दिल्ली और इसके आसपास की घाटी में वर्षा जल संचयन (भाग - दो)

दिल्ली और इसके आसपास स्थित यमुना घाटी के नगरों को जल संभरण के लिए वर्षा जल संचयन की संभावनाओं पर विचार करते हुए हमें दिल्ली की राजनीतिक सीमाओं तक सीमित नहीं रहना चाहिए। दिल्ली की सीमा से बाहर के नदी-नालों में आए बाढ़ के पानी का उपयोग करने की बात करते समय यह बात विशेष रूप से लागू होती है।

ए. दिल्ली क्षेत्र के अंदर बाढ़ के भूमिस्तर पर पांच जलाशयों का निर्माण करना

इनमें से चार काफी बड़े हो सकते हैं और एक - अभी वर्तमान एक छोटी झील का विस्तार कर बनाया जाएगा। इसके अतिरिक्त इस प्राचीन नगर के सभी पुराने तालाबों, झीलों और हौजों को साफ वर्षा जल से भरने का प्रयत्न जरूरी है। ये जलाशय उन क्षेत्रों में बनाए जाने चाहिए, जहां बरसात में आमतौर पर पानी खड़ा हो जाता है। इन जलाशयों के निर्माण के लिए निम्न स्थल सुझाए जाते हैं:

(अ) दो जलाशय वजीराबाद बैराज से ऊपर नदी के किसी भी किनारे पर जिसका निदर्शन संलग्नक 1 में दिखाए गए क्षेत्र के नक्शे में किया गया है। जलाशय के स्थान से काफी मिट्टी बाउंड्री तक ले जानी पड़ेगी, जिससे वहां रिकार्ड किये गए सबसे ऊंचे बाढ़ जलस्तर से भी ऊंचा बांध तैयार हो जाए। जलाशय के नदी की ओर वाले किनारे को रोड़ी पत्थर से पक्का करना पड़ सकता है। इन प्रस्तावित जलाशयों के किनारे दो सड़कें बनी हुई हों, जो नदी किनारे से दूर जलाशयों की सीमा का काम दे सकती हैं। इन सड़कों को पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बांध की पूरी लम्बाई तक बढ़ाया जा सकता है। जलाशयों में पानी की औसत गहराई शुष्क मौसम में नदी जलस्तर से कम से कम चार मीटर और अधिक से अधिक 7 से 8 मीटर नीची होनी चाहिए, इस प्रकार बाढ़ के समय पानी की औसत गहराई पांच मीटर होगी या कहें शुष्क मौसम के जलस्तर से एक मीटर ऊंचा। इन दोनों जलाशयों में संचित पानी की प्रमात्रा लगभग 39 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) होगी।

इन जलाशयों की खुदाई में एक समस्या यह आ सकती है कि बड़ी मात्रा में रेत को खोदना पड़ सकता है और नदी के साथ-साथ बनाये जाने वाले बांध की नींव उस स्तर से भी नीचे बनानी पड़ेगी, जहां तक रेत की सतहें मौजूद हैं। बांध के इस भाग के निर्माण में कंक्रीट की रीइर्न्फोसमेंट करने की आवश्यकता पड़ सकती है; जिसका अर्थ है कि लागत मूल्य में वृद्धि। परंतु लंबी अवधि में इसका बहुत लाभ होगा। खोदी गई रेत को बेचा जा सकता है, जिससे लागत मूल्य में कमी आएगी। शुष्क मौसम के आठ महीनों में नदी की ओर पहले निर्माण कार्य आरंभ करना चाहिए जो मानसून के बाद जारी रहे।

(ब) पुरानी हार्स शू (घोड़े के नाल) लेक को पुनरूज्जीवित किया जाय और इसका क्षेत्रफल और गहराई बढ़ाकर इसकी क्षमता को बढ़ाया जाए। इस जलाशय में बाद में मानसून से या तो नदी से एक जलधारा लाकर या फिर पश्चिमी यमुना नहर से भरा जा सकता है। इसका क्षेत्रफल, जैसा कि संलग्नक 1 में दर्शाया गया है, बढ़ाया जा सकता है। इस प्रकार इसकी शुद्धजल संचयन क्षमता 6 एमसीएम होगी।

(स) चौथा जलाशय; कालिन्दी कुंज से नीचे यमुना के दाहिने किनारे पर बैराज के दक्षिण में बनाया जा सकता है जैसा कि संलग्नक 1 में बताया गया है। प्रस्तावित जलाशय क्षेत्र पर से एक सड़क गुजरती है, लेकिन एक पुलिया भी है, जो नदी किनारे के संकरे हिस्से को बदरपुर पावर प्लांट तक चली गई वर्तमान सड़क के पश्चिम पाले वृहत्तर क्षेत्र से जोड़ देगी। जलाशय क्षेत्र के उत्खनन और बाँध बनाने का कार्य पूर्वोत्तर सब पैरा (1) के अनुसार किया जा सकता है, जिससे नदी की ओर बांध पर पत्थर से रीइर्न्फोसमेंट किया जाएगा और गहराई यहां भी शुष्क मौसम के नदी जलस्तर से चार मीटर नीचे होगी; जिससे औसत संचयन कुण्ड लगभग पांच मीटर हो जाएगा। क्योंकि बाढ़ के समय जलाशय भर जाएगा। इस जलाशय की संचयन क्षमता लगभग 50 एमसीएम अनुमानित है।

(द) नाला मुण्डेला में शुद्ध जल का बाढ़ के मौसम का पांचवा जलाशय- यह नजफगढ़ के दक्षिण पश्चिम में जिसे नाला मुण्डेला कहते हैं, बनाया जा सकता है। यह नाला जो लगभग दस किमी. लम्बा है। कभी साहिबी नदी (नाला नजफगढ़) की सहायक नदी था और मानसून में तीन मास तक निरंतर भरा रहता था। तब इस पर अस्थाई बांध बनाए जाते थे, जिससे बाढ़ का पानी खरीफ़ की फ़सल को नुकसान न पहुंचा सके। यह क्षेत्र अब बढ़ाया और गहरा किया जा सकता है और संलग्नक 1 में दर्शाए अनुसार यहां जलाशय का निर्माण किया जा सकता है। इसकी औसत चौड़ाई लगभग एक किलोमीटर होगी। हमारा सुझाव है, जलाशय का निर्माण पूर्वोक्त पैरा (1) के अनुसार किया जाए। वर्तमान में नाले को काटती हुई जा रही दो सड़कों के लिए पुल बनाए जा सकते हैं या उन्हें जलाशय का चक्कर लगाकर जाने के लिए मोड़ा जा सकता है। इस जलाशय की भी औसत गहराई पाँच मीटर होगी और मानसून में पश्चिमी यमुना नहर की अंतिम वितरण शाखा के मार्ग से आए अतिरिक्त पानी से भर जाएगा। बाढ़ के मौसम का दिल्ली के हिस्से का पानी का कुछ भाग इस जलाशय को भरने के लिए इस नहर के माध्यम से वाया दूलहरा जल वितरण शाखा या सुर्खपुर माइनर आने दिया जाए- इस आशय का एक अनुबंध हरियाणा राज्य सरकार से किया जाना चाहिए, इस जलाशय की संचयन क्षमता लगभग 52 एमसीएम होगी।

(बी) राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में दो जलाशयों का निर्माणः

इनका लागत मूल्य और प्रतिफल यानी पानी दिल्ली और दुसरे संबंधित राज्य आपस में बांट सकते हैं। इनका विस्तृत वर्णन इस प्रकार हैः

