दलदली जमीन का संरक्षण कीजिए

नमभूमियां अर्थात दलदल भूमि प्रकृति का एक ऐसा अनोखा और अनुपम स्वरूप है जो हमारे पर्यावरण संरक्षण में विशेष योगदान देते हैं। असल में नमभूमि अपनी अनोखी पारिस्थितिकी संरचना के कारण महत्वूपर्ण है। नमभूमियों के अंतर्गत झीलें, तालाब, दलदली क्षेत्र, हौज, कुण्ड, पोखर एवं तटीय क्षेत्रों पर स्थित मुहाने, लगून, खाड़ी, ज्वारीय क्षेत्र, प्रवाल क्षेत्र, मैंग्रोव वन आदि शामिल हैं। गुजरात को नलसरोहर, उड़ीसा की चिल्का झील और भितरकनिका मैंग्रोवन क्षेत्र, राजस्थान का केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान तथा दिल्ली का ओखला पक्षी अभयारण्य नमभूमि क्षेत्र के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं। अभी तक विश्व भर के 1,994 नमभूमियों के रूप में चिन्हित किया गया है जो करीब उन्नीस करोड़ अठारह लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर फैली हुई है। इन क्षेत्रों में से 35 प्रतिशत क्षेत्र पर्यटन संभावित क्षेत्र हैं। इसलिए इन क्षेत्रों में इको-पर्यटन को बढ़ावा देने और वहां धारणीय विकास (सस्टेनेबल डेवलेपमेंट) के लिए इस बार के विश्व नमभूमि दिवस का थीम ‘नमभूमि और पर्यटन’ रखा गया है। नमभूमियां भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 4.63 प्रतिशत क्षेत्रफल पर फैली हुई है यानी कुल 15,26,000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर। इनसे अलावा 2.25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल से कम आकार वाली करीब 5,55,557 छोटी-छोटी नमभूमियां चिन्हित की गई हैं। कुल नमभूमियों में से 69.22 प्रतिशत क्षेत्र आंतरिक हैं। जबकि तटीय नमभूमियों का प्रतिशत 27.13 है।

नमभूमियों के असंख्य लाभों के कारण ये हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। असल में नमभूमि की मिट्टी झील, नदी, विशाल तालाब या किसी नमीयुक्त किनारे का हिस्सा होता है जहां भरपूर नमी पाई जाती है। इसके कई लाभ भी हैं। भूमिगत जल स्तर को बढ़ानें में भी नमभूमियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके अलावा नमभूमि जल को प्रदूषण से मुक्त बनाता है। यह प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है। बाढ़ नियंत्रण में भी इनकी रोल महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह तलछट का काम करती है जिससे बाढ़ जैसी विपदा में कमी आती है। नमभूमि शुष्क मौसम के दौरान पानी को सहजे रखती है और बाढ़ के दौरान पानी का स्तर कम बनाए रखने में सहायक होती है। इसके अलावा ऐसे समय में नमभूमि पानी में मौजूद तलछत और पोषक तत्वों को अपने में समा लेती है और सीधे नदी में जाने से रोकती है। इस प्रकार झील, तालाब या नदी के पानी की गुणवत्ता बनी रहती है। जैवविविधता को सुरक्षित रखने में भी नमभूमियों का विशेष योगदान होता है। यह समुद्री तूफान और आंधी के प्रभाव को सहन करने की क्षमता रखती है। समुद्री तटरेखा को स्थिर बनाए रखने में भी नमभूमियां का महत्वपूर्ण योगदान देती है। तो दूसरी ओर समुद्र द्वारा होने वाले कटाव से तटबंध की रक्षा करती है। कार्बन चक्र में नमभूमियों का विशेष महत्व है। वैसे तो यह केवल 3-4 प्रतिशत क्षेत्र पर ही आच्छादित है परंतु इनमें कार्बन की 25 से 30 प्रतिशत मात्रा को अवशेषित करने की क्षमता होती है। नमभूमियां अपने आस-पास बसी मानव बस्तियों के लिए जलावन, फल, वनस्पतियां, पौष्टिक चारा और जड़ी-बूटियों को स्रोत होती हैं। कमल जो कि दुनिया के कुछ विशेष सुंदर फूल होने के साथ ही भारत का राष्ट्रीय फूल है इसी दलदल में उगता है। इस प्रकार आर्थिक रूप से दलदलों यानी नमभूमियों के स्रोतों का महत्व पारिस्थितिकी आधार पर अनमोल है।

