भारत में सतत विकास व आपदा जोखिम प्रबंधन


सेंदई फ्रेमवर्क को मार्च, 2015 में जापान के सेंदई शहर में तैयार किया गया। सेंदई फ्रेमवर्क में पहली बार आपदा जोखिम को कम करने के लिये सात परिणाम आधारित वैश्विक लक्ष्यों को निर्धारित किया गया। इनमें मौतों और प्रभावित लोगों की संख्या को कम करने के अतिरिक्त आर्थिक नुकसान और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को होने वाली क्षति को कम करना शामिल है। साथ ही पूर्व चेतावनी प्रणाली तक पहुँच को बढ़ाना और आपदा प्रबन्धन के लिये अन्तरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना भी शामिल है

भारत के पास आपदाओं के जोखिम को परखने की अच्छी वैज्ञानिक और पारम्परिक जानकारियाँ हैं जिससे हम प्राकृतिक और मानवजनित प्रक्रियाओं को समझ सकते हैं, लेकिन इन्हें सामाजिक और आर्थिक विकास के कार्यक्रमों, गतिविधियों और परियोजनाओं की डिजाइनिंग और कार्यान्वयन में शामिल नहीं किया जाता। परिणामस्वरूप, आपदा के जोखिम को कम करने से सम्बन्धित परियोजनाओं का अधिक लाभ नहीं मिलता।

बीते वर्षों में आपदा प्रबन्धन के तौर तरीकों में काफी बदलाव हुए हैं। यह घटनाओं के प्रबन्धन से आगे बढ़कर जोखिम के प्रबंधन में बदल चुका है। जोखिम प्रबंधन का अर्थ है अन्तर्निहित खतरों और कमजोरियों- चाहे वे प्राकृतिक हों अथवा मानवजनित, का वैज्ञानिक दृष्टि से मूल्यांकन किया जाए और उन्हें शुरुआत में ही विकसित होने से रोका जाए। इसका यह मतलब भी है कि मौजूदा जोखिमों को विभिन्न संरचनात्मक और गैर संरचनात्मक उपायों की मदद से कम किया जाए। इन उपायों में जोखिमों को साझा करना और जोखिमों का बीमा भी शामिल है। जिन जोखिमों को न तो रोका जाता है, न कम किया जा सकता है और न ही उनका बीमा किया जा सकता है, उनके लिये सिर्फ एक ही रास्ता बचता है। यह रास्ता है कि उनके सम्बन्ध में तैयारी। आपदा की तैयारी या आपदा तत्परता का अर्थ यह है कि आपदा के सम्बन्ध में तत्परता दिखाई जाए, ताकि जब कोई घटना हो तो ज्यादा से ज्यादा जिंदगियों को बचाया जा सके। निकासी, तलाशी, बचाव, आश्रय एवं राहत जैसी सहायता के जरिए मानव जाति की तकलीफों को कम किया जा सके। तत्परता का यह अर्थ भी है कि आपदा के दौरान तबाह होने वाली आजीविका, घर और आधारभूत संरचना के पुनर्निर्माण के लिये पर्याप्त नीतियाँ, रणनीतियाँ और संसाधन मौजूद हों।

सतत विकास के लिये आपदा जोखिम प्रबन्धन को महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि आपदाओं के कारण होने वाला नुकसान लगातार बढ़ता जाता है, इसके बावजूद कि इस नुकसान को कम करने के लिये बहुत अधिक उपाय किये जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र आपदा न्यूनीकरण कार्यालय (यूएनआईएसडीआर) के एक अनुमान के अनुसार, पिछले दो दशकों में आपदाओं के कारण 13 लाख लोग मारे गए हैं, 4.4 अरब लोग प्रभावित हुए हैं और 2 खरब डॉलर का नुकसान हुआ है।

