दाई के तालाब

28 Jul 2014
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Pond
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कुछ समय पहले तक दरभंगा एक समृद्ध राज्य था। वहां के राजा बड़े लोकप्रिय थे। राज्य में लोग सुख-शांति से जीवन बिताते थे। कई बड़ी नदियां राज्य से होकर बहती थीं। इसके बावजूद दरभंगा में कई बार गर्मियों में पानी की थोड़ी कमी होने लगती थी। इसे छोड़ कर वहां के लोगों को कोई विशेष कष्ट नहीं था। जो मेहनत मजदूरी करते थे, उन्हें भर-पेट भोजन मिल जाता था और राज्य में काम और व्यापार फल-फूल रहा था।

राजा का एक विशेष सलाहकार था जो उन्हें समय-समय पर अच्छी सलाह देता था और राज-काज को सुचारू रूप से चलाने में सहायता करता था। लेकिन वह व्यक्ति राजा के कोई भी वेतन नहीं लेता था। यहां तक कि वह अपनी छोटी सी झोंपड़ी से महल तक भी पैदल चल कर जाता था। राजा से विचार-विमर्श के बाद वैसे ही पैदल घर आ जाता था। उसने कभी भी राजा से या किसी अन्य व्यक्ति से कुछ नहीं मांगा और न ही किसी प्रकार की कोई याचना की। इसी कारण लोग उसे अयाची पंडित के नाम से पुकारने लगे थे। अयाची यानि जो कोई भी याचना या मांग न करे।

अयाची पंडित का यश काफी फैल गया और एक दिन उनका ब्याह भी हो गया। लोगों ने सोचा कि अब तो पंडित को राजा से कुछ न कुछ लेना ही पड़ेगा। परंतु ऐसा नहीं हुआ। अयाची पहले की ही भांति अयाची रहे। उन्होंने न तो राजा से और न ही लोगों से कुछ लिया। उनका जीवन शिक्षण-प्रशिक्षण में ही बीत रहा था। कुछ समय बाद उनके यहां संतान के आने की घड़ी आई। उन्होंने पास के गांव से एक दाई को बुलवा भेजा। अयाची के यहां बेटा हुआ। जब दाई यह समाचार सुनाने अयाची के पास पहुंची और अपना मेहनताना मांगा तो पंडित ने अपने झोले में हाथ डाला। झोल में कुछ न पा कर उन्होंने दाई को पास बुला कर उसके कान में कुछ कहा। दाई खुश होकर वहां से चली गई।

कहा जाता है कि अयाची पंडित मिथिलांचल यानि आधुनिक उत्तरी बिहार के प्रसिद्ध विद्वान थे। माना जाता है कि उनके पुत्र शंकर ने अपनी सूझ-बूझ से बड़ी ख्याति प्राप्त कर ली थी। इस अंचल में कई तालाब बने हुए थे ताकि लोगों को पूरे वर्ष पानी मिलता रहे।गृहस्थी बढ़ने के बाद भी अयाची ने किसी से कुछ न मांगा। वे पहले की ही भांति राजा के पास जाते और कार्य संपन्न होते ही लौट आते।

एक बार वे किसी काम से कहीं बाहर गए हुए थे कि राजा के यहां से बुलावा आया। जब सिपाही ने अयाची के घर का द्वार खटखटाया तो उनके बेटे ने द्वार खोला। वह कोई पांच-छः वर्ष का रहा होगा। सिपाही ने उससे अयाची पंडित के बारे में पूछा। उसने कहा कि वे घर पर नहीं हैं। सिपाही ने जानना चाहा कि अयाची कब लौटेंगे। उत्तर में उनके पुत्र ने कहा कि वह नहीं जानता कि उसके पिता कब लौटेंगे। और फिर उसने सिपाही से प्रश्न किया कि किस कार्य के लिए राजा ने अयाची पंडित को बुलवा भेजा था। सिपाही का उत्तर था कि काम उससे नहीं उसके पिता से था।

सिपाही ने जा कर राजा को सूचना दी कि अयाची पंडित घर पर नहीं थे। राजा ने उसे फिर से जा कर यह पता लगाने के लिए कहा कि अयाची गए कहां हैं?

सिपाही पुनः अयाची के घर पहुंचा। पुनः उसी बालक से बात हुई और पुनः उस छोटे से बालक ने पूछा कि आखिर काम क्या था? बालक सिपाही से बोला कि वह राजा से कहे कि अयाची पंडित का पुत्र पूछ रहा था कि किस कार्य के लिए राजा उसके पिता को बुला रहे थे?

सिपाही ने डरते-डरते राजा से यह बात कही। राजा ने पूछा कि अयाची का पुत्र कितना बड़ा है तो सिपाही ने हाथ के इशारे से दिखलाया कि कोई पांच-छः वर्ष का होगा। राजा थोड़ा असमंजस में पड़ गए पर फिर उन्होंने सिपाही से उस बालक को दरबार में लाने को कहा। सिपाही फिर अयाची पंडित के घर गया और बालक को अपने साथ दरबार में लेकर आ गया।

दरबार में राजा के पूछने पर उस बालक ने अपना नाम बताया और यह भी कि वह पांच वर्ष का था। उसने संस्कृत में राजा को यह भी बताया कि वे उसे नन्हा बालक न समझें, उसे तीनों लोकों का ज्ञान है। राजा उसका आत्मविश्वास देख कर खुश हुए। पर भरे दरबार में इस छोटे बालक से अपनी समस्या वे कैसे कहते, वे उसे महल के भीतर ले गए और उसके सामने अपनी समस्या रखी। बालक ने ध्यानपूर्वक सुना और फिर अपनी समझ के अनुसार हल बतलाया। राजा चौंक उठे। इतने नन्हें से बालक ने उनकी समस्या का समाधान खोज निकाला था! उन्होंने बालक के अंगवस्त्र को, उस अंगोछे को जिसे उस बालक ने ओढ़ रखा था, सोने के आभूषणों और मोहरों से भर दिया।

जब एक दिन बाढ़ अयाची पंडित घर लौटे तो उनकी पत्नी ने इस घटना के बारे में बताते हुए उन्हें सोने का वह ढेर दिखाया। पत्नी ने उनसे कहा कि स्वयं पंडित तो कभी भी राज दरबार से कुछ कमा कर नहीं लाये परंतु उनके पुत्र ने इतनी कच्ची आयु में ही अपनी पहली कमाई कर ली थी। इतना सुनते ही पंडित ने उस दाई को बुलवा भेजा जिसे उनके पुत्र के जन्म के समय भी बुलवाया गया था। दाई जब आई तो अयाची ने उसे सोने के आभूषणों और मोहरों से भरा वह अंगोछा दिखाया और कहा कि वह पूरे का पूरा उसका था, क्योंकि वह उसके पुत्र की पहली कमाई थी। दाई को याद आया कि अयाची पंडित ने उसके कान में कहा था कि काम के लिए उनके पुत्र की पहली कमाई दाई को दी जाएगी।

इतना धन देखकर दाई के तो मानो होश ही उड़ गए। कुछ देर बाद संभल कर दाई ने अयाची पंडित से कहा कि वह सारा धन राजकोष से आया था, इस कारण उस पर राज्य को लोगों का भी अधिकार था। और फिर उसने धन का ऐसा उपयोग करने की सोची जिससे सभी लोगों को उसका लाभ मिल पाए।

अगले कुछ समय में दरभंगा के उस क्षेत्र में लगभग 63 तालाबों का निर्माण हुआ जिनसे वहां के निवासियों को बहुत लाभ हुआ। वे सारे तालाब आज भी दाई के तालाब के नाम से जाने जाते हैं!

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