दिल्ली में घटते तालाब

24 Feb 2009
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बढ़ा रहे हैं इकॉलजिकल डिस्टर्बेंस


11 Oct 2008/ नवभारत टाइम्स / नीतू सिंह
नई दिल्ली: अवैध कब्जों से दिल्ली के तालाब बेहाल हो चुके हैं। मगर दिल्ली को स्वच्छ और सुंदर बनाने के दावे करने वाली सरकार इन्हें दोबारा डिवेलप करने के बजाय तालाबों की लिस्ट छोटी करती जा रही है। इतना ही नहीं, हाई कोर्ट को दिए गए जवाब में जिन तालाबों को फिर से जीवित करने लायक बताया गया था, उनमें भी सही ढंग से काम नहीं हो रहा है। हर 6 महीने में स्थिति रिपोर्ट देने का आदेश भी दरकिनार कर दिया गया है। यह अनदेखी दिल्ली के इकॉलजिकल सिस्टम को डिस्टर्ब कर रही है।

तपस नामक एनजीओ ने 2000 में दिल्ली के कुल 794 तालाबों का सर्वे किया था। इसके मुताबिक, ज्यादातर तालाबों पर अवैध कब्जा हो चुका था और जो तालाब थे भी, उनकी हालत खराब थी। इस बारे में एनजीओ वालों ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की, जिसकी सुनवाई में तीन बार में दिल्ली सरकार ने 629 तालाबों की जानकारी दी, जो दिल्ली सरकार, डीडीए, एएसआई, पीडब्ल्यूडी, एमसीडी, फॉरेस्ट डिपार्टमंट, सीपीडब्ल्यूडी और आईआईटी के अंडर आते हैं। इनमें से सिर्फ 453 को रिवाइव करने के लायक बताया गया।

इस मामले में हाई कोर्ट ने 2007 में आदेश दिया कि रिवाइव करने लायक बचे 453 तालाबों को दोबारा डिवेलप किया जाए और इसकी देखरेख के लिए चीफ सेक्रेटरी की अध्यक्षता में कमिटी गठित की जाए। साथ में यह भी कहा गया कि हर 6 महीने में तालाबों के डिवेलपमंट से संबंधित रिपोर्ट सौंपी जाए, मगर एक साल बीत जाने के बावजूद कोई रिपोर्ट नहीं दी गई है।

तपस के प्रमुख विनोद कुमार जैन कहते हैं कि सरकारी एजेंसियों के पास तालाबों को डिवेलप करने लायक विल पावर ही नहीं है। जहां काम हो भी रहा है, वहां सिर्फ एजींनियरिंग वर्क पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है, ताकि पैसा बनाया जा सके। तालाबों को एनवायरनमंट फ्रेंडली बनाने पर कोई जोर नहीं है। उनका कहना है कि डिवेलपमेंट की रिपोर्ट के लिए हमने 3 बार लेटर लिखा और आरटीआई के तहत भी रिक्वेस्ट कर चुके हैं, पर अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। ऐसे में दोबारा हाई कोर्ट में याचिका दायर करने की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि दिल्ली में सबसे ज्यादा तालाब साउथ-वेस्ट और साउथ में हैं, मगर रखरखाव नहीं होने के कारण इन्हीं इलाकों का ग्राउंड वॉटर लेवल सबसे नीचे चला गया है।

एनवायरनमंट के फील्ड में काम करने वाली संस्था टॉक्सिक वॉच के गोपाल कृष्ण कहते हैं कि तालाब जैसी वॉटर बॉडीज ग्राउंड वॉटर को रीचार्ज करने और क्लाइमेट को कूल करने का काम करती हैं। इससे इकॉलजिकल सिस्टम ठीक रहता है, मगर दिल्ली में इन बातों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इससे पूरा इकॉलजिकल सिस्टम डिस्टर्ब हो रहा है। तालाबों की घटती संख्या का एक असर यह भी हुआ है कि एडिस मच्छरों का लार्वा खाने वाली गंबूजिया मछली भी कम जगह डाली जा रही हैं। 2006 में जहां 288 जगहों पर मछलियां डाली गई थीं, वहीं 2007 में 181 और 2008 में सिर्फ 144 जगहों पर ही इन्हें डाला गया। जबकि यह डेंगू की रोकथाम का एनवायरनमंट फ्रेंडली तरीका है।

उधर, फ्लड एंड इरिगेशन डिपार्टमंट के अधिकारियों का कहना है कि दिल्ली सरकार के 476 तालाबों में से 185 की दोबारा खुदाई कर दी गई है, जब बारिश होगी तब इनमें पानी भरा जाएगा। 139 खुदाई के काबिल नहीं हैं। 43 गंदे पानी वाले हैं और 89 तालाबों को डिवेलप करने के लिए डीएसआईडीसी को हैंडओवर कर दिया गया है। 20 तालाब ठीक-ठाक हैं।

साभार - नवभारत टाइम्स

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