दिल्ली में प्रदूषण एक अध्ययन

प्रदूषण आज विश्वव्यापी समस्या बन चुकी है। भारत सहित विकासशील देशों में यह समस्या विशेष रूप से खतरनाक रूप लेती जा रही है। भारत की राजधानी दिल्ली की गिनती विश्व के चार सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में होती है आजादी के बाद जनसंख्या, शहरीकरण तथा औद्योगिकीकरण में तेजी से हुई वृद्धि ने दिल्ली का पर्यावरण बिगाड़ दिया है। हाल में सरकार, कुछ संगठनों एवं व्यक्तियों तथा न्यायालयों ने प्रदूषण पर काबू पाने की दिशा में प्रयास किए हैं। इस लेख में राजधानी में प्रदूषण की स्थिति और उस पर नियन्त्रण के उपायों का विश्लेषण किया है।

आजादी के बाद भारत में औद्योगिकीकरण के दौर आया। विभिन्न क्षेत्रों में नए-नए उद्योगों की स्थापना होने लगी। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र होने के कारण दिल्ली के आस-पास कारखानों की स्थापना होना स्वाभाविक ही है। वर्ष 1951 के बाद दिल्ली की जनसंख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। उस समय 17 लाख की जनसंख्या 1991 की जनगणना के समय बढ़कर 95 लाख तक पहुँच गई। एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली की जनसंख्या प्रति वर्ष 4 लाख बढ़ जाती है, जिसमें 3 लाख लोग देश के अन्य राज्यों से आते हैं।

दिल्ली में विकास के साथ-साथ इससे जुड़ी कुछ मूलभूत समस्याएँ मसलन आवास, यातायात, पानी बिजली इत्यादि भी उत्पन्न हुई। नगर में वाणिज्य, उद्योग, गैर-कानूनी बस्तियों, अनियोजित आवास आदि का प्रबंध मुश्किल हो गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 1989 की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली का प्रदूषण के मामले में विश्व में चौथा स्थान है। दिल्ली में 30 प्रतिशत वायु प्रदूषण औद्योगिक इकाइयों के कारण है, जबकि 70 प्रतिशत वाहनों के कारण है। खुले स्थान और हरे क्षेत्र की कमी के कारण यहाँ की हवा साँस और फेफड़े से सम्बन्धित बीमारियों को बढ़ाती है। इस समस्या से छुटकारा पाना सरल नहीं है। इस क्षेत्र में सरकार, न्यायालय स्वायत्त संस्थाएँ और पर्यावरण चिन्तक आगे आए हैं। इनके साझा सहयोग से प्रदूषण की मात्रा में कुछ कमी तो आई है परन्तु इसके लिए आम जनता के रचनात्मक सहयोग की सबसे अधिक आवश्यकता है।

भारतीय संविधान में पर्यावरण का स्पष्ट उल्लेख वर्ष 1977 में किया गया। उसी वर्ष 42वें संविधान संशोधन द्वारा केन्द्र तथा राज्य सरकारों के लिए पर्यावरण को संरक्षण तथा बढ़ावा देना आवश्यक कर दिया गया। राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों में अनुच्छेद 48ए जोड़ा गया। इस अनुच्छेद के अनुसार ‘सरकार पर्यावरण के संरक्षण एवं सुधार और देश के वनों तथा वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए प्रयास करेगी।’ इसी संशोधन के द्वारा संविधान में अनुच्छेद 51ए (जी) भी जोड़ा गया, जिसके तहत प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह ‘प्राकृतिक वातावरण जिसमें वन, नदियों तथा वन्यजीव शामिल हैं, के संरक्षण तथा सुधार के लिए कार्य करे तथा जीवित प्राणियों के प्रति दया भाव रखे।’ संविधान में इस संशोधन के बाद लोगों में पर्यावरण के प्रति थोड़ी जागरुकता आई।

