देश को कूड़ाघर बनाने के खिलाफ


पिछले ही साल केन्द्र सरकार की डम्पिंग नीति के खिलाफ एक गैर सरकारी संगठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए देश की शिखर अदालत ने सरकार को जमकर डाँट लगाई थी। कोर्ट ने कहा था जनता की सेहत को दरकिनारकर पैसा कमाने की नीति किसी भी सूरत में सही नहीं है। सरकार की नीति के खिलाफ याचिका दायर करने वाले वकील संजय पारेख ने आरोप लगाया था कि केन्द्रीय शासन ने भारत में खतरनाक कूड़े को डम्प करने की इजाजत दी है, जिसका प्रतिकूल असर आम जनता की सेहत पर पड़ रहा है। पारेख का आरोप यह भी था कि इस मामले में सभी नियमों को ताक पर रखा गया है।

कूड़ागौरतलब है कि वर्तमान सरकार ने सत्ता सम्भालते ही देश में स्वच्छता अभियान की शुरुआत की थी। इसी बात से अन्दाजा लगाया जा सकता है कि कूड़ा-कचरा और गन्दगी इस देश की कितनी बड़ी समस्या है। एक तरफ हम गन्दगी की समस्या से जूझ रहे हैं और दूसरी तरफ सरकार अपने ही देश को कूड़ाघर बनाकर पैसा कमा रही है। स्वच्छता का अभाव हमारी बड़ी आबादी के लिये अनगिनत बीमारियों का सबब बन रहा है।

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक 2014 तक भारत के निगम प्राधिकरणों ने केवल 13 ऐसे संयंत्र स्थापित किये हैं जहाँ कूड़े का शोधन करके ऊर्जा तैयार की जाती है। 56 संयंत्र ऐसे हैं जहाँ शोधन के बाद बायोमीथेन गैस पैदा की जाती है और करीब 550 कम्पोस्ट संयंत्रों की स्थापना की गई है। लेकिन जिस तरीके और गति से देश में कूड़े-कचरे का अम्बार बढ़ रहा है और उसका निस्तारण दूभर होता जा रहा है उसे देखते हुए हर तरफ के अधिकाधिक संयंत्रों की आवश्यकता है। नीति आयोग के मुताबिक ऐसा ठोस कूड़ा-कचरा जिसका किसी भी रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाता उसके अन्दर 439 मेगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता होती है।

दरअसल सबसे बड़ी समस्या है हर तरह के कचरे को एक साथ डम्प करने की। इसी वजह से ज्यादा से ज्यादा जगह की जरूरत भी बढ़ रही है और साल-दर-साल जगह कम भी पड़ रही है। हम जैविक कचरा, जहरीला कचरा और पुनः चक्रित करने योग्य कचरे को एक ही साथ डम्प करते हैं। और यही सबसे बड़ी समस्या है। यदि कचरे के स्रोत पर ही उसका पृथक्करण कर दिया जाये तो कचरे को प्रभावी रूप से प्रबन्धित किया जा सकता है। इससे न केवल काम करना आसान होगा बल्कि उसमें तेजी आएगी और जिस रफ्तार से कूड़े को डम्प करने के लिये जगह की जरूरत पड़ रही है उसमें कमी आएगी।

लेकिन इसके लिये जरूरी है कि ढाँचागत स्तर पर विकास किया जाये। यानी अलग-अलग कचरे को अलग डालने के लिये स्थान या पात्र बनाने पड़ेंगे और साथ ही लोगों को जागरूक करना होगा कि वे अपने स्तर पर ही कूड़ा-करकट में बँटवारा करें। इसके बाद सफाई व्यवस्था से जुड़े लोगों को चुस्त और चाक-चौबंद करना होगा। यही नहीं शोधन संयंत्रों की संख्या बढ़ाना जरूरी है। इसके साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि वे संयंत्र अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करें।

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