बस्तर जिले का धरातलीय जल (Ground Water of Bastar District)


धरातलीय जल : अपवाह तंत्र, जलप्रवाह, वाष्पोत्सर्जन, जलप्रवाह, सतही जल, तालाब, नदी, नालों के जल का मूल्यांकन, तालाबों की संग्रहण क्षमता, जल की गुणवत्ता।

धरातलीय जल


जल जीवन के लिये अपरिहार्य है। जल के बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं है। इसलिये जल संसाधनों का सही आकलन, त्वरित गति से विकास, समुचित उपयोग एवं एकरूपता के लिये विभिन्न माध्यमों से किए जा रहे प्रयासों में परस्पर समन्वय हेतु समग्र दृष्टि से विश्लेषण आवश्यक है।

जल धाराओं का जल ही सतही जलपूर्ति के रूप में सामान्यत: उपलब्ध जल है। बस्तर जिला मुख्यत: इंद्रावती-गोदावरी एवं महानदी द्वारा अपवाहित है। तर्री, हटकुल एवं दूध, महानदी प्रक्रम की प्रमुख नदियाँ हैं। जिले की कुल सतही जल उपलब्धता का 5.58 प्रतिशत जल (1026 लाख घन मीटर) 2,660 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत महानदी क्रम की नदियों द्वारा संग्रहित किया जाता है। गोदावरी क्रम की इंद्रावती एवं सबरी नदी जिले के पश्चिमी भाग एवं दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में अपवाह का स्वरूप निर्मित करती है। इंद्रावती नदी जिले की कुल सतही जल उपलब्धता का 69.20 प्रतिशत जल (12,710 लाख घन मीटर) 26,560 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में संग्रहित करती है। सबरी नदी जिले के कुल सतही जल उपलब्धता का 14.33 प्रतिशत जल (2,632 लाघ घन मीटर) 5,700 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र से संग्रहित करती है। निम्न गोदावरी नदी जिले के कुल सतही जल उपलब्धता का 10.87 प्रतिशत जल (1,997 लाख घन मीटर) 4,260 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र से संग्रहित करती है।

जिले में सतही जल की कुल आवक 18,365 लाख घन मीटर वार्षिक है, जो 39,180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र से संग्रहित होती है। जिले में इन नदियों की लंबाई 640 किलोमीटर है, जिनके जल संग्रहण क्षेत्र एवं उपलब्ध जलराशि का विवरण तालिका क्र. 3.1 में दर्शाया गया है।

सारिणी 3.1अपवाह तंत्र के आधार पर बस्तर जिले को दो प्रवाह बेसिनों में विभक्त किया जा सकता है :

(1) गोदावरी बेसिन एवं (2) महानदी बेसिन

गोदावरी बेसिन : जिले में गोदावरी बेसिन का निर्माण इंद्रावती, शबरी, कोटरी, तेल, नारंगी, दंतेवाड़ा, गुडरा आदि महत्त्वपूर्ण नदियों द्वारा होता है। ये नदियाँ जिले के लगभग 95 प्रतिशत भाग के जल को संग्रहित करती हैं।

इंद्रावती नदी : यह नदी जिले की प्रमुख नदी है, जो बस्तर जिले को उत्तर एवं दक्षिण दो खंडों में विभाजित करती है। यह नदी उड़ीसा के कालाहांडी जिले के भू आमूल पहाड़ से निकलकर बस्तर जिले में 372 किलोमीटर में अपवाहित हुयी है। उत्तर में इंद्रावती की सहायक नारंगी नदी चित्रकुट से 2 किलोमीटर पूर्व इंद्रावती नदी से मिलती है। गुडरा नदी अबुझमाड़ के पूर्वी कगार का जल जाती है। निबरा नदी उत्तरी अबुझमाड़ को पारकर पश्चिम की ओर बहकर अंत में दक्षिण की ओर मुड़कर इंद्रावती में मिलती है। उत्तर-पश्चिम क्षेत्र कोटरी एवं इसकी सहायक नदी वालेर का अपवाह क्षेत्र है, इस नदी पर परालकोट बांध का निर्माण हुआ है। वालेर और खांडी नदी के उद्भव क्षेत्र धारवाड़ क्रम के धारीदार लौह युक्त शैल क्षेत्र हैं। ये चट्टानें अत्यधिक कठोर है। जहाँ पर बलुका पत्थर है, वहाँ नदी वृक्षाकार रूप में तथा जहाँ पर लौह युक्त शैल हैं, वहाँ पर नदी सर्पाकार रूप में प्रवाहित होती है। क्योंकि यहाँ की कठोर चट्टानों को नदी काट नहीं पाई है और मुड़कर प्रवाहित हो गई है। उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के नारंगी और गुडरा नदी क्षेत्र में ग्रेनाइट चट्टानें पायी जाती है। इनमें रंध्रता कम पायी जाती है तथा ये चट्टानें कठोर होती है।

