दिल्ली में बढ़ रहा है कचरे का ढेर

31 Oct 2018
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3डी स्कैनिंग तकनीक से कूड़े का अनुमान लेता कर्मचारी
3डी स्कैनिंग तकनीक से कूड़े का अनुमान लेता कर्मचारी

दिल्ली में गैरकानूनी रूप से 5,57000 टन नगरीय ठोस कचरा या तो सड़कों के किनारे या फिर खाली पड़े भूखंडों में जमा है। हाल ही में किये गए एक अध्ययन के अनुसार इस नगरीय ठोस कचरे की मात्रा शहर में हर दिन पैदा होने वाले कचरे की तुलना में 62 गुना अधिक है। खास बात यह है कि यह अध्ययन में पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है और कचरे की मात्रा का पता लगाने के लिये 3डी स्कैनर का इस्तेमाल किया गया है। यह अध्ययन रिसोर्स, कंजर्वेशन एंड रीसाइक्लिंग के अंक में प्रकाशित हुआ है।

इसके अनुसार कम आय वाले रिहायशी इलाकों में पूरे वर्ष में पैदा होने वाले ठोस कचरे का मात्र 67 प्रतिशत हिस्से का ही प्रबन्धन हो पाता है। वहीं, उच्च आय वर्ग वाले रिहायशी इलाकों में यह मात्रा 97 से 98 प्रतिशत के बीच होती है। इन दोनों ही इलाकों से इकठ्ठा किये गए ठोस कचरे का प्रबन्धन जमीन के अन्दर भराव द्वारा किया जाता है।

कम आय वर्ग के रिहायशी इलाकों में लगभग 5,336 टन प्रति वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में ठोस कचरे का प्रबन्धन होता है जबकि इस मामले में उच्च आय वर्ग के इलाकों की स्थिति एकदम उलट है। इन इलाकों में निम्न आय वर्ग वाले इलाकों की तुलना में लगभग 100 प्रतिशत कम क्षेत्र में कचरे का प्रबन्धन किया जाता है।

इस अध्ययन के अनुसार दिल्ली में प्रतिवर्ष पैदा होने वाले नगरीय ठोस कचरा के 83 प्रतिशत हिस्से का प्रबन्धन ही जमीन के अन्दर भराव के माध्यम से हो पाता है। ठोस कचरे की इस मात्रा में 38,000 टन प्लास्टिक, 55,000 टन निर्माण क्षेत्र से पैदा हुआ कचरा, 87,00 टन काँच के टुकड़े और 4,55000 टन अन्य स्रोतों से पैदा हुआ कचरा शामिल है।

अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं ने दिल्ली के चार क्षेत्रों जंगपुरा एक्सटेंशन, सफदरजंग एन्क्लेव, ब्रीज पुरी और भोगल का दौरा किया और कचरे के ढेर की संख्या का अंकन किया। उन्होंने इसके लिये एक सेंस 3डी स्कैनर, एक यूएसबी पावर्ड डिवाइस, हाई डेफिनेशन रंगीन कैमरा के साथ ही इंफ्रारेड प्रोजेक्टर का इस्तेमाल किया था।

इस डिवाइस की खासियत है कि यह किसी भी आकार के कचरे के ढेर में उसकी मात्रा का पता आसानी से लगा सकता है। इस तरह यह पाया गया कि इन यंत्रों के माध्यम से किये गए अध्ययन और पूर्व में लगाए गए अनुमान में केवल 1 प्रतिशत का अन्तर था। इन क्षेत्रों से इकठ्ठा किये गए आँकड़ों का इस्तेमाल शहर के अन्य हिस्सों के लिये भी किया गया।

मिनेसोटा विश्वविद्यालय के शोधकर्ता अजय नगपुरे ने एक ईमेल के माध्यम से कहा कि इस पद्धति का प्रयोग उपयोगकर्ताओं की श्रेणी के अनुसार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि उस श्रेणी में नगर निगम के पदाधिकारियों के साथ ही वैज्ञानिकों तक शामिल हो सकते हैं जिससे कचरे की मात्रा का निश्चय किये जाने के साथ ही इस समस्या से निपटने के लिये प्राथमिकता के आधार पर इलाकों का चयन किया जा सके। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा, “ रिहायशी इलाकों के अनुसार ही पॉलिसी का निर्माण किया जाना चाहिए। उच्च आय वर्ग वाले इलाकों में निर्माण से पैदा हुए ठोस कचरे के साथ ही गलियों के कचरे के उठाव के अन्तराल के समय को और भी कम किया जाना चाहिए जबकि निम्न आय वर्ग के इलाकों में घर-घर से कचरा उठाव की व्यवस्था को सुनिश्चित किये जाने की जरुरत है।”

दिल्ली के भलस्वा, ओखला और गाजीपुर इलाकों में स्थित लैंडफिल साइट पर रोज 8000 टन कचरे का प्रबन्धन किया जाता है जबकि उनकी क्षमता में की गई वृद्धि का एक दशक से ज्यादा वक्त बीत चुका है।

अंग्रेजी में पढ़ने के लिये दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

 

 

 

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