भारत का भी काफी विनाश और नुकसान हुआ है। विश्व बैंक के अनुसार नब्बे के दशक और इस सदी के प्रारम्भिक वर्षों के दौरान आपदाओं के कारण जो आर्थिक नुकसान हुआ है, वह सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2 प्रतिशत है। इतनी राशि का इस्तेमाल देश के सार्वजनिक स्वास्थ्य पर भी नहीं किया गया है।

आपदा और विकास


आपदाएँ तीन प्रकार से विकास से जुड़ी होती हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि आपदाएँ वर्षों और दशकों के विकास को तहस-नहस कर देती हैं। दूसरा यह कि पर्याप्त विकास न होने के कारण कमजोर समुदाय आपदाओं से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। तीसरी विडंबना यह है कि विकास खुद नई तरह की आपदाओं को आमन्त्रित करता है। जैसे क्षेत्रीय विभाजन व विनियमों का अनुपालन किए बिना निर्मित घर और बुनियादी ढाँचे कमजोर होते हैं, संवेदनशील क्षेत्रों में खनन और उद्योग प्राकृतिक बफर को नष्ट करते हैं और जीवाश्म ईंधन आधारित उत्पादन और खपत जलवायु सम्बन्धी आपदाओं के जोखिम को बढ़ाती है।

 

तालिका 1 : सतत विकास लक्ष्य व उद्देश्य

सतत विकास लक्ष्य

आपदा जोखिम के प्रति लचीलेपन से सम्बन्धित लक्ष्य

लक्ष्य-1: गरीबी के सभी रूपों का खात्मा

उद्देश्य 1.5: गरीबों को जलवायु सम्बन्धी आपदाओं और दुर्घटनाओं से बचाना

लक्ष्य-2: भुखमरी खत्म करना, खाद्य सुरक्षा प्रदान करना और निरन्तर कृषि को बढ़ावा देना

उद्देश्य 2.4: जलवायु परिवर्तन, खराब मौसम, सूखा, बाढ़ और दूसरी आपदाओं के अनुकूल ढलने की क्षमता को मजबूत करना

लक्ष्य-3: स्वस्थ जीवन को सुनिश्चित करना

उद्देश्य 3.6: पूर्व चेतावनी तन्त्र का निर्माण करना और स्वास्थ्य सम्बन्धी जोखिमों को कम करना

लक्ष्य-4: समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना

उद्देश्य 4(ए): ऐसे शिक्षण केन्द्रों का निर्माण और उन्नयन करना जो आपदाओं से सुरक्षित रहें

लक्ष्य-9: ऐसा बुनियादी ढाँचा तैयार करना जो प्रतिरोधी क्षमता वाला हो

उद्देश्य 9.1: उत्तम और भरोसेमन्द बुनियादी ढाँचे को विकसित करना जिनमें आपदाओं को सहने की क्षमता हो

लक्ष्य-11: शहर और मानव बस्तियों को सुरक्षित, प्रतिरोधक और सतत बनाना

उद्देश्य 11.5: आपदाओं के बाद मरने और प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या को कम करना, आर्थिक नुकसान को कम करना

लक्ष्य-13: जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभाव पर काबू पाना

उद्देश्य 13.1: जलवायु सम्बन्धी जोखिमों और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति प्रतिरोध और अनुकूलन क्षमता को मजबूत करना

लक्ष्य-15: भूक्षरण को खत्म करना

उद्देश्य 15.3: सूखे और बाढ़ से प्रभावित भूमि को बहाल करना

 

