भोजन मे जहर

14 Jan 2020
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Image source Down to Earth Magazine
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केन्या में कई लोकप्रिय ब्रैंड के मक्के के आटे में भारी मात्रा में एफ्लाटॉक्सिन नाम के जहरीले पदार्थ की मौजूदगी का खुलासा हुआ है। मक्के का आटा केन्या के अधिकतर लोगों के मुख्य भोजन का हिस्सा है। ऐसे में यह ज्यादा चिंताजनक बात है। सवाल यह है कि देशभर में मक्के का परिष्करण और वितरण किस तरह से हो रहा है?

 

 एफ्लाटॉक्सिन एक विशेष प्रकार के जहरीले तत्व हैं, जो एस्परगिलस फ्लेक्स नवाम के फंगस से निकलते हैं। यह फंगस गर्म, शुष्क परिस्थितियों में मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पैदा होता है और विभिन्न प्रकार की फसलों को अपनी चपेट में ले सकता है। मक्का और मूंगफली ये वे दो फसले हैं, जो खासतौर पर एफ्लाटॉक्सिन के सम्पर्क को लेकर अति संवेदनशील हैं। वहीं, एफ्लाटॉक्सिन कैंसर पैदा करने वाला तत्व है, जिसकी बड़ी खुराक लोगों के लिए घातक हो सकती है। लम्बे समय तक इसकी हल्की मात्रा के सेवन के अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी परिणामों का अभी तक कुछ खास पता नहीं लगाया जा सकता है।

मौसम के आधार पर प्रत्येक वर्ष एफ्लाटॉक्सिन से प्रभावित होने वाली फसल की मात्रा बदलती रहती है। खेती के मैदान या तो बहुत कम बारिश (जो फंगस के संक्रमण के खिलाफ फसलों के प्राकृतिक बचाव की क्षमता को कमजोर करती है), या फिर फसल के आस-पास बहुत अधिक बरसात (जिससे भंडारण से पहले फसलों को सुखाना कठिन हो जाता है), फसल में उच्च एफ्लाटॉक्सिन की मौजूदगी का कारण बन सकती है।

पौधों में पोषक तत्वों की कमी भी इसका जोखिम बढ़ा देती है, उदाहरण के तौर पर सूखे जैसी स्थिति में फसले कमजोर हो जाती हैं और आसानी से फंगस की चपेट में आ जाती हैं। अगर फसलों का भंडारण ठीक से न किया गया हो और उन्हें नमी मिलती रहे या फिर वे अच्छी तरह से सूखी न हों तो उनमें फफूंद की समस्या बढ़ सकती है। केन्या में छोटे किसानों द्वारा संग्रहित मक्का, खरीदे गए मक्के की तुलना में कहीं अधिक दूषित पाया गया है और यह समय-समय पर होने वाले एफ्लाटॉक्सिन विषाक्तता के प्रकोप की सबसे बड़ी सम्भावित वजह है।

केवल केन्या ही इस चुनौती से नहीं जूझ रहा, दुनियाभर के देश अनाज के एफ्लाटॉक्सिन से दूषित होने की समस्या को झेल रहे हैं। केन्या के अलावा दक्षिणी अमरिका, ग्वाटेमाला, भारत और चीन के कुछ हिस्से एफ्लाटॉक्सिन संदूषण के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं।

समस्या का समाधान

केन्या में कई खाद्य प्रसंस्करण कम्पनियां अपने उत्पादों को एप्लाटॉक्सिन से दूषित से बचाने के लिए खरीदने से पहले मक्का जैसे उत्पादक सामग्री  का परीक्षण करती हैं, लेकिन सटीक परीक्षण कर पाना मुश्किल है, क्योंकि मक्के की बोरियों के स्तर पर भी एफ्लाटॉक्सिन में विविधता पाई जाती है। यहाँ तक कि एक बोरी के अंदर रखे मक्के के दानों के एफ्लाटॉक्सिन में भी अंतर होता है।

मक्के और मूंगफलियों की वैसी फसलें, जिनमें प्रति बिलियन एफ्लाटॉक्सिन के क्रमशः 10 से 15 से अधिक हिस्से हों, केन्या में कानूनी रूप से बेची नहीं जा सकतीं, लेकिन परीक्षण प्रक्रियाएं अक्सर नियमित तौर पर नहीं की जातीं।

वैसे भी, फैक्ट्री के गेट पर एफ्लाटॉक्सिन के परीक्षण से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। जब एक कम्पनी द्वारा या मूंगफली की खेप को अस्वीकार कर दिया जाता है तो इसे किसी कम कठोर नियमों वाली कम्पनी को या फिर अनौपचारिक बाजार में बेच दिया जाता है। इसका मतलब यह है कि सबसे सस्ता भोजन अक्सर सबसे अधिक दूषित होता है। कम-से-कम खर्च में गुजारा करने वाले गरीब लोग इस असुरक्षित भोजन को ग्रहण के खतरे को झेलते हैं। अनुसंधान के दौरान मैंने पाया कि केन्या में उपभोग में शामिल मक्के के एक बड़े हिस्से का एफ्लाटॉक्सिन के लिए कभी परीक्षण ही नहीं किया जाता। इसकी वजह शायद यह है कि इसकी खरीद-फरोख्त अनौपचारिक बाजार में होती है या फिर इसका उपभोग इसे उपजाने वाले कर लेते हैं।

जनता क्या करे ?

