भौमजल

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भौमजल के अन्तर्गत पृथ्वी की सतह के नीचे की जल की उपस्थिति, वितरण एवं संचालन का अध्ययन किया जाता है। भौमजल का अर्थ उस जल से होता है, जो किसी भू-स्तर की समस्त रिक्तियों में रहता है। मिट्टी का वह भाग जिसके बीच में से भूमिगत जल का प्रवाह चल रहा हो, संतृप्त कटिबंध कहलाता है और इस कटिबंध के पृष्ठ भाग को भूमिगत जल तल कहते हैं।

भूगर्भिय संरचना एवं प्रकृति भूगर्भजल की उत्पत्ति क्या वितरण का प्रमुख तत्व है। भूगर्भ जल प्राचीन चट्टानों से नवीनतम चट्टानी संरचना में विद्यमान रहता है। नवीनतम चट्टानी संरचना में, प्राचीन चट्टानी संरचना की तुलना में अधिक जल धारण क्षमता होती है। भूगर्भ जल उपलब्धता मुख्यत: वर्षा चट्टानी कणों की विभिन्नता, उनका परस्पर संगठन, चट्टानों की सरंध्रता एवं जलवहन क्षमता पर निर्भर करती है।

ऊपरी महानदी बेसिन के जलापूर्ति साधनों में भौमजल मुख्य है। इसका उपयोग सिंचाई, उद्योगों, नगरपालिकाओं एवं ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार बढ़ता जा रहा है। जिन स्थानों पर अत्यधिक मात्रा में भूगर्भ जल का दोहन किया जाता है, वहाँ इसकी कमी हो रही है। इस कारण ऐसे क्षेत्रों में यह आवश्यक हो गया है कि इसकी मात्रा नियंत्रण एवं पूर्ति की रक्षा का उचित प्रबंध हो, जिससे यह मुख्य प्राकृतिक स्रोत लगातार उपलब्ध होता रहे।

भौमजल का स्थानिक प्रतिरूप -

भौमजल स्तर -

मानसून एवं भूमिगत जलस्तर -

मानसून पश्चात भूमिगत जलस्तर -

भौमजल स्तर में उतार चढ़ाव -

सारिणी क्रमांक - 4.3

ऊपरी महानदी बेसिन : भूमिगत जल का वार्षिक जलपूर्ति एवं जल निकासी

(लाख घनमीटर में)

क्र.

जिला

कुल भूगर्भ जलापूर्ति

कुल का प्रतिशत

शुद्ध उपयोग

शुद्ध वार्षिक प्रवाह

जल निकास का प्रतिशत

वार्षिक जल निकास प्रतिशत

योजना निकास प्रतिशत

शेष जल

1

2

3

4

5

6

7

8

9

10

1.

2.

3.

4.

5.

 

6.

रायपुर

राजनांदगाँव

दुर्ग

बिलासपुर

रायगढ़

(जशपुर तह. को छोड़)

बस्तर (कांकेर तह.)

2,832.91

757.59

924.56

2,153.89

1,111.84

 

2,352.14

28.45

7.48

9.12

21.25

10.97

 

23.23

2,407.97

643.92

985.88

1,830.81

945.06

 

1,999.32

163.55

34.28

117.70

216.80

47.36

 

46.67

7.1

5.3

18.7

13.1

5.2

 

2.1

0.3

2.5

1.8

2.2

0.7

 

0.2

8.7

7.0

23.4

24.1

8.5

 

2.9

2,244.42

609.69

668.18

1,614.81

897.70

 

1,952.65

 

योग-

10,132.93

100.0

8,812.96

626.3

51.5

5.7

74.6

7,987.1

स्रोत - इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, म.प्र.

बेसिन में रायपुर जिले के अभनपुर, पलारी, कसडोल, बिलाईगढ़, महासमुन्द, सराईपाली, बमना, छुरा, धरसीवा आदि विकासखण्डों में भू-गर्भ जलस्तर नीचे हो गया है। रायपुर जिले में भूगर्भ जल की निकासी की मात्रा जलमग्न की मात्रा से अधिक होने से है। जिससे भूमिगत जल का उपयोग, शासकीय नलकूप, निजी नलकूप तथा कुओं की सहायता से किया जाता है। बेसिन के विभिन्न क्षेत्रों में कई शासकीय नलकूप एवं निजी नलकूप का खनन हुआ है।

