बुन्देलखण्ड के किसान को मजबूरी ने बना दिया मजदूर

खेती ने दिया धोखा : मनरेगा में काम नहीं


बुन्देलखण्ड से पलायन करने वालों का आँकड़ा 25 लाख को पार कर चुका है। सूत्रों के मुताबिक केन्द्रीय मंत्रिमंडल की आन्तरिक कमेटी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को एक रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार छतरपुर से लगभग 8 लाख, टीकमगढ़ से 5 लाख, सागर से 8.5 लाख, पन्ना से 2.5 लाख और दतिया से करीब 3 लाख लोग पलायन कर चुके हैं। हालात यह है कि कई गाँवों में केवल बुजुर्ग ही घरों में बचे हैं।

सूखे की मार, फसल चौपट और मनरेगा में काम नहीं, इन हालातों ने बुन्देलखण्ड के किसान को मजबूरी में मजदूर बना दिया है। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, जम्मू, गुजरात सहित अन्य महानगरों में लोग पलायन कर चुके हैं। ग्रामीण अंचलों में घरों में लटके ताले यहाँ की भयावह स्थिति स्वतः दर्शाते हैं। अनुमान के मुताबिक पलायन का आँकड़ा 25 लाख को पार कर चुका है।

मनरेगा से पलायन रोकने का दम भरा जा रहा हो पर यह कागजों और आँकड़ों की खानापूर्ति से ही सरकार की स्वयं पीठ थपथपाने जैसा है। अन्नदाताओं की यह दुर्दशा उस मध्य प्रदेश की है जिसे किसानों की दम पर ही लगातार चौथी बार कर्मण अर्वाड से नवाजा गया है।

लगातार सूखे को झेल रहे बुन्देलखण्ड के किसानों के नसीब में शायद अच्छे दिनों का लेख नहीं है। प्रकृति नाराज है तो सरकार मदद के कागजी घोड़े दौड़ा रही है। फसल खराब होती रही और किसान सरकार की ओर मुआवजा पाने के लिये मुँह ताकता रहा। किसानों को मुआवजा भी वितरीत हुआ पर इसकी आड़ में सरकारी तंत्र का एक ओर घोटाला भी सामने आता रहा। जिससे आत्महत्याओं का दौर शुरू हो गया।

फसल खराब, पानी की कमी और सरकार से ना उम्मीदों के चलते बुन्देलखण्ड का किसान मजबूरी में मजदूर बन गया है। खजुराहो, महोबा, हरपालपुर, दमोह रेलवे स्टेशनों से महानगरों की ओर जाने वाली ट्रेनें इन दिनों पलायन करने वाले मजदूरों से ठसाठस देखी जा सकती है। पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़ से करीब तीन दर्जन बसें प्रतिदिन सीधे दिल्ली, गुडगाँव के लिये संचालित है। जो केवल पलायन करने वालों की दम पर ही चल रही है।

एक आकलन के मुताबिक बुन्देलखण्ड से पलायन करने वालों का आँकड़ा 25 लाख को पार कर चुका है। सूत्रों के मुताबिक केन्द्रीय मंत्रिमंडल की आन्तरिक कमेटी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को एक रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार छतरपुर से लगभग 8 लाख, टीकमगढ़ से 5 लाख, सागर से 8.5 लाख, पन्ना से 2.5 लाख और दतिया से करीब 3 लाख लोग पलायन कर चुके हैं। हालात यह है कि कई गाँवों में केवल बुजुर्ग ही घरों में बचे हैं।

चूँकि मनरेगा ने भी लोगों को बेसहारा कर रखा है। इस कारण हालात ओर अधिक बदतर हो चुके हैं। ग्रामीण विकास मंत्रालय के वित्त वर्ष 2015-16 के आँकड़ों के अनुसार बुन्देलखण्ड के छह जिलों सागर, दमोह, पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर और दतिया जिलो में मनरेगा के तहत महज 25 प्रतिशत काम ही पूरा हो सके। आँकड़े बताते हैं कि मजदूरों को 100 दिन का रोजगार भी सरकार नहीं दे सकी। इस वर्ष पन्ना में 3620 और दमोह में 8620 काम शुरू किये गए थे। मगर पन्ना में 74 और दमोह में 627 काम ही पूरे हो सके। यही हाल बुन्देलखण्ड के अन्य जिलों का रहा। टीकमगढ़ में 27.3, छतरपुर 12.48, सागर 17.59 और दतिया में 25.1 प्रतिशत कार्य ही पूरे हो सके। सरकारी तंत्र का खेल भी निराला है।

मनरेगा के तहत जिन लोगों ने काम किया वे भी मजदूरी पाने के लिये भटक रहे हैं। सागर जिले में मार्च माह तक मजदूरी और मटेरियल का 23 करोड़ रुपए बकाया था। सूखे के दौर में मजदूरों को रोजगार देने वाली मनरेगा योजना के प्रति सरकार की गम्भीरता को यह आँकडे बताते हैं।

फसलों की बर्बादी के बाद किसानों को स्थानीय रोजगार के साधनों की तलाश थी। मनरेगा के प्रति सरकारी संवेदनहीनता की कमी दिखी। यह अन्नदाता की मजबूरी ही है कि उसे मजबूर होकर ना सिर्फ मजदूर बनना पड़ा बल्कि उसे अपना घर छोड़कर परदेशी होना पड़ रहा है।

30 अप्रैल 2016

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