केन्या में मक्के के आटे पर अन्तरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के शोध से पता चला है कि महंगे ब्रांड के आटे के एफ्लाटॉक्सिन मानक के अनुरूप होने की आशंका अधिक है। इसलिए अधिक कीमत वाले आटे का उपभोग करके खुद को बचाया जा सकता है। यदि आप खुद मक्का या मूंगफली उगाते हैं, तो फसलों को मिट्टी के सम्पर्क में आने दिए बिना अच्छी तरह सुखाएं और एक साफ, सूखे स्थान पर उनका संग्रहण करें। आमतौर पर मूंगफली युक्त प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ साबुत दोनों की तुलना में अधिक दूषित होते हैं। ऐसा इसलिए हैं, क्योंकि क्षतिग्रस्त दानों में एफ्लाटॉक्सिन के मौजूद होने की ज्यादा आशंका होती है और सबसे अच्छे दानों को प्रसंस्कृत करने की बजाय साबुत बेचा जाता है। अपने उपभोग के लिए खुद उच्च गुणवत्ता वाली मूंगफलियों से मूंगफली का मक्खन बनाया जाए तो भी एफ्लाटॉक्सिन से बचा जा सकता है।

आखिर में मैं यह कहूंगा कि एफ्लाटॉक्सिन से बचने के लिए जो सबसे महत्त्वपूर्ण काम आप कर सकते हैं वो है एक संतुलित आहार लेना और मक्के और मूंगफली पर अत्यधिक निर्भरता से बचना।

कैसे खत्म हो समस्या ?

एफ्लाटॉक्सिन की समस्या को जड़ से मिटाने के लिए अधिक संसाधनों की आवश्यकता है और ये उपाय खेत पर होने चाहिए। केन्याई सरकार ने हाल ही में अफ्लासेफ (एफ्लाटॉक्सिन पर नियंत्रण रखने वाला उत्पाद, जिसे किसान खेतों में लगी हुई फसलों पर छिड़कते हैं) पर 200 मिलियन केन्याई शिलिंग खर्च करने की योजना की घोषणा की है। यह एक बेहतरीन खबर है, लेकिन इसे कारगर बनाने के लिए किसानों को इसे सही तरीके से इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित करना बहुत जरूरी है।

प्लास्टिक की चादरों पर फसलों को सुखाने, भंडारण से पहले फफूंद लगे हुए या क्षतिग्रस्त फसलों को अलग करने और भली-भांति सूखने वाली फसलों को हवा बंद बोरों में रखने करने जैसी अन्य पद्धतियां भी एफ्लाटॉक्सिन को कम करने में बहुत प्रभावी हैं। 15 वर्ग मीटर की प्लास्टिकक की चादर लगभग 400 केन्याई शिलिंग (लगभग 4 यूएस डॉलर) में उपलब्ध है। इसकी कई मौसमों तक काम में आ सकने की खूबी इसे सबसे अधिक किफायती समाधानों समाधानों में से एक बनती है। विशेष गैर-खाद्य उपयोगों के लिए दूषित अनाज के इस्तेमाल को वैध बनाने के लिए केन्या के एफ्लाटॉक्सिन विनियमन में भी बदलाव की आवश्यकता है। मक्के के लिए केन्या पूर्वी अफ्रीकी मानक का अनुसरण करता है, जिसके अनुसार मक्के की सभी फसलें, चाहे वो किसी भी इस्तेमाल में लाई जाती हों, इस मानक के हिसाब से मक्के की किसी भी इस्तेमाल में लाई जाने वाली फसल के लिए एफ्लाटॉक्सिन की एक ही सीमा निर्धारित है।

चूंकि एफ्लाटॉक्सिन चारे से मांस में बहुत कम मात्रा में पहुंचता है इसलिए, जिन फसलों को मानव उपभोग के लिए असुरक्षित माना जाता है, उनका मांस के लिए पाले जा रहे जानवरों के चारे में आराम से इस्तेमाल किया जा सकता है। संयुक्त राज्य और यूरोपीय संघ के सदस्यों सहित कई देशों में मांस के लिए पाले जा रहे पशुओं के चारे में काफी ज्यादा, यहां तक कि केन्याई सीमा से 30 गुना अधिक, एफ्लाटॉक्सिन स्वीकृत है। मानव उपभोग के लिए निर्धारित सीमा से अधिक एफ्लाटॉक्सिन वाले खाद्य पदार्थ को मांस के लिए पाले जा रहे पशुओं को खिलाने की अनुमति देना, इस जहर को खाद्य आपूर्ति से बाहर निकालने का एक तरीका है।

(लेखक अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान में अनुसंधान अर्थशास्त्री हैं। यह लेख द कन्वरसेशन से विशेष समझौते के तहत प्रकाशित किया गया है)

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