बूंद-बूंद को तरसता महाराष्ट्र
25 April 2013



महाराष्ट्र के 34 जिले इस समय भयंकर सूखे की चपेट में हैं सूखे ने पिछले चालीस सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। लगातार दूसरे साल भी बारिश कम होने से ऐसी स्थिति बनी हुई है। मराठवाड़ा और पश्चिम महाराष्ट्र के कई इलाके 1972 के बाद सबसे बड़े सूखे का सामना कर रहे हैं। इस भीषण सूखे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राज्य के जलाशयों में इस वक्त महज 38 प्रतिशत पानी है और मराठवाड़ा जोन के जलाशयों में तो 13 प्रतिशत पानी ही बचा है। इलाके में गन्ना, हल्दी, केले की फसलें पानी न मिलने से बर्बाद हो गई हैं। नतीजतन, यहां के किसानों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। साफ है कि स्थिति विकट है। तालाबों, नदियों, कुओं- सभी से पानी गायब हो गया है। पानी बस यहां के लोगों की आंखों में दिखता है। सूखे का सबसे ज्यादा असर मराठवाड़ा में है। याद करें, 1972 में सूखे से देश भर में खाद्यान्न की कमी हुई थी और सारे खाद्य उत्पादों के दाम बढ़ गए थे। भारत सरकार को फिर खाद्यान्न आयात बढ़ाने पड़े थे। कुछ ऐसी हालत 2009 में भी हुई। इस बार भी महाराष्ट्र में सूखे ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं।




महाराष्ट्र में सूखा सिर्फ किसानों के लिये है। खेती की जमीन के लिये है। उद्योंगों, शुगर फैक्ट्री, पांच सितारा होटल , बीयर बार और नेता मंत्रियों के घरो से लेकर किसी भी सरकारी इमारत में पानी की कोई कमी नहीं है। बीते हफ्ते विदर्भ और मराठवाड़ा घुमने के दौरान मैंने पहली बार महसूस किया कि सिर्फ राजनेता ही नहीं हर तबके के सत्ताधारियों के विकास और चकाचौंध के दायरे से किसान और खेती बाहर हो चुके हैं। सरकार की नीतियाँ ही ऐसी हैं जिस पर चलने का मतलब है किसानी खत्म कर मजदूरी करना। या फिर उद्योग धंधों को लाभ पहुंचाने के लिए खेती करना। फसल दर फसल कैसे खत्म की जा रही है और खेती पर टिके 70 फिसदी से ज्यादा नागरिकों की कोई फ़िक्र किसी को नहीं है। अपनी सात दिनों की यात्रा के दौरान मैने भी पहली बार जाना कि महाराष्ट्र के नेताओं की लूट ग्रमीण क्षेत्रो में सामंती तौर तरीकों से कहीं ज्यादा भयावह है। और यह चलता रहे इसके लिये सरकार की नीतियाँ और नौकरशाही का कामकाज और इसमें कोई रुकावट ना आए इसके लिये पुलिस प्रशासन का दम-खम अपने रुतबे से कानून बताता है और एक आम नागरिक या किसान-मजदूर सिर्फ टकटकी लगाए अपना सब कुछ गंवाए देखता रहता है।






महाराष्ट्र के लगभग आधे जिले सूखे की मार से कराह रहे हैं। जालना जिले में सबसे ज्यादा परेशानी है, जहां लोग बूंद-बूंद पानी को तरस रहे हैं। लेकिन इसी जिले में बोतलबंद पानी बनाने वाले 20 कारखाने भी धड़ल्ले से चल रहे हैं। आरोप है कि इसके लिए सरकारी पाइपलाइन से भी पानी चुराया जाता है। ये सब कुछ स्थानीय नेताओं की शह पर हो रहा है। महाराष्ट्र में सूखे ने 40 साल का रिकार्ड तोड़ा है। सबसे ज्यादा असर मराठवाड़ा इलाके में है। इस इलाके के जालना शहर का हाल ये है कि डेढ़ सौ किलोमीटर दूर से, रेलवे के जरिए पानी मंगाया जा रहा है। लेकिन जालना में वॉटर बॉटलिंग प्लांट हैं। ऐसा कारखाना जहां बिक्री के लिए पानी को बोतल या प्लास्टिक की थैलियों में बंद किया जाता है। यहां प्लांट के लिए टैंकरों में भर कर पानी लाया जाता है। ऐसे में सवाल ये है कि पानी को तरसते शहर में पानी के कारोबारी कैसे फल-फूल रहे हैं।

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