देश को चाहिए स्वास्थ्य का अधिकार

9 Nov 2010
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हाल ही में राजस्थान में डिप्थीरिया (गलघोंटू) के कारण 50 दिनों में 29 बच्चों की मौत हो गई।
असमय काल का ग्रास बने ये बच्चे, सिर्फ राजस्थान में ही नहीं हैं, भारत बीमार हो चुका है। हर आयु, हर वर्ग का व्यक्ति पीड़ित नजर आ रहा है। स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, चिकित्सकों की अवहेलनाओं या कहें असंवेदनशीलता के चलते आम लोग संकट में हैं। उत्तर प्रदेश में डेंगू का कहर व्याप्त है। डेंगू और दूसरे रहस्यमय बुखार से पिछले दो महीने में 10 हजार से ज्यादा लोग मर चुके हैं। मलेरिया से होने वाली मौतों के ताजा आंकड़े चिंताजनक हैं। सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान था कि भारत में हर साल करीब पंद्रह हजार लोग इस बीमारी की वजह से मारे जाते हैं। लेकिन चिकित्सा विज्ञान की पत्रिका 'लांसेट' की रिपोर्ट के अनुसार भारत में मलेरिया से मरने वालों की वास्तविक संख्या दो लाख वार्षिक है। यह बात अलग है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन आंकड़ों को अतिरंजित करार दिया है, पर इसमें कोई दो राय नहीं है कि आर्थिक उन्नति की राह में बढ़ता भारत अस्वस्थ है।

अस्वस्थता का कारण सिर्फ दूरदराज के ग्रामीण इलाकों में चिकित्सा सुविधा का अभाव होना ही नहीं है बल्कि जागरूकता की कमी और साफ-सफाई न होना भी है। काला जार, खसरा, हैजा, तपेदिक, हेपेटाइटिस आदि वे रोग हैं जो न जाने कितने लोगों को हर साल अपना शिकार बनाते हैं। इनमें से ज्यादातार बीमारियां पीने के साफ पानी की अनुपलब्धता साफ-सफाई की अनदेखी और प्रतिरोधक टीके समय पर न लगाये जा सकने की वजह से होती है। हर साल करोड़ों का बजट, स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है, परन्तु स्थिति में कहीं भी सुधार नहीं दिखता है। पिछले वर्ष केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने भी यह स्वीकार किया था कि देश के अधिकतर भागों में एक चौथाई से अधिक बच्चों को प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और जलजनित बीमारियों की रोकथाम के टीके समय पर नहीं लगाए जाते।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के मुताबिक बच्चों को टीका लगाने के सम्बंध में कोई सकारात्मक विकास नजर नहीं आ रहा है। आज भी मात्र 43.5 प्रतिशत बच्चों को ही सारे टीके लग पाते हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् के अध्ययन ने इस तथ्य को उद्घाटित किया है कि देश में 39 प्रतिशत नवजात शिशुओं की मृत्यु जन्म के पहले ही दिन हो जाती है। अर्थात् 3.57 लाख शिशु जन्म के पहले ही दिन अकाल मृत्यु का ग्रास बन जाते हैं।

देश के जनसंख्या महापंजीयक की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार प्रसवपूर्व स्थिति (71 प्रतिशत), श्वास सम्बंधी संक्रमण, परजीवी रोग और डायरिया, आदि वे कारण हैं जिनके परिणामस्वरूप शिशु मृत्यु का शिकार होते हैं। 'द स्टेट ऑफ एशिया पैसेफिक्स चिल्ड्रेन' के द्वारा दक्षिण एशियाई एवं एशिया-प्रशांत के बच्चों तथा माताओं की स्वास्थ्य समस्याओं और प्रवृत्तियों का गहन सर्वेक्षण एवं अध्ययन किया गया तथा बाल स्वास्थ्य के क्षेत्र में दक्षिण एशियाई देशों विशेषकर भारत की स्थिति पर निराशा व्यक्त की गई। भारत अभी भी बाल मृत्युदर कम करने के लिए निर्धारित किए गए विभिन्न सहस्राब्दि स्वास्थ्य लक्ष्यों, एमडीजी-1 (पोषण व आहार के स्तर को सुधारने के लिए तय किया गया लक्ष्य), एमडीजी-5 (माताओं के स्वास्थ्य स्तर को उठाने के लिए निर्धारित लक्ष्य) को प्राप्त करने में कर्इ विकासशील देशों, यहां तक कि श्रीलंका जैसे देश से भी पीछे है।

आर्थिक प्रगति के बल पर आगामी वर्षों में विकसित देशों की कतार में शामिल होने को व्यग्र भारत का विकास तब तक अधूरा की कहलाएगा जब तक यहां का हर नागरिक स्वस्थ न हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 'स्वास्थ्य' का अर्थ मात्र रोगों का निदान नहीं बल्कि शारीरिक और मानसिक तंदुरुस्ती की सकारात्मक अवस्था है। विश्व जनसंख्या में 16.5 प्रतिशत भागीदारी निभाने वाला भारत विश्व की बीमारियों में 20 प्रतिशत का योगदान देता हैं। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन को लागू हुए चार साल हो गए लेकिन अभी तक एक लाख आबादी के लिए स्थापित सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में 50 से 60 प्रतिशत विशेषज्ञों के पद रिक्त हैं। स्वस्थ भारत की राह में इन अवरोधों को दूर करना अतिआवश्यक है।

इस दिशा में असम की पहल दूसरे राज्यों के लिए मिसाल हो सकती है। असम सरकार ने राज्य के लोगों को स्वास्थ्य का अधिकार देने का फैसला किया है। इस संबंध मे एक विधेयक विधानसभा में 11 मार्च, 2010 को पेश किया गया। अगर यह विधेयक कानून का रूप ले लेता है तो हर सरकारी और निजी अस्पताल को गंभीर रूप से बीमार लोगों को आरंभिक चौबीस घण्टों तक मुफ्त आपातकालीन चिकित्सा उपलब्ध कराना अनिवार्य होगा। इस कानून के दायरे में सिर्फ अस्पताल और डॉक्टर नहीं, बल्कि वे तमाम गतिविधियां आ जाएंगी, जिनसे लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की हालत में सुधार के लिए केन्द्र द्वारा पूर्व में किए गए प्रयासों का कोई सार्थक परिणाम नहीं मिला है। ऐसी स्थिति में देश में सभी को स्वस्थ जीवन मिल सके इस दिशा में समुचित ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
 
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