दिल्ली के लिए वर्ष 1962 में मास्टर प्लान बना और विकास अधिनियम 1951 के अन्तर्गत लागू किया गया। इस योजना में दिल्ली के सन्तुलित विकास को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र प्लानिंग बोर्ड बनाने पर जोर दिया गया, जिसका गठन 11 फरवरी 1985 को किया गया। इस बोर्ड ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना 2001 प्रकाशित की। यह क्षेत्रीय योजना आर्थिक क्रियाकलाप और आप्रवास के छितराव का मार्गदर्शन करके दिल्ली का प्रबंधन करने के लिए थी परन्तु जनसंख्या के बढ़ते प्रवाह के कारण यह असफल होने लगी। दिल्ली से सम्बन्धित मास्टर प्लान-2001 केन्द्रीय सरकार की धारा 11ए(2) के अन्तर्गत पारित हुई और एक अगस्त, 1990 को भारत के राजपत्र में प्रकाशित की गई। इस प्रस्ताव में कहा गया कि खतरनाक/हानिकारक/भारी और बड़े उद्योग, जो दिल्ली में चलाए जाते हैं, उन्हें स्थानांतरित किया जाए। स्थानांतरिण के लिए उद्योगों को 3 वर्ष का समय दिया गया, परन्तु ये उद्योग अभी तक दिल्ली में चलाए जा रहे हैं।

उच्चतम न्यायालय ने एम.सी. मेहता बनाम भारत सरकार और अन्य के मामले में जुलाई 1996 में औद्योगिक इकाइयों के प्रदूषण सम्बन्धी मामले पर फैसला सुनाया। इस फैसले में कहा गया कि 30 नवम्बर 1996 से सूचीबद्ध 168 औद्योगिक इकाइयों को बंद कर दिया जाए और उनके कार्य को रोका जाए। न्यायालय ने अपना फैसला दिल्ली के मास्टर प्लान 2001 से सम्बन्धित एनेक्सचर (1)एच(ए) और (बी) के प्रावधानों के आधार पर दिया। इस प्रावधान में कहा गया है कि -

1. प्रदूषण की दृष्टि से खतरनाक और हानिकारक उद्योगों को दिल्ली में परमिट नहीं दिया जाए।
2. ऐसे उद्योगों को प्राथमिकता के आधार पर 3 वर्षों के अन्दर अन्यत्र स्थापित किया जाए।
3. दिल्ली प्रशासन खतरनाक उद्योगों की एक सूची बनाकर उनके खिलाफ कारवाई करे।
4. नए भारी एवं बड़े उद्योगों को परमिट नहीं दिया जाए।
5. भारी एवं बड़े उद्योगों को अन्यत्र स्थापित किया जाए।
6. भारी एवं बड़े उद्योगों के आधुनिकीकरण के विषय पर निम्न स्थिति में परमिट दिया जाए-

(क) यदि वे उद्योग प्रदूषण फैलाए और यातायात गतिरोध को कम करें।
(ख) इसके बाद यदि कोई उद्योग स्थानांतरित होना चाहता है तो उसे किसी प्रकार का मुआवजा नहीं दिया जाए।

उच्चतम न्यायालय ने केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड को नोटिस जारी कर कहा कि बोर्ड के अध्यक्ष अपने स्तर से प्रदूषण फैलाने वाली उन 8378 औद्योगिक इकाइयों को नोटिस जारी करें जो दिल्ली विकास प्राधिकरण अधिनियम 1957, दिल्ली नगर निगम अधिनियम 1957 और उद्योग अधिनियम 1948 के तहत बने दिल्ली मास्टर प्लान का उल्लंघन कर रहे हैं। इस बात का ध्यान रखा जाए कि नई जगहों पर स्थापित औद्योगिक इकाई अपनी तकनीक को विकसित करें जिससे प्रदूषण खतरनाक स्तर तक नहीं पहुँचे और ये उद्योग नियोजित औद्योगिक क्षेत्रों में बसाए जाएँ।

उच्चतम न्यायालय ने एम.सी. मेहता बनाम भारत सरकार और अन्य के वाहन प्रदूषण से सम्बन्धित मामले पर फैसला 28 जुलाई 1998 को दिया। इस फैसले में श्री भूरेलाल समिति की सिफारिशों को लागू करने का आदेश दिया गया है। इस समिति की सिफारिशों में कहा गया है किः-