वर्ष 2015 का परिवर्तन


वर्ष 2015 में इस सम्बन्ध में विश्व स्तर पर चिन्तन और मनन को नई दिशा और गति मिली। इस दौरान तीन समानांतर और अन्तर्सम्बन्धित प्रक्रियाओं ने अगले डेढ़ दशक और उससे आगे भी विकास कार्यसूची की परिभाषा तैयार करने का काम किया। इनमें से पहला आपदा जोखिम न्यूनीकरण 2015-2030 के लिये सेंदई फ्रेमवर्क है जिसे मार्च, 2015 में जापान के सेंदई शहर में तैयार किया गया। सेंदई फ्रेमवर्क में पहली बार आपदा जोखिम को कम करने के लिये सात परिणाम आधारित वैश्विक लक्ष्यों को निर्धारित किया गया। इनमें मौतों और प्रभावित लोगों की संख्या को कम करने के अतिरिक्त आर्थिक नुकसान और महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को होने वाली क्षति को कम करना शामिल है। साथ ही पूर्व चेतावनी प्रणाली तक पहुँच को बढ़ाना और आपदा प्रबन्धन के लिये अन्तरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना भी इसमें शामिल है। यह स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और विश्व स्तर पर आपदा जोखिम को कम करने के लिये चार प्राथमिकताओं को चिन्हित करता है। ये निम्नलिखित हैं: 1) जोखिम को समझना, 2) लचीलापन बढ़ाने के लिये जोखिम न्यूनीकरण में निवेश करना, 3) जोखिम का प्रबन्धन करने के लिये जोखिम नियन्त्रण को मजबूती देना और 4) प्रभावपूर्ण प्रतिक्रिया, बहाली, पुनर्वास और पुनर्निर्माण के लिये अधिक तैयारी करना।

सितम्बर, 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सतत विकास के लिये 2030 की कार्यसूची को मंजूर किया। इसमें सतत विकास के 17 लक्ष्यों (एसडीजी) में से 8 लक्ष्य आपदा जोखिम प्रबन्धन से जुड़े हुए हैं। इनका मुख्य लक्ष्य विकास के विभिन्न क्षेत्रों में लचीलेपन का निर्माण करना है।

दिसम्बर 2015 में जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। यह समझौता आपदा न्यूनीकरण की समझदारी, कार्रवाई और समर्थन को बढ़ावा देने के लिये आठ विशेष कार्रवाई क्षेत्रों को रेखांकित करता है। इनमें शामिल हैं: (क) पूर्व चेतावनी प्रणालियाँ, (ख) आपातकालीन तत्परता, (ग) धीमी शुरुआती घटनाएँ (घ) ऐसी घटनाएँ जो अपरिवर्तनीय हैं और जिनसे स्थाई नुकसान और क्षति हो सकती है; (ङ) व्यापक जोखिम मूल्यांकन और प्रबन्धन, (च) जोखिम बीमा की सुविधा, जलवायु जोखिम पूलिंग और अन्य बीमा समाधान, (छ) गैर-आर्थिक नुकसान और (ज) समुदायों, आजीविका और पारिस्थितिक तन्त्र में प्रतिरोधक क्षमता।

भारत में सतत विकास व आपदा जोखिम प्रबंधनभारत में सतत विकास व आपदा जोखिम प्रबंधन

भारत में चुनौतियाँ और अवसर


भारत ने वर्ष 2015 के तीनों विश्वव्यापी समझौतों को अन्तिम रूप देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दूसरी सबसे बड़ी आबादी, छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होने के साथ-साथ भारत में घोर गरीबी से जूझने वाले लोगों की संख्या भी सबसे अधिक है। यहाँ कुपोषित बच्चे और निरक्षर वयस्कों की संख्या भी सबसे ज्यादा है। इसलिये भारत सतत विकास और आपदा प्रतिरोधक क्षमता के विश्वव्यापी लक्ष्यों और उद्देश्यों को हासिल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