नमभूमि जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। ये बहुत सारे विलुप्त प्राय जीव जैसे संगाई हिरण, मच्छीमार बिल्ली, गैंडा, डूरोंग, एशियाई जलीय भैस आदि का ठिकाना है। यह शीतकालीन पक्षियों और विभिन्न जीव-जंतुओं का आश्रय स्थल भी है। विभिन्न प्रकार की मछलियां और जंतुओं के प्रजनन के लिए भी नमभूमियां ही उपयुक्त होती हैं। इन्हीं नमभूमि क्षेत्रों के आस-पास कुछ माह के लिए हजारों किलोमीटर की यात्राएं कर प्रवासी पक्षीयां डेरा डालने आते हैं। भारत हमेशा से प्रवासी पक्षियों जैसे राजहंस, पनकौआ, बायर्स वॉचार्ड, ओस्प्रे, इंडियन स्किम्मर, श्याम गर्दनी बगुला, संगमरमरी टील, बंगाली फ्लोरीकान आदि पक्षियों का मनपसंद प्रवास स्थल रहा है।

नमभूमियां व्यापक स्तर पर आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक स्वरूप का आधार रही है। जिसका संरक्षण पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। जिसपर गंभीरता से अमल करने की आवश्यकता है। इसी संदर्भ में 2 फरवरी 1971 को ईरान के रामसार शहर में एक अंतर्राष्ट्रीय संधि हुई थी जिसमें नमभूमियों की सुरक्षा और संरक्षण को आवश्यक बनाया गया था। इस संधि को रामसार संधि भी कहा जाता है। यह संधि विश्व के दुर्लभ व महत्वपूर्ण नमभूमियों को रामसार स्थल के रूप में चिन्हित करने के साथ ही अनेक अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर नमभूमियों के संरक्षण के लिए जागरूकता का प्रसार करती है। इसीलिए 1997 से प्रत्येक वर्ष 2 फरवरी को विश्व नमभूमि दिवस के रूप में मनाया जाता है। जिसके अंतर्गत व्यापक रूप से आम लोगों को नमभूमियों के महत्व और लाभों के प्रति जागरूक करना है।

नमभूमियां व्यापक स्तर पर आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक स्वरूप का आधार रही है। जिसका संरक्षण पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। जिसपर गंभीरता से अमल करने की आवश्यकता है। इसी संदर्भ में 2 फरवरी 1971 को ईरान के रामसार शहर में एक अंतर्राष्ट्रीय संधि हुई थी जिसमें नमभूमियों की सुरक्षा और संरक्षण को आवश्यक बनाया गया था। इस संधि को रामसार संधि भी कहा जाता है।

नमभूमियां अथवा दलदली क्षेत्र सदैव विदेशों से आए प्रवासी पक्षियों की मनपसंद आवास स्थली रही है। ऐसे में कोई भी जीव प्रेमी उन दृश्यों से सहेजना चाहेगा जब प्रकृति की सुंदरता के प्रतीक पक्षी से वह काफी करीब होता है। ऐसे अवसर का सहारा लेकर अनेक राज्यों में इको-पर्यटन पर भी ध्यान दिया जा रहा है। आज तेजी से ऐसे क्षेत्र पर्यटन के क्षेत्र में जगह बना रहे हैं जहां नमभूमियों के आस-पास परिंदों का डेरा लगा होता है। इस प्रकार नमभूमियां पर्यटन स्थल के रूप में आर्थिक विकास का आधार बन रही है। लेकिन हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि हम ऐसे नमभूमियों के मूल स्वरूप को बचाए रखें ताकि वहां की पारिस्थितिकी में बदलाव न हो। क्योंकि कई बार देखने में आया है कि इंसानी दखलअंदाजी के बाद पर्यावरण के साथ छेड़-छाड़ होती है। पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर कई प्राकृतिक स्थलों का मूल स्वरूप ही बिगड़ जाता है। जिसपर गंभीरता से मंथन करने की आवश्यकता है। वैसे हमारे देश में भी नमभूमि पर्यटन पर ध्यान दिया जा रहा है। जिसके तहत गुजरात राज्य में पिछले माह द्वितीय ‘ग्लोबल बर्ड वॉचर्स कांफ्रेंस’ का आयोजन किया गया। ऐसे आयोजनों का मतलब यही होता है कि नमभूमियों को बढ़ते प्रदूषण, बदलती जलवायु और अनियंत्रित विकास से उत्पन्न खतरों आदि से बचाया जा सके। ताकि इन क्षेत्रों में हमेशा जीवन के विविध रूप मुस्कुराते रहें।

लेखक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन स्वायत्त संगठन ‘विज्ञान प्रसार‘ में प्रोजेक्ट अधिकारी (एडूसेट) के पद पर कार्यरत हैं तथा वर्ष 2010 में इन्हें ”ग्लोबल वार्मिंग का समाधान गांधीगीरी“ पुस्तक के लिए पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रथम मेदिनी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।

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