बूंद-बूंद पानी को तरस रहे खरसई गाँव के लोग

3 Apr 2015
0 mins read

मजबूरन इस्तेमाल करते हैं नाले और सड़क पर बहता पानी


.जल ही जीवन है, इस बात का अहसास करना हो तो रायगढ़ जिले के म्हसला तहसील के खरसई गाँव में जरूर हो आइए। हालात यह है कि जिस गाँव में पानी की सुविधा देने के लिए खरसई गाँव के भाऊ गोविन्द म्हात्रे वर्षों से लड़ाई लड़ रहे हैं, जिस गाँव की शिकायतों से जिला अधिकारी कार्यालय का हर अधिकारी सहम जाता है, उस खरसई गाँव की शिकायतों की एक फाइल बन गई है, जिसका केस नम्बर है 396। पर, इस गाँव के लोग आज पानी की बूंद-बूंद को मोहताज हैं। वर्ष 1981 में रायगढ़ जिले के म्हसला तहसील के खरसई गाँव में तात्कालिक राज्य सरकार सिंचाई योजना के नाम पर एक तालाब बनाने की लुभावनी योजना लेकर गाँव गई। पानी की कमी से कराहते किसानों ने तुरन्त योजना पर अपनी सहमति दे दी। सैकड़ों एकड़ जमीन भी किसानों की ले ली गई।

योजना के तहत किसानों के खेतों तक पाइप लाइन के जरिये पानी पहुँचाया जाना था, अफसोस अपनी सैकड़ों एकड़ जमीन गँवाने के बाद भी किसानों को पानी नहीं मिल सका। आज भी गाँव के लोग दूर दराज से पानी लेकर आते हैं। पानी की समस्या इतनी है कि गाँव के लोग नाले या सड़क पर बहने वाला पानी भी जाया नहीं होने देते। इस इलाके के पालक मन्त्री सुनील तटकरे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से महाराष्ट्र के जल सम्पदा मन्त्री थे, खुद भाऊ गोविन्द म्हात्रे कई बार शिकायतों का पुलंदा लेकर राकांपा के नेताओं से मिल चुके हैं, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात से ज्यादा नहीं निकला है। गाँव की युवा पीढ़ी इस बात को जानती है कि उनका अधिकार नेताओं ने मारा है।

इस सम्बन्ध की जानकारी एकाध बार उन लोगों ने कुछ अखबारों में प्रकाशित करवाया, लेकिन नेताओं की दबंगई यहाँ भी कम नहीं है। गाँव के ही एक पत्रकार हेमंत भाऊ पयेर जो की कृषि-बल अखबार के स्थानीय पत्रकार हैं, के मुताबिक हम जब भी कुछ पानी की योजना के बारे में छपवाते हैं, तो बाजार में अखबार ही नहीं आने दिया जाता है। वर्षों से अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहे इसी गाँव के मुकुन्द म्हात्रे नेताओं के नाम पर ही भड़क जाते हैं। दुख भरे मन से मुकुन्द म्हात्रे अपनी उन पुराने दिनों को याद करते हैं और घर जाकर पूरी फाइल लेकर आते हैं ये देखो कैसे ठगा है इन नेताओं ने। उन फाइलों में कई पत्र देखकर हैरानी भी हुई की क्या नेता सिर्फ अपने पत्र का इस्तेमाल गाँव के लोगों को गुमराह करने के लिए करते हैं या इसका फल भी है।

.दरअसल जब अन्य लोगों की जमीनें तालाब बनाने के लिए ली गई तो उस समय 14 से 15 गुंठा जमीन मुकुन्द म्हात्रे के पास भी थी इन्होंने भी उस योजना के लिए अपनी जमीन दे दी उन्हें भी 140 रुपये के हिसाब से जमीन की कीमत मिली उनके फलो उधान का मुआवजा आज तक नहीं मिला है। पार्टी के दलालों ने जल विभाग में पुत्र को नौकरी दिलाने की बात कही इसके लिए बाकायदा जल सम्पदा मन्त्री सुनील तटकरे ने 12 मार्च 2009 को अपना एक पत्र क्रमांक 360 देकर नाना मुकुन्द म्हात्रे को नौकरी देने की सिफारिश की थी। इसी तरह का एक पत्र पाट बंधारे विभाग के अधिकारी जाधव ने पत्र क्रमांक 1100 /375 दिया था लेकिन मुकुन्द म्हात्रे जमीन से गए ही बच्चे को नौकरी तक नहीं मिली। मुकुन्द म्हात्रे को भी पानी की उतनी ही समस्या है, जितना गाँव के अन्य लोगों को। मुकुन्द म्हात्रे, भाऊ गोविन्द म्हात्रे के अलावा मुरलीधर, महादेव, महादेव नारायण, इनायतुला इब्राहिम जैसे कई लोग हैं जो मुआवजे के साथ ही पानी की समश्या से जूझ रहे हैं।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading