एक पौधा और एक कुआं

बिहार के गांवों के भ्रमण के सिलसिले में नीतीश कुमार ने भागलपुर जिले के धरहरा गांव में यह पाया कि वहां जब भी किसी लड़की का जन्म होता है तो लोगो उसकी याद में फल देने वाला एक वृक्ष अवश्य लगाते हैं। वहां यह देखकर उनके मन में यह विचार आया कि क्यों नहीं पूरे बिहार में नए वृक्षों का जाल बिछा दिया जाए। नीतीश कुमार का यह प्रयास निश्चय ही सराहनीय है। परंतु आवश्यकता इस बात की है कि केवल वृक्ष ही नहीं लगाए जाएं उसके साथ चापाकल भी लगाए जाएं जैसा कि निर्मला देशपांडे का विचार था।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने निस्संदेह बिहार को एक स्वच्छ प्रशासन दिया है। इस दिशा में उन्होंने कई अभिनव प्रयोग किए हैं। माफिया सरगनाओं को जेल में डाल दिया है। लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए स्कूल में जाने वाली हर लड़की को मुफ्त साइकिल दी है। लड़कियों के स्कूलों में शौचालय का प्रबंध किया है। पूरे बिहार में सड़कों का जाल बिछा दिया है। बिहार में तो उद्योगों का जाल भी बिछ जाता यदि वहां बिजली की उपलब्धता होती। कोयले की सारी खदान झारखंड के हिस्से में चली गईं। दुर्भाग्यवश इन खदानों से बिहार के बिजलीघरों को कोयला नहीं मिल रहा है। इसी कारण वहां पर्याप्त बिजली का उत्पादन नहीं हो रहा है। पीछे मुड़कर देखने से ऐसा लगता है कि बिहार का बंटवारा ही गलत था। राजनेताओं ने अपने स्वार्थ के लिए इस फूलते-फलते राज्य को दो भागों में बांट दिया और आज की तारीख में दोनों राज्य गरीबी के शिकार हैं। बात केवल कोयला खदानों और बिजलीघरों की ही नहीं है। बिहार के तीन-चौथाई जंगल झारखंड में रह गए। वहां भी ठेकेदार माफिया ने जंगलों का बुरी तरह दोहन किया है। नतीजा यह हुआ कि झारखंड में भी आदिवासियों की रोटी छिन गई। जंगलों के अभाव में बिहार तो बुरी तरह प्रभावित हो ही गया। इस समस्या के समाधान के लिए नीतीश कुमार ने एक नया प्रयोग किया है, जो निश्चय ही सराहनीय है।

ऐसा प्रायः सभी राज्यों में होता है, जो पार्टी सत्ता में रहती है उसका सदस्य बनने के लिए लोग लालायित रहते हैं। एक समय था जब कांग्रेस का बिहार में शासन था। उस समय लोग कांग्रेस का सदस्य बनने के लिए बेताब रहते थे। सदस्यता का फार्म ब्लैक में बिकता था। परंतु कुछ धन लोलुप और सत्ता लोलुप राजनेताओं ने बिहार में कांग्रेस का सत्यानाश कर दिया। नतीजा है कि आज बहुत थोड़े से लोग हैं जो कांग्रेस का सदस्य बनना चाहते हैं। इसके विपरीत 50 लाख लोगों ने विभिन्न जिलों और गांवों में यह आवेदन दिया है कि वे जदयू का प्राथमिक सदस्य बनना चाहते हैं। जैसा कि सर्वविदित है जदयू के सुप्रीमो नीतीश कुमार ही हैं। उन्होंने एक शर्त लगाई है कि जो भी व्यक्ति जदयू का सदस्य बनना चाहता है वह कम से कम एक पौधा अपनी जमीन पर लगावे और या तो उसका रंगीन फोटो डाक से या ई-मेल से भेजे। बाद में प्रदेश जदयू के अधिकारी गांव- गांव जाकर इस बात की जांच करेंगे कि जिस व्यक्ति ने पौधा लगाया था वह क्या सचमुच वहां लगा हुआ है और उस पौधे के रखरखाव के लिए उसने क्या प्रबंध किया है। नीतीश कुमार का कहना है कि यदि इस तरह 50 लाख पौधे बिहार में प्रतिवर्ष लगाए जाएं, खासकर ऐसे पौधे जो फल देने वाले हों तो बिहार में जंगलों की वृद्धि हो जाएगी।

इस सिलसिले में मुझे पूर्व सांसद स्व. निर्मला देशपांडे की याद आती है। वे विनोबा भावे की दत्तक पुत्री थीं। उनके साथ भूदान आंदोलन में उन्होंने सारे देश का भ्रमण किया था। इधर हाल में वे एक ऐसी सामाजिक कार्यकर्ता बन गई थीं जो कई क्षेत्रों में चुपचाप काम करती थीं और उनका एकसूत्रीय कार्यक्रम था भारतवासियों की भलाई। यह मेरा सौभाग्य था कि निर्मला देशपांडे के साथ मैंने कई क्षेत्रों में काम किया था। यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि म्यांमार (बर्मा) की प्रसिद्ध नेत्री आंग सांग सू ची की जेल से रिहाई के लिए उन्होंने अथक परिश्रम किया था। निर्मला देशपांडे ने बर्मा की स्थानीय भाषा में ढेर सारे पोस्टर और पैंफ्लेट बनवाकर उन्हें चोरी-छिपे बर्मा में आंदोलनकारियों के पास भेजे थे। साथ ही, उन्होंने हिदायत दी थी कि सैनिक सरकार के खिलाफ आंदोलन अवश्य होना चाहिए। परंतु वह आंदोलन अहिंसक हो। उन्होंने विश्वास दिलाया था कि यह अहिंसक आंदोलन एक दिन अवश्य सफल होगा। जब बर्मा में सैनिक शासन की समाप्ति हुई और सू ची की रिहाई हुई तब दुर्भाग्यवश उसे देखने के लिए निर्मला देशपांडे जीवित नहीं रहीं।

निर्मला देशपांडे ने एक और महत्वपूर्ण योजना शुरू करने का प्रयास किया था। उन्होंने मुझे कहा कि झुंड के झुंड लोग हिंदी भाषी राज्यों से प्रतिदिन उनसे मिलते हैं और कहते हैं कि किस प्रकार राजनेताओं ने चापाकल का पैसा खा लिया और गांव-देहात में लोग पीने के पानी के लिए तरस जाते हैं। उनका विचार था कि इस समस्या के समाधान के लिए आम जनता से एक अपील की जाएगी कि यदि आप अपने पुत्र या पुत्री का विवाह करते हैं तो इस विवाह की याद में गांव में किसी भी निजी या सार्वजनिक स्थान पर फल देने वाला एक पौधा लगाएं और उसकी बगल में एक चापाकल लगाएं जिससे इस पौधे की सिंचाई होती रहे तथा चापाकल से ग्रामीण पानी पीते रहें और नव विवाहित जोड़े को आशीर्वाद देते रहें। जहां यह पौधा और चापाकल लगाया जाएं वहां टिन प्लेट पर नवविवाहित जोड़े का नाम और पता लिखा हो जिससे आज से 20-30 वर्षों के बाद भी लोग याद रखें कि यह पुण्य काम किस परिवार वालों ने किया था।

निर्मला देशपांडे का यह विचार था कि प्रमुख शहरों में प्रायः हर रविवार को वैवाहिक विज्ञापन निकलते हैं। विज्ञापनदाताओं के नाम से एक पोस्टकार्ड भेजा जाए जिसमें यह अपील हो कि आप विवाह में मेहमानों को एक मिठाई कम परोसें या लड़की को एक जेवर कम दें। परंतु उनके विवाह की याद में एक पौधा तथा उसकी बगल में एक चापाकल अवश्य लगाएं। निर्मला देशपांडे का यह विचार सचमुच सराहनीय था। दुर्भाग्यवश अपने विचार को कार्यान्वित करने के पहले उनका अचानक हृदयगति रुक जाने से देहावसान हो गया। परंतु उनके इस विचार को विभिन्न राज्यों में लोग मूर्तरूप दे सकते हैं। विदेशों में अपने प्रियजनों की स्मृति में पौधा लगाने का आम रिवाज है। अक्सर बड़े शहरों में एक ऐसा पार्क होता है जिसमें पैसे देकर कोई व्यक्ति अपने बाप-दादा या किसी अन्य प्रियजन की स्मृति में पौधे लगाता है और उस पार्क की देखभाल करने वाले को एक नियत राशि हर साल दे दी जाती है। उस दिवंगत व्यक्ति के जन्मदिन पर लोग उस पार्क में जाकर उस पौधे को देखते हैं। उसे सहलाते हैं और दिवंगत आत्मा को याद करते हैं।

उसी तरह नवजात शिशुओं की याद में भी अलग पार्कों में पौधे लगाए जाते हैं और जब-जब उस शिशु का जन्मदिन आता है, पार्क के रखवाले को एक उचित धनराशि देने के अलावा केक खाने के लिए पैसे भी दिए जाते हैं। बिहार के गांवों के भ्रमण के सिलसिले में नीतीश कुमार ने भागलपुर जिले के धरहरा गांव में यह पाया कि वहां जब भी किसी लड़की का जन्म होता है तो लोगो उसकी याद में फल देने वाला एक वृक्ष अवश्य लगाते हैं। वहां यह देखकर उनके मन में यह विचार आया कि क्यों नहीं पूरे बिहार में नए वृक्षों का जाल बिछा दिया जाए। नीतीश कुमार का यह प्रयास निश्चय ही सराहनीय है। परंतु आवश्यकता इस बात की है कि केवल वृक्ष ही नहीं लगाए जाएं उसके साथ चापाकल भी लगाए जाएं जैसा कि निर्मला देशपांडे का विचार था। यह प्रयोग सारे देश में किया जा सकता है और निश्चय ही इसके सराहनीय परिणाम निकलेंगे।

लेखक पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत हैं।

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