डॉल्फिन के अस्तित्व पर मंडराता खतरा

डॉल्फिनों की संख्या में जिस तरह लगातार कमी आ रही है उससे लगता है कि यह कुछ ही सालों की मेहमान है। उल्लेखनीय है कि सिर्फ पिछले डेढ़ दशक में ही इसकी तादाद में पचास फीसदी से भी ज्यादा की कमी आई है। इसका विकास गहरे पानी में ही अच्छी तरह होता है, लेकिन स्वभाव के मुताबिक इसे गहरे पानी वाली नदी मुहैया नहीं कराई जा सकी है। गौरतलब है यह ऐसा जलीय जंतु है जो अंडों के बजाय बच्चे को जन्म देता है। इसके बच्चे के संरक्षण के लिए गहरा और साफ पानी नदी में होना जरूरी है।

अपनी मोहक उछाल और सुंदरता से लोगों का मन मोहने वाली डॉल्फिन की संख्या पर्यावरण परिवर्तन, प्रदूषण और दूसरी वजहों से घटती जा रही हैं। पिछले डेढ़ दशक में तो इसकी तादाद में पचास फीसदी से भी ज्यादा की कमी आई है। यह स्थिति तब है जब इसे राष्ट्रीय जलीय जंतु घोषित किया जा चुका है। जिस तरह लगातार इसकी तादाद में कमी आ रही है उससे लगता है कि कुछ ही सालों की यह मेहमान है। 2008 में एक सर्वेक्षण के बाद इसके अस्तित्व पर चिंता जताते हुए इसे संरक्षित करने की पहल केंद्र सरकार द्वारा की गई थी। तब यह आशा बंधी थी कि शायद इसकी घटती तादाद पर रोक लगाई जा सकेगी। लेकिन इस पहल का कोई खास असर नहीं देखने को मिल रहा है। यदि नदियों में इसकी मौजूदगी की बात करें तो घाघरा में 295, चंबल में 78, यमुना में 47, गंगा में 35, केन में 9 और सोन नदी में महज दस डॉल्फिन ही बची हैं।

गौरतलब है उनकी यह तादाद भी लगातार बढ़ते प्रदूषण और शिकारियों के शिकार की वजह से कभी भी दहाई के अंक में पहुंच सकती है। सर्वेक्षण बताते हैं कि विभिन्न वजहों से हर साल सैकड़ों की तादाद में डॉल्फिन कम होती जा रही हैं। इसके बावजूद इसे बचाने के लिए कोई कारगर उपाय नहीं खोजे जा रहे हैं। इसके अस्तित्व पर मंडराते संकट की वजह से 2009 में 960 किमी लंबी चंबल नदी के 425 किमी क्षेत्र को अभयारण्य घोषित किया गया था। इससे यह आशा जगी थी कि डॉल्फिनों की बेतहासा घटती संख्या पर रोक लगाई जा सकेगी, लेकिन चंबल में पानी कम होने की वजह से दूसरे जलीय जीवों की तरह इसके वजूद पर भी संकट आ खड़ा हुआ है। यह इसलिए कि यह गहरे पानी में रहने वाला स्तनधारी जीव है।

इसका विकास गहरे पानी में ही अच्छी तरह होता है, लेकिन स्वभाव के मुताबिक इसे गहरे पानी वाली नदी मुहैया नहीं कराई जा सकी है। गौरतलब है यह ऐसा जलीय जंतु है जो अंडों के बजाय बच्चे को जन्म देता है। इसके बच्चे के संरक्षण के लिए गहरा और साफ पानी नदी में होना जरूरी है। चंबल में इसकी घटती तादाद की वजह इसके प्रजनन में लगातार आ रही कमी भी बताई जा रही है। इसलिए सरकार को चाहिए कि इसका प्रजनन बढ़ाने के लिए नदियों में और अधिक पानी छोड़े और प्रदूषण तथा शिकारियों से बचाने के लिए तुरंत कदम उठाए।

बगैर आंख के शिकार कर अपनी जिंदगी बिताने वाली यह स्तनधारी मछली के नाम से जाने जानेवाली डॉल्फिन का अस्तित्व बचाने की यदि वाकई में सरकार को फिक्र है तो इस बाबत तुरंत कारगर कदम उठाए, साथ ही प्रदूषण और शिकारियों से बचाने का प्रयास भी करे। केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारों और एनजीओ की भी यदि मदद लेनी हो तो उसके लिए भी पहल की जानी चाहिए। केंद्र सरकार को पहल करनी ही पड़ेगी, यदि इस जलीय जंतु को बचाना है।
 

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