भारत में कचरा प्रबंधन की चुनौतियाँ और अवसर

6 Feb 2021
0 mins read
भारत में कचरा प्रबंधन की चुनौतियाँ और अवसर
भारत में कचरा प्रबंधन की चुनौतियाँ और अवसर

भारत एक विशाल देश है. जहाँ करीब 1 अरब से अधिक लोग रहते है जो विश्व का दूसरा सबसे घनी आबादी वाला देश है.आज इसी बढती हुई आबादी से भारत में कई समस्या उत्पन्न हुई है जिसमें सबसे बड़ी समस्या में एक स्वछता है. आज भारत में मूल भूत सुविधाएँ होने के बावजूद भी जगह जगह फैला कचरा देश की सबसे बड़ी समस्या बन गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी द्वारा स्वछता अभियान से कुछ हद तक देश में कचरा कम हुआ है, लेकिन अभी भी देश को पूरी तरह स्वच्छ करने के लिए हमें बहुत काम करना होगा। 

निचले स्तर पर क्या तस्वीर है ?

आज भी हमारे गली मोहल्लो में कही पॉलीथिन, थूके हुए पान के निशान, खाली बोतले, बचा हुआ खाना सड़को पे देखने को मिल जायेगा । नगर निगम  की गाड़ियाँ कचरा उठाने आती है। लेकिन सही डंपिंग जोन और कचरा प्रबंधन के ना होने के कारण हर प्रकार का कचरा डंपिंग जोन मे डाल दिया जाता है। डंपिंग जोन मे जमे हुए कचरे की भी भरमार रहती है।  जिसमे  बैटरीज,मेडिकल सामग्री और इंडस्ट्रियल कचरा विषैले पदार्थ  निकलते है जो वातावरण और जन जीवन को हानि पहुँचाते है।ऐसे में  भारत को  कचरे का सही से डंपिंग एंड रीसाइक्लिंग की तकनीकों को जोर देना पड़ेगा। और विकास शील देशो जैसे जर्मनी, अमेरिका से तरीके सीखने पड़ेंगे।

 2020: 2020: वर्ष 2016 के रिपोर्ट के हिसाब से Source:Times of India फोटो

वर्ल्ड बैंक के अनुसार भारत 277 मिलियन कचरा हर साल पैदा करता है वर्ष 2016 के रिपोर्ट के हिसाब से. जो की 80%  भाग केवल भारत का है.

इसके साथ ही कचरा के मामले मे राजधानी दिल्ली देश केे और शहरों के मुकाबले प्रथम है.

 2020: 2020: वर्ष 2016 के रिपोर्ट के हिसाब से Source:Times of India फोटो

भारत ठोस कचरा प्रबंधन के मामले में विकसित देशों से पीछे क्यों है ?

आमतौर पर यहाँ तस्वीर भारत मे हर गालिओ की है. प्रशासन  द्वारा कूड़ेदान के डिब्बे आपको दिखेंगे पर इतना कचरा उसके अंदर है और कितना बहार  ये आप इस तस्वीर मे देख सकते है.. अगर हम जर्मनी की बात करे वहां आपको ऐसी ख़राब बदबूदार गलिया देखने को नहीं मिलेगी. वह हर गली, सड़क,सवार्जनिक जगहों में किसी प्रकार की गंदगी नहीं देखने को मिलेगी

वर्ष 2016 में जर्मनी दुनिया का प्रथम स्थान वाला कचरा रीसाइक्लिंग वाला देश बन गया है अगर हम जर्मनी का ही उदाहरण ले तो 1980s से सर्कुलर इकॉनमी ( सर्कुलर इकोनॉमी अप्रोच, जिसमें बिजली और अन्य उत्पाद कचरे का उपयोग, रिसाइकल  कर पैदा किया जाता है ताकि इससे इकॉनमी बढ़े ) की ओर केंद्रित रहे. 1990 से ही वेस्ट मैनेजमेंट से रिसोर्स मैनेजमेंट  की और उनकी कार्य-नीति बननी शुरू हुई थी. जर्मन लोगो को नैतिक रूप से यहाँ समझ थी की दुबारा इस्तेमाल में लाये जाने वाले वस्तुओ को कचरे से अलग करना ही असल समझदारी है. 

वैसे तो बहुत से नियम जर्मनी में लागू हुए है पर कुछ विशेष बातें है जो हर भारतीय को चौंका देगी.और हमें उससे  सकारात्मक रूप से कुछ सीखना चाहिए.

 2020: 2020: आमतौर पर यहाँ तस्वीर भारत मे हर गालियो की है Source:Business Standard फोटो

आमतौर पर यहाँ तस्वीर भारत मे हर गालियो की है. प्रशासन द्वारा  लगाए गए।  कूड़ेदान के डिब्बे आपको दिखेंगे पर कितना कचरा उसके अंदर है और कितना बहार  ये आप इस तस्वीर मे देख सकते है. हलाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र  मोदी द्वारा स्वछता अभियान से लोगो में जागरूकता की भावना दिखी है ,पर ये बस काफी नहीं. 

 2020: 2020: कचरा बिखरा हुआ Source:Times of India फोटो

भारत में आप कही पर भी कचरा फेक के चले जाते है और सोचते भी नहीं। लेकिन जर्मनी और उसके जैसे देशो में लोग आपको सरे आम टोकते है जिससे आपको शर्म का सामना करना पड़ता है  इतना ही नहीं आपको €1,800 का भारी जुर्माना भी  चुकाना पड़ता है.

एक पहलू यहाँ भी है की अगर हम जर्मन लोगो की तरह व्यक्तिगत रूप से अपनी ज़िम्मेदारी समझे और आसपास के इलाकों को साफ़ रखे तो भारत भी जर्मनी जैसा स्वच्छ रहेगा.

उद्धरण के लिए आप इस चित्र को देखिये, क्या आपको कचरा बिखरा हुआ दिख रहा है? जवाब बेशक ना ही हो

 2020: 2020: जर्मनी  कचरा छँटाई प्रणाली Source: Deutsche Recyclingफोटो

जानिये कुछ विशेष बातें जर्मनी के कचरा छँटाई प्रणाली के बारे में। 

  • पीला / नारंगी बिन - प्लास्टिक और धातुओं के लिए, 

  • नीला  बिन - कागज़ और कार्ड बोर्ड के लिए और पैकेजिंग वाले कर्टन्स

  • लाल बिन - प्लास्टिक और जैसे पदार्थ

  • हरा बिन - घर के कच्चे जो प्राकृतिक रूप से सड़ते है

  • भूरा बिन - प्राकृतिक रूप से सड़ने वाले पदार्थ

  • ग्रे/काला बिन -  पदार्थ जो किसी भी श्रेणी में ना आता हो वो इस बिन में जायेगा. जैसे चिकना पिज्जा बॉक्स 

इनको लगाने मुख्य उद्देश्य यहाँ है की घर से ही कचरे को अलग अलग कर लिया जाये, ताकि ट्रीटमेंट सेंटर में अलग  ना करना पड़े और कोई गलत पदार्थ भी ना हो. ऐसा करने से पैसा, वक़्त और श्रमशक्ति भी काम लगती है. लेकिन भारत में न ही घर में कचरे को अलग किया जाता है ना ही फेंकते हुए, ना जगह देखते हुए, लोग इतना आलस दिखाते है की कचरे के डिब्बे में कम सड़क पे ज़्यादा फैला मिलता है। 

पीने वाले पदार्थ जिनकी बोतल भारत मे हम हर जगह फेकी हुई दिखती है. वही जर्मनी में बोतलों को जमा करने की मशीनें लगी है. जिन्हे “Pfand” कहा जाता है. जैसे ही आप बोतल जमा करेंगे आपको उसके कुछ धनराशि भी मिलती है. इस तरह के कार्यशैली से बोत्तले सीधे दोबारा इस्तेमाल के लिए फ़ैक्टरियों मे पहुंच जाती है.

 2020: 2020: बोतलों को जमा करने की मशीनें Source: infomigrants फोटो

वर्ष 2000 से जर्मनी द्वारा सकारात्मक रूप से वेस्ट कंट्रोल और इकॉनमी में बढ़ोतरी देखी  जा सकती है.

इसका मूल कारण सख्त कानून है. वहां  ठीक तरह से  अलग अलग ट्रीटमेंट सेंटर बनाए गए है, जो रासायनिक  पदार्थ वातावरण को हानि पंहुचा सकते है उन्हें सबसे  पहले ट्रीटमेंट से निष्क्रिय  किया जाता है फिर इस्तेमाल आने वाले वस्तुओ को छांट कर  बेकार हिस्से को धरती के नीचे  डंप किया जाता है.

लोगो की अहम भागीदारी भी है जिहोने सरकार के नियमों का पालन किया। ट्रीटमेंट सेंटररो से वेस्ट मटेरियल का ट्रीटमेंट और रीसाइक्लिंग राष्ट्रीय स्तर पर ढंग से किया गया है . जिससे 15 वर्ष में जर्मनी  फिर से धनी और स्वच्छ देश बन गया है.

 2020: 2020: 2000- 2015 तक जर्मनी के वेस्ट मात्रा और इकाॅनमी में बढ़ोतरी का ब्योरा Source: bmu.de फोटो

निष्कर्ष: -

हलाकि ऐसा कुछ देखने को या अभी तक भारत में सोचा ही नहीं गया है. इससे निपटने का उचित उपाए यही है की टिकाऊ लंबी अवधी तक चलने वाले सामान ही खरीदे। रासायनिक उत्पाद जैसे बैटरीज, प्लास्टिक और बिजली वाले सामानों को वापस फैक्ट्री में रीसाइक्लिंग के लिए नए तरीके देखने पड़ेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading