डॉप्लर रडार, इन्तजार अभी बाकी है

10 Sep 2018
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डॉपलर रडार
डॉपलर रडार

डॉप्लर रडार (फोटो साभार - विकिपीडिया)उत्तराखण्ड में बादल फटने से इस वर्ष अब तक लगभग एक दर्जन लोगों की जानें जा चुकी हैं और दर्जनों घर जमींदोज हो चुके हैं। राज्य में इस वर्ष अब तक 10 से ज्यादा बादल फटने की घटनाएँ हो चुकी हैं। प्रदेश की राजधानी देहरादून भी इससे अछूती नहीं है। 11 जुलाई को सीमाद्वार इलाके में बादल फटने से 7 लोग हताहत हुए थे। यदि योजना के अनुरूप प्रदेश में डॉप्लर वेदर रडार (Doppler Weather Radar) लग गए होते तो शायद इन प्राकृतिक विपदाओं के प्रभाव को कम किया जा सकता था।

राज्य में 2013 में आई आपदा के बाद उत्तराखण्ड में डॉप्लर वेदर रडार लगाए जाने की माँग उठी। इस माँग की एक बड़ी वजह थी मौसम विभाग द्वारा प्रदेश में 16 जून 2013 को आई प्राकृतिक विपदा के बारे में सटीक जानकारी देने में सक्षम न हो पाना।

मौसम विभाग ने 14 जून को 48 घंटे भारी बारिश के लिये अलर्ट तो जारी किया था लेकिन किसी स्थान विशेष में बारिश की स्थिति क्या होगी इसकी सूचना नहीं दे पाया था। यदि यह सूचना होती तो उस आपदा के प्रभाव को कम किया जा सकता था जिसमें 5000 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।

डॉप्लर वेदर रडार लगाए जाने की माँग के अनुरूप ‘मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज’ (Ministry of Earth Sciences) ने अपनी सहमति दे दी। इसके बाद प्रदेश के तीन जिलों अर्थात देहरादून के मसूरी, पिथौरागढ़ और नैनीताल में रडार लगाया जाना तय हुआ। ये रडार भारतीय मौसम विभाग (Indian Meteorological Department) द्वारा लगाए जाने हैं।

इस सम्बन्ध में 2014 से लगातार प्रयास हो रहे हैं लेकिन अब तक इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हो पाई है। हालांकि, इण्डिया वाटर पोर्टल द्वारा सम्पर्क किये जाने पर भारतीय मौसम विभाग के देहरादून केन्द्र के डायरेक्टर बिक्रम सिंह ने कहा, “अगले वर्ष नैनीताल के मुक्तेश्वर में पहला डॉप्लर वेदर रडार लगाए जाने की योजना है। इसके लिये जरूरी प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है।”

यह पूछे जाने पर कि बाकी के दो रडार कब लगाए जाएँगे उन्होंने कहा, “स्थानों का चयन लगभग किया जा चुका है और उम्मीद है कि 2020 तक इन्हें भी स्थापित कर दिया जाएगा।”

पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार पहले मसूरी में रडार लगाया जाना था। इसके लिये जमीन की पहचान भी कर ली गई थी जो पर्यटन विभाग की है। लेकिन इस जमीन को अभी तक भारतीय मौसम विभाग को हस्तान्तरित नहीं किया जा सका है।

सम्भव है कि मसूरी की जगह यह रडार टिहरी जिले में लगाया जाये। विशेषज्ञों के अनुसार डॉप्लर वेदर रडार ऊँचाई वाले स्थानों पर लगाया जाता है ताकि सूक्ष्म से सूक्ष्म तरंग भी बिना किसी बाधा के रडार तक पहुँच सके। एक रडार की कीमत लगभग दस करोड़ रुपए है।

गौरतलब है कि बादलों के निर्माण से सम्बन्धित सूचना के लिये उत्तराखण्ड को मौसम विज्ञान केन्द्र, दिल्ली और पटियाला पर आश्रित रहना पड़ता है। इन केन्द्रों से प्रसारित सूचना के आधार पर ही यहाँ बारिश से सम्बन्धित अलर्ट जारी किये जाते हैं। वर्तमान में प्रचलित इस व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी यह है कि इन केन्द्रों से प्राप्त सूचनाएँ पूरे उत्तराखण्ड को कवर नहीं कर पाती हैं। अत्यधिक बारिश, आँधी, बर्फबारी आदि से प्रभावित उत्तराखण्ड में मौसम सम्बन्धी सटीक सूचना को प्रसारित किया जाना बेहद ही जरूरी है ताकि इनसे होने वाले नुकसान कम किया जा सके।

