चन्द्रकेशर बाँध लबालब तो खिले किसानों के चेहरे

chandrakeshar dam
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जलस्रोत अपने इलाके की तकदीर रचते हैं। यह बात एक बार फिर साबित हुई है। करीब पाँच साल बाद इस बार अच्छी बारिश से चन्द्रकेशर बाँध लबालब भर गया है। इससे आस-पास के गाँवों के करीब साढे तीन हजार से ज्यादा किसानों के चेहरे पर चमक आ गई है। बाँध में इतना पानी आ जाने से अब यह पक्का हो गया है कि यहाँ की जमीनें अब रबी की फसलों के रूप में सोना उगलेंगी। इस बाँध के आसपास से करीब 10 हजार एकड़ से ज्यादा जमीन में रबी फसलों के लिए सिंचाई की जाती है। साल दर साल कम होती बारिश और बाँध के केचमेंट क्षेत्र में बढ़ते अतिक्रमण की वजह से बाँध हर साल कम ही भर पाता है और किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पाता है।

मध्यप्रदेश के इन्दौर–बैतूल राष्ट्रीय राजमार्ग पर इन्दौर से करीब 90 कि.मी. और बिजवाड़ फाटे से करीब 10 कि.मी. दूर प्रकृति की सुरम्य वादियों में चन्द्रकेशर बाँध का नजारा देखते ही बनता है। सन 1976 में करीब 40 साल पहले मध्यप्रदेश सरकार ने क्षेत्र के किसानों को सिंचाई सुविधा उपलब्ध करने के लिए देवास जिले के काँटाफोड़ कस्बे के पास पहाड़ों से बह रही चन्द्रकेशर नदी को रोककर यहाँ बाँध बनाया था। शुरूआती सालों में ही बाँध ने इस इलाके की दशा और दिशा दोनों ही बदल डाली। काँटाफोड़ से करीब 4 कि.मी. की दूरी पर बने मध्यम आकार के इस बाँध ने बरसों से पानी नहीं होने से परेशान किसानों के माथे से चिन्ता की लकीरें मिटा दी। तब से अब तक यहाँ के किसानों ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा लेकिन इधर के बीते 15 सालों से अनियमित हो चुकी बारिश और केचमेंट क्षेत्र में बढ़ते अतिक्रमण और निर्माण की वजह से किसानों को इसका यथोचित लाभ नहीं मिल पा रहा था। किसानों ने बताया कि इस बार शुरुआत से ही इलाके में अच्छी बारिश हो रही है। इससे बीते पाँच सालों में बाँध पहली बार लबालब भर गया है। इससे इलाके के किसान काफी खुश नजर आ रहे हैं। उन्हें इस बात की ख़ुशी है कि बीते सालों की तरह उन्हें इस बार पानी की कमी से फसलें लेने में कोई दिक्कत नहीं होंगी।

जल संसाधन विभाग के आँकड़े बताते हैं कि चन्द्रकेशर बाँध की जल भराव क्षमता 30 मिलियन घन मीटर है। अब तक की गणना के मुताबिक वर्ष 2011 जुलाई में 23 फीट, 2012 जुलाई में 25 फीट, 2013 जुलाई में 21 फीट, 2014 जुलाई में मात्र 13 फीट और 2015 अगस्त में अब तक 31 फीट पानी बाँध में भर चुका है। विभाग के कर्मचारी बताते हैं कि बीते पाँच सालों में पहली बार सावन महीने में ही बाँध से ओवरफ्लो शुरू किया गया है। उन्होंने बताया कि बीते साल बहुत कम बारिश होने से बाँध का जल स्तर केवल 13 फीट तक ही सिमट गया था और सर्दी खत्म होते–होते बाँध सूखने लगा था। इस बाँध से करीब साढ़े तीन हजार किसानों के दस हजार एकड़ खेतों को रबी, चना–गेहूँ की फसल को पानी मिल पाता है। बाँध के लबालब भर जाने से बाँध पर पर्यटकों का जमावड़ा भी शुरू हो गया है। बाँध क्षेत्र के प्राकृतिक सौन्दर्य का लुत्फ उठाने के लिए बारिश के दिनों में यहाँ बड़ी संख्या में लोग यहाँ पहुँचते हैं। कई लोग तो परिवार सहित यहाँ तफरीह के लिए भी आते हैं। बीते साल बाँध पूरा नहीं भर पाने से पर्यटकों की तादाद पर भी इसका असर पडा था। सावन की रिमझिम फुहारों के बीच बाँध का सौन्दर्य देखते ही बनता है।