भारत ने आपदा जोखिम प्रबन्धन के लिये विभिन्न स्तरों पर वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमता वाले कानूनी और संस्थागत तन्त्रों को स्थापित किया है। हाल ही में हुई मौसम सम्बन्धी आपदाओं जैसे चक्रवात (जैसे फैलिन और हुदहुद) के परिणामस्वरूप होने वाली जान-माल की क्षति इसके केन्द्र में है। हालाँकि इसी तरह के परिणाम जलीय आपदाओं जैसे बाढ़ या बादल फटने (उत्तराखण्ड, श्रीनगर और चेन्नई) या भूगर्भीय आपदाओं जैसे भूस्खलन (मालिन और उत्तरी सिक्किम में नजर नहीं आए। तकनीकी आपदाओं जैसे औद्योगिक या सड़क दुर्घटनाएँ जारी हैं, जैविक आपदाओं के खतरे जैसे बड़ी महामारियाँ मंडरा रही हैं। 2001 में कच्छ के भूकम्प के बाद भूकम्प से बचाव की भारत की क्षमता का कोई परीक्षण नहीं किया गया और विशेषज्ञों द्वारा लगातार चेतावनी दी जा रही है कि अगर घनी आबादी वाले शहरों में बड़ा भूकम्प आया तो भयानक परिणाम हो सकते हैं।

भारत में सतत विकास व आपदा जोखिम प्रबंधनभारत के पास आपदाओं के जोखिम को परखने की अच्छी वैज्ञानिक और पारम्परिक जानकारियाँ हैं जिससे हम प्राकृतिक और मानवजनित प्रक्रियाओं को समझ सकते हैं, लेकिन इन्हें सामाजिक और आर्थिक विकास के कार्यक्रमों, गतिविधियों, परियोजनाओं की डिजाइनिंग और कार्यान्वयन में शामिल नहीं किया जाता। इसके परिणामस्वरूप आपदा के जोखिम को कम करने से सम्बन्धित परियोजनाओं का अधिक लाभ नहीं मिलता। कई बार तो इन परियोजनाओं से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से आपदाओं के नए जोखिम खड़े हो जाते हैं या मौजूदा जोखिम और प्रचंड हो जाते हैं।

भारत तेजी से आर्थिक विकास के मार्ग पर चल रहा है जिसमें मेक इन इंडिया, कौशल भारत, डिजिटल भारत, स्वच्छ भारत अभियान, स्मार्ट सिटी मिशन जैसी नई पहल से और तेज होने की उम्मीद है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अगले डेढ़ दशक में भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिये जिस प्रकार सार्वजनिक और निजी निवेश किया गया है, वह पिछले चार या पाँच दशकों के दौरान भी नहीं किया गया। इससे विभिन्न क्षेत्रों में विकास परियोजनाएँ बनाने, उनकी डिजाइनिंग करने और उन्हें लागू करने के मौके मिले हैं। ये परियोजनाएँ इस प्रकार तैयार और लागू की जा रही हैं कि उनसे जोखिम बढ़ते नहीं बल्कि जोखिमों को कम करने में योगदान मिलता है।

भारत में सतत विकास व आपदा जोखिम प्रबंधनपिछले कुछ समय से आपदा प्रबन्धन की कार्यसूची का उद्देश्य यह रहा है कि विकास के हर पहलू में आपदा जोखिम को कम करना शामिल किया जाए लेकिन इस दिशा में बहुत ज्यादा प्रगति नहीं हुई। न तो राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण ने कोई सामान्य या विशेष दिशा-निर्देश जारी किए हैं और न ही क्षेत्रीय मन्त्रालयों और केन्द्र या राज्य सरकारों के विभागों ने सम्बन्धित क्षेत्रों में आपदा प्रतिरोध के लिये कोई ठोस कार्रवाई योजना बनाई है। सतत विकास लक्ष्यों और पेरिस जलवायु समझौते के साथ सेंदई फ्रेमवर्क का कार्यान्वयन भारत में आपदा जोखिम प्रबन्धन के अब तक उपेक्षित, लेकिन चुनौतीपूर्ण कार्य को सम्भव बनाने का अवसर प्रदान करता है।

लेखक परिचय


लेखक राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण के सचिव रह चुके हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय प्रबन्धन संस्थान के कार्यकारी निदेशक, दक्षेस आपदा प्रबन्धन केन्द्र के संस्थापक निदेशक भी रहे हैं। साथ ही, केन्द्रीय आपदा अनुक्रिया निधि पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव के सलाहकार समूह के सदस्य भी रहे हैं। ईमेल: dharc@nic.in

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