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चंडीप्रसाद भट्ट

कुमार सिद्धार्थ

उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोक चेतना जागृत करने वाले पर्यावरणविद श्री चंडीप्रसाद भट्ट ने अपना सर्वस्व जीवन पर्यावरण को समर्पित कर दिया। 76 वर्षीय श्री भट्ट ने पर्यावरण संरक्षण में महिलाओं की अहम भागीदारी सुनिश्चित की। 1964 में गोपेश्वर में दशौली ग्राम स्वराज्य संघ की स्थापना कर स्थानीय समुदाय को पेड़ों की रक्षा के लिए अभिप्रेरित किया तथा सैकड़ों पेड़ों को कटने से बचाया। महिलाओं और युवाओं ने पेड़ों से ‘चिपक’ कर रक्षा की।

श्री भट्ट 1956 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण से प्रेरित होकर सर्वोदय आंदोलन एवं गांधी विचार के प्रसार में जुड़ गए। भूदान-ग्रामदान आंदोलन के माध्यम से गांवों का आर्थिक विकास तथा शराबबंदी के लिए काम करना शुरु किया। 1960 में उन्होंने गढ़वाल मोटर ओनर यूनियन की नौकरी छोड़कर पूर्णकालिक कार्यकर्ता की हैसियत से सर्वोदय आंदोलन की गतिविधियों में संलग्न हो गए। ‘इको डेवलपमेंट’ शिविरों के माध्यम से गांव-गांव में ग्रामीणों को प्राकृतिक संतुलन का पाठ पढ़ाया तथा 1917 में बनी वन नीति पर पुनर्विचार करने हेतु मजबूर किया।

सन् 2003 में भारत सरकार ने उन्हें ‘नेशनल फॉरेस्ट कमीशन’ का मानद सदस्य मनोनीत किया तथा 2005 में वन नीति तथा वन प्रबंधन संबंधी एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। 1982 में उन्हें दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित रेमन मेगसेसे अवार्ड से सम्मानित किया गया। 1983 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री अलंकरण से नवाजा गया। सन् 2005 में सरकार ने उन्हें पद्मविभूषण से अलंकृत किया गया। सन् 2008 में गोविन्द वल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर द्वारा ‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ की मानद उपाधि प्रदान की।

श्री भट्ट हिमालय एवं हिमालयों के ग्लेशियरों के पिघलने और नदियों पर आ रहे संकट को लेकर लगातार सक्रिय रहे हैं। देश के लब्ध प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में पर्यावरण लोक चेतना जगाने हेतु उनके सैकड़ों आलेखों का प्रकाशन होता रहा है।









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