इंद्रावती की दक्षिण तट की सहायक नदियाँ दंतेवाड़ा, बरंदी, चिंतावागु, मारी इत्यादि नदियाँ हैं। दंतेवाड़ा नदी इंद्रावती नदी के मध्य में मिलती है और पश्चिमी भाग में बरंदी और चिंतावागु नदियाँ मिलती है। दंतेवाड़ा, मारी नदी क्षेत्र की ग्रेनाइट और लौह युक्त शैल में रंध्रता एक प्रतिशत से भी कम है, जिससे प्रवाह घनत्व न्यून है।

इंद्रावती नदी जगदलपुर एवं बारसूर से होकर बस्तर के पठार के मध्य में प्रवाहित होती है। यह जगदलपुर से लगभग 40 किलोमीटर पश्चिम में चित्रकूट नामक स्थल पर प्रसिद्ध जल प्रपात बनाती है। यह बस्तर जिले के बारहमासी नदी है। इसका निम्नतम जल प्रवाह जगदलपुर के निकट 350 घन मीटर है, जबकि चित्रकूट के निकट जल प्रवाह 700 घन मीटर है। बेंद्री के पास इंद्रावती की घाटी लगभग 90 मीटर है। इस घाटी के कारण इंद्रावती नदी चित्रकूट से निचे की ओर तीव्र गति से प्रवाहित होती है। आगे चलकर इंद्रावती नदी चित्रकूट से नीचे की ओर तीव्र गति से प्रवाहित होती है। आगे चलकर इंद्रावती नदी पश्चिम की ओर अबुझमाड़ की पहाड़ियों की दक्षिणी सीमा बनाती है तथा दक्षिण की ओर मुड़र गोदावरी नदी में मिल जाती है। संपूर्ण प्रवाह बेसिन के उत्तरी एवं दक्षिणी क्षेत्रों में मानसून काल की अवधि में संग्रहित जलावाह उपलब्धता के संग्रहण एवं उपयोग हेतु विभिन्न लघु जलाशयों का निर्माण किया गया है। इंद्रावती नदी के जल से जिले के कुल सिंचित क्षेत्र का 1.93 प्रतिशत क्षेत्र को सिंचित किया जा सका है।

सबरी नदी : यह नदी जिले के दक्षिणी निम्न भूमि में प्रवाहित होती है। यह टिकनापल्ली, गोलापल्ली की पहाड़ियों द्वारा दो भागों में विभक्त हो जाती है। पहले भाग में कांगेर एवं मलेवन्गए इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ हैं। यह नदी पूर्वी घाटी में कोरापुट पठार (समुद्र सतह से 900 मीटर) से निकलकर बस्तर में जैपोर पठार (600 मीटर) की ओर प्रवाहित होती हुई 28.8 किलोमीटर तक बस्तर जिले की सीमा बनाती है। कांगेर नदी तीरथगढ़ में ऊँचा जल प्रपात बनाती है। यह क्षेत्र कड़प्पा युगीन बलुआ पत्थर का क्षेत्र है। जिससे इस क्षेत्र में अपवाह घनत्व अधिक है। सबरी नदी की दूसरी शाखा पश्चिम दिशा में प्रवाहित होकर गोदावरी नदी में मिल जाती है। सबरी नदी के पश्चिम भाग में तालपेरू एवं चिंता इसकी सहायक नदियाँ हैं। इस क्षेत्र में ग्रेनाइट, नाइस और बलुकाश्म चट्टानें पायी जाती हैं। कोटा का दक्षिण क्षेत्र उसूर का पश्चिमी एवं सुकमा क्षेत्र नरम बलुकाश्म चट्टान वाला है, जिससे अपवाह घनत्व अधिक है। कोंटा का उत्तरी भाग छिंदगढ़, कुवाकोंडा, कटेकल्याण, कठोर नाइस और ग्रेनाइट चट्टानों वाला क्षेत्र है। जिसके कारण अपवाह घनत्व कम है। सबरी नदी पर दरभा विकासखंड में मध्यम सिंचाई योजना झीयम जलाशय बना हुआ है। सबरी नदी से जिले के कुल सिंचित क्षेत्र का 0.07 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित होता है। इस नदी में लगभग 37 लघु योजना जलाशय निर्मित है।

निम्न गोदावरी नदी बेसिन : यह नदी बस्तर जिले के पश्चिम तटीय सीमा बनाती हुई केवल 24 किलोमीटर में संकीर्ण मार्ग से प्रवाहित होती है।