सारणी क्रमांक 4.3 से स्पष्ट है कि ऊपरी महानदी बेसिन में भूमिगत जल का वितरण असमान है, परंतु प्रति वर्ग किमी वितरण की दृष्टि से रायपुर जिले में सर्वाधिक (28.45 प्रतिशत) एवं राजनांदगाँव जिले में कम (7.48 प्रतिशत) है। राजनांदगाँव जिले से संपूर्ण उत्तरी क्षेत्र एवं दक्षिण में राजनांदगाँव, मोहला तथा मानपुर आदि को छोड़कर बेसिन में भूमिगत जल शून्य है। क्योंकि ये क्षेत्र ग्रेनाइट, नीस, शिष्ट, मैग्नेटाइट आदि कठोर चट्टानों के हैं। जहाँ भूमिगत जल कम प्राप्त होता है। जिससे यहाँ भूमिगत जल की अपेक्षा धरातलीय जल द्वारा लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति अधिक की जाती है।

बेसिन में भूमिगत जल का सर्वाधिक उपभोग रायपुर जिले में होता है, इसके बाद क्रमश: कांकेर तहसील, बिलासपुर, रायगढ़, दुर्ग एवं राजनांदगाँव जिले में होता है। कुल भू-गर्भ जलापूर्ति का 28.45 प्रतिशत रायपुर, 23.23 प्रतिशत कांकेर, 21.25 प्रतिशत बिलासपुर, 10.97 प्रतिशत रायगढ़, 9.12 प्रतिशत दुर्ग एवं 7.48 प्रतिशत राजनांदगाँव जिले में होता है। वार्षिक भू-गर्भ जल प्रतिशत में सर्वाधिक बिलासपुर जिले में (2.2 प्रतिशत), दुर्ग (1.8 प्रतिशत), रायगढ़ (0.7 प्रतिशत), राजनांदगाँव (0.5 प्रतिशत) एवं रायपुर जिले में कम (0.3 प्रतिशत) है। बेसिन में कुल उपलब्ध जल का 5.7 प्रतिशत वार्षिक भू-गर्भ जल निकास का प्रतिशत है, जो योजना विकास का 74.6 प्रतिशत निकास पूरा करता है। इस तरह निष्कर्ष रूप में वर्षा की अनिश्चितता, नहरों, नदियों से सिंचाई की कमी के फलस्वरूप बेसिन में कुओं एवं नलकूपों से सिंचाई को प्रमुखता मिलने लगी है। बेसिन के विभिन्न जिलों में वार्षिक सिंचाई क्षमता भी भिन्न-भिन्न है, क्योंकि भू-गर्भ जल में जलमग्न एवं जल नि:सरण के कारण जल स्तर परिवर्तित होते रहता है।

संपूर्ण प्रदेश में औसत रूप से जलस्तर घटने-बढ़ने की प्रवृत्ति 3 से 6 मीटर के मध्य पाई जाती है। सबसे अधिक परिवर्तन की प्रवृत्ति दुर्ग जिले के धमधा विकासखंड के गिरोला ग्राम में 11.10 मीटर जबकि सबसे कम डौण्डी लोहारा विकासखंड के देवरी ग्राम में 0.53 मीटर है। राजनांदगाँव के पर्वतीय क्षेत्रों एवं रायपुर, बिलासपुर जिले के कुछ क्षेत्रों में 9 मीटर से भी अधिक जलस्तर में उतार चढ़ाव आता है। बिलासपुर जिले के चकरभाटा, बिल्हा एवं सारागाँव क्षेत्र में जल सतह 14.59 मीटर नीचे रहता है, जबकि जलस्तर उतार-चढ़ाव बेलतरा 10.81 मीटर, काठाकोनी 004 मीटर, कुरदुर 0.04 मीटर, खोली (पथरिया) में 21.11 मीटर पाया गया है।

यहाँ औसत भू-गर्भ जल का उतार-चढ़ाव बालूकाश्म, चूना पत्थर क्षेत्र की तुलना में कडप्पा एवं ग्रेनाइट नीस की कठोर सघन चट्टान में अधिक है, क्योंकि गोंडवाना युगीन आर्कियन ग्रेनाइट एवं नीस चट्टानों में प्राथमिक सरंध्रता के अभाव में अपक्षयित संधियाँ एवं दरारी क्षेत्र अच्छे जलागार हैं एवं अच्छे भूगर्भ जल उपलब्धता के स्रोत हैं। बेसिन में जलप्रवाह की दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण की ओर है। इस कारण भौमजल स्तर का उतार चढ़ाव उत्तर की अपेक्षा दक्षिण में अधिक है।

