धुंध, वायु गुणवत्ता और मानव स्वास्थ्य पर वार्ता

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हाल ही के दिनों में दिल्ली के पड़ोसी राज्यों द्वारा फसल जलाये जाने के कारण दिल्ली में फैले मात्र 8 प्रतिशत स्मॉग ने राजधानी को एक सप्ताह के लिये घेर लिया। वास्तव में, इस स्मॉग के मुख्य कारण वाहनों द्वारा होने वाला प्रदूषण और इमारतों का निर्माण कार्य हैं जिनके कारण पार्टिकुलेट कण वातावरण में जमा होते रहते हैं। फसलों के जलाये जाने से वायु की गुणवत्ता और अधिक घट जाती है और वही कारण है कि दिल्ली एक गैस चैम्बर बन गया। पिछले दिनों दिल्ली में हुई वर्षा से दिल्ली में कुछ राहत की साँस मिली।

इसी सन्दर्भ में 10 नवम्बर 2017 को शान्ति और विकास के लिये यूनेस्को विश्व विज्ञान दिवस के अवसर पर सीएसआईआर-राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं सूचना स्रोत संस्थान (निस्केयर), नई दिल्ली में व्याख्यान एवं चर्चा का आयोजन हुआ।

समाज में विज्ञान की भूमिका को उजागर करने एवं अनेक उभरते वैज्ञानिक विषयों पर विचार-विमर्श करने के महत्त्व से प्रत्येक वर्ष 10 नवम्बर को शान्ति और विकास के लिये यूनेस्को विश्व विज्ञान दिवस मनाया जाता है। यह हमारे दैनिक जीवन में विज्ञान के महत्त्व और सम्बद्धता को रेखांकित करता है।

इस विषय को महत्त्व देते हुए और दिल्ली में बड़े पैमाने पर स्मॉग के चलते हुई आपात काल स्थिति पर सीएसआईआर-निस्केयर ने इस ज्वलंत विषय पर ध्यान केन्द्रित किया। इस अवसर पर भारत मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक डॉ. के.जे. रमेश और इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग के डिजास्टर मिटिगेशन और मैनेजमेंट फोरम के चेयरमैन डॉ. आर.के. भंडारी ने अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए।

अपने व्याख्यान में डॉ. रमेश ने सामाजिक चुनौतियों - वायु गुणवत्ता, पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा वायु गुणवत्ता की निगरानी पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इस वर्ष की स्थिति पिछले वर्ष के मुकाबले काफी सही है। वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपायों के साथ वर्ष 2018 और भी बेहतर साबित होगा। वर्तमान स्थिति के मुख्य कारण मौसम तथा दूषित वायु की गुणवत्ता एवं फसलों का जलना है।

डॉ. भंडारी ने दिल्ली स्मॉग को फ्रेंकस्टीन कहा जो कि हमारे अपने सृजन का नतीजा है। अपने व्याख्यान में उन्होंने कहा कि दिल्ली का स्मॉग अनेक सन्दर्भों में मानव जीवन के लिये हानिकारक है। दिल्ली में वाहनों की लगातार वृद्धि वायु प्रदूषण का प्रमुख कारण है। उन्होंने धुंध के मुख्य कारक के रूप में निर्माण कार्य पर भी प्रकाश डाला। इसे समस्या के निदान के विषय में बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह सामूहिक जिम्मेदारी है। हम इस समस्या को हल करने के लिये केवल सरकार तक केन्द्रित नहीं रह सकते, इसके लिये हमारी आपसी साझेदारी महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने प्रोत्साहन देते हुए कहा कि प्रत्येक नागरिक को पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में जिम्मेदार भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि हमें बेहतर आपदा प्रबन्धन के लिये समन्वय करना चाहिए।

सीएसआईआर-निस्केयर के निर्देशक डॉ. मनोज कुमार पटैरिया ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। अपने वक्तव्य में डॉ. पटैरिया ने कहा कि तकनीकी विकास मानव जाति के लिये लाभकारी है, जबकि वे प्रदूषण जैसे अवांछनीय प्रभावों को छोड़ देते हैं। उन्होंने कहा कि हमें एक सन्तुलन बनाने और नीतियों को तैयार करने की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि सीएसआईआर-निस्केयर एक राष्ट्रीय संस्थान होने के नाते आम आदमी और नीति निर्माताओं के बीच दो-तरफा संवाद बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकता है। डॉ. पटैरिया ने सीएसआईआर-निस्केयर द्वारा चलाई जा रही जलवायु परिवर्तन की विभिन्न परियोजनाओं की भी जानकारी दी।

इस अवसर पर सीएसआईआर-निस्केयर के वैज्ञानिक, आमंत्रित गणों एवं मीडिया कर्मियों ने भाग लिया और आमंत्रित विशेषज्ञों के साथ विस्तृत विचार-विमर्श किया। तटीय क्षेत्र से विश्वसनीय जलवायु परिवर्तन के आँकड़ों की कमी पर पूछे गये प्रश्न के उत्तर में विशेषज्ञ ने प्रतिक्रिया दी कि बारिश के लिये आँकड़ों को इकट्ठा करने के लिये एक प्रभावी तंत्र मौजूद है परन्तुू सिविल मौसम निगरानी या मौसम संवेदनशील मापदंडों के आँकड़ों जैसे- तेज हवाओं या ओलों के द्वारा फसलों को क्षति, एकत्र करने के लिये कोई प्रभावी तंत्र नहीं हैं। ऐसे आँकड़ों को एकत्र करने के लिये पंचायत स्तर पर मौसम केन्द्रों को स्थापित करने की योजना है।

इस अवसर पर सीएसआईआर-निस्केयर के सूचना और मानव संसाधन विभाग के प्रमुख, श्री संजय बुरडे ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया।

लेखक परिचय

डॉ. जी महेश

वरिष्ठ वैज्ञानिक, राष्ट्रीय विज्ञान पुस्तकालय, सीएसआईआर-निस्केयर, 14, सत्संग विहार मार्ग, नई दिल्ली 110 067

अनुवाद -

सुश्री शुभदा कपिल विज्ञान प्रगति, सीएसआईआर-निस्केयर

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