह सही विकल्प नहीं है। सभी जानते हैं कि उस इलाके में पहले भी अनेक गहरे नलकूप खोदे जा चुके हैं। यदि वे सूख गए हैं तो नए नलकूपों का खनन अनुपयुक्त विकल्प होगा। मुख्य आवश्यकता है कि मौजूदा जलस्रोतों की विश्वसनीयता बढ़ाई जाये। उनके उपयोग की सही नीति तय हो।

उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश में सूखे की सम्भावना के मद्देनजर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में स्टेट वाच ग्रुप का गठन किया है। यह ग्रुप प्रदेश के सूखाग्रस्त क्षेत्रों को घोषित करने का काम करेगा। इसके लिये भारत सरकार द्वारा 2016 में जारी सूखा मेन्युअल के मुताबिक 30 सितम्बर तक जानकारी संकलित की जाएगी। अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में कार्यवाही तय होगी। इस एक्सरसाइज से प्रदेश को राहत राशि मिलेगी। उस राशि का उचित मद में उपयोग होगा लेकिन पानी के उपलब्ध संसाधनों के उपयोग की रणनीति राज्य को ही तय करनी होगी। वह रणनीति संकट से राहत का मार्ग तय करेगी और उसकी सफलता समाज का भाग्यफल तय करेगी।

 

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