गांव की गलियों से गुजरता है देश के विकास का रास्ता

धड़ोली गांव में ग्रामीणों द्वारा तालाब के बीच से मिट्टी डालकर दो भागों में बांटा गया तालाबजींद। ग्राम पंचायतों को देश की रीढ़ माना जाता है और देश के विकास का रास्ता भी गांव की गलियों से होकर ही गुजरता है। अगर देश को विकास के रास्ते पर आगे बढ़ाना है तो सबसे पहले गांवों का विकास जरूरी है और गांवों का विकास ग्राम पंचायतों की जागरूकता के बिना संभव नहीं है।

अब ग्रामीण क्षेत्र के लोग जागरूक होने लगे हैं। गांव के गौरे से जनहित के लिए एक जनक्रांति की चिंगारी उठने लगी है। जिसके प्रमाण हरियाणा प्रदेश के जींद जिले के कई गांवों में देखने को मिल रहे हैं। यह अकेले जींद जिले के नहीं बल्कि जींद के अलावा अन्य जिलों में भी यह प्रमाण साफ देखे जा सकते हैं।

आज भले ही बढ़ती तकनीकों व आदान-प्रदान के साधनों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के पास रोजगार के कुछ अन्य साधन भी स्थापित हो गए हों, लेकिन एक समय था जब ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के पास गुजर-बसर के लिए कृषि व पशु पालन के अतिरिक्त कोई साधन नहीं थे और दोनों कार्यों के लिए पानी की सबसे पहली प्राथमिकता थी। लेकिन उस समय लोगों के पास पानी के भी पर्याप्त साधन नहीं थे। इसलिए उस समय लोगों द्वारा कृषि की सिंचाई के लिए कुए खोदे जाते थे और पशुओं को पानी पिलाने व घरों में पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए गांव के बाहर तालाब का निर्माण किया जाता था।

लोगों द्वारा तालाब की गरीमा को बनाए रखने के लिए तालाब में गंदगी इत्यादि की सख्त मनाही होती थी। लेकिन समय के साथ-साथ सब कुछ बदलता चला गया। तालाब व कुओं की गरीमा भी खत्म होती चली गई। गांव के गंदे पानी की निकासी का स्थान गांव के तालाबों में होने लगा। घरों में कपड़ों की साफ-सफाई व बर्तन इत्यादि की सफाई के लिए सर्फ, साबुन व अन्य रासायनिक पदार्थों का इस्तेमाल होने लगा।

इससे तालाबों का पानी भी दूषित होने लगा। क्योंकि सर्फ व साबुन जैसे रासायनिक पदार्थों के अंश का जैवीय विघटिकरण नहीं होता। इसके अंशों का जैवीय विघटन न होने के कारण ये किसी भी स्थिति में नष्ट नहीं होते। जब घरों में इनका इस्तेमाल होता है तो ये पानी में मिलकर नालियों के माध्यम से तालाबों में पहुंच जाते हैं। पशुओं द्वारा तालाब का पानी पीने के कारण ये अंश पानी के माध्यम से पशुओं के पेट में पहुंच जाते हैं।

जिस कारण पशुओं के दूध इत्यादि से इनके मनुष्य के शरीर में पहुंचने के आसार भी बने रहते हैं और जानकारी के अभाव के कारण लोगों का ध्यान इस तरफ नहीं है। लेकिन अब ग्रामीण क्षेत्र के लोगों में भी जागरूकता बढ़ने लगी है और अधिकतर गांव के लोगों ने इस समस्या का समाधान ढूंढ़ लिया है। इस गंदगी से निजात पाने के लिए लोगों ने छोटे तालाब के रूप में इसका विकल्प ढूंढ निकाला है।

हरियाणा प्रदेश के जींद जिले के धड़ोली, मोरखी, कलावती, भूरायाण सहित कई गांवों में यह उदाहरण देखने को मिल रहे हैं। जहां पर ग्रामीणों द्वारा तालाब को दो भागों में बांट दिया गया है। एक भाग में गांव का गंदा पानी जमा होता है और दूसरे भाग में पशुओं के लिए स्वच्छ पानी भर दिया जाता है।

ग्रामीणों को भले ही अपने इस नए प्रयोग की गहराई के बारे में पता न हो लेकिन यह कटू सत्य है कि ग्रामीण क्षेत्र के लोगों द्वारा किए गए ये छोटे-छोटे प्रयोग ही एक दिन दुनिया को एक नया रास्ता दिखाएंगे। सरकार द्वारा चलाई जा रही जल संरक्षण की मुहिम में भी ग्रामीणों का यह प्रयोग काम आ सकता है। गांव के बाहर अलग से जमा हो रहे इस गंदे पानी को ट्रीट कर दोबारा से प्रयोग में लाया जा सकता है या इस गंदे पानी को सिंचाई के लिए भी काम में लिया जा सकता है।

ग्राम स्तर पर हो रहे ऐसे प्रयोगों से यह बात आइने की तरह साफ है कि अगर देश का विकास करना है तो सबसे पहले ग्राम पंचायतों को साथ लेकर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को जागरूक करना होगा। इसलिए सरकार को भी यह बात ध्यान रखनी होगी कि ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए जब भी कोई योजना तैयार की जाए या अमल में लाई जाए तो सबसे पहले योजना के महत्व के बारे में ग्राम पंचायतों को विस्तार से जानकारी दे कर जागरूक किया जाए और योजना को सफल बनाने के लिए पूरा दायित्व ग्राम पंचायतों को ही सौंपा जाए। इसके अलावा ग्राम पंचायतों को भी चाहिए कि वे भी देश के विकास व जनहित में अपना पूरा योगदान दें।

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