महानदी : यह नदी रायपुर जिले के सिहावा के निकट श्रृंगी ऋषि पर्वत से निकलकर बस्तर जिले के उत्तरी क्षेत्र कांकेर, चारामा, नरहरपुर, विकासखंड में प्रवाहित होती है। यह नदी बस्तर जिले में केवल 64 किलोमीटर प्रवाहित होती है। इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ टूरी, हटकल, दूध एवं सोंदूर है। ये सभी नदियाँ मानसूनी है। महानदी पर मध्यम सिंचाई योजना के अंतर्गत चारामा के निकट मायाना जलाशय का निर्माण हुआ है। इसके अतिरिक्त इसमें 40 लघु जलाशयों का निर्माण हुआ है। जिले में महानदी द्वारा कुल सिंचित क्षेत्र का 0.64 प्रतिशत क्षेत्र ही सिंचित होता है। महानदी बेसिन क्षेत्र में ग्रेनाइट चट्टानें पायी जाती हैं। ये कठोर होती है। जिसके कारण इस क्षेत्र में प्रवाह घनत्व कम होता है।

बस्तर जिले के लगभग 50 प्रतिशत क्षेत्र पर ग्रेनाइट, ग्रेनाइट - नाइस जैसे कठोर चट्टानें मिलती हैं, जिसमें अपवाह घनत्व कम है। इसमें जिले में कुल 18,365 लाख घन मीटर सतही जल की उपलब्धता है। जिसका सिर्फ 287.65 घन मीटर ही सिंचाई के लिये उपयोग होता है।

नदियों का मासिक एवं वार्षिक जलावाह : सतही प्रवाह अथवा जलावाह नदियों में जल प्राप्ति का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। धरातलीय संरचना, वर्षा की मात्रा एवं गहनता, जल-हानि, मिट्टी की प्रकृति, वनस्पति-आवरण, नदी जल प्रवाह इत्यादि नदियों के जल प्रवाह को प्रभावित करते हैं।

बस्तर जिले के विभिन्न नदियों के जलप्रवाह की गणना मुख्यत: ‘‘केंद्रीय जल संसाधन शक्ति संगठन’’ द्वारा जिले के विभिन्न नदियों पर स्थापित जल प्रवाह मापी केंद्रों के लिये प्राप्त किए गए आंकड़ों के आधार पर किया गया है। विभिन्न जल प्रवाह मापी केंद्रों के लिये वर्ष 1987 से 1995 तक जल प्रवाह का आकलन किया गया है।

कुल जल प्रवाह की मात्रा के साथ-साथ पर्याप्त क्षेत्रीय विषमताएँ एवं परिवर्तन दृष्टिगत होता है। इन परिवर्तनों को समयावधि के संदर्भ में जलीय ग्राफ के माध्यम से दर्शाया जाता है। जलीय ग्राफ एक लंबी अवधि के जल प्रवाह के आंकड़ों अथवा औसत मासिक जल प्रवाह अथवा दैनिक जल प्रवाह के आंकड़ों के आधार पर निर्मित किये जा सकते हैं (मार्डनर, 1977, 172, बाघामार, 1988, 68-93)।

सारिणी 3.2नदियों का मासिक जल प्रवाह : बस्तर जिले की सभी नदियों में अधिकतम एवं न्यूनतम जल प्रवाह में अत्यधिक विषमताएँ हैं। जैसे - इंद्रावती नदी के जगदलपुर प्रवाह मापी केंद्र का उच्चतम मासिक जल प्रवाह 915.74 लाख घन मीटर है जबकि इसी केंद्र का न्यूनतम 4.03 लाख घन मीटर है। महानदी का उच्चतम मासिक जल प्रवाह 690.93 लाख घन मीटर एवं न्यूनतम 2.42 लाख घन मीटर है। जिले में नदियों के जल प्रवाह में इस विषमता का मुख्य कारण वर्षा की मात्रा में विषमता एवं प्राकृतिक स्थिति है। इंद्रावती नदी एवं महानदी का 95 प्रतिशत जल प्रवाह जुलाई से सितंबर की अवधि में होता है। बाकी महीनों में 5 प्रतिशत जल प्रवाह होता है। जिले में वर्षा की अवधि लंबी होने के कारण जल प्रवाह की अवधि भी लंबी है। क्योंकि द.प. मानसून सबसे पहले मध्य प्रदेश से बस्तर जिले में प्रवेश करता है।

औसत मासिक वर्षा एवं औसत मासिक जल प्रवाह एक-दूसरे पर निर्भर है। सामान्यत: जून से सितंबर के मध्य अधिकांश स्थानों पर अधिक जल प्रवाह रहता है। क्योंकि मानसून काल में वर्षा की मात्रा वाष्पीकरण की तुलना में अधिक होती है। मिट्टी भी अपनी पूर्ण आर्द्रता से युक्त होती है। अत: इस अवधि में अतिरिक्त जल का कुछ भाग जल प्रवाह के रूप में उपलब्ध रहता है। सितंबर के पश्चात जबकि वर्षा की मात्रा न्यून होती जाती है। जल प्रवाह घटता जाता है। ग्रीष्मावधि में वर्षा की अत्यंत कम मात्रा जल प्रवाह घटने का प्रमुख कारण है। इस समय महानदी बेसिन में जल प्रवाह अधिकतम 6.19 लाख घन मीटर तथा न्यूनतम 0.76 लाख घन मीटर के मध्य रहता है। ग्रीष्म काल में इंद्रावती नदी का जल प्रवाह अधिकतम 9.97 लाख घन मीटर तथा न्यूनतम 4.03 लाख घन मीटर के मध्य रहता है (मानचित्र क्र. 3.1)। जिले के सभी नदियों के प्रवाह क्षेत्रों में वर्षा की मात्रा में भिन्नता होने के कारण मासिक जल प्रवाह वितरण में भी एकरूपता नहीं है।

नदियों का वार्षिक जल प्रवाह : जिले के विभिन्न नदी जल प्रवाह मापी केंद्रों पर विभिन्न नदियों के वार्षिक जलावाह में पर्याप्त विभिन्नता है (मानचित्र क्र. 3.2)। औसत वार्षिक जलावाह की अधिकतम मात्रा 4,812.83 लाख घन मीटर जगदलपुर (इंद्रावती नदी) में है। महानदी का जल प्रवाह अधिकतम 2,301.17 लाख घन मीटर एवं न्यूनतम वार्षिक जल प्रवाह मापी केंद्र में 54.18 लाख घन मीटर है। वार्षिक जल प्रवाह में विभिन्नता का दूसरा कारण जिले के मध्य पूर्वी भाग को छोड़कर लगभग 75 प्रतिशत क्षेत्र ग्रेनाइट, नाइस लौह युक्त शैल के अत्यंत कठोर एवं सघन चट्टानी संस्तर का है, जिससे प्रवाह घनत्व कम हो जाता है, क्योंकि मुख्य धारा ही अपने प्रवाह को बनाए रखने में समर्थ हो पाती है। इंद्रावती नदी बेसिन से विभिन्न सहायक नदियों के जल प्रवाह में वृद्धि होती है।

बस्तर जिला सतही जल प्रवाहबस्तर जिले की नदियों का वार्षिक जल प्रवाह भी मुख्यत: वार्षिक वर्षा की उपलब्धता पर निर्भर है। वर्ष 1988 अध्ययन अवधि का न्यूनतम वार्षिक जल प्रवाह का वर्ष रहा। इस अवधि में संपूर्ण जिले में वर्षा की न्यूनता के कारण सूखे की स्थिति निर्मित हो गयी थी। इस समय इंद्रावती नदी में वार्षिक जल प्रवाह जगदलपुर केंद्र में 1012 लाख घन मीटर तथा महानदी में 918.02 लाख घन मीटर अंकित किया गया। वर्ष 1993 उच्चतम जल प्रवाह का वर्ष रहा। इस अवधि में वार्षिक जल प्रवाह जगदलपुर केंद्र में 3652.43 लाख घन मीटर तथा महानदी (लखनपुर केंद्र) में 1,732.23 लाख घन मीटर रहा।

वार्षिक वर्षा की भांति औसत वार्षिक जल प्रवाह की मात्रा में भी अत्यधिक विचलनशीलता है। विचलनशीलता का मुख्य कारण प्रवाह क्षेत्रों की अनियमितता एवं प्राप्यता में भिन्नता है। जिले के विभिन्न नदी जल प्रवाह मापी केंद्रों पर जल प्रवाह की प्रवृत्ति का विवरण निम्नानुसार है : -

परालकोट : जिले में इंद्रावती नदी के तट पर परालकोट स्थित है। इंद्रावती नदी के इस जल प्रवाहमापी केंद्र पर नदी का औसत वार्षिक जल प्रवाह 1646.99 लाख घन मीटर है। मासिक जल प्रवाह अधिकतम अगस्त में 694.55 लाख घन मीटर एवं न्यूनतम 1.44 लाख घन मीटर मई में रहता है। कुल वार्षिक जल प्रवाह का 88 प्रतिशत जुलाई से सितंबर के महीने में प्राप्त होता है। सितंबर के पश्चात जल प्रवाह क्रमश: कम होते जाता है। नवंबर - दिसंबर में औसत मासिक जल प्रवाह 6.8 से 21.4 लाख घन मीटर रहता है।

सोनपुर : यह केंद्र इंद्रावती की सहायक निबरा नदी के उद्गम स्थान पर स्थित है। इस केंद्र में वार्षिक जल प्रवाह 1301.19 लाख मीटर है। मासिक जल प्रवाह अधिकतम सितंबर में 593.6 लाख घन मीटर एवं न्यूनतम 2.0 लाख घन मीटर मई में रहता है। अधिकतम जल प्रवाह जुलाई से सितंबर के महीने में प्राप्त होता है। न्यूनतम जल प्रवाह नवंबर - दिसंबर के महीने में प्राप्त होता है।