1. 2 अक्टूबर 98 से 15 वर्ष से अधिक पुराने व्यावसायिक वाहनों के दिल्ली की सड़कों पर चलने पर प्रतिबंध लगा दिया जाए। (ये आदेश उक्त तारीख से लागू हो चुका है।)
2. 15 अगस्त, 1998 से मालवाहक वाहनों का दिन में शहर चलना निषिद्ध होगा।
3. 31 दिसम्बर, 1998 से पूर्व-मिश्रित आयल के वितरण का विस्तार किया जाए।

(क) एक अप्रैल, 2001 तक सार्वजनिक यातायात व्यवस्था के अन्तर्गत बसों की संख्या 10,000 करना।
(ख) एक सितम्बर, 1998 से पट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मन्त्रालय द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में सीसायुक्त पेट्रोल के इस्तेमाल को पूरी तरह बंद किया जाए। (ये आदेश उक्त तारीख से लागू हो चुका है।)
(ग) 31 दिसम्बर, 1998 से टू ईंजन वाले वाहनों को सभी पेट्रोल-पम्पों पर प्री-मिक्स पेट्रोल वितरित किया जाए।
(घ) 31 मार्च, 2000 तक 1990 से पहले के सभी आटो और टैक्सियों को बदला जाए।
(ङ) 31 मार्च, 2001 तक 1990 से पहले के सभी आटो और टैक्सियों को बदलने के लिए आर्थिक सहायता दी जाए।

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत 1992 में पर्यावरण और वन मन्त्रालय के पर्यावरणीय लेखा-परीक्षा की राजपत्र अधिसूचना जारी की गई। इस अधिसूचना के तहत संगत पर्यावरणीय मानदण्डों के अन्तर्गत प्रचलन की सहमति प्राप्त करने के लिए सभी औद्योगिक यूनिटों के लिए सम्बन्धित राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्डों को पर्यावरणीय विवरण भेजना अनिवार्य कर दिया गया।

वर्ष 1997 के दौरान दिल्ली में प्रदूषण पर कार्ययोजना सहित श्वेतपत्र तैयार किया गया। यह श्वेतपत्र मन्त्रालय का मई, 1997 में हुई बैठकों, विचार-विमर्श आदि का सारगर्भित दस्तावेज है। इस कार्ययोजना में परिवहन, जल (यमुना नदी का प्रदूषण और औद्योगिक जल प्रदूषण), औद्योगिक वायु प्रदूषण, ठोस अपशिष्ट निपटान, खतरनाक अपशिष्टों (अस्पताल एवं औद्योगिक इकाइयों के खतरनाक अपशिष्ट), ध्वनि प्रदूषण के नियन्त्रण के लिए विशिष्ट उपायों तथा दिल्ली को और अधिक स्वच्छ शहर बनाने के लिए लोगों की भागीदारी के सम्बन्ध में सिफारिश की गई है। दिल्ली में प्रदूषण नियन्त्रण के लिए सरकार द्वारा कुछ उपाय किए गए हैं:-

- दिल्ली में पर्यावरण को संरक्षित करने एवं सुधारने तथा प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिए उपाय करने हेतु पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 3(3) के अन्तर्गत प्राधिकरण का गठन किया गया है। यह प्राधिकरण पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के अनुसार केन्द्र सरकार की देखरेख एवं नियन्त्रण में कार्य करेगा।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में पर्यावरण के प्रति किए गए अपराधों की संज्ञेयता लेने के लिए एक विशेष न्यायालय का गठन किया गया है।

- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की धारा 4 के अन्तर्गत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी मामलों के लिए विशेष सब डिवीजन मजिस्ट्रेट की नियुक्ति एवं इसे समुचित अधिकार प्रदत्त कराने का प्रावधान किया गया है।

- वैकल्पिक ईंधन जैसे सी.ए.जी. (संपीड़ित प्राकृतिक गैस) के प्रयोग को बढ़ावा देने हेतु तिपहियों के अनुरूपांतरण के लिए जरूरी किटों के आयात एवं उत्पाद शुल्क की दरों में छूट दी जाएगी।

