दर्द की दरिया बनी टिहरी झील

दशकों पहले विस्थापित किए गए ग्रामीण भी विस्थापन के दर्द से अब तक उबर नहीं पाए हैं। देहरादून और हरिद्वार में 1980 में बसाए गए पुरानी टिहरी और डूब क्षेत्र के गांवों के ग्रामीणों को न तो अभी तक निवास प्रमाण प्रत्र हासिल हो पाया है और न ही विस्थापित क्षेत्रों को राजस्व गांव ही घोषित किया गया है। इससे विस्थापित क्षेत्रों के लोग न तो वोट डाल सकते हैं और न उन्हें सरकार द्वारा मिल रही सुविधाएं ही हासिल हो पा रही हैं।

एक लाख से अधिक लोगों को विस्थापन का दर्द दे चुकी भीमकाय टिहरी झील बनने के बाद भी लोगों को सता रही है। 1980 के बाद तीन दशकों में टिहरी झील के निर्माण के दौरान टिहरी व उत्तरकाशी जिलों के एक लाख से अधिक लोगों को देहरादून, हरिद्वार व नई टिहरी में विस्थापित किया गया लेकिन अब यह झील विस्थापित किए गए लोगों से भी अधिक संख्या में ग्रामीणों को अपना शिकार बना रही है। 52 वर्गकिलोमीटर में फैली झील के कारण टिहरी जिले के पांच विकासखंड-प्रतापनगर, जाखणीधार, भिलंगना, थौलधार व चंबा के साथ ही उत्तरकाशी के चन्यालीसौंण विकासखंड के हजारों लोग भूमि धंसने व पर्यावरणीय बदलावों से परेशान हैं। महिला समाख्या, टिहरी द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक प्रतापनगर के 142, जाखणीधार के 30, भिलंगना के 121, थौलधार के 30 गांवों के साथ ही चिन्यालीसौंण के 25 गांव टिहरी बांध के कारण हो रहे भूस्खलन से प्रभावित हैं। प्रतापनगर विकासखंड की स्थिति तो यह है कि बांध बनने के बाद इस क्षेत्र की जनता पूरी तरह अलग-थलग पड़ गई है। प्रतापनगर के लोगों को नई टिहरी, उत्तरकाशी और चंबा पहुँचने के लिए कई किलोमीटर का लंबा चक्कर लगाना पड़ता है। बांध निर्माण के साथ ही प्रतापनगर के लोग पुल निर्माण की मांग करते रहे हैं लेकिन न तो टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ने और न सरकार ने लोगों की बात सुनने की जहमत उठाई है।

बरसात आने के साथ ही टिहरी झील से लगे गांवों की स्थिति और भी खराब हो जाती है। इस बार भी झील से लगे गांवों की हजारों की आबादी भूस्खलन बादल फटने और तेज बरसात जैसी मुश्किलों का सामना कर रही है। गंगा-भागीरथी में लगातार हो रही बारिश के कारण टिहरी झील का जलस्तर भी लगातार बढ़ रहा है। अगस्त महीने के दूसरे हफ्ते में जहां झील का जलस्तर 794 मीटर था वहीं अब यह 800 मीटर पार कर गया है। प्रतापनगर विकासखंड के मदननेगी गांव में जोरदार भूस्खलन हो रहा है। टिहरी झील का बढ़ता जलस्तर गांव के किनारे तक पहुँच चुका है लेकिन विस्थापन के नाम पर प्रशासन ने अभी तक कोई तैयारी नहीं की है। प्रशासन की तैयारी है कि गांववालों को गांव के किनारे बने शिक्षक प्रशिक्षण केंद्र (डायट) में शिफ्ट किया जाए लेकिन यह केंद्र झील के बेहद करीब है। पूरे गांव को पुनर्वासित करना ही एकमात्र विकल्प है। चिन्यालीसौंण का जोगथ मोटर पुल जलस्तर बढ़ने के बाद झील में समा जाता है जिससे दिचली-गमरी क्षेत्र के दर्जनों गांवों का संपर्क तहसील और जिला मुख्यालय से पूरी तरह कट जाता है। उल्लेखनीय है कि दैवीसौड़-जोगथ रोड में झील प्रभावितों को सरकार ने अब तक कोई मुआवजा भी नहीं दिया है।

टिहरी झील लोगों के लिए दर्द की दरिया बनीटिहरी झील लोगों के लिए दर्द की दरिया बनीबरसात के मौसम में टिहरी झील के आसपास लगे क्षेत्रों में बादल फटने की पांच से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं। माना जा रहा है कि भयंकर बरसात और बादल फटने की घटनाओं का टिहरी झील से सीधा संबंध है। झील के कारण ही क्षेत्र में बरसात भी अधिक होने लगी है। प्रतापनगर के बनियाणी में दिनगाड़ और भूनिगाड़ में बादल फटने के बाद आए उफान के कारण ग्रामीणों की उपजाऊ मिट्टी बहने के साथ ही पोखरी व गल्याखेत में भी भूमि तबाह हो गई। पिलखोली गांव में भूस्खलन के कारण कई घर टूट गए हैं, बचे घरों में बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं। गांव में आटा पीसने का साधन घराट भी टूट गया है। नई टिहरी के निकट धनौल्टी तहसील के सैणगांव में कुछ दिनों पहले हुई बादल फटने की घटना के कारण एक ही परिवार के पांच लोग जिंदा दफन हो गए। उत्तरकाशी के रानूगाड़ में हुई बादल फटने की घटना के बाद उत्तरकाशी में नौ पुलिया, एक घराट सहित सैकड़ों एकड़ जमीन तबाह हो गई। गधेरों (छोटी धारों) में ऐसा उफान आया कि सड़क किनारे खड़ी कार और एक चक्की भी बह गई। टिहरी जिले में जौनपुर विकासखंड के मौलधार गांव के लोग भी 12 अगस्त की रात को हुई घटना कभी नहीं भूल पाएंगे। यहां बादल फटने से पांच लोगों की मलबे में दबने से मौत हो गई। इसमें चार लोग एक ही परिवार के थे। इस घटना में 57 वर्षीय गबरू लाल के साथ उनकी दो पुत्रियां उर्मिला और मीला भी मलवे में दबकर मारी गईं। गबरू की पत्नि शांति गंभीर रूप से घायल हुईं।

बरसात के मौसम में राज्य में आ रही आपदाओं की यह एक बानगी भर है। राज्य आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केंद्र के कंट्रोल रूप प्रभारी मेजर राहुल जुगरान के मुताबिक इस साल 1 जून से 24 अगस्त तक राज्य में आई आपदाओं में 50 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 43 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इस वर्ष अब तक 290 आवासीय भवन पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हो गए हैं जबकि 3,000 मकानों को आंशिक क्षति पहुँची है। जाखणीधार प्रखंड के धारामंडल के कोटचौंरी गांव की प्रधान मीरा मंद्रवाल ने बताया कि बारिश के बाद आए मलबे से कौटचौंरी, तुनियाल व सिसोली के काश्तकारों की उपजाऊ भूमि को भारी नुकसान पहुँचा है। प्रतापनगर के चांठी गांव के लोगों की स्थिति सबसे दयनीय है। आधा गांव पहले से ही भूस्खलन की चपेट में था। यहां अनेक मकान पूर्ण या आंशिक रूप से टूट चुके हैं। ऊपर से एक और जोरदार बारिश और दूसरी ओर झील का बढ़ता जलस्तर और लगातार भूस्खलन। इन समस्याओं ने झील से लगे गांवों के लोगों का जीवन दूभर बना दिया है। भारी बारिश के कारण प्रतापनगर क्षेत्र की सड़कें टूट जाती हैं।

टिहरी बांध साइट पर भूस्खलनटिहरी बांध साइट पर भूस्खलनइस साल भी बारिश के कारण पीनलडाली- प्रतापनगर, लंबगांव-कौडार, कोटालगांव-चमियाला सहित कई सड़कें बाधित हुई हैं जिस कारण क्षेत्र में खाद्यान्न से लेकर रसोई गैस तक की आपूर्ति बाधित हुई है। प्रतापनगर के ब्लॉक प्रमुख पूरन चंद्र रमोला कहते हैं कि सरकार को इसका कोई स्थायी समाधान खोजना चाहिए। आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जरूरी चीजों का स्टोर बनाया जाना चाहिए। जाखणीधार के नंदगांव व सादणा गांव के लोग भी इस बरसात भारी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। बीते दिनों झील का जलस्तर बढ़ने से कई गांव के घरों में पानी और मलवा भर गया, वहीं नंदगांव में कई मकान भूधंसाव की चपेट में आ गए। ग्रामीण पुनर्वास की मांग कर रहे हैं। टिहरी की जिलाधिकारी व पुनर्वास अधिकारी राधिका झा का कहना है कि अधिक संवेदनशील क्षेत्रों की सूची बनाकर शासन से उनके पूनर्वास के लिए रिपोर्ट भेजी जाएगी। राज्य के आपदा प्रबंधन मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि झील के चारों ओर 350 मीटर तक का क्षेत्र जोरदार भूधंसाव की चपेट में आ गया है।

सरकार संवेदनशील क्षेत्रों का भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण कराने जा रही है ताकि आवश्यक गांवों का पुनर्वास कराया जा सके। झील के किनारे बसे सैकड़ों गांव के लोग तो यह दर्द सह ही रहे हैं, दशकों पहले विस्थापित किए गए ग्रामीण भी विस्थापन के दर्द से अब तक उबर नहीं पाए हैं। देहरादून और हरिद्वार में 1980 में बसाए गए पुरानी टिहरी और डूब क्षेत्र के गांवों के ग्रामीणों को न तो अभी तक निवास प्रमाण प्रत्र हासिल हो पाया है और न ही विस्थापित क्षेत्रों को राजस्व गांव ही घोषित किया गया है। इससे विस्थापित क्षेत्रों के लोग न तो वोट डाल सकते हैं और न उन्हें सरकार द्वारा मिल रही सुविधाएं ही हासिल हो पा रही हैं।

Email:- Mahesh.pandey@naidunia.com

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