प्रदेश में भूमिगत जल काफी मात्रा में पाया जाता है। यहाँ उपयोग के अतिरिक्त पर्याप्त जल शेष रह जाता है जिसका उपयोग नहीं हो पाता। ऊपरी महानदी बेसिन में कुल उपयोगी जल का भंडार 7,789.20 लाख घनमीटर है। वर्तमान में 618.42 लाख घनमीटर जल का उपयोग किया जा रहा है एवं शेष 7,525.86 लाख घनमीटर जल का उपयोग भविष्य के लिये किया जाना है। सबसे अधिक भूजल भंडार 2875.08 लाख घनमीटर जल रायपुर जिले में है। रायपुर जिले में 3,080.04 लाख घनमीटर जल में से 204.96 लाख घनमीटर जल का उपयोग हो रहा है। बिलासपुर जिले में 2,402.52 लाख घनमीटर जल में से 86.12 मीटर जल का उपयोग हो रहा है शेष 2321.78 लाख घनमीटर भविष्य के लिये है। दुर्ग जिले में 975.47, रायगढ़ 410.33 एवं कांकेर में 604 लाख घनमीटर जल भंडारण है।

ऊपरी महानदी बेसिन में 39,200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कुओं के लिये तथा 25,207 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र नलकूप के लिये उपयुक्त है। बिलासपुर में क्रमश: कुओं के लिये 17,237, नलकूप के लिये 10,687, रायपुर में 9,771 एवं 4,069 राजनांदगाँव में 810 एवं 82 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कुओं एवं नलकूप के लिये उपलब्ध है। सबसे अधिक उपयुक्त क्षेत्र डोंगरगढ़ विकासखंड में है, जहाँ 1,147 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कुओं के लिये उपयुक्त है एवं सबसे कम मानपुर विकासखंड में है जहाँ 7 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र कुओं के लिये उपयुक्त है। इसी प्रकार नलकूप के लिये सबसे अधिक उपयुक्त क्षेत्र रायपुर जिले का सिमगा वकासखंड है, जहाँ 510 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र है। जितने भी पर्वतीय एवं पठारी क्षेत्रों वाले विकासखंड स्थित हैं वहाँ नलकूप के लिये क्षेत्र अनुपयुक्त है, क्योंकि कठोर चट्टानों का जमाव होने से नलकूप खनन आसानी से नहीं होता।

अत: सिंचाई हेतु जल निकास का विशेष प्रभाव स्तर पर दृष्टिगोचर नहीं हो पाता। चूना की चट्टानों की अपेक्षा शैल या बलुआ पत्थर के क्षेत्रों में भू-जलस्तर में घट-बढ़ अधिक होता है।

भूमिगत जल की निकसी मुख्यत: मनुष्यों द्वारा घरेलू उपयोगों अथवा सिंचाई हेतु कुओं, नलकूपों आदि के माध्यम से जल के निकाले जाने से होती है। इसके अतिरिक्त प्राकृतिक स्रोतों नदियों तथा जलाशयों में भूमिगत जल का प्रवाह आदि भी भूमिगत जल के निकासी के माध्यम हैं। भौमजल का उतार-चढ़ाव दीर्घकालीन, मौसमी परिवर्तन, सरिता प्रवाह, वाष्पन, वाष्पोत्सर्जन, मौसमी घटकाओं, भूकम्पों आदि कारकों से प्रभावित होकर परिवर्तित होता है। निष्कर्षत: शैल चट्टानी संरचना वाले क्षेत्रों में भू-गर्भ जलस्तर का उतार-चढ़ाव चूना पत्थर क्षेत्र की तुलना में अधिक है।

भूमिगत जल तल में उतार-चढ़ाव भूमिगत जल भंडार में जल के पुनर्पूरण एवं जल विसर्जन द्वारा प्रभावित होता है। वर्षाकाल में जल में पुनर्पूरण अधिक हो जाने के परिणामस्वरूप जल तल ऊँचा हो जाता है तथा शुष्क ऋतु में जल विसर्जन की अधिकता के कारण जल तल अपेक्षाकृत नीचा रहता है। वर्षा की मात्रा विभिन्न साधनों से निकाले गये भूमिगत जल की मात्रा भूमिगत जल के वाष्पोत्सर्जन तथा धरातलीय जल के अंत:सरण आदि की मात्रा में ह्रास अथवा वृद्धि का भूमिगत जलतल के उतार-चढ़ाव पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। बेसिन में जहाँ पर वर्षा की अधिकता है, वहाँ जल तल का वार्षिक उतार-चढ़ाव अधिक एवं कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उतार-चढ़ाव कम देखने को मिलता है।

भौमजल की संभावव्यता -

भूगर्भ जल निकासी

क्र.

साधन

निर्धारित प्रसमान

1.

 

2.

3.

घरेलू उपयोग वाले कुएँ

 

सिंचाई हेतु प्रयुक्त कुएँ

नलकूप

10,000 शक्ति/हेक्टेयर/मी.

अ. राहट माल                            0.5 हे./मी.

ब. पंप सेटयुक्त                         1.2 हे./मी.

7.5 हे./मी.

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