बस्ती के बीच पेंग्विन का बसेरा


अटलांटिक महासागर के बेटिस बे क्षेत्र में स्थित इस कॉलोनी की पुख्ता फेंसिंग की गई है, जिससे पेंग्विनों तक शरारती तत्वों की पहुँच न हो सके। यह सब इन्तजामात इस खास पक्षी के संरक्षण के लिये हैं। दुनिया की इस अद्भुत पेंग्विन कॉलोनी को देखने के लिये देसी-परदेसी पर्यटकों का तांता लगा रहता है, लेकिन उन्हें अपने वाहन संरक्षित क्षेत्र से 100 मीटर दूर ही छोड़ने होते हैं। इसकी एक बड़ी वजह उन्हें शोर और प्रदूषण से बचाना है। अगर आप सोचते हैं कि वहाँ जाकर आप पूरा दिन आनन्द करें, तो यह भी सम्भव नहीं है।

दक्षिण अफ्रिका/पशु-पक्षियों के संरक्षण की मिसाल देखनी हो, तो दक्षिण अफ्रीका के सबसे समृद्ध शहर सिमांस टाउन जाएँ। पानी की बूँद-बूँद के लिये तड़प रहे शहर में उसे सहेजने की गजब की जिजीविषा दिखी। कूड़ा-कचरा भी यहाँ के लोग बहुत करीने से रखते हैं। ऐसे में पेंग्विन जैसे पक्षी प्रजाति को संरक्षित करने का इनका प्रयास अनुकरणीय लगता है।

केपटाउन शहर से करीब 90 किमी की दूरी पर सिमांस टाउन है। दरअसल, यह स्थान देश के अभिजात्य तबके के लोगों की छुट्टियाँ मनाने की जगह है। ऐसे तमाम लोगों ने यहाँ आलीशान विला बनाकर छोड़ दिये हैं। जब गर्मियाँ आती हैं, तो ये लोग अपना कुछ समय यहाँ आकर इन पेंग्विनों और समुद्र के किनारे बसे रमणीक स्थल पर बिताना पसन्द करते हैं।

बोल्डर्स पेंग्विन की अनोखी कॉलोनी

यहाँ आकर आप दुनिया कि अनोखी बोल्डर्स पेंग्विनों की कॉलोनी से रूबरू होते हैं। यह दरअसल एक संरक्षित पार्क की तरह है। अस्तित्व पर मँडरा रहे खतरे के बीच अफ्रीकन प्रजाति के इन पेंग्विनों की जिस तरह से रख-रखाव और देखभाल की जा रही है, सचमुच सोचने पर विवश करती है। यहाँ इस काम के लिये कई वॉलंटियर्स जुटे रहते हैं। वालंटियर्स समूह के प्रमुख जॉन डेविस इन पेंग्विनों के संरक्षण की पूरी कहानी बताते हैं।

बात 1982 की है, जब एक जोड़ी पेंग्विन यहाँ लाये गए। मकसद इनकी कॉलोनी बसाने का था। आज यहाँ पेंग्विनों की संख्या करीब ढाई हजार हो चुकी है। कोई पर्यटक किसी पेंग्विन के साथ शरारत न करे, इसकी सख्त निगरानी है। कदम-कदम पर सीसीटीवी कैमरे हैं। आप इन्हें कुछ खिला भी नहीं सकते और न ही इन्हें छेड़ सकते हैं। इस पूरे क्षेत्र को नेचर रिजर्व क्षेत्र में शामिल कर लिया गया है।

अटलांटिक महासागर के बेटिस बे क्षेत्र में स्थित इस कॉलोनी की पुख्ता फेंसिंग की गई है, जिससे पेंग्विनों तक शरारती तत्वों की पहुँच न हो सके। यह सब इन्तजामात इस खास पक्षी के संरक्षण के लिये हैं। दुनिया की इस अद्भुत पेंग्विन कॉलोनी को देखने के लिये देसी-परदेसी पर्यटकों का तांता लगा रहता है, लेकिन उन्हें अपने वाहन संरक्षित क्षेत्र से 100 मीटर दूर ही छोड़ने होते हैं। इसकी एक बड़ी वजह उन्हें शोर और प्रदूषण से बचाना है। अगर आप सोचते हैं कि वहाँ जाकर आप पूरा दिन आनन्द करें, तो यह भी सम्भव नहीं है।

आपको मिले अनुमति पत्र में आपके निकलने का समय नियत कर दिया जाता है। उसी अवधि के बीच आप इन पेंग्विनों को दुलार-पुचकार सकते हैं। हालांकि नियत समय के भीतर उन्हें जीभर देखना पर्याप्त होता है। समुद्र के पास रेतीले तट और पथरीली चट्टानें हैं। इन चट्टानों पर पेंग्विन उछल-कूद मचाते रहते हैं और पर्यटकों के कैमरे और मोबाइल क्लिक करते रहते हैं। इन्हीं चट्टानों पर झुंड में खड़े होकर पेंग्विन हाड़ कंपा देने वाली अटलांटिक महासागर से आ रही हवाओं का आनन्द लेते हैं।

गर्मियों में दोपहर का तापमान करीब 20 डिग्री सेल्सियस के आस-पास रहता है। शाम तक यह गिरकर 13-14 डिग्री पहुँच जाता है। शाम ढलने के साथ ज्यादातर पेंग्विन किनारे की चट्टानों पर आ जाते हैं। यहाँ की सर्दी यानी जून से अगस्त तक जब न्यूनतम तापमान 8 डिग्री सेल्सियस रहता है, तब पेंग्विन अधिकांश समय समुद्र में गोता लगाकर ही काटते हैं।

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