भारत में नवोन्मेष की अपार संभावना


विज्ञान और प्रौद्योगिकी के समांतर नवोन्मेष एक वृहत क्षेत्र के रूप में आज हमारे सामने है, जिसका प्रयोग हम मानव जीवन में खुशहाली लाने के लिये कर सकते हैं। भारत के पास एक वैज्ञानिक सोच है, जरूरत सिर्फ बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और समुचित दिशा देने की है। रक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा आदि जैसे जीवन के विविध क्षेत्रों में नवोन्मेष की अपार संभावनाएं छिपी हुई हैं। आइए, इस ओर एक कदम बढ़ाएं और भारत में समग्र विकास को नई ऊँचाई दें।

नघप्रवर्तन, नवाचार और नवोन्मेष ये सभी मनुष्य के सृजनशील मन के पयार्य हैं। मानव मन जिज्ञासा और सृजनशीलता से भरा होता है। बच्चों और युवाओं में इसका वृहत्तर स्तर विद्यमान होता है, इसलिए देश तथा समाज को इनसे बड़ी उम्मीदें लगी होती हैं। भारत के पूर्व राष्ट्रपति भारत रत्न वैज्ञानिक डॉ. कलाम सही कहते हैं ‘‘सीखने से सृजनशीलता का विकास होता है : सृजनशीलता नए विचारों को जन्म देती है। विचारों से ज्ञान बढ़ता है और ज्ञान हमें महान बनाता है।’’

सभी जानते हैं कि हर बच्चा जिज्ञासा की सहज प्रवृत्ति के साथ जन्म लेता है इसलिए सभी बच्चों में हर नई चीज या घटना के लिये कौतूहल मौजूद होता है। बच्चा किसी भी वस्तु/घटना के संबंध में क्या, क्यों, कैसे, कहाँ और कब जानने के लिये तत्पर रहता है। असल मायने में यही वैज्ञानिक प्रवृत्ति या वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है जो वैज्ञानिक विधि से जन्म लेता है। संकल्पना, अवलोकन, प्रयोग, विश्लेषण और निष्कर्ष - ये पाँच मुख्य चरण होते हैं वैज्ञानिक विधि के जो हर एक खोज या आविष्कार के अनिवार्य कारक होते हैं। गाहे-बगाहे हर खोजकर्ता, आविष्कारक और वैज्ञानिक इन्हीं चरणों से गुजरते हुए अपनी खोज या आविष्कार को दुनिया के सामने ला पाता है।

अगर हम वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास की बात करें तो लोगों के मन में एक भ्रम उठता है कि इसे हर किसी पर थोपने की क्या जरूरत है या फिर यह तो विज्ञान एवं इस उद्योग से जुड़े लोगों के काम की बात है, आम आदमी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से क्या लेना-देना।

इसे यूँ समझने की कोशिश करते हैं। जाने-अनजाने में अनेक लोग अपने जीवन के छोटे-बड़े निर्णय लेने में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का सहारा लेते हैं। पुराने अनुभवों/साक्ष्यों, रिश्तेदार या मित्र की राय लेकर तथा सभी सकारात्मक/नकारात्मक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए यदि कोई व्यक्ति किसी ठोस नतीजे तक पहुँचता है तब कहेंगे कि उस व्यक्ति द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से काम लिया जा रहा है। उदाहरण के लिये असंख्य किसान (जिनका विज्ञान की शिक्षा, वैज्ञानिक विधि या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कोई वास्ता नहीं पड़ता) अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर ही अपने खेतों में बीज की बुआई, सिंचाई और बारिश का पूर्वानुमान करके फसल की कटाई आदि करता है। असल में किसान अनजाने में वैज्ञानिक विधि का सहारा लेते हैं अर्थात उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण विद्यमान होता है।

