भूमि, जल. वन और हमारा  पर्यावरण
भूमि, जल. वन और हमारा पर्यावरण

भूमि, जल, वन और हमारा  पर्यावरण 

Published on






देश की माटी, देश का जल
हवा देश की, देश के फल
सरस बनें, प्रभु सरस बनें!

देश के घर और देश के घाट
देश के वन और देश के बाट
सरल बनें, प्रभु सरल बनें !

देश के तन और देश के मन
देश के घर के भाई-बहन
विमल बनें प्रभु विमल बनें!



रवीन्द्र नाथ ठाकुर की कविता का रूपांतर भवानीप्रसाद मिश्र द्वारा






यह किताब तीन अध्यायों में बंटी है। पूरी किताब पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें


 

India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org