गांव के लोगों ने खुद ही बना लिया अपना बांध

19 Apr 2011
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पिथौरा/रायपुर। पानी की कमी से निपटने के लिए छत्तीसगढ़ के देवरूम गांव के लोग जोंक नदी में हर साल अपने बलबूते बांध का निर्माण कर संकट से निजात पा रहे हैं। बांध से पांच किमी के दायरे में पानी का भराव रहता है। इससे आसपास की पंद्रह सौ एकड़ जमीन पर गर्मी में रबी की फसल ली जाती है। इसके चलते भूजल स्तर में सुधार हो रहा है।

हर साल बांध निर्माण पर सवा से डेढ़ लाख रुपए का खर्च आता है और यह भारत ग्रामीण खुद वहन करते हैं। देवरूम, कसडोल ब्लाक का सरहदी गांव है। यहां के ग्रामीणों ने बताया कि हर बरस पानी की समस्या से त्रस्त होने के बाद इससे निजात पाने आपस में बैठकर सबने एक योजना बनाई। उसके बाद देवरूम और नगेड़ी के मध्य गुजरने वाली जोंक नदी पर अस्थायी बांध बनाने का निर्णय लिया गया। इसके लिए दस किसानों ने मिलकर खर्च उठाया और जोंक नदी की धार में साइज पत्थर एवं ईंट की करीब दस फीट पक्की दीवार खड़ी कर बांध तैयार कर लिया गया।

 

 

65 मोटर पंप चलाकर की जाती है सिंचाई


किसानों ने रबी फसल की सिंचाई के लिए नदी में अलग-अलग स्थानों पर करीब 65 मोटर पंप लगा लिए हैं, इससे खेतों में नियमित सिंचाई के लिए पानी भेजा जा रहा है। जनवरी में इस बांध को बनाया गया था। ज्यादा पानी भरने के कारण एक बार रात में बांध फूट गया था, लेकिन किसानों ने हार नहीं मानी और सीमेंट बोरी में रेत भरकर पानी को रोका गया। साथ ही 13 नग केसिंग पाइप लगाकर उसके ऊपर फिर से पक्की दीवाल का निर्माण किया गया और आज बांध सुरक्षित है।

 

 

 

 

बांध से पानी छोड़ने कलेक्टर का दबाव


इस कार्य से जुड़े किसानों ने बताया दो वर्ष पूर्व गिरौदपुरी मेले के वक्त बांध से पानी छोड़ने का दबाव तत्कालीन कलेक्टर ने डाला था। पानी देने से इनकार करने पर, प्रशासन ने बिना अनुमति दीवार निर्माण करने का आरोप लगाकर कार्रवाई करने की धमकी भी दी गई थी, किंतु किसानों के दबाव के चलते जिला प्रशासन को पीछे हटना पड़ा था।

ग्रामीणों को शिकायत है कि उसके स्वयं के प्रयास से और स्वयं के व्यय पर बिना किसी इंजीनियर की मदद से बनाये गये इस बांध से प्रशासन ने पानी जरूर मांगा, परंतु एक बार भी यहां स्टापडेम बनाने की सुध नही ली। उन्होंने बताया कि यहां योजना बनाकर स्टापडेम तैयार किए जाने से अधिक किसानों को इसका लाभ मिल सकता है।

 

 

 

 

हर साल बनाते हैं बांध


बरसात के पहले बांध को किसान खुद तोड़ देते है, क्योंकि जोंक नदी में हर साल ही बाढ़ आती है और ऐसे में ज्यादा नुकसान की आशंका रहती है। हालांकि पूरा बांध नहीं ढहाया जाता है, जरूरत के मुताबिक दीवार तोड़ी जाती है। बरसात के बाद फिर से बांध बना दिया जाता है। यह क्रम विगत 15 वर्षो से चल रहा है।

 

 

 

 

लहलहा रही फसल


ग्राम देवरूम में करीब 1500 एकड़ खेतों में इन दिनों रबी फसल लहलहा रही है। साथ ही क्षेत्र के आधा दर्जन ग्राम देवरूम, नगेड़ी, मुगुलभांठा, देवरी, गोलाझर, तिलसाभांठा, निठोरा, चांदन एवं थरगांव आदि के लोगों को इस बांध के पानी का लाभ सिंचाई एवं निस्तारी के रूप में मिल रहा है। बांध नुमा दस फीट ऊंची दीवार खड़ी कर देने से जोंक नदी में कहीं दस तो कहीं बीस फीट गहरा पानी भर गया है। ऐसा पांच किमी के दायरे में है।

 

 

 

 

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