दुनिया का प्रथम हरित संविधान (World's first green constitution)

9 Jul 2009
0 mins read
इक्वाडोर
इक्वाडोर


छोटे से लातिनी अमेरिकी देश ‘इक्वाडोर’ जिसकी अर्थव्यवस्था प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर ही आश्रित है, ने अपने यहाँ ‘पर्यावरणीय संविधान’ की स्थापना कर ‘प्रकृति को कानूनी अधिकार प्रदान’ किये हैं। जहाँ पूरी मानव सभ्यता आत्महत्या की ओर प्रवृत्त है ऐसे समय में प्रकृति को सजीव मानकर उसे कानूनी अधिकार प्रदान करने की 21वीं शताब्दी का अब तक का सबसे महत्त्वपूर्ण, गरिमामय व दूरन्देशी कदम कहा जा सकता है।

हम भारतवासी जो अनन्तकाल से प्रकृति को जीवन्त व अपना सहयात्री मानते आये हैं उन्हें भी हमसे सबक लेकर, पर्यावरणीय अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलन्द करना चाहिए।

गत सितम्बर में एसोसिएटेड प्रेस (एपी) ने एक समाचार प्रकाशित किया था कि इक्वाडोर का नया संविधान ‘वामपंथी राष्ट्रपति राफेल कोरिया के अधिकारों में काफी वृद्धि करेगा। एपी ने अपने 15 अनुच्छेद वाले इस लेख के अन्त में जिक्र किया है कि जिस नए संविधान को देश के 65 प्रतिशत मतदाताओं ने सहमति दी है, उसके अन्तर्गत विश्वविद्यालय स्तर तक मुफ्त शिक्षा और घर पर ही रहने वाली माताओं को सुरक्षा की गारंटी दी गई है।

एपी की इस रिपोर्ट में संविधान से सम्बन्धित एक अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य की पूर्णतया अनदेखी की गई है यह तथ्य है, इक्वाडोर के मतदाताओं ने विश्व के पहले ‘पर्यावरण संविधान’ नाम के दस्तावेज पर अपनी मोहर लगाकर मानव इतिहास में प्रथम बार प्रकृति को ‘अहस्तान्तरणीय अधिकार’ प्रदान किये हैं। कुछ समय पूर्व तक कहीं से भी ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा था कि इक्वाडोर पृथ्वी के प्रथम ‘हरित संविधान’ की जन्मस्थली बनेगा।

अमेरिकी ऋणदाताओं, विश्व बैंक व अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के विशाल ऋण से दबे इक्वाडोर को इस बात के लिये मजबूर किया गया कि वह अपने प्राचीन अमेजन वनों को विदेशी तेल कम्पनियों के लिये खोल दे। तकरीबन 30 वर्ष तक यहाँ से तेल निकालकर अमीर हुई शेवरान टेक्साको नामक तेल कम्पनी ने जहाँ उत्तरी अमेजन को अपवित्र कर दिया वहीं वह लाखों गरीब इक्वाडोरवासियों के जीवन को बेहतर बनाने में भी असफल सिद्ध हुई।

अमेजन वॉच का अनुमान है कि टेक्साको ने 25 लाख एकड़ वर्षा वनों को नुकसान पहुँचाया है और इस इलाके में 600 जहरीले तालाब खोदकर क्षेत्र की नदियों और नालों को भी प्रदूषित कर उन पर निर्भर 30 हजार रहवासियों का जीवन दूभर कर दिया है। टेक्साको जिन इलाकों में कार्य कर रही थी वहाँ पर कैंसर की दर राष्ट्रीय औसत से 130 प्रतिशत अधिक है और बच्चों में रक्त कैंसर का अनुपात इक्वाडोर के अन्य क्षेत्रों के मुकाबले चार गुना अधिक है।

1990 में सिओना, सीकोया, अचुर, हुआओरानी एवं अन्य कई मूल वन निवासियों ने तीस लाख एकड़ पारम्परिक वनभूमि का स्वामित्व हासिल कर लिया था। परन्तु सरकार ने खनिजों और तेल पर अपना पूर्ववत अधिकार कायम रखा था। नवम्बर 93 में इन्होंने टेक्साको के खिलाफ एक अरब डॉलर का पर्यावरणीय मुकदमा दायर किया और इसके बाद मूल निवासियों ने 15 वर्षों के लिये तेल निकालने पर रोक, पर्यावरण सुधार, कारपोरेट द्वारा क्षतिपूर्ति और तेल व्यापार के लाभ में हिस्सेदारी की माँग की।

अमेरिका की पक्षधर तत्कालीन इक्वाडोर सरकार ने 1997 में जब तेल उत्पादन में एक तिहाई बढ़ोत्तरी की घोषणा की तो सभी की निगाहें यासुनी वर्षावनों की ओर मुड़ गई जहाँ पर देश के सबसे बड़े तेल भण्डार मौजूद हैं। जहाँ एक अरब बैरल तेल के भण्डार हैं। यासुनी न केवल दुर्लभ चीतों, विलुप्त प्राय सफेद पेट वाले मकड़ी बन्दरों, विस्मित कर देने वाले भालुओं का ही नहीं बल्कि ऐसे मूल निवासियों का निवास भी है जिन्हें अन्तरराष्ट्रीय संधियों के माध्यम से सुरक्षा प्राप्त है।

राष्ट्रपति राफेल कोरिया की नई सरकार द्वारा 2007 में यासुनी में तेल निकालने पर रोक की घेाषणा को अमेजन वॉच ने इक्वाडोर द्वारा तेल पर निर्भरता समाप्त करने की दिशा में उठाया गया पहला कदम बताया। कोरिया के प्रस्ताव में इक्वाडोर के आर्थिक भविष्य के नए पथ के रूप में नवीकरण (रिन्युबल) ऊर्जा की ओर झुकाव की अनुशंसा की गई थी। नए संविधान की भाषा ने इस नई नीति को और भी आगे बढ़ाया है। इक्वाडोर के नए सुधारवादी संविधान में प्रकृति के अधिकार के नाम से जो अध्याय है वह देशज विचार ‘सुमक कवासे’ अर्थात अच्छा जीवन और भूमि की देवी एंडीअन के आह्वान से प्रारम्भ होता है।

इसे आरम्भिक कथन में कहा गया है, ‘प्रकृति या पंचामामा जहाँ पर जीवन पुनर्उत्पादित होता है और अस्तित्व में रहता है, इसे बनाए रखने के लिये आवश्यक, अनिवार्य आवर्तन, संरचनाएँ, कार्यों एवं क्रम विकास की प्रक्रियाओं को पूर्ण करने हेतु उसे अपने अस्तित्व, रख-रखाव व पुनरुत्पादन का पूरा अधिकार है।’

संविधान में ‘प्रकृति के कानूनी अधिकार भी समाहित किये गए हैं जिसके अन्तर्गत ‘समग्र जीर्णोंद्धार के अधिकार’ एवं ‘शोषण से मुक्ति’ और हानिकर पर्यावरणीय परिणामों को भी सम्मिलित किया गया है।’

आश्चर्यजनक बात यह है कि इस पूरी घटना का अमेरिका से भी सम्बन्ध है। पेंसिलवेनिया स्थित ‘कम्यूनिटी एनवायरनमेंटल लीगल डिफेंस फंड (सीईएलडीएफ) ने सैन फ्रांसिस्को स्थित पंचामामा एलाइंस’ के साथ संयुक्त रूप से इक्वाडोर की 130 सदस्यीय संविधान समिति के साथ एक वर्ष तक कार्य करके नए संविधान के अन्तर्गत ‘पर्यावरणीय अधिकार’ से सम्बन्धित भाषा का निर्माण किया है।

सीईएलडीएफ की वेबसाइट पर लिखा है, ‘आज पर्यावरणीय कानून असफल होते जा रहे हैं। किसी भी पैमाने पर मापें तो हम पाएँगे कि आज पर्यावरण की स्थिति अमेरिका द्वारा 30 वर्ष पूर्व पर्यावरणीय कानूनों को अपनाए जाने से भी बदतर है।’

सीईएलडीएफ का आकलन है कि इन कानूनों के अन्तर्गत प्रकृति के साथ सम्पत्ति जैसा व्यवहार किया गया है। इन कानूनों के माध्यम से पर्यावरण को हानि पहुँचाने को वैधानिकता प्रदान करते हुए यह बताया गया है कि प्रकृति को किस हद तक प्रदूषित किया जा सकता है अथवा कितना नष्ट किया जा सकता है। कानूनों के द्वारा प्रदूषण का निषेध नहीं किया है, उसे सिर्फ सुव्यवस्थित भर कर दिया गया है। इसके ठीक विपरीत ‘प्रकृति के कानूनी अधिकार’ सम्पत्ति कानून को चुनौती देते हुए कहता है कि अस्तित्वमान इको सिस्टम की कार्य प्रणाली में सम्पत्तिधारक के हस्तक्षेप के अधिकारों को समाप्त कर यह सुनिश्चित किया गया है कि इको सिस्टम अपने अस्तित्व व फलने-फूलने के लिये जिन सम्पत्तियों पर निर्भर है उन्हें चिरस्थायी बनाया जाये।’ इस विचार ने अब गति पकड़ ली है। अमेरिका की पेंसिलवेनिया, कैलिफोर्निया, न्यू हेम्पशायर और वर्जीनिया की नगरपालिकों ने भी हाल के वर्षों में ‘प्रकृति के कानूनी अधिकारों’ को अपनाया है।