काँटाफोड के किसान कालूजी बताते हैं कि इस बार बारिश ज्यादा होने से सोयाबीन की फसल तो ठीक से हो नहीं सकी लेकिन बाँध भर जाने से अब रबी फसलों की उम्मीद बढ़ गई है। बीते साल बाँध में पानी कम होने से कई किसानों को बाँध से पानी नहीं मिल सका था पर इस बार अभी से पानी ओवरफ्लो होने लगा है तो आशा है कि सभी को पानी मिल सकेगा। वे बताते हैं कि उनके पुरखे सूखी जमीन में खेती करते थे और सारी जिन्दगी कर्ज के बोझ में डूबे रहे लेकिन 40 साल पहले जब से इस इलाके में बाँध बना है तब से इधर के किसानों की किस्मत को जैसे पंख ही लग गए। किसान अच्छी फसलें लेने लगे हैं। अब तो यह बाँध ही हमारी जीवन रेखा बन गया है।

इब्राहिम भाई बताते हैं कि चन्द्रकेशर बाँध की वजह से पूरे इलाके के कुएँ–ट्यूबवेल में पानी का स्तर बना रहता है। जिस साल बाँध में पर्याप्त पानी नहीं आता, उस साल कुएँ–बोरिंग भी जल्दी ही जवाब देने लगते हैं। बाँध से इलाके का जल स्तर बढ़ा हुआ रहता है। वे बताते हैं कि छोटे किसानों के पास जिनके अपने पानी के साधन नहीं है, उनके लिए तो बाँध का पानी बहुत बड़ा सहारा है। वे बताते हैं कि यह बाँध बहुत ही कम खर्च में बनाया गया था। सिर्फ बाँध की एक कि.मी. लम्बी दीवार बनाने पर ही सरकार को खर्च आया है, बाकी तीन तरफ तो पहले से ही पहाड़ियाँ मौजूद थीं।

बारिश के दिनों में यहाँ प्रकृति का सुरम्य वातावरण दिखाई देने लगता है। शहर की आपाधापी और कोलाहल से दूर ताज़ी हवा महसूस कर बाँध की अथाह जल राशि को निहारते हुए हमें असीम शान्ति का अहसास होता है। हाईवे से बिजवाड़ और वहाँ से काँटाफोड़ पहुँचकर सड़क से कुछ ही दूरी पर प्रकृत का सानिध्य प्रारम्भ हो जाता है। सागवान के घने बड़े–बड़े पेड़ और चारों ओर बिछी हरियाली की कालीन स्वागत करती सी नजर आती है। पश्चिम की ओर करीब 2 कि.मी. पहले से ही बाँध की सीमा शुरू हो जाती है। यहीं स्थित नवोदय विद्यालय की बड़ी-बड़ी इमारतें, बड़ा सा खेल मैदान और यहाँ-वहाँ पढ़ते बच्चे हमें प्राचीनकाल के गुरुकुलों की याद ताजा करा देता है। इससे आगे बढ़ते ही बाँध की नहर का किनारा शुरू हो जाता है। इसी के किनारे–किनारे हम चन्द्रकेशर बाँध की दीवार तक पहुँच जाते हैं। हमारी गाड़ी घुमावदार रास्ते से जैसे ही बाँध की दीवार पर पहुँचती है तो मन मयूर नाच उठता है।

सचमुच उस आकर्षक नजारे को आँखों में बसा लेने की इच्छा होती है। करीब एक कि.मी. लम्बी भव्य दीवार, दूर–दूर तक ठाठे मारता नीला पानी, आस-पास लम्बे–लम्बे नीलगिरी, बाँस घने गुलमोहर, सागवान के पेड़ और दूर क्षितिज में नजर आती हरी–भरी पहाड़ियाँ। पानी से उठती हिलोरें मन को बहुत भाती हैं। बाँध तीन ओर से विंध्याचल पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा है। बाँध का विहंगम दृश्य बहुत ही मनोरम लगता है। बाँध की दीवार के आखिर में 100 मीटर लम्बी सीमेंट की दीवार बनाई गई है जिससे पानी ओवरफ्लो होता है। यह बाँध की बड़ी दीवार से करीब 5 मीटर नीचे है। शाम को यहाँ का नजारा सुनहरी हो जाता है। सूरज की किरणें यहाँ की अपार जल राशि को सोने की तरह चमचमाती हैं तो ऐसा लगता है कि सूर्यास्त से पहले सूरज अपना सारा सोना इसी बाँध में छुपाकर जा रहा है।
 

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