छत्तीसगढ़ के सवा लाख स्कूली बच्चों को पानी और स्वच्छता की कमी

30 Sep 2015
0 mins read
sanitation
sanitation

स्वच्छता दिवस, 02 अक्टूबर 2015 पर विशेष

 

तीन लाख से ज्‍यादा बेटियों के लिये नहीं है शौचालय


. शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के पाँच साल बाद भी छत्तीसगढ़ के प्राइमरी, मिडिल, हाई एवं हायर सेकेंडरी स्कूलों में विद्यार्थियों को बुनियादी सुविधाओं के अभाव में पढ़ाई करनी पड़ रही है। छत्तीसगढ़ के करीब 1700 सरकारी स्कूलों में पीने के पानी का कोई इन्तज़ाम नहीं है। इसलिये पहली से बारहवीं तक पढ़ने वाले सवा लाख बच्चे पीने के पानी के लिये तरस रहे हैं।

वहीं प्रदेश के 4 हजार 347 स्कूलों में 2 लाख 88 हजार 301 बालिकाओं के लिये अभी शौचालय नहीं बन पाया है। शौचालय के अभाव में स्कूल जाने वाली बालिकाएँ लगातार शर्मसार हो रही हैं। इनमें रायपुर के 73 स्कूल शामिल हैं। बालिकाओं की तरह ही 12 हजार 893 स्कूलों में तो बालकों के लिये भी शौचालय नहीं है।

छत्तीसगढ़ के पहली से बारहवीं तक पढ़ने वाले सवा लाख बच्चे पीने के पानी के लिये तरस रहे हैं। बच्चियों के स्कूल नहीं जाने के पीछे पेयजल संकट बड़ी वजह है। बावजूद इसके सरकार 56857 लड़कियों के लिये स्कूल में पानी नहीं पहुँचा सकी है। इनके साथ ही 4850 शिक्षक भी पानी को तरस रहे हैं।

खास बात है कि आदिवासी अंचलों के स्कूलों की हालत तो खस्ता है ही, लेकिन इस संकट से शहरी इलाकों की पाठशालाएँ भी अछूती नहीं हैं। कुओं के भरोसे स्कूल आदिवासी अंचलों में एक हजार 10 स्कूल कुओं के भरोसे हैं। इसके अलावा, पूरे प्रदेश में 1982 स्कूल पानी के परम्परागत स्रोतों पर निर्भर हैं। कई जगह टंकियाँ भरी जाती हैं।

लाखों बच्चों को शुद्ध पेयजल नसीब नहीं होता है। इसके चलते गन्दा पानी पीकर बच्चे गम्भीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। यहाँ संकट कम राजधानी रायपुर के 9 स्कूलों के 381 लड़कियों सहित 784 बच्चों के पास पानी नहीं है।

प्रदेश के चन्द जिलों में ही ज्यादातर स्कूल पेयजल संकट से उभर गए हैं। इनमें जांजगीर चांपा के 2, बालोद के 8, महासमुंद के 10, दुर्ग के 12 और गरियाबंद के 14 स्कूलों में ही पीने का पानी नहीं पहुँचा है। सबसे ज्यादा बीजापुर के 275 और बस्तर के 195 स्कूलों को पानी की दरकार है। वहीं, कोरबा और रायगढ़ जिलों के स्कूलों के आँकड़े रिपोर्ट में दर्ज नहीं हैं। इसलिये ज्यादा मुसीबत 'पत्रिका' से बातचीत में पेयजल की समस्या से जूझ रहे स्कूलों के कुछ शिक्षकों ने बताया कि दोपहर का भोजन बनाना मुश्किल हो जाता है।

पानी नहीं रहने से शौचालय का इस्तेमाल भी नहीं हो पाता है। पानी के अभाव में स्कूलों की साफ-सफाई नहीं होती। लड़कियों के स्कूल से दूरी की एक बड़ी वजह पानी और शौचालयों की कमी माना गया है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बावजूद राज्य सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है।

इसके पहले एनएचएफएस सर्वे में बताया गया है कि ग्रामीण इलाकों के 6-17 साल आयु तक की करीब 40 प्रतिशत लड़कियाँ स्कूल नहीं जाती हैं। कई जगह छोटे बच्चों को घर से ही पानी ढोना पड़ता है। तेज गर्मी और बारिश के दिनों में बाहर नहीं जाने के चलते कई बार उन्हें प्यासा ही बैठना पड़ता है। रिपोर्ट दिखाकर प्लॉन बनाएँगे स्कूली शिक्षा मंत्री केदार कश्यप ने कहा कि रिपोर्ट देखकर प्लॉन बना सकते हैं।

ज्यादातर स्कूलों में हैण्डपम्प और नलकूप लगाए गए हैं। जिन स्कूलों में पानी नहीं हैं, वहाँ पानी की व्यवस्था करनी है। शिक्षाविद बीकेएस रे कहा कि स्कूलों में पानी जैसी मूलभूत सुविधाएँ देने में गम्भीर चूक हो रही है, लेकिन सरकार चूक से सबक लेने को तैयार नहीं। पानी बिना शौचालय बनना सम्भव नहीं। स्वच्छता मिशन फेल हो जाएगा।

पिछले सालों से हम लगातार बालिकाओं के पेयजल और शौचालय के लिये काम कर रहे हैं। पिछले सालों की अपेक्षा अब हालत बहुत सुधर चुकी है। डाइस के नए आँकड़ों को अभी तक मैंने नहीं देखा इसलिये अभी कुछ नहीं कह सकता हूँ... सुब्रत साहू, सचिव, स्कूल शिक्षा

 

 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading