भिक्षा, जल त्याग और भागीरथी इको सेंसेटिव जोन

21 Feb 2016
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स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - छठा कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :


.वर्ष 2010 में हरिद्वार का कुम्भ अपेक्षित था। शंकराचार्य जी वगैरह सब सोच रहे थे कि कुम्भ में कोई निर्णय हो जाएगा। कई बैठकें हुईं। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ज्ञानदास जी ने घोषणा की कि यदि परियोजनाएँ बन्द नहीं हुई, तो शाही स्नान नहीं होगा। लेकिन सरकार ने उन्हें मना लिया और कुम्भ में शाही स्नान हुआ। कुम्भ के दौरान ही शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद जी के मण्डप में एक बड़ी बैठक हुई। मेरे अनुरोध पर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी भी आये। अन्ततः यही हुआ कि आन्दोलन होना चाहिए।

भीख माँगकर, परियोजना नुकसान भरपाई की घोषणा


...फिर तीन मूर्ति भवन में मधु किश्वर (मानुषी पत्रिका की सम्पादक) व राजेन्द्र सिंह जी ने एक बैठक की। उसमें जयराम रमेश (तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री) भी थे और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी (शंकराचार्य श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी के शिष्य प्रतिनिधि) भी थे।

जयराम जी ने कहा - ‘600 करोड़ खर्च हो गया है; क्या करें’

इस पर अविमुक्तेश्वरानंद जी ने कहा- ‘एक महीने का समय दो। हम पैसा इकट्ठा करके दे देंगे। हम भीख माँगकर देंगे।’

जयराम रमेश ने मजाक में कहा- ‘मेरा कमीशन?’

अविमुक्तेश्वरानंद जी बोले- ‘बताओ कितने? वह भी देंगे?’

कमीशन का तो मज़ाक था, लेेकिन जयराम जी ने माना कि नुकसान की भरपाई की बात कही जाये, तो रास्ता निकल सकता है। तय हुआ कि यही बात लिखकर सरकार को दी जाये। ड्रॉफ्ट बना; अविमुक्तेश्वरानंद जी ने जिम्मेदारी ली।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी के जिम्मेदारी लेने से उनके प्रति मेरी श्रद्धा कुछ ऐसी बनी कि मुझे ऐसा लगा कि जितना स्नेह मुझे पिता व परिवार से नहीं मिला, वह उन्होंने दिया। मैंने सोचा कि यदि भिक्षा माँगकर देने को कहा है, तो यह गंगाजी और मेरे... दोनों के प्रति उनका स्नेह है, लेकिन कुछ नहीं हुआ।

वैकल्पिक योजना के अभाव में पुनः अनशन का निर्णय


जुलाई में फिर बैठक हुई। उसमें मधु किश्वर, राजेन्द्र सिंह के अलावा स्वामी शिवानंद जी (मातृसदन, हरिद्वार) भी थे। सब मानते थे कि धोखा हुआ है, लेकिन किसी के पास कोई वैकल्पिक योजना नहीं थी। मैंने कहा कि मैं अब और इन्तजार नहीं कर सकता। मैंने अपने जन्मदिन - 20 जुलाई को उपवास पर बैठने का निर्णय लिया। मैंने मातृसदन में बैठने की अनुमति ली। मैंने ऐलान किया; अविमुक्तेश्वरानंद जी हँसे। उस दिन स्वरूपानंद जी भी दिल्ली आ गए थे। अविमुक्तेश्वरानंद जी नोएडा गए। मैं भी गया। स्वरूपानंद जी को बताया कि मैंने तय कर लिया है। उन्होंने आशीर्वाद दिया।

2010 के 24 जुलाई से चातुर्मास शुरू होना था। अविमुक्तेश्वरानंद जी ने अपना चातुर्मास हरिद्वार में ही रहकर सम्पन्न करने की अनुमति, स्वरूपानंद जी से माँगी; ताकि वह मेरे साथ रह सकें।

उन्होंने शंकराचार्य जी से यह भी कहा कि यदि अनुमति हो, तो वह भी अनशन करें।शंकराचार्य जी ने कहा - ‘नहीं, नहीं। तुम्हारे वहाँ रहने से लगेगा कि तुम ही करा रहे हो।’

केन्द्र पर निष्प्रभावी स्थानीय समर्थन


मुझे खुशी हुई कि उन्होंने सावधानी बरती। मैं किसी का बन्धन होने से बच गया। मैं शंकराचार्य जी से मिलकर मुजफ्फरनगर चला गया। आगे तय समयानुसार, मातृसदन जाकर मैंने यज्ञ किया और अनशन शुरू कर दिया। उन्होंने प्रेस वाले बुला लिये थे।