यह तो हुआ कि अनजाने में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रयोग जनसामान्य, महिलाएं या किसान बंधु कर रहे हैं। मगर यदि बच्चों, महिलाओं, जनसामान्य आदि समाज के सभी वर्गों को शिक्षण-प्रशिक्षण के द्वारा वैज्ञानिक विधि और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाने (जीवन के हर क्षेत्र में) पर बल दिया जाए तो इससे देश के विकास में तेजी आएगी।

जिज्ञासा और नवोन्मेष एक दूसरे के पूरक होते हैं। इन दोनों में नया विचार/सृजन छिपा है। इनके प्रोत्साहन से नई विचारधारा/नई खोज जन्म लेती है या प्रकृति में छिपे एक और रहस्य के ऊपर से परदा उठ जाता है। जिज्ञासा ही हर मनुष्य को दूसरे से अलग करती है।

तर्क की कसौटी पर कसने के बाद और पूर्व अनुभवों के आधार पर जब कोई व्यक्ति किसी नतीजे पर पहुँचता है तो उसका निर्णय तर्कसंगत होता है। इस प्रक्रिया को अपनाने की प्रवृत्ति को ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण, सोच या नजरिया (Scientific temper) कहते हैं। इस प्रकार का दृष्टिकोण शिक्षित-अशिक्षित दोनों में पाया जा सकता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण ऐसे व्यक्तियों में भी पाया जा सकता है, जिन्होंने विज्ञान की कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नहीं की हो इसलिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विज्ञान से कोई खास संबंध नहीं होता है। दिन-प्रतिदिन के निर्णय लेते समय विज्ञान विधि का अनजाने में प्रयोग करना अशिक्षित व्यक्तियों को भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण सम्मत बनाता है। ऐसे व्यक्ति अपने आस-पास की गतिविधियों को समझने और अपने दायित्वों का निर्वहन करते समय तर्कसंगत निर्णय लेते हैं।

समाज और देश के विकास के लिये जरूरी है कि वहाँ के नागरिक जिज्ञासु हों और उनमें नवोन्मेष की वृत्ति मौजूद हो।

नवोन्मेष में एक नया विचार निहित होता है जिसे मानव कल्याण में उपयोग किया जाए तो उसकी प्रासंगिकता बढ़ जाती है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग का एक स्वायत्त संस्थान नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (अहमदाबाद) लोगों के नवोन्मेषों को प्रोत्साहन देने की दिशा में काम कर रहा है। जनसामान्य के नवोन्मेषों (grassroot innovations) को पहचान कर उन्हें अन्तरराष्ट्रीय फलक पर मान्यता दिलाना भी इस संस्थान का एक अहम उद्देश्य है।

बच्चों की उत्कंठा : इग्नाइट


स्कूली बच्चों के मौलिक प्रौद्योगिकीय विचारों और नवोन्मेषों को प्रोत्साहित करने के लिये नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन हर वर्ष इग्नाइट (IGNITE) नामक एक प्रतियोगिता का आयोजन करता है। बारहवीं कक्षा तक के स्कूली विद्यार्थी और स्कूल से बाहर के बच्चे भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिये अपनी एंट्री एनआईएफ के पते पर या मेल के ignite14@nifindia.org पर भेज सकते हैं। प्रतिभागियों को अपने विचार/नवोन्मेष के साथ अपनी आयु, कक्षा, स्कूल का नाम और पता, घर का पता तथा संपर्क सूत्र अवश्य भेजना है। अधिक जानकारी के लिये एनआईएफ की वेबसाइट www.nif.org.in देख सकते हैं।