जगदलपुर : यह केंद्र इंद्रावती के कछार पर स्थित है। इस जल प्रवाह मापी केंद्र पर नदी का प्रवाह क्षेत्र 7,380 वर्ग किलोमीटर है। इस क्षेत्र में औसत जल प्रवाह 2760.30 लाख घन मीटर है। मानसून अवधि में अधिकतम जल प्रवाह 991.65 लाख घन मीटर जुलाई में एवं न्यूनतम मई के महीने में 4.03 लाख घन मीटर होता है। वर्षा की मात्रा के घटते जाने के साथ-साथ जल प्रवाह की मात्रा भी क्रमश: घटते जाती है।

नारंगी : यह केंद्र जिले के पूर्वी भाग में इंद्रावती की सहायक नदी नारंगी के तट पर स्थित है। इस केंद्र पर नदी का औसत वार्षिक जल प्रवाह 587.96 लाख घन मीटर है। मासिक जल प्रवाह अधिकतम जुलाई में 314.65 लाख घन मीटर है एवं न्यूनतम 0.01 लाख घन मीटर मई में रहता है। सितंबर के पश्चात जल प्रवाह क्रमश: कम होते जाता है।

मारकंडी : यह जिले के पूर्वी भाग में माकड़ी विकासखंड में मारकंडी नदी पर स्थित है। इस केंद्र पर औसत जल प्रवाह 539.67 लाख घन मीटर है। यहाँ पर मासिक जल प्रवाह अधिकतम जुलाई में 178.83 लाख घन मीटर एवं न्यूनतम अप्रैल में 0.46 लाख घन मीटर है।

घनकीनी : इस जल प्रवाह मापी केंद्र पर नदी का प्रवाह क्षेत्र 750 वर्ग किलोमीटर है। इस केंद्र पर औसत जल प्रवाह 1171.13 लाख घन मीटर है। यहाँ पर मासिक जल प्रवाह अधिकतम अगस्त में 389.4 लाख घन मीटर एवं न्यूनतम 0.53 लाख घन मीटर अप्रैल में है।

संकनपाली : यह जिले के पश्चिमी क्षेत्र में इंद्रावती नदी के तट पर स्थित है। यहाँ औसत जल प्रवाह 791.95 लाख घन मीटर मापा गया है। यहाँ मासिक जल प्रवाह अधिकतम अगस्त में 196.94 लाख घन मीटर एवं न्यूनतम जल प्रवाह 1.45 लाख घन मीटर मई महीने में होता है।

बासामुड़ा : यह इंद्रावती नदी के पश्चिमी तटीय क्षेत्र में स्थित है। इस केंद्र पर औसत जल प्रवाह 357.41 लाख घन मीटर है। मासिक जल प्रवाह अधिकतम जुलाई में 139.89 लाख घन मीटर एवं न्यूनतम जल प्रवाह 1.25 लाख घन मीटर मई महीने में होता है।

बहीरामगढ़ : इस केंद्र के अंतर्गत इंद्रावती नदी के 1300 वर्ग किलोमीटर प्रवाह क्षेत्र के प्रवाह का मापन किया गया है। इसका औसत जल प्रवाह 265.17 लाख घन मीटर है। मासिक जल प्रवाह अधिकतम जुलाई में 85.19 लाख घन मीटर एवं न्यूनतम जलप्रवाह 1.05 लाख घन मीटर जून में होता है।

मारी : यह केंद्र मारी नदी तट पर स्थित है। मारी नदी इंद्रावती नदी की सहायक नदी है। इस नदी का औसत जल प्रवाह 229.5 लाख घन मीटर है। जिले के सभी प्रवाह मापी केंद्रों में न्यूनतम जल प्रवाह इस केंद्र से होता है। इसका मासिक जल प्रवाह अधिकतम अगस्त में 117.4 लाख घन मीटर एवं न्यूनतम 1.20 लाख घन मीटर मई में होता है।

प्रतापपुर : यह केंद्र कोटरी नदी के कछारी क्षेत्र पर स्थित है। यहाँ औसत वार्षिक जल प्रवाह 812.07 लाख घन मीटर है। मासिक जल प्रवाह अधिकतम अगस्त में 349.06 लाख घन मीटर एवं न्यूनतम 429 लाख घन मीटर मई में होता है।

चेरीबेड़ा : यह केंद्र बुरीबेरा नदी के कछारी क्षेत्र पर स्थित है। जहाँ औसत वार्षिक जल प्रवाह 424.94 लाख घन मीटर है। मासिक अधिकतम जल प्रवाह जुलाई में 207.02 लाख घन मीटर एवं न्यूनतम 0.95 लाख घन मीटर मई में होता है।

कुटगाँव : यह केंद्र वालेर नदी के तट पर स्थित है। इस प्रवाह मापी केंद्र पर औसत वार्षिक जल प्रवाह 548.17 लाख घन मीटर है। मासिक जल प्रवाह का अधिकतम 230.97 लाख घन मीटर अगस्त में एवं न्यूनतम जल प्रवाह मई में 0.23 लाख घन मीटर होता है।

