भारत में निर्मित रडार ने शुरू की मानसून की निगरानी

7 Jul 2018
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सीयूसैट-एसटी-205 राडार
सीयूसैट-एसटी-205 राडार

मैसूर। हिन्द महासागर के ऊपर मौसम और मानसून की अधिक सटीक निगरानी के लिये भारत में निर्मित रडार ने कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में काम करना शुरू कर दिया है।

भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा डिजाइन और विकसित किये गये सीयूसैट-एसटी-205 नामक इस नये रडार को केरल में ऐसे स्थान पर लगाया गया है, जहाँ से मानसून भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवेश करता है। इससे मौसम, खासतौर पर मानसून सम्बन्धी अधिक सटीक भविष्यवाणी करने में मदद मिल सकती है। पृथ्वी के ऊपरी वातावरण में वायुमण्डल की दशाओं की निगरानी के लिये देश में पहले से कई रडार तथा सोनार मौजूद हैं। इस नये रडार के आने से मौसम पूर्वानुमान की भारत की क्षमता में बढ़ोत्तरी हो सकती है।

रडार का उपयोग आमतौर पर विमानों का पता लगाने के लिये किया जाता है। रडार की कार्यप्रणाली रेडियो तरंगे भेजने और तरंगों के परावर्तन पर आधारित होती है। तरंगें जब परावर्तित होकर वापस लौटती हैं तो इससे किसी वस्तु की उपस्थिति का पता लगाने में मदद मिलती है। मौसम के मामले में रडार प्रणाली के इन्हीं सिद्धान्तों का उपयोग वायुमण्डलीय हलचलों और उसमें मौजूद नमी का पता लगाने के लिये किया जाता है। एसटी-205 रडार वायुमण्डलीय हलचलों का पता लगाने के लिये 205 मेगाहर्ट्ज की रेडियो तरंगे भेज सकता है। कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के एडवांस्ड सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रडार रिसर्च के निदेशक डॉ. के. मोहन कुमार ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि इस रडार को वायुमण्डल के ऊपरी हिस्से में स्थित समताप मण्डल में होने वाली हलचलों का पता लगाने के लिये विशेष रूप से डिजाइन किया गया है।

डॉ. के. मोहन कुमार के अनुसार, “क्षोभ मण्डल पृथ्वी के वायुमण्डल का सबसे निचला हिस्सा है और यह 17 किलोमीटर की ऊँचाई पर है। वायुमण्डल के इस हिस्से में ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान घटने लगता है। बादल, बारिश, आँधी, चक्रवात जैसी मौसमी घटनाएँ वायुमण्डल के इसी निचले हिस्से में ही होती हैं। दूसरी ओर, समताप मण्डल 17 किलोमीटर से ऊपर का क्षेत्र है, जहाँ वातावरण काफी शान्त रहता है। वायुमण्डल का यह क्षेत्र शुष्क तथा विकिरण के प्रति संवेदनशील होता है और इस क्षेत्र में मौसम सम्बन्धी प्रणाली नहीं पायी जाती है।”

डॉ. कुमार के मुताबिक, “वायुमण्डल के निचले हिस्से में चलने वाली वायु धाराएँ, जिन्हें निम्न स्तरीय मानसून जेट धाराएँ कहते हैं, भारत के दक्षिणी छोर पर मानसून के समय देखी जा सकती हैं। धरातल से करीब 1.5 किलोमीटर की ऊँचाई पर ये धाराएँ चलती हैं। लगभग 14 किलोमीटर की ऊँचाई पर समताप मण्डल के पास एक अन्य जेट धारा 40-50 मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार से पूरब की ओर से आती हैं। इन जेट धाराओं की गति और उत्तर तथा दक्षिण की ओर इनके प्रवाह से ही भारत में मानसून का विस्तार होता है। इस नये रडार की मदद से 315 मीटर से 20 किलोमीटर की ऊँचाई तक क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर हवाओं की सटीक ढंग से निगरानी अधिक परिशुद्धता के साथ की जा सकती है।”

मानसून की निगरानी के अलावा एसटी-205 रडार सुविधा का उपयोग अन्य वैज्ञानिक अनुसन्धानों में भी हो सकता है, जिसके कारण दुनियाभर के वैज्ञानिकों का आकर्षण इसकी ओर बढ़ा है। यूरोपीय अन्तरिक्ष एजेंसी ने अगले महीने लॉन्च होने वाले अपने नये उपग्रह के प्रमाणीकरण के लिये इस नये रडार के आँकड़ों के लिये सम्पर्क किया है। इसी तरह इंग्लैंड के मौसम विभाग और यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग की ओर से भी एक संयुक्त शोध कार्यक्रम का प्रस्ताव मिला है। इसके साथ ही क्षोभ मण्डल तथा समताप मण्डल की परस्पर क्रियाओं के अध्ययन के लिये इस रडार के अवलोकनों का उपयोग करने के लिये एक इंडो-फ्रांसीसी कार्यक्रम भी चल रहा है।

रडार टीम में डॉ. कुमार के अलावा, के.आर. संतोष, पी. मोहनन, के. वासुदेवन, एम.जी. मनोज, टीटू के. सैमसन, अजीत कोट्टायिल, वी. राकेश, रिजॉय रिबेलो और एस. अभिलाष शामिल थे। इस रडार परियोजना से जुड़े वैज्ञानिक तथ्यों को शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित किया गया है। इस रडार परियोजना के लिये विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से अनुदान दिया गया है और चेन्नई की कम्पनी डाटा पैटर्न इंडिया ने वैज्ञानिकों और इंजीनियर्स की देख-रेख में इसे बनाया है।

भाषांतरण : उमाशंकर मिश्र

Twitter handle: @kollegala


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CUSAT in Hindi, radar in Hindi, Indian monsoon in Hindi, atmospheric studies in Hindi, DST in Hindi


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