दिल्ली की प्यास साल भर की बुझ जाती, मगर . .

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नई दिल्ली। राजधानी में इस साल बाढ़ में जितना पानी आया था, अगर उसे सहेजकर रखने की व्यवस्था होती तो साल भर दिल्ली में पीने के पानी की कोई कमी नहीं होती। बाढ़ का पानी आया और गुजर गया लेकिन दिल्ली में इसे रोकने की कोई व्यवस्था नहीं की गई जबकि इस बारे में एक्सपर्ट कई साल पहले ही अपनी रिपोर्ट दे चुके हैं।

दिल्ली में इस समय पानी की मांग करीब एक हजार एमजीडी है जिसके लिए दो हजार क्यूसेक पानी की रोजाना जरूरत होती है लेकिन दिल्ली को लगभग 1200 क्यूसेक पानी ही मिल पाता है। कई बार तो 50 क्यूसेक पानी के लिए ही दिल्ली को हरियाणा या उत्तर प्रदेश के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है लेकिन इस बार बाढ़ में कई लाख क्यूसेक पानी आया और यूं ही निकल गया। अधिकतम 4.20 लाख क्यूसेक पानी था जो कई निचले इलाकों में भर गया।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि राजधानी में पानी को रोकने की कोई व्यवस्था नहीं की गई। डीडीए के पूर्व प्लानर आर.जी. गुप्ता ने इस बारे में करीब 25 साल पहले एक योजना दी थी। इस योजना के अनुसार यमुना को गहरा करके उसे पक्का किया जाना था। दिल्ली में पल्ला से ओखला तक करीब 50 किमी लंबी यमुना है लेकिन पानी सिर्फ 21 किमी में ही बहता है। शेष यमुना सूखी रहती है। कहीं यमुना की चौड़ाई डेढ़ किमी है तो कहीं साढे़ तीन किमी। इस योजना में यमुना के दोनों तरफ बांध बनाकर उसे निश्चित चौड़ाई तक पक्का करने की योजना थी।

कहा गया था कि इससे करीब 81 वर्ग किमी प्राइम लैंड भी उपलब्ध होती। अक्षरधाम और शास्त्री पार्क मेट्रो डिपो इसी जमीन पर ही बनाया गया है। योजना में कहा गया था कि सभी नालों के मुहानों पर सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जाएं ताकि गंदगी यमुना में नहीं गिरे। इससे यमुना साफ भी रहती और उसे ट्रांसपोर्ट के साधन के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता था क्योंकि साल भर उसमें पानी रहता। योजना का सबसे बड़ा फायदा यह बताया गया था कि इसका उपयोग जलाशय के रूप में होता और दिल्ली को साल भर पानी मिलता। इस योजना पर 1993 में काम शुरू हुआ था लेकिन उसके बाद योजना फाइलों में दबी पड़ी है।

आर.जी. गुप्ता का कहना है कि उन्होंने 1997 में एक और योजना उपराज्यपाल को दी थी जिसे सिद्घांत रूप में स्वीकार भी कर लिया गया था। इस योजना में कहा गया था कि वजीराबाद बैराज के नॉर्थ में दस किमी पहले ही जलाशय बनाया जाए और वहीं नया बैराज भी बनाया जाए। इससे वर्तमान से 30 गुना अधिक पानी जमा हो सकता था। इस बड़ी झील में साल भर पानी रोका जा सकता था। चूंकि वहां यमुना में गंदगी नहीं है, इसलिए उस जलाशय को बनाना मुश्किल भी नहीं था। इस योजना पर भी काम शुरू नहीं हुआ। एक्सपर्ट्स का यह भी मानना है कि अगर ओखला में भी नए बैराज बनाए जाते तो यमुना का पानी सहेजकर रखा जा सकता था और दिल्ली की प्यास बुझाई जा सकती थी।

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