गुदरा : इंद्रावती नदी के उत्तरी सहायक नदी गुदरा के तट पर यह केंद्र स्थित है। इस केंद्र पर औसत वार्षिक जल प्रवाह 429.3 लाख घन मीटर है। इस केंद्र पर मासिक अधिकतम जल प्रवाह 161.66 लाख घन मीटर अगस्त में एवं न्यूनतम जल प्रवाह मई में 0.26 लाख घन मीटर होता है।

कोयलीबेड़ा : यह केंद्र कोटरी के नदी तट पर स्थित है। कोटरी नदी इसका औसत वार्षिक जल प्रवाह 312.35 लाख घन मीटर है। इस केंद्र का मासिक अधिकतम जल प्रवाह 107.5 लाख घन मीटर जुलाई में एवं न्यूनतम जल प्रवाह अप्रैल में 0.10 लाख घन मीटर होता है।

लखनपुरी : यह महानदी तट पर जिले के उत्तरी क्षेत्र में स्थित है। यह केंद्र जिले में महानदी का एक मात्र प्रवाह मापी केंद्र है। इसके अंतर्गत जिले के 2530 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र आता है। इस केंद्र का औसत वार्षिक जल प्रवाह 928.07 लाख घन मीटर है। इसका अधिकतम मासिक जल प्रवाह 475.28 लाख घन मीटर सिंतबर में एवं न्यूनतम जल प्रवाह मई में 2.42 लाख घन मीटर होता है।

उपर्युक्त प्रवाह मापी केंद्रों में अधिक जल प्रवाह जुलाई से सितंबर के मध्य होती है। न्यूनतम जल प्रवाह मार्च से मई के मध्य होती है। अत: जिले की सभी नदियाँ मानसूनी जल से परिपूरित होती है। जिले में सतही जल की कुल आवक 18,365 लाख घन मीटर है। जिसमें से 12,178.1 लाख घन मीटर जल प्रवाह इंद्रावती नदी तंत्र द्वारा एवं 928.07 लाख घन मीटर महानदी तंत्र के द्वारा होता है।

सतही जल का जलाधि एवं जल प्रवाह : बस्तर जिले के सभी प्रमुख नदी प्रवाह बेसिन हेतु मासिक एवं वार्षिक जलप्रवाह की गणना सुब्रमण्यम एवं सुब्बाराम (1971, 50) की विधि के आधार पर की गई है। सुब्रमण्यम एवं सुब्बाराम ने थार्नश्वेट (1955) के द्वारा प्रतिपादित जल संतुलन की मूल संकल्पना में संशोधन कर दक्षिण भारतीय नदियों के लिये जल प्रवाह की गणना की है।

बस्तर जिले की विभिन्न नदी बेसिन में जल प्रवाह भिन्न-भिन्न है। सामान्यत: अधिक वर्षायुक्त एवं कठोर संरचनायुक्त क्षेत्र में नदियों का जल प्रवाह अधिक है। इसके विपरीत जिन स्थानों पर औसत वार्षिक वर्षा न्यून है। वहाँ जल प्रवाह की मात्रा भी न्यून है। इसके अतिरिक्त सामान्य वाष्पोत्सर्जन, मिट्टी की जल ग्रहण क्षमता भी जल प्रवाह में भिन्नता के कारण है।

बस्तर जिला जल संतुलन एवं वार्षिक माध्य जल प्रवाहबस्तर जिले में वार्षिक वर्षा की मात्रा उत्तर की ओर घटते जाती है। उसी तरह वार्षिक जल प्रवाह की मात्रा उत्तर की ओर कम है। अधिकतम जल प्रवाह बीजापुर में 1064 मिमी एवं न्यूनतम कांकेर में 585.44 मिमी है। अन्य स्थानों पर जल प्रवाह क्रमश: अंतागढ़ में 1108 मिमी, जगदलपुर में 902 मिमी, केशकाल में 933.84 मिमी, सुकमा में 890.12 मिमी, भोपालपटनम में 870.75 मिमी, कोंडागाँव में 851.50 मिमी, दंतेवाड़ा में 829.03 मिमी, भानुप्रतापपुर में 822.42 मिमी, नारायणपुर में 728.90 मिमी एवं कोंटा में 637.64 मिमी है।

जून से सितंबर के चार माह में वार्षिक जल प्रवाह का लगभग 90 प्रतिशत प्राप्त होता है। शेष महीनों में जल प्रवाह न्यून रहता है। जिले के विभिन्न केंद्रों पर मानसून काल में अधिकतम जल प्रवाह की मात्रा क्रमश: जगदलपुर में 303 मिमी, कोंडागाँव में 276 मिमी, अंतागढ़ में 399 मिमी, बीजापुर में 367 मिमी, भोपालपटनम में 355 मिमी, कोंटा में 249 मिमी, दंतेवाड़ा में 272 मिमी, केशकाल में 322 मिमी, सुकमा में 295 मिमी, नारायणपुर में 278 मिमी, कांकेर में 268 मिमी एवं भानुप्रतापपुर में 339 मिमी है। सभी केंद्रों पर अगस्त महीने में अधिकतम जल प्रवाह होती है। मानसून काल में पश्चात जिले के सभी क्षेत्रों में जल प्रवाह न्यून रहता है।

तालाब : सतही जल कुछ मात्रा में तालाबों एवं जलाशयों में संग्रहित होता है। तालाब ग्रामीण भू-दृश्य के प्रमुख अंग है। सामान्यत: भारतीय ग्रामों में तालाब दैनिक जल आपूर्ति के प्रमुख स्रोत हैं। प्राय: प्रत्येक ग्राम में एक या दो तालाब होते हैं, जिनका उपयोग प्रतिदिन के निस्तार के लिये किया जाता है।

प्राचीन काल से ही इस क्षेत्र के मानव बस्ती दृश्यावली में तालाबों का विशेष स्थान रहा है। किंतु वर्तमान में इनकी जल ग्रहण क्षमता एवं महत्ता धीरे-धीरे घटते जा रहा है। प्रारंभिक समय में तालाब गहरे थे एवं उनके रख-रखाव तथा निर्माण प्रबंधन की दृष्टि से सुदृढ़ अवस्था थी। वर्तमान में ग्रामीण तालाबों के प्रति गैर-जिम्मेदारी की प्रवृत्ति शुरू हो गई है। साफ सफाई एवं देख-रेख की कमी के कारण इन तालाबों में जलीय वनस्पतियाँ एवं कीचड़ जमा हो गये हैं। फलस्वरूप तालाबों की क्षमता घटते जा रही है। यद्यपि जिले में बड़े तालाब हैं। जिससे पम्प से आस-पास के क्षेत्रों में सिंचाई की जाती है। जिले में ऐसे तालाबों की संख्या कम है, जिले में गहरे, अधिक फैले हुए तालाबों की संख्या अधिक है। कम वर्षा की स्थिति में इन तालाबों से पतली नालियों की सहायता से ढाल के खेतों में खरीफ फसलों की सिंचाई हेतु जल उपलब्ध कराया जाता है।

बस्तर जिला वार्षिक जल प्रवाहजल संसाधन विकास की दृष्टि से सिंचाई के लिये उपयुक्त तालाबों को दो वर्गों में विभक्त किया गया है : -

(1) 40 हेक्टेयर से कम सिंचाई, क्षमता युक्त तालाब, एवं
(2) 40 हेक्टेयर से अधिक सिंचाई क्षमता युक्त तालाब

बस्तर जिले में 40 हेक्टेयर से कम सिंचाई क्षमता युक्त तालाबों की संख्या 31 है। इस तरह के तालाबों का वितरण सर्वाधिक उत्तरी मैदानी क्षेत्र के विकासखंडों में अधिक है। ऐसे तालाबों की संख्या चारामा विकासखंड में 8, कांकेर में 5, सरोना में 4 हैं। जिले के केशकाल, सुकमा, छिंदगढ़, बस्तर, फरसगाँव, कोयलीबेड़ा, भोपालपटनम, भेरमगढ़ विकासखंड में 40 हेक्टेयर से कम सिंचाई क्षमता वाले तालाब नहीं है।

सारिणी 3.3बस्तर जिला सिंचाई जलाशयों का वितरण40 हेक्टेयर से अधिक सिंचाई क्षमता युक्त तालाबों की संख्या 235 है। ऐसे तालाबों की अधिक संख्या चारामा में 19 है। इसके पश्चात क्रमश: दंतेवाड़ा में 14, कोयलीबेड़ा में 22, कोंटा में 20, कोंडागाँव में 14, सरोना में 14 है। जिले में जल क्षेत्र कुल भौगोलिक क्षेत्र के 2.75 प्रतिशत है (तालिका क्र. 3.3)। 40 हेक्टेयर से कम 40 हेक्टेयर से अधिक सिंचाई जलाशयों का वितरण (मानचित क्र. 3.4) में है।

जल संसाधन विकास की दृष्टि से तालाबों का वितरण महत्त्वपूर्ण है। सामान्यत: जिले के उत्तर एवं दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में तालाबों के सघन वितरण से इस क्षेत्र में तालाबों द्वारा सिंचाई की अतिरिक्त सुविधा प्राप्त हुई है। जिले में लगभग 10,291 हेक्टेयर क्षेत्र में तालाबों से सिंचाई की जाती है, जो संपूर्ण सिंचित क्षेत्र का लगभग 27.08 प्रतिशत है।

प्रति 100 हेक्टेयर पर तालाबों का वितरण घनत्व जल उपलब्धता की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। जिले के उत्तरी क्षेत्र विकासखंड में तालाबों का घनत्व अधिक है। प्रति 100 हेक्टेयर पर सिंचाई तालाबों का अधिक घनत्व चारामा एवं भोपालपटनम विकासखंड में 3.1, कोण्डागाँव, केशकाल एवं भानुप्रतापपुर प्रत्येक में 2.0 है। न्यूनतम घनत्व दरभा एवं भैरमगढ़ विकासखंड में है। सिंचाई के तालाब कटेकल्याण और बास्तानार विकासखंड में नहीं है।

सामान्यत: जिले के प्रत्येक ग्राम में कम से कम एक तालाब अवश्य है। प्रति ग्राम तालाबों की संख्या में पर्याप्त विषमताएँ हैं। तालाबों की अधिक संख्या नरहरपुर (सरोना), कोंडागाँव, जगदलपुर, बस्तर, कोंटा, एवं चारामा विकासखंड में है। यह संख्या 600 से 700 तालाब तक है। सबसे कम तालाबों की संख्या कटेकल्याण, बासतानार, बड़ेराजपुर एवं दुर्गकोंदल विकासखंड में है, जो लगभग 100 से 150 तालाबों के मध्य है। जिले में कुल 8473 तालाब हैं, जिसमें 266 तालाबों द्वारा सिंचाई होती है। शेष तालाबों से ग्रामीण लोगों के दैनिक निस्तार कार्यों में जल का उपयोग होता है।

जलाशय : बस्तर जिले में सतही जल के संग्रहण हेतु निर्मित जलाशय महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक भू-दृश्य है। जिले में उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य दशकों से ही जलाशयों के निर्माण पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है। जिले में कृत्रिम एवं प्राकृतिक जलाशय है, जिनके माध्यम से न केवल विभिन्न उपयोग के लिये जल सुलभ है। वरन उपलब्ध जल संसाधन का संग्रहण एवं समुचित उपयोग होता है।

बस्तर जिला सिंचाई जलाशयों का वितरणसारिणी 3.4परालकोट जलाशय : यह जलाशय कोटरी नदी पर कोयलीबेड़ा विकासखंड में निर्मित किया गया है। इस जलाशय की कुल क्षमता 66.35 लाख घन मीटर है। इसका अधिकतम जल स्तर 291.23 मीटर है। इस जलाशय का जल उपयोग सिंचाई एवं घरेलू कार्यों के लिये किया जाता है।

मयाना जलाशय : यह जलाशय महानदी पर कांकेर तहसील में निर्मित किया गया है। इसकी कुल क्षमता 59.8 लाख घन मीटर है। इसका अधिकतम जल स्तर 287.3 मीटर है। इस जलाशय का जल उपयोग सिंचाई हेतु अधिक एवं घरेलू कार्य के लिये कम किया जाता है।

झीयम जलाशय : इस जलाशय का निर्माण इंद्रावती नदी की सहायक नदी झीयम पर दरभा विकासखंड में किया गया है। इसकी कुल क्षमता 47.21 लाख घन मीटर है। इसका अधिकतम जल स्तर 264.12 मीटर है। इस जलाशय का अधिकतम उपयोग घरेलू कार्य के लिये होता है।

जिले में जीवाणु विश्लेषण हेतु विभिन्न जल स्रोतों से 65 नमूने लिये गये हैं। कुओं के नमूनों से 10/100 मिली (तोकापाल विकासखंड), 89/100 मिली (दुर्गकोंदल विकासखंड) के मध्य रही। जगदलपुर शहरी तालाब में 2105/100 मिली तथा ग्रामीण तालाबों के नमूने से 188/100 (माकड़ी विकासखंड), 490/100 मिली (भोपालपटनम विकासखंड) के मध्य है। नदी-नालों से 150/100 मिली से 250/100 मिली कॉलीफार्म जीवाणु पाया गया है।

 

बस्तर जिले में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास एक भौगोलिक विश्लेषण, शोध-प्रबंध 1997


(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

प्रस्तावना : बस्तर जिले में जल संसाधन मूल्यांकन एवं विकास एक भौगोलिक विश्लेषण (An Assessment and Development of Water Resources in Bastar District - A Geographical Analysis)

2

बस्तर जिले की भौगोलिक पृष्ठभूमि (Geography of Bastar district)

3

बस्तर जिले की जल संसाधन का मूल्यांकन (Water resources evaluation of Bastar)

4

बस्तर जिले का धरातलीय जल (Ground Water of Bastar District)

5

बस्तर जिले का अंतर्भौम जल (Subsurface Water of Bastar District)

6

बस्तर जिले का जल संसाधन उपयोग (Water Resources Utilization of Bastar District)

7

बस्तर जिले के जल का घरेलू और औद्योगिक उपयोग (Domestic and Industrial uses of water in Bastar district)

8

बस्तर जिले के जल का अन्य उपयोग (Other uses of water in Bastar District)

9

बस्तर जिले के जल संसाधन समस्याएँ एवं समाधान (Water Resources Problems & Solutions of Bastar District)

10

बस्तर जिले के औद्योगिक और घरेलू जल का पुन: चक्रण (Recycling of industrial and domestic water in Bastar district)

11

बस्तर जिले के जल संसाधन विकास एवं नियोजन (Water Resources Development & Planning of Bastar District)

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading