दूषित नदियों के अध्ययन के लिए नियुक्त हुए विशेषज्ञ

राज्य में विभिन्न नदियों में प्रदूषण से निपटने के लिए गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मुंबई के एक विशेषज्ञ को नियुक्त किया है, जो प्रदूषण की वजहों और स्थिति में सुधार के उपायों पर एक पूरी रिपोर्ट देगा। जीपीसीबी के अध्यक्ष के.यू मिस्त्री ने बताया कि पर्यावरणीय अभियांत्रिकी के जाने माने विशेषज्ञ दीपक कांतावाला को गुजरात में प्रदूषित नदियों का अध्ययन करने के लिए नियुक्त किया गया है।

मिस्त्री ने कहा, “कांतावाला मुंबई के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं, जिनके पास ऐसे मुद्दों पर काम करने का काफी अनुभव है। गुजरात में प्रदूषित नदियों की वर्तमान स्थिति का पता लगाने के लिए और उनकी विशेषज्ञ सलाह लेने के लिए जीपीसीबी ने उन्हें नियुक्त किया है।” कांतावाला अपना काम शुरू कर चुके हैं। यह नियुक्ति केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा देश में 150 प्रदूषित नदियों की पहचान किए जाने के बाद की गई है। इस सूची में महाराष्ट्र और गुजरात शीर्ष पर हैं।

संप्रग सरकार के शासन के दौरान दिसंबर 2013 में पूर्व पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने राज्यसभा को बताया था कि सीपीसीबी ने देश में विभिन्न नदियों की 150 पट्टियों की पहचान की है। इनमें से 19 प्रदूषित पट्टियां गुजरात में पाई गई हैं। इससे पहले महाराष्ट्र का स्थान है, जिसमें 28 ऐसी प्रदूषित नदी पट्टियां हैं। गुजरात में ऐसी 7 ही प्रदूषित नदी पट्टियां हैं। इस समय यहां केवल 7 ऐसी प्रदूषित नदी पट्टियां हैं, जिनमें सुधार की जरूरत है। इनमें अहमदाबाद में साबरमती और वापी के नजदीक दमन गंगा शामिल हैं। हमारे विशेषज्ञ एकत्र किए गए पानी के नमूनों और इन पर प्रयोगशाला में परीक्षण का काम देखेंगे। विशेषज्ञों के काम में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार कारणों का पता लगाना और प्रदूषण की मात्रा का पता लगाना है। इसमें यह पता लगाना शामिल है कि क्या एक तय अवधि में प्रदूषण बढ़ा है। यदि हां तो उसके मुख्य स्रोत क्या है। जीपीसीबी के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि चूंकि प्रदूषण का स्तर प्रत्येक मौसम के अनुसार बदलता रहा है, इसलिए आंकड़ा संग्रहण और विश्लेषण में पर्याप्त समय लगेगा।

जीपीसीबी के वरिष्ठ पर्यावरण वैज्ञानिक के.सी. मिस्त्री ने कहा कि विशेषज्ञ से स्थिति रिपोर्ट मिल जाने पर हम इन नदियों को साफ करने के लिए अपनी कार्य-योजना तैयार करेंगे। प्रदूषण हर मौसम में बदलता रहता है। इसलिए सटीक विश्लेषण के लिए, विशेषज्ञ को हर मौसम में दो नमूने लेने की जरुरत है। एक मौसम की शुरुआत में और दूसरा मौसम के अंत में। रिपोर्ट आठ महीने से एक साल की अवधि के भीतर आ जाएगी।

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