अगले दिन रामदेव जी पहुँच गए। रामदेव जी ने हाइवे जाम करने की बात की। हंसदेवाचार्य जी आ गये। समर्थन मिला, लेकिन इस समर्थन का केन्द्र पर कोई प्रभाव नहीं था; सो, सारा समर्थन हरिद्वार से आगे नहीं बढ़ पाया। यह दिख ही रहा था कि मसला, कांग्रेस बनाम भाजपा हो गया है। इस बीच स्वरूपानंद जी का कोई सक्रिय समर्थन नहीं आया। एक आनंद पाण्डेय जी उनकी ओर से आते थे; लगता था कि वह बीच में गोलमोल करते हैं।

जलत्याग की तैयारी


कुछ हो नहीं रहा था; तब हंसदेवाचार्य, प्रमोद कृष्णम वगैरह 12-14 लोगों का समूह आया। उन्होंने कहा कि वे दिल्ली जाएँगे। 12 अगस्त को वे शिंदे (तत्कालीन केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री, भारत सरकार) के यहाँ गए। शिंदे ने कहा कि गवर्नमेंट लागत हजार करोड़ पहुँच चुकी है; काम बन्द नहीं होगा। वे प्रणव मुखर्जी से मिले। राजेन्द्र सिंह, प्रमोद कृष्णम (कभी कांग्रेस के पदाधिकारी थे, अब सम्भल स्थित कल्कि पीठाधीश्वर के रूप में धर्मक्षेत्र में सक्रिय) उनके सम्पर्क में रहे। प्रणव मुखर्जी ने प्रधानमंत्री से बात करके उत्तर देने की बात की। 17 अगस्त तक कोई जवाब नहीं आया। मैंने कहा कि यदि 20 अगस्त तक कुछ नहीं हुआ, तो जल भी त्याग दूँगा। स्वामी शिवानंद जी ने कहा कि आप निश्चिन्त रहें। जहाँ लगे, वहाँ स्थगित कर दें। किन्तु तब तक मेरा वजन मात्र दो किलो गिरा था; इसलिये मैं सेहत को लेकर आश्वस्त था।

पलटा घटनाक्रम : सक्रिय हुए जयराम


20 अगस्त को जयराम रमेश, मातृसदन आये। जयराम रमेश के पिता बांबे बीजीटीआई में सिविल इंजीनियरिंग के अध्यक्ष थे; सी टी रमेश - हम उन्हें प्रोफेसर रमेश कहते थे। वह हमारे मित्र थे।

जब जयराम रमेश आये, तो मैंने पूछा- “आप किस रूप में आये हैं? मित्र के रूप में, मित्र के पुत्र के रूप में, मंत्री के रूप में या प्रधानमंत्री जी के दूत के रूप में?’’

जयराम ने कहा- “मैं आपसे व्यक्तिगत मित्र के रूप में आया हूँ।’’

उन्होंने बताया कि सरकार क्या-क्या कर सकती है। उस पर मेरी आपत्तियाँ थीं। पहली आपत्ति कि किस कारण से गंगाजी पर परियोजनाएँ करें? कोई एक स्पेशिफिक कारण तो हो। मैं बाँधों के विरुद्ध हूँ, किन्तु मैं नहीं कहता कि सब बाँधों के विरुद्ध हूँ। सब बांधों के विरुद्ध लड़ना है, तो कोई और लड़े। मैंने कहा कि जो ड्रॉफ्ट बने, उसका पहला पैरा गंगा पर हो। गंगोत्री से 130 किलोमीटर उत्तरकाशी तक विशेष जोन डिक्लेयर करें। उसमें गंगाजी का नैसर्गिक स्वरूप बनाकर रखने की बात हो।

मानी गई इको सेंसेटिव जोन की माँग


जयराम ने अगले दिन ड्रॉफ्ट बनाकर भेजा। मैंने इम्प्रूव करके दिया। उस पर प्रणव मुखर्जी ने साइन करे दिये। उसमें ऊपर से उत्तरकाशी तक भागीरथी का इको सेंसेटिव जोन घोषित करने की बात थी। मैंने 22 अगस्त को अपना उपवास तोड़ दिये। मेरे लिये यह जानना महत्त्वपूर्ण था कि 17 तक जहाँ कोई सुनने को राजी नहीं था, आखिर क्या हुआ कि 20 को सब हो गया। एक नया चित्र आया, प्रमोद कृष्णम का। वह अखिल भारतीय सन्त समिति के अध्यक्ष थे।