- दिल्ली में कुछ क्षेत्रों को अति प्रदूशित क्षेत्र घोषित किया जाएगा और ऐसे इलाकों में सप्ताह में एक दिन वाहन मुक्त दिवस मनाया जाएगा।

- फ्लाई ऐश के कारण होने वाले नुकसान को कम करने के लिए इनके उपयोग से ईंटे बनाई जाएँगी। इसको प्रोत्साहित करने के लिए दिल्ली सरकार और दिल्ली विकास प्राधिकरण अनिवार्य भूमि उपलब्ध कराएगा।

- पर्यावरण सम्बन्धी कार्यक्रमों के प्रति जागरुकता पैदा करने के लिए विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में पर्यावरण विषय को शामिल किया जाएगा। साथ ही समाज के लिए लाभप्रद रचनात्मक कार्ययोजना के तहत विद्यार्थियों को सामूहिक कार्य के माध्यम से अपने समुदाय एवं आस-पास के पर्यावरण में सुधार के लिए प्रेरित करने के कार्यक्रम चलाए जाएँगे।

- इन निर्णयों के अनुसरण में केन्द्र सरकार ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 की उपधारा (1) व (3) द्वारा प्रदत्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पर्यावरण प्रदूषण (निवारण एवं नियन्त्रण) प्राधिकरण का गठन किया है।

पर्यावरण कार्यक्रम के दूसरे चरण में सीसा-रहित प्रेट्रोल को अनिवार्य करने के लिए अधिसूचना जारी की गई है। इस अधिसूचना के अनुसार सीसा-रहित पेट्रोल सभी राज्यों और संघशासित क्षेत्रों की राजधानियों तथा बड़े नगरों में एक जून 1998 से इस्तेमाल किया जा रहा है जो इस तारीख से इन शहरों में शुरू किए जाने वाले नए पेट्रोल-चालित चार पहियों वाले वाहनों की आवश्यकताओं को पूरा करेगा। पर्यावरण और वन मन्त्रालय द्वारा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में वायु (प्रदूषण निवारण और रोकथाम) अधिनियम 1981 की धारा 20 के अन्तर्गत दिए गए अधिकारों के तहत दिल्ली से सभी व्यापारिक किस्म के वाहनों को अप्रैल, 1998 से प्रारम्भ कार्यक्रम में एक निर्दिष्ट समय सीमा में हटाया जाना था, किन्तु इसे कार्यरूप नहीं दिया जा सका और अंततः न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा। ऐसा ही उद्योगों के मामले में भी हुआ। यदि समय रहते सुझाव और कानूनों को कार्यरूप दिया जाता तो प्रदूषण के इस खतरनाक पड़ाव तक हम नहीं पहुँचते। एक अक्टूबर से 20 साल पुराने लगभग 9000 वाहन दिल्ली में चलने बंद हो गए हैं।

दिल्ली जैसे महानगर को प्रदूषण-मुक्त क्षेत्र बनाने के लिए सबसे अधिक आवश्यकता है एक सार्वजनिक यातायात व्यवस्था बनाने की, ताकि आम आदमी अपने वाहनों के उपयोग की बजाय सार्वजनिक यातायात की ओर आकृष्ट हो। व्यक्तिगत वाहनों का उपयोग कम से कम करें या फिर नहीं करें। आज विश्व के अधिकांश विकसित देशों में ऐसी व्यवस्था काफी समय से प्रचलन में है। परिणामतः उन देशों में प्रदूषण की समस्या भी कम है। यदि सार्वजनिक यातायात साधन की समुचित व्यवस्था हो और सुचारू रूप से परिचालन किया जाए तो धीरे-धीरे एक संस्कृति विकसित हो जाएगी।

स्टेटस के लिए व्यक्तिगत वाहनों के उपयोग की भारतीय मानसिकता से आम जनता ऊपर उठे और सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल सहूलियत और गर्व से करे। यह न केवल राष्ट्र के निर्माण में सहयोगी होगा बल्कि आने वाली पीढ़ी और अपने बच्चों को एक प्रदूषण-रहित सुन्दर शहर का उपहार होगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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