बुंदेलखंड पर मंडराने लगे सूखे के बादल

6 Jul 2014
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बुंदेलखंड पैकेज और जल रोको अभियान के तहत करोड़ों रुपए बहाए जा चुके हैं। फिर भी बारिश के दिनों में जल संचय की योजनाएं सफेद हाथी साबित होती रही है। पिछले साल की ही बात की जाए तो पूरे संभाग में औसत बारिश से कहीं अधिक बरसात ने किसानों की फसल चौपट कर दी थी जिसके मुआवजे के लिए आज तक अन्नदाता सरकारी अधिकारियों के चक्कर काटते घूम रहा है। छतरपुर (म.प्र.), 3 जुलाई (जनसत्ता) बुंदेलखंड पर सूखे के बादल मंडरा रहे हैं। सागर संभाग के पांच जिलों में 1298.22 हजार हेक्टेयर भूमि में से मात्र 33.12 हजार हेक्टेयर जमीन पर ही अभी तक बुआई हो सकी है।

पिछले एक महीने में पूरे संभाग में मात्र 64.4 मिमी ही बारिश हुई है जबकि पिछले साल 351.20 मिमी बारिश रिकार्ड की गई थी। जल संचय की ठोस योजना के अभाव में यह इलाका प्राकृतिक आपदाओं का शिकार रहा है।

लगातार चार साल से प्रकृति की नाराजगी और सरकारी बेरुखी का शिकार होते आ रहे हैं बुंदेलखंड के किसानों के लिए अच्छे दिन नसीब में नहीं है। रबी की फसल को मूसलाधार बारिश और ओला वृष्टि ने बर्बाद कर दिया तो अब बादल रूठ चुके हैं।

अधिकृत आंकड़ों के अनुसार सागर संभाग के पांच जिलों में एक जून से 30 जून तक मात्र 64.4 मिमी बारिश हुई है। जिसमें सागर में 84.4 दमोह में 105.90 पन्ना में 56.0 टीकमगढ़ में 35.7 और छतरपुर में 40.0 मिमी मापी गई।

जबकि पिछले साल इस दौरान 351.20 मिमी बारिश रिकार्ड की गई थी। आसाढ़ का महीना समाप्ति की ओर है जिससे बारिश के अभाव में खरीफ की फसल बुआई की संभावना कम होती जा रही है। सागर संभाग के पांच जिलों में 1298.22 हजार हेक्टेयर भूमि पर बुआई का लक्ष्य निर्धारित किया गया था लेकिन अभी तक मात्र 33.12 हजार हेक्टेयर जमीन पर ही बुआई हुई है।

बुंदेलखंड में खरीफ फसल में किसान मूंग, उड़द, तिल, सोयाबीन मूंगफली की फसल पर अधिक भरोसा करता है । उप संचालक कृषि सागर संभाग कार्यालय से मिले आंकड़ों के अनुसार सागर संभाग में दलहन (अरहर, उड़द, मूंग) फसल की बुआई का लक्ष्य 302.30 हजार हेक्टेयर भूमि निर्धारित किया गया था पर अभी तक मात्र 1.57 हेक्टेयर जमीन पर ही बुआई हो सकी है।

इसी तरह तिलहन (सोयाबीन, तिल, मूंगफली) की बुआई का लक्ष्य 784.62 हजार हेक्टेयर था लेकिन 30.35 हजार हेक्टेयर जमीन पर ही किसान बुआई कर सके हैं। हालात बताते हैं कि किसानों को अब सूखे का सामना करना पड़ेगा।

इसी आशंका को देखते हुए बुंदेलखंड के सभी जिलों से पहले ही पलायन शुरू हो चुका है। यह वही किसान है जो अब मजदूरी करने परदेसी होने के लिए विवश हो चला है। इसके लिए सीधे तौर पर सरकार की नाकामी को दोषी ठहराया जा सकता है।

बुंदेलखंड पैकेज और जल रोको अभियान के तहत करोड़ों रुपए बहाए जा चुके हैं। फिर भी बारिश के दिनों में जल संचय की योजनाएं सफेद हाथी साबित होती रही है।

पिछले साल की ही बात की जाए तो पूरे संभाग में औसत बारिश से कहीं अधिक बरसात ने किसानों की फसल चौपट कर दी थी जिसके मुआवजे के लिए आज तक अन्नदाता सरकारी अधिकारियों के चक्कर काटते घूम रहा है। सागर संभाग में 1145.7 मिमी औसत बारिश होती है। इसके विपरीत 2013-14 में 1706.80 मिमी बरसात हुई थी।

सागर में 2016.20, दमोह में 1845.50, पन्ना में 1643.30, टीकमगढ़ में 1392.50 और छतरपुर में 1636.70 मिमी बारिश हुई थी जो औसत बारिश से अधिक थी।

अगर इस बारिश के पानी के संरक्षण और संचय की योजनाओं पर पुख्ता काम किया होता तो आज बुंदेलखंड को सूखे का सामना नहीं करना पड़ता। यहां के अधिकांश तालाबों और छोटी-बड़ी नदियों की धार कमजोर हो चुकी है। कागजों में जल संरक्षण के दावे और आंकड़ों में सिंचाई रकबा बढ़ने का दम ही अब किसानों के लिए मुसीबत का कारण बनता जा रहा है।

किसान को मुआवजा पाने के लिए आज भी सड़क पर उतर कर लड़ाई लड़नी पड़ रही है। इस कारण इन आशंकाओं को नकारा नहीं जा सकता है कि प्रकृति और सरकार की बेरुखी से त्रस्त कहीं फिर बुंदेलखंड का किसान आत्मघाती कदम उठाने को मजबूर ना हो जाए।

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