प्रस्तोता का पश्चाताप : आदरणीय पाठकगण, इस संवाद का प्रस्तोता इस मौके का स्वयं गवाह भी है और जिम्मेदारी के निर्वाह में संकल्पहीनता की कमी का भागीदार भी। मुझे याद है; जलपुरुष श्री राजेन्द्र सिंह जी, ‘सीएमएस वातावरण फिल्म फेस्टिवल’ में बतौर जूरी भाग लेने दिल्ली आये थे। आयोजकों ने रुकने का इन्तजाम, मौर्य शेरटन होटल में किया था। मेरी वह रात, राजेन्द्र भाई से यही अनुरोध करते बीती थी कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी संकल्प निभाएँ या न निभाएँ, हमें उनका तथा स्वामी सानंद का गंगा संकल्प निभाने के लिये ‘गंगा भिक्षा आन्दोलन’ के लिये निकल पड़ना चाहिए।

हालांकि नुकसान भरपाई के पत्र पर सरकार की ओर से भी कोई जवाब नहीं आया था; इसलिये औपचारिक तौर पर इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। किन्तु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद जी की घोषणा के तुरन्त बाद, बीच बैठक में करीब पाँच लाख रुपए के दानदाता सामने आ गए थे, उससे इस घोषणा की शक्ति स्पष्ट थी। यूँ भी मैं इसे गंगा अविरलता और निर्मलता के मसले से जन-जुड़ाव के अनोखे अवसर के तौर पर देख रहा था। मेरे मन में एक ओर काशी हिन्दू विद्यापीठ के लिये स्व. मदन मोहन मालवीय जी द्वारा चलाए भिक्षा अभियान की कल्पना आकार ले रही थी, तो दूसरी ओर स्वतंत्रता आन्दोलन में झोली फैलाए गाँधी का चित्र, शक्ति दे रहा था।

मेरा विचार था कि गंगा के लिये कुर्बान करने को शासन के पास 600 करोड़ रुपए नहीं है; यह बात जनता के पौरुष को जगा देगी। जनता इसे एक ललकार की तरह लेगी। मैं, इसमें मीडिया के लिये भी चुम्बकीय तत्व की उपलब्धता भी देख रहा था। मेरा विश्वास था कि राजेन्द्र भाई में तमाम नामी-गिरामी गंगा प्रेमियों को इस आन्दोलन से जोड़ने की क्षमता है। मेरा यह भी विश्वास था कि जब नामी-गिरामी लोग, अपनी-अपनी झोली फैलाकर गाँव-गाँव, मोहल्ला-मोहल्ला.. गंगा टोलियों में निकलेंगे, तो गंगा मैया के नाम पर शहरी ही नहीं, गरीब-गुरबा ग्रामीणों के हाथों से इतना पैसा बरसेगा कि भारत की केन्द्र सरकार भी शरमा जाएगी। इसकी गूँज व्यापक होगी और गंगा के लिये प्रभावी भी।

इसके दो लाभ होंगे: पहला, सरकार के पास बहाना नहीं बचेगा और जन दबाव इतना अधिक होगा कि वह चाहकर भी परियोजनाओं को आगे बढ़ा नहीं सकेगी। दूसरा, गंगा को हम भारतीयों से जिस सक्रिय संवेदना की दरकार है, ‘गंगा भिक्षा आन्दोलन’ उसे जागृत कर सकेगा।

मैं यह भी सोच रहा था कि ‘गंगा भिक्षा आन्दोलन’ सिर्फ धन नहीं मांगेगा, वह गंगा निर्मलता और प्रवाह की समृद्धि में सहयोगी कदमों के संकल्प के दान की भी माँग करेगा। इस तरह ‘गंगा भिक्षा आन्दोलन’, बिना कहे ही गंगा निर्मलता-अविरलता के रचनात्मक आन्दोलन में तब्दील हो जाएगा। राजेन्द्र भाई ने तो खैर अपना जीवन ही नदियों और तालाबों के लिये दान कर दिया है; मैं स्वयं भी इसके लिये अगले तीन महीने देने के लिये तैयार था। राजेन्द्र भाई तैयार दिखे और उत्साहित भी। क्या करेंगे? कैसे करेंगे?? इस पर भी विस्तार से चर्चा हुई। मैं प्रतीक्षा करता रहा, किन्तु वह बात, बात से आगे नहीं गई; जैसे रात का देखा सपना, भोर होते ही अपना प्रकाश खो देता है, वैसे ही मेरे जैसों की संकल्पहीनता ने गंगा जन-जागरण का एक अनुपम अवसर गँवा दिया। उस अवसर को गँवा देने का मुझे, आज भी अफसोस है... अरुण तिवारी
संवाद जारी...

अगले सप्ताह दिनांक 28 फरवरी, 2016 दिन रविवार को पढ़िए स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद शृंखला का सातवाँ कथन

प्रस्तोता सम्पर्क :
ईमेल : amethiarun@gmail.com
फोन : 9868793799

इस बातचीत की शृंखला में पूर्व प्रकाशित कथनों कोे पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें।

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