मौसम बदलाव के इस दौर में मौसम सम्बन्धी सूचना को दुरुस्त करना जरूरी हो गया है। इसी उद्देश्य से भारत में पहला डॉप्लर वेदर रडार चेन्नई में 2005 में लगाया गया था। देश में बड़ी संख्या में डॉप्लर वेदर रडार लगाने की पहल मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंसेज द्वारा वर्ष 2007 में की गई थी।

मिनिस्ट्री ने इस सम्बन्ध में एक प्रस्ताव योजना आयोग को भेजा था। इसके तहत देश में कुल 55 रडार लगाए जाने थे लेकिन लालफीताशाही के कारण यह योजना परवान नहीं चढ़ पाई। इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी यह योजना, प्लानिंग स्टेज से कुछ ही आगे बढ़ पाई है।

देश के विभिन्न स्थानों पर अभी तक केवल 27 डॉप्लर वेदर रडार लगाए जा सके हैं। हालांकि, भारतीय मौसम विभाग ने हाल में ही देश के विभिन्न राज्यों में आने वाले दो से तीन वर्षों में 30 डॉप्लर वेदर रडार लगाए जाने की घोषणा की है। इस योजना का फोकस प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित होने वाले हिमालय क्षेत्र के राज्यों- उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर पर है।

भारत ने डॉप्लर वेदर रडार बनाने की तकनीक विकसित कर ली है। इस तकनीक का विकास डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाईजेशन (Defence Research and Development Organisation, DRDO) द्वारा किया गया है। इन रडारों का निर्माण भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (Bharat Heavy Electricals Limited, BHEL) करता है। वर्तमान में यह भारतीय मौसम विभाग के लिये ‘एस बैंड’ रडार का निर्माण करता है।

क्या है डॉप्लर वेदर रडार

डॉप्लर वेदर रडार से 400 किलोमीटर तक के क्षेत्र में होने वाले मौसमी बदलाव के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यह रडार डॉप्लर इफेक्ट का इस्तेमाल कर अतिसूक्ष्म तरंगों को भी कैच कर लेता है। जब अतिसूक्ष्म तरंगें किसी भी वस्तु से टकराकर लौटती हैं तो यह रडार उनकी दिशा को आसानी से पहचान लेता है।

इस तरह हवा में तैर रहे अतिसूक्ष्म पानी की बूँदों को पहचानने के साथ ही उनकी दिशा का भी पता लगा लेता है। यह बूँदों के आकार, उनकी रडार दूरी सहित उनके रफ्तार से सम्बन्धित जानकारी को हर मिनट अपडेट करता है। इस डाटा के आधार पर यह अनुमान पता कर पाना मुश्किल नहीं होता कि किस क्षेत्र में कितनी वर्षा होगी या तूफान आएगा। इस सिस्टम का सबसे बड़ा दोष यह है कि किसी मौसमी बदलाव की जानकारी ज्यादा-से-ज्यादा चार घंटे पहले दे सकता है।

क्यों हैं इसकी जरूरत

बादल फटने की घटना का पूर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल होता हैं। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार बादल फटने की घटना का अनुमान नाउकास्ट (NOWCAST) पद्धति के द्वारा ऐसा होने के कुछ ही घंटों पहले लगाया जा सकता है। बादल का फटना यूँ तो किसी भी समय और कहीं भी हो सकता है लेकिन इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पर्वतीय इलाकों में देखने को मिलता है। इसकी मुख्य वजह है पर्वतीय ढलानों से बादल का टकराकर ऊपर उठना होता है। ऊपर उठाने के क्रम में बादल अपेक्षाकृत ठंडी हवाओं के सम्पर्क में आने से संघनित हो जाते हैं और पानी की बूँदों में तब्दील हो जाते है।

इसी प्रक्रिया के बार-बार होने के कारण इन बूँदों के आकार में बृद्धि होती जाती है और जब उनका भार इतना अधिक हो जाता है कि वायुमंडल सहन नहीं कर सके तो किसी स्थान विशेष में वे अचानक बरस जाते हैं।

बादल फटने की घटना में कम-से-कम 10 मिलीमीटर या उससे अधिक वर्षा होती है जिससे प्रभावित इलाके में अचानक बाढ़ (Flash Flood) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और जान-माल का काफी नुकसान होता है। डॉप्लर वेदर रडार की सहायता से इस तरह की घटनाओं के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा चार घंटा पूर्व जानकारी मिल सकती है, जिससे समय रहते लोगों को सूचना देकर इनका प्रभाव कम किया जा सकता है।

 

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