(अ) हिंडोन नदी चैनल पर गंगा का एक पुराना चौड़ा तल मौजूद है; जिसका विस्तार वजीराबाद के उत्तर-पूर्व में पंद्रह किलोमीटर दूर के एक बिंदू से उत्तर की ओर 28 किलोमीटर तक है। नदी के इस विस्तृत तल को औसत दो किलोमीटर तक चौड़ा किया जा सकता है और गहराई पांच मीटर तक की जा सकती है। गंगा की बाढ़ का पानी गंगा नहर या पूर्वी यमुना नहर द्वारा यमुना के पानी तक यहां आसानी से लाया जा सकता है। इसे उस बैराज के ऊपर की ओर संचित किया जा सकता है, जो हिंडोन स्थित गंगा के उपरोक्त पुराने ताल के दक्षिणांत पर बनाया गया था। इस जलाशय का निर्माण भी उपरोक्त पैरा 2 ए (1) में उल्लिखित प्रविधि से ही किया जाए। इसकी क्षमता 280 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) अनुमानित है, जिसमें दिल्ली उत्तर प्रदेश के साथ हिस्सेदारी कर सकती है। इस प्रकार दिल्ली के हिस्से 150 एमसीएम पानी आएगा।

(ब) नजफगढ़ झील : जिसका क्षेत्रफल लगभग 220 वर्ग किलोमीटर होता था, साहिबी नजफगढ़ नाले के उपरले विस्तार पर स्थित थी। आज इस स्थान पर मानसून में लगभग छ: वर्ग किलोमीटर की झील बन जाती है। अंग्रेजों ने पुरानी झील के पानी को निकल जाने दिया; जमीन निकल आने पर इस क्षेत्र पर किसानों ने खेती करनी शुरू कर दी। इस झील का 40 एमसीएम पानी संचित करने में सक्षम छोटी झील के रूप में अभी भी पुनरूज्जीवित किया जा सकता है। इस पानी को दिल्ली और गुड़गांव की आवश्यकता पूर्ति के लिए दिल्ली और हरियाणा में बांटा जा सकता है।

इस प्रकार बाढ़ का पानी रोकने से लगभग 317 एमसीएम पानी संचित होगा। यह मात्रा टिहरी डैम से दिल्ली को प्राप्त होने वाले पानी से लगभग दोगुनी है। टिहरी डैम की इस उद्देश्य से ऊंचाई भी बढ़ानी पड़ी है। इस डैम के जलाशय में अतिरिक्त पानी भरने के लिए न केवल अनगिनत लोगों को विस्थापन का दर्द झेलना पड़ा है। इससे धरती के जलभंडार उत्प्रेरित धारण विस्फोट की दशा में बड़े भूकम्प की संभावना बन गई है; जिससे दिल्ली तक की दूरी के नगर-कस्बे आपदा की जद में आ गये हैं। यह ध्यान देना चाहिए कि जलग्रहण क्षेत्रों में जलाशय बनाने से जैसा कि पूर्व में कहा गया है- भूमिगत जल स्तर का पुनर्भरण, पर्यावरण सुधार, जैविक विविधता की सुरक्षा स्थल सौंदर्यीकरण, जिससे पर्यटन और पर्यटन से जुड़े रोजगारों की संभावना बढ़ेगी। जिससे अतिरिक्त लाभ भी होंगे। दूसरी ओर हिमालय क्षेत्र में नदियों के उपरले क्षेत्रों में बांध निर्माण में वह सब दोष रहते हैं; जिनका उल्लेख हमने संलग्नक 2 में किया है। अभी सुझाए गए विकल्प ऐसे हैं, जिनमें लागत कम आएगी और जल परियोजनाओं के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार का जैसा बोलबाला रहता है, उससे हट कर सरकारी खजाने का कम धन बहेगा। क्या ऐसा नहीं है कि व्याप्त भ्रष्टाचार के लिए ही वैकल्पिक सुझाव पसंद नहीं किए जाते?

(सी) वर्षा जल संचयन-


जैसा कि उपरोक्त वैकल्पिक परियोजनाओं में अभी चर्चा की गई कि यमुना और सहिबी के साथ-साथ गंगा के बाढ़ के पानी को रोकने के अतिरिक्त वर्षा जल संचयन की बड़ी सम्भावनाएं विद्यमान हैं। यह कार्य राज्यस्तर, कॉलोनीस्तर और व्यक्तिगतस्तर पर किया जा सकता है। दिल्ली का क्षेत्रफल लगभग 1485 वर्ग किमी. है और औसत वर्षा 61 सेमी. होती है। इससे कुल जलभराव 906 एमसीएम है। अभी यह पानी यमुना की बाढ़ में जा मिलता है या धरती की ऊपरी सतह पर पेड़-पौधों द्वारा सोखा जाता है। चूंकि भूमिगत जलस्तर तेजी से घटा है और ऐसे क्षेत्र गिने-चुने ही हैं; जहां ऊंचे जलभृत मौजूद हैं, ऐसे में वर्षा जल गहरे भूमिगत जलस्तर बढ़ाने में शायद ही कोई अंशदान करता है। इसलिए पुराने जल संचयन उपादानों को (नीचे उल्लिखित) पुनरूज्जीवित करने के साथ नए कृत्रिम जल संचयन उपादान निर्माण करने होंगे।

(अ) तिलपत श्रृंखला झीलः- पूर्वी अरावली श्रृंखला के उत्तर में सैनिक फार्म के दक्षिण, सात किमी तक चली गई संकरी घाटियों में स्थित है। ये मानसून के मौसम में निरंतर बढ़ती रहती हैं, जिनमें पहले एक स्थाई झील भी थी। संकरी घाटियों की इस झील को पुनरूज्जीवित किया जा सकता है। इनमें लगभग 6 एमसीएम पानी आ सकता है और इससे आसपास की कॉलोनियों का भूमिगत जल स्तर भी सुधर सकता है।

(ब) तालाब और बावड़ियाः- दिल्ली में वर्तमान में विभिन्न आकारों के कोई पाँच सौ पचास पुराने तालाब और बावड़िया हैं; जिनमें कुछ प्रसिद्ध हैं: अनंग ताल, हौज-ए-शम्सी, जहाज महल का झरना बाग, नरेला स्थित मुगल तालाब और हौजखास, इन्हें आसपास घनी बसावट को रोककर सफाई करके स्थानीय जल ग्रहण क्षेत्र का विकास करके पुनरूज्जीवित किया जा सकता है। बहुत छोटे-छोटे पानी के स्रोतों को आपस में मिलाकर अच्छे आकार की झीलें तैयार कर लेना बुद्धिमत्ता होगी। चूंकि भूमिगत जलस्तर गिर गया है, इसलिए जलाशयों को बोरिंग द्वारा उपरले भूमिगत सक्रिय जलभृतों से जोड़ना होगा इन उपायों से धरती की सतह पर लगभग 10 एमसीएम जल संचित किये जाने की आशा की जा सकती है। इसके अतिरिक्त भूमिगत जल स्तर में सुधार आने का विशेष लाभ होगा।

(स) जल संचयन के नए निर्माणः- शहरी कॉलोनियों में बनाए जाने चाहिए। कुछ बड़े भवन परिसर और पार्क इस उद्देश्य के लिये उपयुक्त स्थान हैं। व्यक्तिगत भवन मालिकों को भी ऐसे उपाय करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। उन्हें इसके लिए पानी की टैक्स दरों में छूट का लाभ भी दिया जा सकता है। जल संचयन परियोजनाओं का आकार भिन्न-भिन्न हो सकता है। उसका मुख्य विषय वर्षा जल को एकत्र कर बोर और फिल्टर की मदद से भूमिगत बफर जलाशयों में पहुंचाना है। इस प्रकार संचित पानी उपरले भूमिगत सक्रिय जलभृतों में पहुंचता है, इस विधि से लगभग 15 एमसीएम जल संचित किया जा सकता है।

जैसा कि पहले बताए अनुसार यमुना में अतिरिक्त पानी आने और आगे बताई जा रही जलधाराओं को पुनरूज्जीवित किए जाने से भूमिगत जल स्तर में बहुत सुधार आएगा और संभव है कि इससे वर्तमान वार्षिक उपलब्धि से 80 एमसीएम अतिरिक्त पानी उपलब्ध हो सकेगा।

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