धरती का रक्षा कवच ओज़ोन आवरण

इस समस्या का निदान सिर्फ एक दिन इसके लिए आरक्षित कर देने और समारोह मनाने से नहीं हो सकता है बल्कि हमें दैनिक दिनचर्या में भी इसे शामिल करना होगा। जरूरत है इसके संरक्षण के छोटे से छोटे उपायों को अपनाने और ओजोन के प्रति आम लोगों को जागरूक करने की। धरती के इस कवच को बचाने के लिए हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे वहीं उर्जा की खपत भी घटानी जरूरी है।

पर्यावरण का मानव सभ्यता से ही नहीं बल्कि पृथ्वी पर विचरण कर रहे समस्त जीव जंतु से गहरा नाता है। इसमें आने वाले बदलाव का असर पूरी धरती पर देखने को मिलता है। यही कारण है कि दुनिया भर में पर्यावरण और उससे संबद्ध क्षेत्रों को बचाने और उसके संरक्षण पर लगातार जोर दिया जा रहा है। ओजोन भी हमारी सभ्यता के विकास में अहम कारक है, लेकिन औद्योगीकरण के नाम पर मनुष्य ने जिस तरह से पर्यावरण के साथ खिलवाड़ किया है उसका नकारात्मक प्रभाव ओजोन पर भी पड़ा है। वैज्ञानिकों को सन् 1970 के दौरान ओजोन आवरण के पतले होने के प्रमाण मिले थे। इस पर चिंता व्यक्त करते हुए सन् 1985 में संपूर्ण विश्व ने वियना में इस समस्या के निपटने के लिए प्रयत्न करने आरंभ किए। इस ऐतिहासिक पहल को वियना संधि के नाम से भी जाना जाता है। इसके बाद समूचे विश्व ने इस मुददे पर गंभीरता से प्रयास शुरू किया जिसके फलस्वरूप मॉन्ट्रियल संधि हुई। सन् 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ओजोन आवरण के संरक्षण के लिए हुई मॉन्ट्रियल संधि की स्मृति में 16 सितंबर को विश्व ओजोन दिवस के रूप में मनाए जाने की घोषणा की। इस साल ओजोन दिवस का ध्येय वाक्य ‘‘हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन हटाने का अद्वितिय अवसर’’ है।

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा अपनी अपील में पूरी दुनिया से ओजोन आवरण के संरक्षण के लिए पहल करने को कहा गया है। साथ ही वैज्ञानिक वर्ग से उम्मीद है कि वे ओज़ोन आवरण एवं जलवायु परिवर्तन के संबंधों के लिए ध्यान देंगे। ओज़ोन नाम ग्रीक शब्द ओज़ेन से पड़ा है जिसका अर्थ ‘‘गंध‘‘ होता है। वास्तव में पृथ्वी के वातावरण में मौजूद विभिन्न प्रकार की गैसें धरती पर जीवन के प्रवाह को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। ओजोन भी ऐसी ही एक गैस है जो जीवन की गतिशीलता में आवश्यक भूमिका निभा रही है। यह गैस पृथ्वी के वायुमंडल के ऊपरी हिस्से में एक ऐसा आवरण बनाती है जिससे अंतरिक्ष से पृथ्वी की सतह की ओर आने वाली हानिकारक पराबैंगनी विकिरण ऊपरी वायुमंडल में ही रूक जाती है। इस प्रकार ओजोन आवरण के कारण धरती के जीव-जंतु उन हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों के कुप्रभाव से बचे रहते हैं। माना जाता है कि ओजोन परत का उद्गम करीब दो अरब वर्ष पूर्व महासागरों से शुरू हुआ। ओजोन परत में जो गैस है उसका मूल स्रोत महासागरों के पादपों से लिए गए प्रकाश संष्लेशण के दौरान उत्पन्न होने वाली ऑक्सीजन से होता है। जो वायुमंडल के समताप में पहुंचकर परमाणुओं में टूट जाते हैं। यही परमाणु दोबारा जुड़कर ओजोन का निर्माण करते हैं।

वैज्ञानिकों का मानना है कि लगभग चालीस करोड़ वर्ष पूर्व ओजोन परत पूर्ण रूप से बन कर तैयार हुई थी। इसके बन जाने के बाद ही जमीन पर जीवन का अस्तित्व आरंभ हो सका क्योंकि अब धरती ओजोन परत के कारण पराबैंगनी किरणों से सुरक्षित थी। इससे पूर्व इन किरणों से मुक्त होने के कारण केवल महासागरों तक ही जीवन का अस्तित्व सीमित था। लेकिन आज जब पृथ्वी पर जीवन को पनाह देने वाले विभिन्न कारकों का संतुलन बिगड़ रहा है। ओजोन गैस से बना आवरण भी झीना होता जा रहा है। उपग्रह से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार ओजोन में लगातार छिद्र बढ़ता ही जा रहा है। अब तक यह कोई 97 लाख वर्ग मील तक पहुंच चुका है जो उतरी अमेरिका के क्षेत्रफल से भी ज्यादा है। ओजोन आवरण के पतले होने के कारण पृथ्वी की सतह पर हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों की अत्याधिक मात्रा में पहुँचने का खतरा पैदा होता जा रहा है। जिसके परिणामस्वरूप ऐसे क्षेत्रों में त्वचा रोग एवं कैंसर जैसी विकृतियां पैदा होने की संभावना है।

असल में ओजोन आवरण में छेद का कारण वायुमंडल में हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन व अन्य हानिकारक रसायनों की मात्रा में वृद्धि से है। इन तत्वों का रिसाव रेफ्रिजरेटर, एयरकंडीशनर, स्प्रे व कुछ औद्योगिक गतिविधियों से होता है। इसके नकारात्मक प्रभाव से केवल धरती ही नहीं बल्कि समुद्र भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। जिससे खाद्य श्रृंखला के गड़बड़ाने का खतरा उत्पन्न होता जा रहा है। जहां एक ओर ओजोन गैस ऊपरी वायुमंडल में आवरण के रूप में हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है वहीं सतह पर वायुमंडल में इसकी अधिक मात्रा हानिकारक हो सकती है। ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (टेरी) ने देश में बढ़ते ओज़ोन के स्तर के बारे में आगाह किया है। लेकिन समस्या का निदान सिर्फ एक दिन इसके लिए आरक्षित कर देने और समारोह मनाने से नहीं हो सकता है बल्कि हमें दैनिक दिनचर्या में भी इसे शामिल करना होगा। जरूरत है इसके संरक्षण के छोटे से छोटे उपायों को अपनाने और ओजोन के प्रति आम लोगों को जागरूक करने की। धरती के इस कवच को बचाने के लिए हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे वहीं उर्जा की खपत भी घटानी जरूरी है। इसके अलावा पर्यावरण अनुकूल उत्पादों और वस्तुओं के इस्तेमाल पर जोर देकर भी हम इसके संरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading