बुझेगी दिल्ली की प्यास

दिल्ली वालों को पानी का बड़ा स्रोत मिल गया है। अब देखना है कि कितनी सावधानी के साथ वे इस बड़े संसाधन का उपयोग करते हैं क्योंकि समृद्धि के लिए केवल संसाधन पर्याप्त नहीं होता बल्कि उस संसाधन का कारगर और व्यावहारिक उपयोग ही देश और समाज की उन्नति की दिशा तय करता है।

केन्द्रिय भूजल बोर्ड के एक अध्ययन में दिल्ली के पास यमुना के किनारे जल के दो बड़े भण्डार पाए गए हैं। इन दोनों जल भण्डारों का उपयोग कर अगले कई दशक तक दिल्ली के लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है। जल भण्डार का एक स्रोत दिल्ली के यमुना खादर पल्ला से बुराड़ी तक के हिस्से में पड़ता है जबकि दूसरा स्रोत बुराड़ी के सामने यमुना से सटे उत्तर प्रदेश के हिस्से में पड़ता है। फिलहाल बुराड़ी इलाके से रैनीवेल के जरिए होकर दिल्ली जलबोर्ड तक करीब 21 एमजीडी पानी वितरित किया जा रहा है जबकि रोजाना यहाँ से करीब 50 एमजीडी पानी की आपूर्ति की जा सकती है। वहीं बुराड़ी के सामने यमुना के दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में पड़ने वाले भूजल स्रोत से दिल्ली को रोजाना करीब 45 से 50 एमजीडी पानी की आपूर्ति की जा सकती है। यानी करीब 100 एमजीडी पानी की जरूरत तत्काल पूरी की जा सकती है।

रोजाना पानी की समस्या से जूझती दिल्ली की एक बड़ी आबादी के लिए यह रात की खबर है। वहीं अब जल आपूर्ति की जिम्मेदारी सम्भालने वाले विभागों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे जल्द से जल्द इस स्रोत तक अपनी पहुँच बनाकर इसे आम जनता के लिए सुलभ कराएँ। क्योंकि अब तक जिन स्रोतों से दिल्ली में पानी की आपूर्ति हो रही है वहाँ भी व्यवस्था के नाम पर लापरवाही की शिकायतें ही आती रहती हैं। प्रतिदिन हजारों लीटर पानी अनदेखी और उदासीनता की वजह से बर्बाद हो जाते हैं। स्टोरेज और आपूर्ति की व्यवस्था में बड़े पैमाने पर लापरवाही होती रही है जिससे पानी जैसे सीमित सन्साधन के सनतुलित वितरण में कठिनाई होना स्वाभाविक है।

तेजी से बढ़ती आबादी के बीच जल आपूर्ति के लिए ठोस, ढाँचागत व्यवस्था के साथ ही एक बेहद सक्रिय वितरण और निगरानी प्रणाली की आवश्यकता है। लेकिन उपयुक्त लक्ष्य आधारित कार्यनीति के अभाव में व्यवस्थाएँ चरमराने लगती हैं और लोगों को पानी की गम्भीर समस्या का सामना करना पड़ता है। इसलिए देश की राजधानी दिल्ली में बढ़ती आबादी के लिए पानी की जरूरतों के मद्देनजर एक व्यापक दूरदर्शी नीति की आवश्यकता है जो भविष्य में भी कारगर साबित हो सके। दरअसल, तात्कालिक जरूरतों के आधार पर बनने वाली नीतियाँ भविष्य के लिए ठोस निदान नहीं दे पाती हैं।

अगर तात्कालिक जूरूरतों के आधार पर कोई नीति बनाई भी जाती है तो उसमें दूरदर्शिता भरे उपायों की भी गुंजाइश होनी चाहिए जिससे भविष्य के लिए कुछ रास्ते बचे रहें। इस स्तर पर कोई ठोस पहल नहीं हो पाती है और दिन बीतने के साथ ही चुनौतियाँ बढ़ती जाती हैं। इसलिए नीतियाँ तय करनेवाली सन्स्थाओं को सक्रियता और सतत प्रयास के साथ भविष्य की जरूरतों के हिसाब से काफी मन्थन करने की जरूरत है। इससे योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने के साथ ही भविष्य की चुनौतियों के समाधान की पहले से तैयारी करने में काफी मदद मिलेगी। जल स्रोत का विकास जल आपूर्ति और वितरण पर हो, अगर ऐसी नीतियाँ तैयार कर उस पर ठोस अमल कर ली जाएँ तो भविष्य में पानी की कमी की समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है।

इसके साथ ही बड़े पैमाने पर होनेवाली जल की बर्बादी रोकने के लिए भी बड़े पैमाने पर सतत जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है जिसके तहत देश के प्रत्येक नागरिक को इस जिम्मेदारी से अवगत कराया जाये कि वह पानी बर्बाद होने से बचाये। फिलहाल, दिल्ली वालों को पानी का बड़ा स्रोत मिल गया है। अब देखना है कि कितनी सावधानी के साथ वे इस बड़े सन्साधन का उपयोग करते हैं क्योंकि समृद्धि के लिए केवल सन्साधन पर्याप्त नहीं होता बल्कि उस सन्साधन का कारगर और व्यावहारिक उपयोग ही देश और समाज की उन्नति की दिशा तय करता है।

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