ग्लोबल एक्सचेंज के शानोन बिग्स का कहना है कि अमेरिकियों द्वारा कदम उठाए जाने के पूर्व एक समय तक गुलामों को भी कानूनन सम्पत्ति ही समझा जाता था सांस्कृतिक वातावरण को बदलने के लिये भी हमें नए कानून लिखने की आवश्यकता है। तोतों से भरे जंगल, जिसमें प्रति हेक्टेयर 300 से अधिक तरह के वृक्षों की प्रजातियाँ हैं, अद्भुत जैवविविधता वाले वर्षावन और गालापागोस द्वीप तक फैली सीमाआें वाला यह देश ‘इक्वाडोर’ दुनिया के पहले हरित संविधान के लिये आदर्श स्थिति निर्मित करता है। इक्वाडोर ने उस जंजीर पर हथौड़े से चोट कर दी है जिसे वाणिज्य ने प्रकृति को अपनी दासता में रखने के लिये बनाया था। अब समय आ गया है कि अन्य राष्ट्र भी उसी हथौड़े को उठाएँ।

 

इक्वाडोर के संविधान में प्रकृति को मिला अधिकार


इक्वाडोर विश्व का पहला देश है जिसने अपने संविधान में प्रकृति को भी अधिकार दिया है। यह मानवता के लिये बदलाव का पहले बड़ा कदम है। इक्वाडोर ने 2007-2008 में दोबारा संविधान लिखा और सितम्बर 2008 में लोगों की रायशुमारी से संविधान में प्रकृति के अधिकार को मंजूरी दी गई।

 

नए संविधान में एक नया अध्याय जोड़ा गया है- प्रकृति का अधिकार


इसमें प्रकृति को सम्पत्ति न मानकर प्रकृति के अधिकार की धाराओं में कहा गया है कि प्रकृति को अस्तित्व, खुद बचाये रखने, अपना रख-रखाव करने व उत्पति की प्रक्रिया को दोबारा जेनरेट करने का अधिकार है। हमारा यह कानूनी अधिकार है कि इकोसिस्टम की तरफ से हम इसे लागू करें।

 

इक्वाडोर के संविधान में प्रकृति को अधिकार


टाइटल ।।

मौलिक अधिकार

 

चैप्टर 1

 

मौलिक अधिकार की पात्रता, प्रयोग व व्याख्या के सिद्धान्त


धारा 10 पात्रता का अधिकार – लोगों को इस संविधान व इंटरनेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्ट्रूमेंट्स में दिये गए मौलिक अधिकार प्राप्त करने का हक है।

प्राकृति का अधिकार इसी संविधान व कानून पर आधारित है।

 

चैप्टर 7: प्रकृति का अधिकार


धारा 71 : प्रकृति या धरती माता, जहाँ जीवन की पुनःउत्पत्ति होती है व उसका अस्तित्व रहता है, उसे भी अस्तित्व, बचे रहने, अपना रख-रखाव करने व अपना जरूरी चक्र, ढाँचा, कार्य व इसकी उत्पत्ति की प्रक्रिया को दोबारा जेनरेट करने का अधिकार है।

हर व्यक्ति, लोग, समुदाय या राष्ट्र समर्थ होगा कि वह जीवधारी से पहले प्रकृति के अधिकारों की माँग करे। इन अधिकारों की पात्रता व व्याख्या संविधान में दिये गए सिद्धान्तों पर आधारित होगी।

सरकार प्राकृतिक व न्यायिक व्यक्तियों व समूहों को प्रकृति की रक्षा करने के लिये प्रेरित करेगा; वह इकोसिस्टम के तहत आने वाले सभी तत्वों के प्रति सम्मान को भी बढ़ावा देगा।

धारा 72 : प्रकृति को खुद को पुनर्स्थापित करने का अधिकार है। यह पुनर्स्थापना किसी भी तरह के प्राकृतिक व न्यायिक लोगों या इस प्राकृतिक व्यवस्था पर निर्भर लोगों व समूहों को क्षतिपूरण देने की बाध्यता से मुक्त होता है।

बड़े पैमाने पर या स्थायी रूप से पर्यावरण पर प्रभाव पड़ने व गैर नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन के दोहन से नुकसान होने पर उसे पुनर्स्थापित करने के लिये सरकार एक प्रभावी तंत्र तैयार करेगी। साथ ही पर्यावरण के प्रभावि होने से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिये जरूरी कदम उठाएगी।

धारा 73 : सरकार उन सभी गतिविधियों को लेकर एहतियाती कदम उठाएगी जिनसे पृथ्वी पर मौजूद प्रजातियों के अस्तित्व पर खतरा हो, इकोसिस्टम को नुकसान पहुँचता हो और जिससे प्राकृतिक चक्र में स्थायी गड़बड़ी होती हो।

राष्ट्रीय अनुवांशिक विरासत को बदल देने वाले जीव व प्राकृतिक तथा गैर प्राकृतिक तत्वों को प्रतिबन्धित किया जाता है।

धारा 74 : व्यक्ति, लोग, समुदाय व नागरिकों को पर्यावरण से फायदा लेने का अधिकार होगा व वे प्राकृतिक सम्पदा बनाएँगे जिससे कल्याण होगा। पर्यावरण से जुड़ी सेवाएँ ग्रहीत नहीं हो सकती हैं; इसका उत्पादन, प्रावधान, इस्तेमाल व दोहन सरकार द्वारा व्यवस्थित किया जाना चाहिए।

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading