भूमि का खाद्य ‘खाद’ (भाग 2)

25 May 2010
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भिन्न-भिन्न फसलें नाइट्रोजन आदि द्रव्य कितनी मात्रा में जमीन में से लेती हैं, उसके प्रयोग हमारे देश में कहीं हुए हों, तो मुझे मालूम नहीं है। भिन्न-भिन्न जमीन, वातावरण, काल वगैरह का भी इसमें असर होता होगा। फिर भी जानकारी के लिहाज से राथमस्टेड में किए गए प्रयोगों पर से कुछ आँकड़े दिये जाते हैं।

(फसल एक एकड़ में और वजन पौंडों में)


फसल

फसल का वजन

नाइट्रोजन

पोटाश

फास्फोरिक एसिड

काटते वक्त

सूखने के बाद

गेंहू-धान्य

,, पत्ती 

1800

3158

1530

2653

33पौंड

12

9.7 पौंड

18.2

14.3 पौंड

8.4

कुल

(4958)

(4183)

(45)

(27.9)

(22.7)

जौ-धान्य-

,, पत्ती

2080 

2447

1747 

2080

34  

12

10.1  

23.7

15.1   

4.9

कुल

(4527)

(3827)

(46)

(33.8)

(20.0)

ओट्स-धान्य

,, पत्ती

1890

2835

1625   2353

38     14

8.5    

29.6

11.8   

7.1

कुल

(4725)

(3978)

(52)

(38.1)

(18.9)

मटर-धान्य

,,पत्ती

1920  

2240

1913  

1848

77     22

23.0  

58.1

22.3   

9.2

कुल

(4160)

(3761)

(99)

81.1

(31.5)

चारागाह घास (मेडो हे)

3360

2822

49

56.3

12.7

तिनपतिया घास (क्लो व्यास)

4480

3763

102

87.4

25.1

शलजम-मूल (टरनिप)पत्ती

38.08    11.42

3126      1531

71      46

108.6 

40.2

22.4 

10.7

कुल

(49.54)

(4657)

(120)

(14.88)

(33.1)

स्वीडिश-शलजम मूल

,,पत्ती

31.36 

4.70

3349   

706

74   

28

63.3   

16.4

16.9   

4.8

कुल

(36.06)

(4055)

(102)

(79.7)

(21.7)

आलू-कन्द

,,पत्ती

13.44    4.27

3360       954

47     20

75.4  

1.1

24.1  

2.7

कुल

(17.71)

(4314)

(67)

(76.5)

(26.8)



ऊपर के आँकड़ों से एक मजेदार बात यह ध्यान में आयेगी कि आम फसलों में सूखा हुआ पदार्थ करीब-करीब समान याने हर इंग्लिश एकड़ में चार हजार पौंड है। चरागाह-घास इसकी अपवाद है। लेकिन एक तरह से वह अपवाद नहीं भी है। क्योंकि घास को पूरे साल की फसल नहीं कहा जा सकता। इस पर से दिखता है कि भिन्न-भिन्न फसलें, समान परिस्थिति में समान परिस्थिति में समान क्षेत्र में हो, तो अपनी वार्षिक वृद्धि में करीब-करीब समान कार्बन आत्मसात् करती हैं।

नाइट्रोजन के प्रमाण में काफी फर्क है। मोटे तौर पर कह सकते हैं कि घास जाति की फसलें याने गेंहूँ, जौ, ओट्स, घास आदि में वह 50 पौंड होता है और फलीदार फसलों में और कंद-मूल जाति की फसलों में (आलू को छोड़कर) ऊपर की फसलों से दुगुना होता है। पत्ती के साथ या पत्ती को छोड़कर हिसाब किया जाय, तो भी यह प्रमाण कायम रहता है।

पौधों के ऑश-घटकों में फास्फोरिक एसिड और पोटाश महत्व के घटक हैं। वनस्पति के रेशों के लिए इन दोनों की बड़ी जरूरत है। साथ ही आम तौर से जमीन में अल्प मात्रा में होते हैं। पौधों के बीज में फास्फोरिक एसिड मुख्यतः इकट्ठा होता है। द्विवार्षिक पौधों की, उदाहरणार्थ, शलजम आदि की जड़ में भी पहली फसल के बाद वह जमा हुआ होता है। पोटाश, फास्फोरिक एसिड से अधिक मात्रा में पौधों में होता है। धान्य के दाने की अपेक्षा पत्ती में वह ज्यादा होता है। चारे में वह और ज्यादा मात्रा में होता है। सबसे अधिक मात्रा कंद-मूल जाति के पौधों में होती है। फास्फोरिक एसिड के मुताबिक यह भी पहली फसल के आखिर में जड़ में जमा होता है।

नाइट्रोजन आदि द्रव्य को पौधे जमीन में से खींचते हैं, इसके सिवा बारिश, वातावरण आदि से भी वे जमीन में से नष्ट हो सकते हैं। लेकिन वह कुल मिलाकर कितनी मात्रा में नष्ट होते हैं, यह कहना कठिन ही नहीं, करीब-करीब असंभव है।

निर्यात के बाद अब हम आयात देखें। आयात का पहला जरिया है बारिश। बारिश हर साल कितना नाइट्रोजन नीचे लाती है, इस बारे में, मुख्यतः जर्मनी में 17 प्रयोग किये गये। हरेक प्रयोग में पूरे साल की बारिश का पृथक्करण किया गया था और बारिश की औसत सवा बाईस इंच थी। उन प्रयोगों पर से दिखाई दिया कि हर इंग्लिश एकड़ को हर साल बारिश से पौने दस पौंड नाइट्रोजन मिलता है। राथमस्टेड में किए गये दो साल के प्रयोगों में यह प्रमाण साढ़े सात पौंड था।

बारिश के बाद दूसरा जरिया वातावरण है। बढ़ते हुए पौधे और स्वयं जमीन भी वातावरण में से ठीक-ठाक मात्रा में नाइट्रोजन लेती हो, यह संभव है। लेकिन इसके कोई आँकड़े प्राप्त नहीं हैं।

इसके सिवा धान की जमीन में खास तौर से और सब जमीनों में आम तौर से, बारिश के दिनों में उगने वाला खर-पतवार, और खाद के लिए खास उगायी गयी हरी फसलें, उदाहरणार्थ सन, पटुआ, ढेंचा आधि हरी दशा में ही जमीन में दबाकर नाइट्रोजन आदि द्रव्य प्राप्त किये जाते हैं। यह बात दुनिया के हर हिस्से के किसान जानते हैं। इस तरह से नाइट्रोजन आदि कितना मिलता होगा, इसके कोई आँकड़े प्राप्त नहीं हैं।

ऊपर उल्लिखित बातों पर से यह ध्यान में आयेगा कि खेत में से नाइट्रोजन आदि की होनेवाली आयात-निर्यात की मात्रा निश्चित रूप से बताना कठिन ही नहीं, बल्कि अशक्य-सी है। ऊपर के प्राकृतिक जरियों के सिवा सेन्द्रिय खाद-द्रव्य जमीन को देने के आदमी के पास के जरियों को अगले प्रकरण में देखेंगे।

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