इंस्पायर


देश की युवा शक्ति (10 से 32 वर्ष के आयु वर्ग वाले प्रतिभाशाली विद्यार्थियों) को विज्ञान के अध्ययन तथा अनुसंधान में अपना कैरियर बनाने के लिये भारत सरकार के विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 2011 से एक महत्वाकांक्षी योजना ‘इंस्पायर’ (अभिप्रेरित अनुसंधान के लिये विज्ञान खोज में नवोन्मेष) की शुरूआत की है। इस योजना के बड़े ही सुखद परिणाम सामने आने लगे हैं। जैसे कि करीब 1.9 लाख विद्यार्थियों ने इंस्पायर की इंटर्नशिप कार्यशालाओं में हिस्सा लिया है। उच्च शिक्षा के लिये लगभग 2800 छात्रवृत्तियाँ और 2900 फेलोशिप अभी तक दी गई हैं तथा 378 विद्यार्थियों को सुनिश्चित कैरियर अवसर के लिये चयनित किया गया है।

नवोन्मेष नीति 2013 : भारत सरकार की अभिनव पहल


भारतीय संसद ने 1958 ई. में विज्ञान नीति संकल्प (Science Policy Resolution) लागू किया था और इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान के प्रोत्साहन तथा ज्ञान-विज्ञान का प्रसार करने का उद्देश्य रखा था।

जन सामान्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तर्कसंगत सोच-विचार को प्रोत्साहन देने के लिये भारतीय संविधान के मूलभूत कर्तव्य के अंतर्गत अनुच्छेद 51 a (h) को जोड़ा गया। इसमें स्पष्ट उल्लेख है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करना भारत के नागरिकों के मूल कर्तव्य हैं।

विज्ञान के बदलते परिप्रेक्ष्य में भारत सरकार वर्ष 2003 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति लेकर आई थी, जिसका मुख्य मकसद था कि मानवजाति के समग्र विकास के लिये विज्ञान व प्रौद्योगिकी में भारत वांछित प्रगति करे और एक ग्लोबल प्लेयर की भूमिका का निर्वहन करे।

वर्ष 2013 को कोलकाता में आयोजित 100वें भारतीय विज्ञान कांग्रेस में भारत सरकार ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवोन्मेष नीति 2013 को जारी किया। इस नीति के अतंर्गत देश में समग्र विकास के लिये अनुसंधान में उत्कृष्टता और प्रासंगिकता के साथ-साथ नवोन्मेष को प्रोत्साहित करने का लक्ष्य तय किया गया है।

भारत के पास एक समृद्ध वैज्ञानिक विरासत है। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई से प्राप्त प्रमाणों से ज्ञात हुआ है कि उस जमाने के लोग वैज्ञानिक विधि को अपने नगरीय विकास, स्वच्छता और रहन-सहन में व्यापक रूप से अपनाते थे। चरक, सुश्रुत, वाराहमिहिर, आर्यभट्ट ने चिकित्सा, खगोलिकी तथा गणित के क्षेत्र में अभूतपूर्व संकल्पनाएं दुनिया के सामने रखी थीं। गौतम बुद्ध ने भी अपने विचार में कहा था कि गुरू की बात केवल इसलिए आँख मूंदकर मत मानो क्योंकि वह श्रेष्ठ है, परंतु उसकी कही बातों को पहले तर्क की कसौटी पर कसो। अगर निष्कर्ष उचित हो तब ही उसे अंगीकार करो।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के समांतर नवोन्मेष एक वृहत क्षेत्र के रूप में आज हमारे सामने है, जिसका प्रयोग हम मानव जीवन में खुशहाली लाने के लिये कर सकते हैं। भारत के पास एक वैज्ञानिक सोच है, जरूरत सिर्फ बुनियादी जरूरतों को पूरा करने और समुचित दिशा देने की है। रक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, शिक्षा आदि जैसे जीवन के विविध क्षेत्रों में नवोन्मेष की अपार संभावनाएं छिपी हुई हैं। आइए, इस ओर एक कदम बढ़ाएं और भारत में समग्र विकास को नई ऊँचाई दें।

सम्पर्क


मनीष मोहन गोरे
विज्ञान प्रसार, ए-50, इंस्टीट्यूशनल एरिया, सेक्टर-62, नोएडा-201309 (उ.प्र.)

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